एलोपैथिक और आयुर्वेदिक - इसमें अंतर क्या है और कौन है ज्यादा असरदार?
एलोपैथिक और आयुर्वेदिक उपचार प्रणालियां में क्या फर्क है? कुछ लोग झट से आयुर्वेदिक उपचार को नकार देते हैं जबकि दूसरे आयुर्वेदिक पर पूरा विश्वास करते हैं। एलोपैथिक और आयुर्वेदिक या सिद्ध में से सही उपचार चुनना एक भ्रामक चीज हो सकती है। इस लेख में, सद्गुरु हर प्रकार के उपचार के फायदों के बारे में बता रहे हैं।
आयुर्वेद और सिद्ध जैसी चिकित्सा प्रणालियां आज की दुनिया में वैकल्पिक उपचार मानी जाती हैं। कुछ लोग झट से ऐसे उपचारों को नकार देते हैं जबकि दूसरे उन पर पूरा विश्वास करते हैं। एलोपैथी, आयुर्वेदिक उपचार या सिद्ध उपचार में से सही उपचार चुनना एक भ्रामक चीज हो सकती है। इस लेख में, सद्गुरु हर प्रकार के उपचार के फायदों के बारे में बता रहे हैं। वह किसी एक उपचार को सर्वोत्तम बताने की बजाय सभी प्रणालियों को साथ लेकर चलने की अहमियत पर बल देते हैं।
आयुर्वेद क्या है ?
तो देशी दवाओं, जिसे आम तौर पर आयुर्वेद के रूप में जाना जाता है, में इतना क्या अलग होता है? आयुर्वेद जीवन के एक अलग आयाम और समझ से पैदा होता है। आयुर्वेद प्रणाली का एक बुनियादी हिस्सा यह समझना है कि हमारे शरीर बस उसका एक ढेर हैं, जो हमने इस धरती से इकट्ठा किया है। धरती की प्रकृति और पंचभूत यानि धरती को बनाने वाले पांच तत्व इस स्थूल शरीर में व्यक्त होते हैं। अगर आप इस शरीर को सबसे असरदार और उपयोगी तरीके से रखना चाहते हैं, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप इस शरीर के साथ जो भी करें, उसका इस धरती के साथ संबंध हो।
आयुर्वेद में कहा जाता है कि इस धरती पर पाई जाने वाली हरेक जड़, हरेक पत्ता, हरेक पेड़ की छाल का औषधीय गुण है। हमने केवल कुछ का ही इस्तेमाल करना सीखा है। बाकी का इस्तेमाल करना हमें अभी सीखना है। सेहत कोई ऐसी चीज नहीं है, जो आसमान से आपके ऊपर गिरे। सेहत एक ऐसी चीज है जो आपके भीतर से पैदा होती है। क्योंकि शरीर आपके भीतर से बनता है। गुण धरती से आते हैं, मगर वे आपके भीतर से विकसित होते हैं। इसलिए अगर आपको मरम्मत का कोई काम करना है, तो आपको निर्माता के पास जाना चाहिए, किसी लोकल मैकेनिक के पास नहीं। आयुर्वेद का मूल तत्व यही है।
आयुर्वेद में, हम समझते हैं कि अगर हम शरीर की पर्याप्त गहराई में जाएं, तो यह शरीर अपने आप में कोई संपूर्ण चीज नहीं है। यह एक जारी प्रक्रिया है, जिसमें वह धरती भी शामिल है, जिस पर आप चलते हैं।
एक समग्रतावादी प्रणाली का मतलब सिर्फ शरीर का संपूर्ण रूप में उपचार करना नहीं है। समग्रतावादी प्रणाली का मतलब जीवन का एक संपूर्ण रूप में उपचार करना है, जिसमें धरती, हम जो खाते हैं, जिस हवा में सांस लेते हैं, जो हम पीते हैं – सब कुछ शामिल होते हैं। इन सब चीजों का ध्यान रखे बिना, आयुर्वेद का असली लाभ नहीं दिख सकता। अगर आयुर्वेद हमारे जीवन और हमारे समाजों में एक जीवंत हकीकत बन जाता है, तो लोग देवताओं की तरह रह सकते हैं।
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आयुर्वेद और एलोपैथी में अंतर
जब हम सेहत, बीमारी या व्याधि की बात करते हैं, तो उनके दो बुनियादी प्रकार हैं। एक तरह की व्याधि हमारे शरीर में बाहर से आती है, जो बाहरी जीवाणुओं का हमला होता है। उससे निपटने का एक तरीका होता है।
