विषय सूची
1. कृपा का सही मतलब
2. क्या आपमें से कृपा रिसती है?
3. आप कैसे जानेंगे कि आप पर गुरु की कृपा है?
4. कृपा काम करती है
5.कृपा का पात्र बनने के सात तरीके--
5.1शांभवी महामुद्रा क्रिया - दिव्यता को आमंत्रण
5.2व्यक्तित्व से उपस्थिति की ओर आना
5.3कर्मयोग
5.4बिना रुकावट के, पूरी तरह से शामिल होना
5.5बड़े होने का दिखावा करना बंद कीजिये
5.6सभी चीजों को एक ही समझें
5.7हर किसी चीज़ के सामने झुकें
6.सद्‌गुरु की कविता - कृपा की बुनकारी

सदगुरु : अस्तित्व की सभी अभिव्यक्तियों में ऊर्जा काम करती है। ये सूर्यप्रकाश, हवा, गुरुत्वाकर्षण के रूप में काम करती है और कृपा के रूप में भी। गुरुत्वाकर्षण आपको नीचे खींचने की कोशिश करता है, हवा आपको उड़ा देने की कोशिश करती है और सूरज जलाने की कोशिश करता है। पर, कृपा आपको धरती से ऊपर उठाने की कोशिश करती है। ये सब बातें नकारात्मक ढंग से कहीं गयी हैं। आप सकारात्मक भाव से कहना चाहें तो कह सकते हैं कि पृथ्वी आपसे गले मिलने की कोशिश कर रही है, हवा आपको ठंडा करने की कोशिश कर रही है और सूरज गर्म करने की कोशिश कर रहा है। इसी तरह, कृपा आपको विकसित करने की कोशिश कर रही है। हम नकारात्मक भाव का उपयोग करेंगे क्योंकि आप इससे जुड़ेंगे नहीं। आप अभी जिन सीमितताओं में जकड़े हुए हैं, आपको उनमें से खींच कर अलग करने की, उनसे ऊपर उठाने की कोशिश कृपा ही कर रही है। 

#1. कृपा का सही मतलब

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हम अपनी शक्ति, बुद्धि और जानकारी से जो कुछ भी कर सकते हैं, वो सब बहुत सीमित है। अगर आप कृपा की खिड़की को खोल सकें तो जीवन ऐसे अद्भुत तरीके से चलेगा, जो संभव होने की आपने कल्पना भी नहीं की होगी। आपके सामने हर जगह यह सवाल है, "मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ"? पर, ये कोई करने वाली चीज़ नहीं है। आपके अंदर, अगर कोई खाली जगह है जहाँ आपके विचार और पूर्वाग्रह, आपकी भावनायें, विचारधारायें और फिलोसोफी अंदर ना आ सकें, तो आपके जीवन में कृपा एक प्रबल शक्ति की तरह होगी। अगर आप अपने ही विचारों, अपनी ही भावनाओं और कल्पनाओं आदि से भरे हुए हैं तो कृपा आपके आसपास बहते हुए भी, आपके अंदर कुछ नहीं होगा। ज्यादातर लोगों के जीवन के साथ यही त्रासदी है कि उनके आसपास एक जबर्दस्त संभावना हमेशा बनी रहने के बावजूद वे उसे पूरी होने नहीं देते। सभी आध्यात्मिक प्रक्रियाओं के लिये विचार, फोकस और करने के तरीके यही हैं कि आपके व्यक्तित्व को फाड़ डाला जाये, खत्म कर दिया जाये, जिससे आपके अंदर कोई खाली उपस्थिति बने और वो आपके लिये कृपा और संभावना का ऐसा प्रवेशद्वार बने जिसके बनने की संभावना के बारे में आपने कभी सोचा ही न होगा।

#2. क्या आपमें से कृपा रिसती है?

सवाल यह नहीं है कि आप पर कृपा काम कर रही है या नहीं? वह तो कर ही रही है, वरना आपका अस्तित्व ही संभव नहीं। सवाल सिर्फ यह है कि क्या कृपा आपमें से रिसकर बह रही है( यानि, क्या आप दूसरों के लिये सहायक हैं, भलाई का काम कर रहे हैं) या फिर आप इसे किसी खराब चीज़ में बदल रहे हैं और दूसरों के साथ दुष्टता का व्यवहार कर रहे हैं?

