डॉ. हाइमन : सद्‌गुरु यह एक अहम सवाल है कि आज दुनिया बहुत सी बीमारियों की चपेट में है। यहां आध्यात्मिक रोग हैं, शारीरिक रोग हैं। और हम ऐसा संकट झेल रहे हैं जो मेरे ख्याल से हमारी मानवजाति के विकास में हमने पहले कभी नहीं देखा। यह मेरे लिए एक महत्वपूर्ण सवाल है, क्योंकि दुनिया भर में अब हम स्थायी रोगों की महामारी को झेल रहे हैं जिनसे मरने वाले लोगों की तादाद संक्रामक रोगों से मरने वालों की तादाद से दोगुनी है। दो अरब से अधिक लोग मोटे हैं और भूखे सोने वाले लोगों के मुकाबले अधिक वजन वाले लोगों की संख्या दोगुनी से भी अधिक है।

हर दो में से एक अमेरिकी टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित है। दुनिया के अस्सी फीसदी टाइप 2 डायबिटीज मरीज विकासशील(डेवलपिंग) देशों में हैं। हमारे भोजन उगाने का तरीका, पर्यावरण, हमारी शारीरिक और आध्यात्मिक सेहत, सभी संकट से जूझ रहे हैं। आज हमारे पास इनमें से कुछ सवालों को सामने लाने का मौका है। मैं सबसे पहले आपसे यह पूछना चाहता हूं कि हमारी आध्यात्मिक बीमारी शारीरिक बीमारी से कैसे जुड़ी है, जो हम व्यक्तियों में और साथ ही विश्व स्तर पर देख रहे हैं।

विडंबना - संपन्नता ने लोगों को बीमार बना दिया है

सद्‌गुरु : यह विडंबना है कि एक सदी तक दूसरे जीवों द्वारा पैदा किए गए संक्रामक(इन्फेक्शिय्स) रोगों से लड़ने के बाद अब हम खुद बीमारियों को पैदा कर रहे हैं। अब हम खुद ही खुद को बीमार बना रहे हैं, इसके लिए हमें बैक्टीरिया या वायरस की जरूरत नहीं है। जैसा कि आपने कहा, पुराने और स्थायी रोगों का स्रोत मुख्य रूप से हमारे अंदर होता है। 

हमें सेहतमंद रहने के बारे में सोचने की जरूरत तक नहीं है। क्योंकि शरीर अंदर से बना है, उसे स्वस्थ रहने के लिए ही बनाया गया है। हमारा काम बस यह है कि हम बीमारी न पैदा करें। 
हमारा अपना शरीर हमारे लिए बीमारी या रोग क्यों पैदा करेगा? शरीर की हर कोशिका को सेहत के लिए तैयार किया गया है, हरेक कोशिका जीवन और स्वास्थ्य के लिए लड़ती है।

हमारा शरीर स्वस्थ रहना चाहता है। तो वह बीमारी क्यों पैदा करेगा? इसके कई अलग-अलग पहलू हैं। एक निश्चित रूप से भोजन है, जिसके बारे में आपने काफी चर्चा की है। संपन्न लोग जरूरत से अधिक खा रहे हैं। गरीब सही तरीके से नहीं खा रहे हैं, या उनके पास चुनने की सुविधा नहीं है। दुर्भाग्य से अब भी एक बड़ी आबादी यह चुनाव नहीं कर सकती कि वह क्या खाए क्योंकि उनका जीवन गरीबी में बीतता है। जबकि दुनिया का दूसरा तबका विवश होकर ग़लत चुनाव कर रहे हैं, क्योंकि वे संपन्न हैं। जब हम गरीबी में रहते थे तो सोचते थे कि संपन्न होने के बाद हमारे पास चुनने का मौक़ा होगा। संपन्नता का मतलब यही तो है। मगर संपन्नता ने लोगों को कुछ खास चीजें खाने के लिए विवश कर दिया है। 

डॉ. हाइमन : हां। यह सच है कि हम लोग जो चीजें खाते हैं, उनमें से अधिकतर हम आदतों से मजबूर होकर खाते हैं।