ज्यादातर पुरानी बीमारियों के लक्षण बड़ी समस्या का छोटा सा हिस्सा होते हैं। हम हर समय बस उन छोटे हिस्सों का इलाज करते हैं। असल में अब यह उपचार का एक स्थापित तरीका बन गया है – चाहे आपको मधुमेह हो, उच्च रक्तचाप या दमा, डॉक्टर आपसे इसी बारे में बात करते हैं कि बीमारी को संभाला कैसे जाए। वे कभी उससे छुटकारा पाने की बात नहीं करते। मगर बीमारी की लक्षणों के रूप में अभिव्यक्ति बहुत छोटी चीज होती है। जो असल में होता है, वह अधिक गहरे स्तर पर होता है, जिसे बाहरी दवाओं से ठीक नहीं किया जा सकता।
अगर आप बहुत गंभीर स्थिति में हैं, तो किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास जाना सही नहीं होगा। आप उसके पास तभी जाएं, जब आपके पास ठीक होने का समय हो। आपात स्थिति के लिए एलोपैथी में बेहतर व्यवस्था है। मगर जब आपकी समस्याएं हल्की होती हैं, और आप जानते हैं कि वे उभर रही हैं, तो आयुर्वेदिक उपचार और दूसरी प्रणालियां उपचार के बहुत प्रभावशाली तरीके हैं।
आयुर्वेद और सिद्धवैद्य
सिद्ध या सिद्धवैद्य दक्षिणी भारत, मूल रूप से तमिलनाडु में प्रचलित है। चिकित्सा के इस आयाम को अगस्त्य ऋषि ने खोला था। कहा जाता है कि आदियोगी स्वयं इसका उपयोग करते थे और अगस्त्य इसे दक्षिण में ले कर आए। उन्होंने चीजों के बहुत शक्तिशाली मिश्रण, शानदार प्रयोग बनाए। सिद्ध कितना असरदार है, यह देखकर अविश्वसनीय लगता है। सिद्ध चिकित्सा प्रणाली में, संत, आत्मज्ञानी और सिद्ध चिकित्सक अलग नहीं थे। ऋषि-मुनि या संत हमेशा से थोड़ा-बहुत उपचार जानते थे क्योंकि इंसान के स्वास्थ्य की उनके आध्यात्मिक विकास में एक अहम भूमिका है।
सिद्ध आयुर्वेद से बहुत अलग है। मैं कहूंगा कि यह आयुर्वेद के मुकाबले शरीर की ऊर्जा प्रणाली के ज्यादा करीब है।
सिद्ध इस रूप में बहुत अलग है कि हालांकि इसमें भी जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल होता है, मगर यह मुख्य रूप से तत्वों से संबंधित है। यह योग विज्ञान के अधिक करीब है क्योंकि योग विज्ञान की बुनियाद भूत शुद्धि या अपने तत्वों के शुद्धिकरण में है। यह योग विज्ञान से विकसित हुआ है। चूंकि यह तात्विक है, आप शरीर को बनाने वाले मूल तत्व के साथ काम करते हैं। आप उसमें कोई दूसरी दवा डालने की कोशिश नहीं करते। इसलिए यह असल में कोई दवा नहीं है।
इसी वजह से, इसका इस्तेमाल करने वाले इंसान के लिए पढ़ाई की कम और आंतरिक महारत की जरूरत ज्यादा होती है। यह भी आज एक समस्या है। सिद्ध वैद्य साधना के बिना नहीं बन सकते। आज सिद्ध चिकित्सा के लिए कॉलेज बना दिए गए हैं मगर इस तरह से यह कारगर नहीं होगा। ‘सिद्ध’ का मतलब है, स्थापित या प्रमाणित या एक ऐसा व्यक्ति जो अपने अंदर दृढ़ता से स्थापित हो। ईशा में हमारी पहुंच कुछ ऐसी सिद्ध प्रणालियां तक है, जो आम तौर पर सिद्ध चिकित्सा करने वाले दूसरे डॉक्टरों के पास उपलब्ध नहीं होते।
ईशा योग केंद्र में स्थित ईशा कायाकल्प और दक्षिण भारत के विभिन्न शहरों में मौजूद ईशा आयोग्य क्लीनिक सद्गुरु द्वारा स्थापित समग्रतावादी स्वास्थ्य केंद्र हैं। सद्गुरु खुद इन केंद्रों के बारे में और जानकारी दे रहे हैं...