एक अंधे ऋषि थे जो किसी जंगल में रहते थे। लोग बहुत कम ही, शायद कभी ही उस तरफ़ से गुजरते होंगे। जब वे उधर से निकलते तो उन्हें कुछ दे देते और ऋषि उसी से अपना गुजारा चलाते। एक दिन, राजा, मंत्री और उनके सैनिकों की टुकड़ी जंगल में शिकार के लिये आये। शिकार के दौरान एक हिरन का पीछा करते हुए रास्ता भूल गये। राजा बाकी लोगों से बिछड़ गया। चूंकि राजा के पास सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा था, तो वह बहुत आगे निकल गया और भटक गया। वे एक दूसरे को ढूंढते रहे और खो गये। फिर, एक सैनिक ने उन ऋषि को देखा और पूछा, "क्या आपने राजा को देखा है"? ऋषि ने कहा, "नहीं"! फिर सेनापति आया और उसने भी वही पूछा। ऋषि ने उसे भी नहीं कहा। फिर मंत्री वहाँ पहुँचा और उसने भी वही सवाल किया। ऋषि ने फिर से नहीं कहा। जब राजा खुद पहुँचा तो उसके पूछने पर ऋषि ने राजा को तुरंत पहचान लिया और कहा, "आपके लोग आपको ढूँढते हुए यहाँ आये थे। पहले सैनिक आया, फिर सेनापति और फिर मंत्री। राजा ने देखा कि ऋषि अंधे थे तो उसने पूछा, "हे दिव्य मुनि, आपको कैसे पता चला कि पहले सैनिक आया था, फिर सेनापति और फिर मंत्री? ऋषि बोले, " जो पहला व्यक्ति आया, उसने कहा, "ओ अंधे, क्या तुमने हमारे राजा को इधर आते देखा है"? तो मैं समझ गया कि वो आपका सैनिक होगा! दूसरे ने अधिकार के साथ पर बिना सन्मान के पूछा तो मुझे लगा कि वो आपका कोई सैनिक अधिकारी ही होगा। तीसरा जो आया, उसने बहुत सन्मान के साथ पूछा, तो मैं समझ गया कि वह आपका मंत्री होगा। जब आप आये और जब आपने मेरे पैर छू कर मुझे दिव्य मुनि कहा, तो  मैं समझ गया कि आप राजा होंगे।

आप चाहे खाना खायें या पानी पियें या साँस लें, ये सब कृपा ही है। हाइड्रोजन के दो भाग ऑक्सीजन के एक भाग के साथ मिल कर जीवन देने वाला पानी बनाते है। यह भी कृपा ही है। आप इसको समझा सकते हैं पर आप ये नहीं जानते कि ऐसा क्यों होना चाहिये? यह सब जो कुछ भी हो रहा है, वह कृपा ही है। तो अगर आप खाना खा रहे हैं, पानी पी रहे हैं और साँस ले रहे हैं तो आपमें से भी कृपा पसीजनी ही चाहिये, है कि नहीं? पर, दुर्भाग्यवश, लोग अपने अंदर बहुत अच्छी, अद्भुत चीजें ले तो लेते हैं पर वे इनसे दुष्टतापूर्ण चीजें बनाते हैं और उन्हें दूसरों पर खराब, बकवास चीजों के रूप में डालते हैं। पर, आप पेड़ को देखिये। आप उसमें कचरा डालते हैं लेकिन वो आपको सुगंध देता है, छाया, फल और फूल देता है। अगर आप पेड़ का तरीका सीख लें तो आपमें से भी कृपा ही बरसेगी, पसीजेगी। जब आपमें से कृपा रिसती होगी तो लोग उसे पोषित करना चाहेंगे, बढ़ाना चाहेंगे और उसका हिस्सा बनना चाहेंगे।

#3. आप कैसे जानेंगे कि गुरु की कृपा आप पर काम कर रही है?

प्रश्न : हमें यह कैसे पता चलेगा कि गुरु की कृपा हम पर है?