दो तरीकों से कष्ट भोग रहे हैं लोग

सद्‌गुरु : दोनों ही रूपों में लोग कष्ट उठा रहे हैं। चाहे आप भूख से पीड़ित हैं या बदहजमी से, दोनों का उपाय किए जाने की जरूरत है। जैसे हम गरीबी में रहने वाले लोगों की जरूरतों का हल खोजते हैं, हमें अधिक भोजन की समस्या को भी हल करना चाहिए। इसका दूसरा आयाम यह है कि इंसानी तंत्र के रखरखाव के बारे में कोई जानकारी, कोई जागरूकता नहीं है। हमें सेहतमंद रहने के बारे में सोचने की जरूरत तक नहीं है। क्योंकि शरीर अंदर से बना है, उसे स्वस्थ रहने के लिए ही बनाया गया है। हमारा काम बस यह है कि हम बीमारी न पैदा करें।

इस पर ध्यान देने के कई तरीके हैं। इसे देखने का एक सरल तरीका यह है – मान लीजिए यहां बैठे हुए मेरा हाथ इधर-उधर उठ जाता है, मुझे घूंसा मारता है और आंख में उंगली डाल देता है – तो निश्चित रूप से आप मानेंगे कि यह कोई बीमारी है, अगर मेरे पूरे शरीर में नहीं, तो कम से कम मेरे हाथ में तो बीमारी है ही। लोगों का मन अभी बिल्कुल यही काम कर रहा है। वह अचानक सक्रिय हो जाता है, जगह-जगह भटकता है, उन्हें मारता, खरोंचता और कुरेदता है। उन्हें रुला देता है, उन्हें दुखी बनाता है। हमने इसे ठीक करने के लिए कुछ नहीं किया है। लोगों ने इसका ‘यूजर मैनुअल’ देखा तक नहीं है कि अपने मन का इस्तेमाल कैसे करें। यह एक शक्तिशाली उपकरण है। आज हम जानते हैं कि आपके मन में पैदा हुआ हर विचार, हर भावना, हर तरंग, आपके शरीर के रसायन को बदल देता है। 

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 डॉ. हाइमन : हम जानते हैं कि विचार आपके जीन(जेनेटिक्स) भी बदल देते हैं।

सद्‌गुरु : इसे आप ऐसे भी देख सकते हैं कि यह मानव शरीर एक रासायनिक सूप की तरह है – चाहे यह बहुत बढ़िया सूप हो या घटिया सूप। सूप घटिया इसलिए हो जाता है क्योंकि या तो आप उसमें अच्छी चीज़ों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं या आपके पकाने का तरीका अच्छा नहीं है। आपके पास सही सामग्री होने के बावजूद आप सूप को बिगाड़ सकते हैं। गरीबी ऐसी जगह है, जहां सामान अच्छा नहीं होता इसलिए सूप खराब हो जाता है। संपन्नता ऐसी जगह है जहां सामान अच्छा होता है मगर रसोइया खराब होता है, इसलिए यहां भी आपको घटिया सूप मिलता है।

शरीर के निर्माता और लोकल मैकेनिक का फर्क

डॉ. हाइमन : शरीर में इस कुदरती, बुनियादी सेहत की बात करना बहुत जबर्दस्त है। हम खुद ही अपने विचारों, जो हमारे रूप को बदल देता है और भोजन, जो हमारे शरीर को बदल देता है, के कारण उससे दूर चले जाते हैं। मैं और जानना चाहूंगा कि हम वास्तव में अपने रूप आकार को बदलने के लिए अपने विचारों और भोजन का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे हम ऐसी जगह बना सकें जहां हम अधिक जागरूक, अधिक उपस्थित और सत्य से अधिक जुड़े रह सकें।

सद्‌गुरु : जब आप सत्य से जुड़े रहने की बात करते हैं तो सत्य कोई विचार या सिद्धांत नहीं है, यह कोई फ़िलोस्फी नहीं है जिसे आप पढ़ते हैं या जिसकी कल्पना अपने मन में करते हैं। शरीर के बारे में सत्य यह है कि आप सिर्फ उसे सामग्री देते हैं, मगर शरीर अंदर से बनता है। आपने बाहर से उसे नहीं बनाया। आपने इस शरीर को बनाने के लिए कोई मूर्तिकार नहीं बुलाया। यह अंदर से ही गढ़ा गया है। या दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर का निर्माता उसके अंदर है। अगर शरीर का निर्माता अंदर है, तो जब उसमें छोटी-मोटी मरम्मत की जरूरत हो, तो आप निर्माता के पास जाएंगे या लोकल मैकेनिक के पास?