आयुर्वेद और ईशा कायाकल्प
सद्गुरु:
ईशा कायाकल्प की अनूठी बात यह है कि यह सिद्ध और योग पर आधारित उपचार है। तो क्या सिर्फ योग कार्यक्रम काफी नहीं हैं? जब कोई व्यक्ति लंबे समय से बीमार होता है, तो उसके लिए सिर्फ एक कार्यक्रम काफी नहीं हो सकता है।
मगर यह कोई अस्पताल नहीं है, जहां हम हर तरह की बीमारी का इलाज करते हैं। इसका संबंध कायाकल्प से ज्यादा है। कायाकल्प प्रणाली का मतलब एक खास स्तर, जहां शरीर अपने आप को दुरुस्त करता है, उस हद तक ऊर्जा प्रणाली को सक्रिय करना अधिक है। ईशा कायाकल्प का सामान्य नजरिया, मकसद और माहौल, स्पा का नहीं है। यहां एक अधिक समर्पित माहौल है। लोग सिर्फ आनंद के लिए किसी स्पा में जा सकते हैं। यह कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसका आप आनंद उठाएं। यहां अच्छा वातावरण होता है, मगर यह सिर्फ आनंद के लिए नहीं है। हम हमेशा इस बात का ध्यान रखते हैं कि किसी इंसान को इतना तंदुरुस्त बनाएं ताकि वह आध्यात्मिक संभावना को हासिल कर सके।
ईशा आरोग्य
ईशा आरोग्य में, सिद्ध वैद्य, आयुर्वेद, नेचुरोपैथी, योग प्रणाली, होम्योपैथी और ऐलोपैथी, सभी छह चिकित्सा प्रणालियां एक जगह साथ-साथ मौजूद हैं। इस क्लीनिक को आम तौर पर एलोपैथी डॉक्टरों द्वारा संचालित किया जाता है क्योंकि आज की दुनिया में रोगनिदान के लिए वे बेहतर प्रशिक्षित होते हैं।
लोग मुझसे पूछते रहे हैं, ‘सद्गुरु, ये सभी प्रणालियां एक जगह कैसे काम कर सकती हैं?’ मैं किसी एक प्रणाली के प्रति समर्पित नहीं हूं। मेरी प्रतिबद्धता मानव सेहत के लिए है। आप सिद्ध के प्रति समर्पित हो सकते हैं, आप एलोपैथी के प्रति समर्पित हो सकते हैं, आप आयुर्वेद के प्रति समर्पित हो सकते हैं, मगर जब कोई इंसान बीमार होता है, तो वह सेहत चाहता है चाहे जिस तरह से भी। क्या आपको परवाह है कि आपको किस तरह ठीक होना चाहिए? जब आप सेहतमंद नहीं होते, तो आप किसी भी दशा में सेहत चाहते हैं। चीजों का यह मिश्रण बहुत बढ़िया तरीके से काम कर रहा है।
संपादक की टिप्पणी: ईशा कायाकल्प और ईशा आयोग्य क्लीनिक पर अधिक जानकारी के लिए होमपेज पर जाएं