सद्‌गुरु: जब आप किसी होटल की लॉबी में होते हैं तो वहाँ, पृष्ठभूमि में, हल्का-हल्का संगीत चल रहा होता है पर क्या आपने ध्यान दिया है कि कुछ समय बाद ये आपके ख्याल में भी नहीं आता, आपको महसूस भी नहीं होता कि वहाँ कोई संगीत भी है। सिर्फ अगर आप किसी से बातचीत करना चाहें, तो आपको लग सकता है कि वो संगीत बाधा डाल रहा है, वरना वो संगीत तो हमेशा चल ही रहा होता है और आपको पता भी नहीं चलता। ऐसे ही, आपके घर में किसी मशीन की आवाज़, हल्की घरघराहट, आ रही होती है पर आपका ध्यान उस पर तभी जाता है, जब आप घर में घुस रहे होते हैं। इसी तरह, सामान्य रूप से, आपको पता भी नहीं चलता कि आपकी साँस चल रही है पर अगर एक भी मिनिट ये न चले तो आपको पता चलेगा। यही वजह है कि आपको यह पता भी नहीं होता कि दिव्यता का हाथ हमेशा ही आप पर है।

जब कोई चीज़ आपके लिये 24 घंटे उपलब्ध हो तो क्या फर्क पड़ेगा अगर आप यह न जानें कि वो है या नहीं? जीवन तो फिर भी चलता रहेगा पर कृपा में होने के अपने आनंद को आप खो देंगे। कृपा कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो आप पर कभी हो और कभी न हो। यह कोई ऐसी बात नहीं है जिस पर आप हर सप्ताहांत में सवाल उठायें। यह तो हर समय है ही। अगर आप इसके बारे में जागरूक रहेंगे तो आपको कृपा में होने के आनंद का पता जरूर चलेगा। मैंने यह बात कई तरीकों से कही है पर मुझे पता है कि आप में से ज्यादातर लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है।

अगर आप मेरे साथ एक पल के लिये भी बैठें तो आपके जीवन में कोई निजीपन नहीं रह जायेगा। जैसे ही आप मेरे साथ बैठे, खास तौर पर मेरे द्वारा दीक्षित हुए तो फिर कृपा है या नहीं जैसी कोई चीज़ नहीं रह जायेगी - कृपा हर समय रहेगी ही! कृपा का मतलब यह है कि प्रकाश के लिये कोई बाहरी स्रोत आप नहीं ढूँढते, आप खुद प्रकाश के स्रोत बन जाते हैं। हर समय भले ही इसका अनुभव न हो पर, अगर एक पल के लिये भी आप समझ लें कि आप प्रकाश से भरे हुए हैं तो इसका मतलब है कि आपको कृपा ने छुआ है।

हम ईशा में ऐसी बहुत सी चीज़ें कर रहे हैं जिनसे आपको किसी तरह से, कम से कम एक पल के लिये यह अनुभव मिल जाये। अगर इसने आपको एक पल के लिये भी छुआ हो तो, चाहे ये आपके पास वापस लौट कर न भी आये तो भी आपका जीवन पहले जैसा नहीं रहेगा। आप उस एक पल के साथ जुड़े रह सकते हैं और, आसपास के किसी भी व्यक्ति की तुलना में, अपना जीवन बिल्कुल अलग ढंग से जी सकते हैं। अगर ये हर समय आपके साथ है तो इसका वर्णन नहीं किया जा सकता।

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बात सिर्फ इतनी है कि आपकी उम्मीद यह है कि कृपा के द्वारा आपकी सारी इच्छायें, योजनायें पूरी हो जायें। आपकी यह वही पुरानी आदत है कि मंदिर या चर्च जा कर भगवान से कहते हैं कि आपके लिये उसको यह या वह चीज़ जरूर करनी चाहिये। अगर वो ऐसा न करे तो आप अपने भगवान ही बदल देते हैं। कृपा का काम आपकी छोटी मोटी इच्छायें, योजनायें पूरी करना नहीं है। वैसे भी आपकी योजनायें हर समय बदलती रहती हैं। अपने जीवन में, अलग अलग समय पर, आप सोचते थे, "यही सबकुछ है" और फिर, अगले ही मिनिट में उसे बदल देते थे। आप छुट्टी मनाने जाना चाहते हैं, तो पूछते हैं, "सद्‌गुरु, आप मेरी मदद क्यों नहीं करते"? तो, हर दूसरे दिन यह मत पूछते रहिये, "क्या कृपा मेरे साथ है"? "क्या कृपा मेरे साथ नहीं है"? किसी गुरु की कृपा आपकी योजनायें पूरी करने के लिये नहीं होती। गुरु की कृपा तो जीवन की योजनायें पूरी करने के लिये होती है। ये आपको जीवन का हिस्सा बनाने के लिये है, जीवन का मकसद पूरा करने के लिये है।

#4. कृपा का काम करना

प्रश्नकर्ता : मैं एक डॉक्टर हूँ। कभी कभी, मेरे दवाखाने में, जब मैं किसी मरीज का इलाज कर रहा होता हूँ तो मुझे लगता है कि मेरे नियंत्रण के बाहर, किसी तरह की कृपा मुझे मरीज का इलाज करने में मदद कर रही है। मैं इसे कैसे समझाऊँ?

सद्‌गुरु : किसी दूसरे का जीवन अपने हाथ में ले लेना कोई अच्छी बात नहीं है क्योंकि इसका असर आप पर एक खास तरह से पड़ता है। अपने खुद के जीवन के साथ आप थोड़ा बहुत, इधर उधर कर सकते हैं, उसके साथ खेल सकते हैं। पर जब किसी और का जीवन आपके हाथों में हो तो आप थोड़ा भी इधर उधर नहीं कर सकते। आप चाहे डॉक्टर हों या ड्राइवर, आप दूसरों का जीवन अपने हाथ में ले रहे हैं। अगर आप गुरु हैं तो स्थिति और भी ज्यादा खराब हो जाती है। बहुत सारे लोगों का जीवन अपने हाथ में ले लेना अपने सिर पर एक बड़ा बोझ ढोने जैसा है, खास तौर पर तब, जब वे आपके सामने एक खास तरीके से बैठें हों या आपके सामने असहाय अवस्था में सर्जरी टेबल पर पड़े हों।

औषधि/इलाज की किसी भी प्रणाली - आयुर्वेद, सिद्ध, एलोपैथी या कुछ और - को अगर आपने अच्छी तरह से देखा, समझा है तो आप जानते हैं कि किसी के इलाज में आपकी भूमिका 50% भी नहीं होती। दुनिया के महानतम डॉक्टरों का भी यही अनुभव है कि जिन्होंने लोगों के साथ अद्भुत काम किया है, वे लोग बहुत सामान्य ढंग से ऐसी भाषा बोलते हैं।

अगर आपको ईश्वर में विश्वास है तो ये बहुत आसान है। आप ऊपर देख कर कह सकते हैं, "हे राम"! या "हे शिव"! या कुछ भी! अगर मरीज़ मर भी जाये तो भगवान की गोद में ही तो जायेगा, तो ये ठीक ही है। विश्वास करने वालों को सामान्य रूप से कृपा का अनुभव नहीं होता। उन्हें इस पर बस विश्वास होता है। ये बहुत आसान, सुविधाजनक भी है, कुछ और करना ही नहीं है। पर, इन विश्वास प्रणालियों को अगर आप नहीं मानते तो आपको समझ में आ जाता है कि चीज़ें आपके मुताबिक हों, इसमें आपकी भूमिका बहुत कम होती है और तभी आपको कृपा की उपस्थिति की समझ आती है।

वास्तविक समस्या और परेशानी उन लोगों को होती है जिन्हें पता ही नहीं चलता कि वे विश्वास करें या न करें - वे लोग जिनकी बुद्धि दोनों चीज़ों के साथ संघर्ष में होती है! जो कभी विश्वास करता है और कभी नहीं करता - जिसकी बुद्धि को दोनों के साथ परेशानी है। वह व्यक्ति जो कभी तो ईश्वर में, उसके किसी भी रूप में विश्वास करता है, और कभी कभी नहीं भी करता, जो अपने तर्क और अपनी काबिलियत की सीमितताओं के साथ संघर्ष में है, और जो ऐसे आयामों के साथ भी सहज नहीं है जो सामने दिखते न हों, ऐसे व्यक्ति के लिये कृपा की परिस्थिति उसके जीवन में एकदम स्पष्ट होती है। वह बिल्कुल ठीक ठीक समझता है कि जब उसे कोई संकरा पुल पार करना हो तो दूसरे आयाम की मदद के बिना कुछ नहीं हो सकता। सवाल यह है कि कृपा की यह उपस्थिति आपके पास कैसे आये? क्या यह किसी संयोग से आती है या इसके लिये कोई तरीका है?

#5. कृपा को उपलब्ध होने के सात तरीके

#5.1 शांभवी महामुद्रा - दिव्यता को आमंत्रण

हम ईशा में, काफी समय पहले, एक टी शर्ट बनाते थे, जिस पर लिखा होता था, "इनविटेशन तो डिवाइन" (दिव्यता को आमंत्रण)! जब हम कहते हैं कि हम साधना कर रहे हैं, तो इसका मतलब सिर्फ यही है कि हम अपने आपको एक खाली स्थान बनाने की कोशिश कर रहे हैं (जिसमें ऊँचे आयाम उतर सकें) और हम खुद को दिव्यता के लिये आमंत्रण बना रहे हैं। मिसाल के तौर पर, शांभवी महामुद्रा वास्तव में कुछ नहीं करती। बात बस यह है कि सारी प्रक्रिया को कुछ इस तरह से बनाया गया है कि आप दिव्यता के लिये एक आमंत्रण बन जायें। आप से परे कुछ है जो काम करना शुरू कर देता है। यह समझना कि आप क्या कर सकते हैं और उसको स्वीकार कर लेना जो आप नहीं कर सकते, और फिर भी सजग और हाजिर रहना - यही योग का मूल सार है। इसी तरह से आप कृपा के लिये एक खाली-स्थान या प्रवेशद्वार बनते हैं I 

#5.2 व्यक्तित्व से उपस्थिति की ओर आईये

गुरुत्वाकर्षण हर समय आप पर काम कर रहा है, चाहे आप सतर्क हों या न हों। कृपा सूक्ष्म है। आप जब तक सतर्क, सजग नहीं होते, ये नहीं आयेगी( आपके चारों ओर होने के बावजूद)। कृपा आपकी उपस्थिति के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील होती है। अगर आप हाजिर नहीं हैं तो ये हाजिर नहीं होगी। यही स्वभाव दिव्यता का है। ज्यादातर लोग इसी वजह से इसे पाने से चूक जाते हैं क्योंकि ज्यादातर वे गैर हाजिर होते हैं। आपके विचार, आपकी भावनायें, आपकी गतिविधि आप पर राज कर रही होती है। आपकी हाजिरी या उपस्थिति आप पर राज नहीं करती। किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया से आप अपने में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं। आपका शरीर, मन और आपकी भावनायें आपके साथ साथ आते ही हैं पर आपको चाहिये कि आपकी हाजरी मुख्य रूप से अधिकारी बन कर रहे। चूंकि आप हैं, इसीलिये आपने अपने विचारों, अपने शरीर और अपनी भावनाओं को अपने से ज्यादा महत्व दिया है। इस अस्त व्यस्त दशा में आप कृपा को महसूस नहीं कर सकते।

अगर आप अपने अंदर की ऐसी दशा को उल्टा कर दें तो अचानक ही सामान्य परिस्थिति असामान्य बन जायेगी। जीवन का हरेक पहलू पूरी तरह से जीवन के अलग अनुभव में पहुँच जायेगा। ये इसलिये नहीं होता कि आप किसी में कुछ विश्वास करते हैं। विश्वास प्रणालियों की वजह से आप कल्पनायें कर सकते हैं, यह समस्या विश्वास करने वालों के साथ होती ही है। अगर आप अपने तार्किक मूल में, अपने आधार पर स्थित नहीं हैं तो यह पूरी तरह से संभव है कि आप अपनी कल्पनाओं में उड़ने लगेंगे और सोचेंगे कि यही कृपा है। अपने आप में, एक मजबूत तार्किक आधार पर रहना और फिर भी कृपा के लिये उपलब्ध हो पाना, ये कुछ ऐसा है जो आपको अपने लिये करना चाहिये, करना है। तात्विक(दिव्यदर्शी) और तार्किक, ये दो क्षेत्र समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। अगर आपका तार्किक क्षेत्र सही ढंग से स्थिर है, स्थापित है तो आपके जीवन की सामान्य, छोटी-छोटी बातें ठीक से होती रहेंगी।

अगर आपके जीवन में तात्विक क्षेत्र खुला हुआ हो तो आपका जीवन का अनुभव बहुत ही अद्भुत होगा। अगर ऐसा न हुआ, अगर आप बस तार्किक क्षेत्र को संभालते रहे तो आपकी व्यवस्था अच्छी रहेगी पर जीवन के अनुभव अच्छे नहीं होंगे। दूसरी ओर, अगर आपने तार्किक क्षेत्र की ओर ध्यान नहीं दिया तो आपके अनुभव बढ़िया हो सकते हैं पर आपकी व्यवस्थायें गड़बड़ होंगीं। तो, तार्किक क्षेत्र को सही रख कर भी तात्विक पक्ष के लिये तैयार होने, खुल जाने की प्रक्रिया को दुनिया के समाजों ने ठीक तरह से संभाला नहीं है। हमसे या तो यह छूट जाता है या वह, इन दोनों के साथ में हुए बिना हमारा जीवन सुंदर नहीं होगा। जब आपने अपने सामान्य काम अच्छी तरह से कर लिये हों तो अब समय है कि आप अपने आपको तात्विक/दिव्यदर्शी क्षेत्र के लिये उपलब्ध करायें।

इसमें आपके तर्क काम नहीं करेंगे, वे बस आपको सीमित कर देंगे। "मैं अपने तर्कों के साथ कैसे लड़ सकता हूँ"? आप तर्क व्यवस्था को बंद करने के पीछे न पड़ें, बस उसके द्वारा जो विचार पैदा हो रहे हैं, उनकी ओर ध्यान देना बंद कर दें। दस जन्मों तक कोशिश कर के भी आप मन को खत्म नहीं कर सकते पर उसके उत्पादों की ओर ध्यान देना आप बंद कर सकते हैं। मन विचार पैदा करता है, आप उनकी ओर ध्यान न दें। ऐसा करने से आप भक्ति की स्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा बन जाएंगे। भक्ति का मतलब किसी का गुणगान करना नहीं है। भक्ति तो वह है जिसमें आप ही नहीं होते। आप अभी जिसे "मैं" कहते हैं वह तो विचारों, भावनाओं और आपकी राय का एक गट्ठर मात्र है। अगर आप इन तीन चीजों को अलग रख दें तो आपका व्यक्तित्व हाजिर नहीं रह पायेगा। तब, आपमें जो जीवन है, वह उपस्थित होगा। अगर यह उपस्थित है, तो आप कृपा से चूक नहीं सकते।

#5.3 कर्मयोग

आप खुदको जितना कम रखेंगे, उतने ही ज्यादा ग्रहणशील बनेंगे। साधना की संरचना हमेशा इस तरह की जाती है कि आप अपनी गतिविधियों में इतने गहरे उतर जायें कि जीने की रोजाना की प्रक्रिया में आप भूल जायें कि आप हैं कौन? आप ये भी भूल जायें कि आपका जीवन किस बारे में है? आप, बस जो कुछ हो रहा है, उसमें, गहरे उतर जायें। झेन प्रणाली में किस तरह मानवीय चेतना का विकास होने दिया जाता है, इसके बारे में एक सुंदर कहानी है....

एक शिष्य ने अपने झेन गुरु के पास जा कर पूछा, "अपने आध्यात्मिक विकास के लिये मैं क्या करूँ"? गुरु ने जवाब दिया, "फर्श साफ करो, लकड़ी काटो, खाना बनाओ"! शिष्य बोला, "उसके लिये मैं यहाँ क्यों आऊँ, यह सब तो मैं घर पर भी कर सकता हूँ"। गुरु मुस्कुराये, "पर जब तुम अपने घर का फर्श साफ करते हो तो वह तुम्हारा अपना फर्श है। तुम अपने पड़ोसी का फर्श साफ नहीं करोगे, चाहे वह कितना भी गंदा हो गया हो। लकड़ी काटना और खाना बनाना तुम सिर्फ अपने लिये करोगे या उनके लिये जिन्हें तुम अपना मानते हो। तुम सभी काम अपने आप को बढ़ाने के लिये करते हो बजाय इसके कि हर काम तुम अपने आपको खत्म करने के लिये करो"! तो, हम, अपनी गतिविधि को, अपने लिये बंधन बनाते हैं या मुक्ति की प्रक्रिया - यही फर्क महत्वूर्ण है।

आप कोई भी काम या तो अपने आपको बढ़ाने के लिये करते हैं, या फिर अपने आपको खत्म करने के लिये। या तो आप अपने लिये कर्म के बंधन बांध रहे हैं या फिर अपने कर्म को योग बना रहे हैं। बस, यही सब कुछ है। आप तो बस फर्श साफ करें, खाना बनायें या कोई पेड़ लगायें - अपनी ज़मीन पर नहीं, पेड़ की छाया में खुद या अपने बच्चों के बैठने के लिये नहीं - बस इसे लगायें, जिससे आपका कोई दुश्मन भी इसके नीचे बैठ कर इसका आनंद ले। तभी, यह गतिविधि खत्म होने की, पिघल जाने की प्रक्रिया बनती है। आप जिसे मैं और मेरा मानते हैं, उसके लिये आप जितना कम करेंगे, उतने ही ज्यादा आप कृपा के लिये उपलब्ध रहेंगे।

#5.4 बिना रुकावट के, पूरी तरह से शामिल होना

ज्यादातर लोग सिर्फ वही करते हैं जिसे वे अपना कर्तव्य समझते हैं। सिर्फ तभी, जब किसी चीज़ के लिये, आपमें प्रेम या भक्ति का भाव बहुत गहरा हो, तभी आप वह सब कुछ करेंगे जो आप कर सकते हैं। अपने जीवन के हर पल में, अगर आप वो सब कुछ नहीं कर रहे हैं, जो आप कर सकते हैं, तो आप अपने आपको किस चीज़ के लिये बचा कर रख रहे हैं? क्या ये महत्वपूर्ण नहीं है कि अपने जीवन के हर पल में आप वो सब कुछ करें जो आप कर सकते हैं? शामिल होने का यह गहन भाव ही भक्ति है। भक्ति कोई सौदा, कोई समझौता, कोई लेन देन नहीं है।

"सद्‌गुरु, मैं आपके प्रति इतना समर्पित रहा हूँ पर आपने मेरे लिये कुछ नहीं किया"! आपके लिये कुछ करना मेरा काम नहीं है। सौदा करने वाले लोग अलग होते हैं, भक्त अलग होते हैं। "मुझे कुछ भी नहीं चाहिये, मेरे लिये कुछ भी होना ज़रूरी नहीं है", यही भक्ति है। "मुझे क्या मिलेगा", सिर्फ इस एक बात से अगर आप मुक्त हो जायें तो आपका जीवन बहुत ही आनंदमय, भरपूर कृपा वाला हो जायेगा। भक्ति का मतलब है आशाओं, इच्छाओं के दर्द से मुक्त हो जाना। जब आपका किसी तरह की चीज़ में कोई स्वार्थ नहीं होता, आपको कोई रुचि नहीं होती, तब आप सबसे अच्छा, सबसे ऊँचे स्तर का काम करते हैं और कोई इंसान बस इतना ही कर सकता है।

अपनी वो प्रतिबद्धता अगर आप दिखायें, उतने स्तर पर हर उस चीज़ में शामिल हों, जो मौजूद है - तो आप कृपा के लिये उपलब्ध हो जायेंगे। भक्ति का मतलब है बिना किसी सवाल के, बिना खुद को रोके, बिना कुछ पीछे रखे, पूरी तरह से शामिल होना। आपका शामिल होना अगर उस तरह का है तो आप पर कृपा एक झरने की तरह बहेगी, बूँदों में नहीं टपकेगी। जब आप पर ऐसी कृपा बरसेगी तो आपके जीवन का मकसद पूरा हो जायेगा। अगर आपका शरीर, आपका मन और आपकी ऊर्जा बाधा नहीं बनते और आप कृपा के लिये उपलब्ध हैं तो आपको यह चिंता करने की ज़रूरत नहीं रहेगी कि आपके जीवन का क्या होगा? जो भी होगा, सबसे ज्यादा अद्भुत चीजें ही होंगी।

#5.5 बड़े होने का दिखावा करना बंद कीजिये

इधर उधर घूमते हुए यह समझिये कि आप जो कुछ भी हैं, बहुत छोटे हैं। छोटे होने का मतलब यह नहीं है कि आप शून्य हैं। पर छोटा होना शून्यता के बहुत करीब है। आपको यह भी दिखाने की ज़रूरत नहीं है कि आप छोटे हैं क्योंकि वास्तव में आप बहुत ज्यादा छोटे हैं। आप सिर्फ बड़े होने का दिखावा कर रहे हैं। आप अगर अपने सब दिखावे, सब नाटक बंद कर दें तो आप कृपा को उपलब्ध हो जायेंगे।

#5.6 सभी चीजों को एक ही समझें

जीसस ने कहा था, "अगर आपकी एक ही आँख हो तो आपका शरीर प्रकाश से भरा होगा"। दो भौतिक आँखें भेद कराती हैं, अलग अलग दिखाती हैं। वो आपको बताती हैं कि क्या ऊँचा है, क्या नीचा है, कौन पुरुष है, कौन स्त्री है, ये क्या है, वो क्या है! ये दो आँखें वो साधन हैं जिनसे आप टिके रहते हैं। "अगर आपकी एक आँख हो" का मतलब यह नहीं है कि आप एक आँख बंद कर लें। इसका मतलब सिर्फ यही है कि आप कोई भेदभाव नहीं करते, आप सभी चीज़ों को एक ही समझते हैं, एक ही जैसा। अगर आप ऐसे हो जायें तो आपका शरीर प्रकाश से भर जायेगा। यही कृपा है। 

#5.7 हर किसी चीज़ के सामने झुकें

आप नहीं जानते कि कोई पेड़ वास्तव में कैसे काम करता है? आपको नहीं पता कि घास का तिनका कैसे बनता है? आपको नहीं मालूम कि इस ब्रह्मांड में कोई भी चीज़ किस तरह से काम कर रही है? तो, यहाँ जो कुछ है वो आपसे थोड़ी ज्यादा बुद्धिमान लगती है। जब आप इतने बुद्धू हैं तो बेहतर होगा कि आप हर चीज़ के सामने झुकें। जब पेड़ को देखें तो झुकें, पहाड़ को देखें तो झुकें। अगर आप घास का तिनका देखें तो भी झुकें। बालू का एक कण भी जीवन के बारे में आपसे ज्यादा जानता है। आप यहाँ बहुत छोटे हैं, जूनियर हैं।

आपके आने के बहुत पहले से वे यहाँ हैं और जीवन के बारे में वे सभी आपसे बहुत ज्यादा जानते हैं। मैं चाहता हूँ कि जब आप चलें तो हर चीज़ पर आपमें आश्चर्य और भक्ति का एक खास भाव होना चाहिये। अगले 24 घंटे तक ऐसा कीजिये। जीवन के दरवाजे खोलने के लिये बस यही होना चाहिये कि आप खुद को बहुत बड़ा न मानें। आप अपने बारे में वह न सोचें जो सही नहीं है। आप अपने बारे में जो कुछ सोचते हैं वो काफी झूठ है क्योंकि अगर हम मूल जीवन की बात करें, तो आप वो कुछ भी नहीं जानते जो ये मिट्टी जानती है। आपका मस्तिष्क वो नहीं कर सकता जो ये मिट्टी कर रही है। तो, जब आपके आसपास इतनी हस्तियाँ हों, तो आपको शांति से, हल्के से चलना चाहिये। अगर आप बस भक्ति के भाव में चलें तो धीरे धीरे आप कृपा की गोद में गिर जायेंगे।

#6.कविता : कृपा की बुनकारी

जब कोई बुनकर कोशिश करता है 
एक धागे को दूसरे पर रखने की,
जिसमें हर धागा उतना ही अहम है, जितना दूसरा,
तो फिर बन जाता है एक शानदार वस्त्र।

मेरे प्रिय, ऐसा ही जीवन के बारे में भी है,
हर धागा उतना ही अहम जैसे
पहला वाला था और जो बाद में आने वाला है।
जीवन के धागों को बुनना ही है
जिनकी बनावट और जिनके रंग जटिल हैं
तो इनसे ही बुनें, एक सुंदर, कृपा से भरा वस्त्र
जो एक असीमित जीव के लिये है - दिव्यता।

शरीर ढंकने के लिये ही ये वस्त्र नहीं है,
ये तो वो वस्त्र है जो आपको
सृष्टि के जैविक सौंदर्य का स्पर्श करा देगा और,
अंदर की दिव्यता के साथ, जुड़ने के
एकांत के लिये मार्ग खोल देगा।
प्रेम के, विवेक के, खेल के, कर्म के धागे
नज़दीकी के धागे, लंबी दूरी के धागे
आनंदपूर्ण शांति के पागलपन
और समझ की बुद्धिमानी में भीगे हुए धागे।

इतने ज्यादा तरह के रंगों और बनावटों के धागे,
इन सब को बुनो एक शानदार, कृपापूर्ण वस्त्र में
और उसका रास्ता, हे मेरे प्रिय, एकमात्र भक्ति ही है
भक्ति के बिना ये बस गंदी गांठें बन कर रह जायेगा
मेरे प्रिय, अपने जीवन को कृपा की बुनकारी बनाएं! ---

प्रेम और कृपा
सद्‌गुरु