अगर आपने निर्माता की आईडी खो दी है, तो आप लोकल मैकेनिक के पास जाएंगे। आपके अंदर एक ऐसी बुद्धि काम कर रही है, जो ब्रेड के टुकड़े को इंसानी शरीर में बदल देती है। अगर आप इस बुद्धि या अपने अंदर सृष्टि के स्रोत तक पहुंच सकते हैं, तो स्वास्थ्य एक कुदरती नतीजा होगा। यह कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसके पीछे आपको भागना पड़े। सेहत अपने अंदर और आस-पास की हर चीज के साथ तालमेल में रहने का स्वाभाविक नतीजा है। स्वास्थ्य की चिंता सबसे बाद में होनी चाहिए, मगर आज यह सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। अगर आप इस जीवन, जो आप हैं, के साथ तालमेल में रहें तो यह कोई बड़ी चीज नहीं है। एक पेड़ अपनी सेहत को लेकर चिंतित नहीं होता, एक चिड़िया अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं करती, जंगल में रहने वाली भैंस अपनी सेहत की चिंता नहीं करती – वह बस प्रकृति के तालमेल में है, इसलिए सेहतमंद है।

कारोबार इंसान के लिए बने थे, इंसान कारोबार के लिए नहीं

डॉ.हाइमन : तो हम वापस वहां कैसे जाएं? हम उससे इतना दूर आ गए हैं, हम खुद से, अपने मन की गतिविधियों से, भोजन से, यहां तक कि इस विचार से कि हम अपने अंदर से सेहत पैदा कर सकते हैं, बहुत अलग हो गए हैं। अगर लोग यह सोच रहे हैं, ‘मैं अपने लिए यह कैसे करूं?’ तो वे एक व्यावहारिक तरीके से ऐसा कैसे कर सकते हैं?

सद्‌गुरु: अब हमें एक चीज समझ लेनी चाहिए। हमने इंसान की खुशहाली के लिए कारोबार शुरू किया। इसलिए कारोबार को हमेशा इंसान की खुशहाली की दिशा में काम करना चाहिए। अभी हम अर्थव्यवस्था(इकॉनमी) की सेहत सुधारने के लिए इंसान की सेहत के साथ समझौता कर रहे हैं। बाज़ार की शक्तियां यह तय कर रही हैं कि आपको क्या खाना चाहिए, क्या पीना चाहिए और कैसे जीना चाहिए। ऐसा कभी नहीं होना चाहिए, मगर दुर्भाग्य से हमने आज दुनिया भर में यह तरीका चुन लिया है कि बाज़ार की शक्तियां इंसान के अस्तित्व की प्रकृति को तय करती हैं। मानव चेतनता को मानव अस्तित्व की प्रकृति तय करनी चाहिए और कारोबारी ताक़तों को इस मकसद में मददगार होना चाहिए। हमने इसे उल्टा कर दिया है। यह एक बुनियादी चीज है, जिसमें हमने गलती की है।

डॉ. हाइमन: हां। हम एक व्यक्ति के रूप में इसे कैसे बदल सकते हैं और कैसे बाज़ार से यह ताक़त वापस लेकर चुनने का अवसर अपने हाथ में ले सकते हैं, जिससे बदलाव आए?

मौजूदा स्थिति बदलने के तीन उपाय

सद्‌गुरु: इसे बदलने के लिए मेरे पास तीन स्पष्ट(क्लियर) उपाय हैं।

  • पहली चीज है, प्रचार या अभियान शुरू करना। लोगों को इस बारे में जागरूक होना चाहिए कि जो शक्तियां उनकी मदद के लिए थीं, वे उनका इस्तेमाल कर रही हैं।
  • अगली चीज है - शिक्षा, जिसके ज़रिए यह बताया जाए कि व्यक्तिगत जीवन में इन चीज़ों को कैसे ठीक किया जाए।
  • अगली चीज है, पॉलिसी।

इन तीन चीजों को इसी क्रम में होना चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है। हर किसी को यह एहसास होना चाहिए कि वे जो कर रहे हैं, वह गलत है। अगर आप दुनिया भर में बदलाव लाना चाहते हैं, तो हर किसी को पता होना चाहिए कि वे जिस तरह खा-पी रहे हैं और जिस तरह दुनिया में उन्हें कुछ चीजें करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, वह गलत है। फिर आती है शिक्षा – क्या किया जाना चाहिए? फिर आखिर में नीति।

डॉ. हाइमन: ये बड़े कदम हैं। मेरे ख्याल से अधिकतर लोग समझते हैं कि सेहत कहीं बाहर है, जबकि वह वास्तव में अंदर होती है। वे नहीं समझ पाते कि अपने कार्यों और चुनावों को बदलते हुए वह वास्तव में नीति को बदलने की ताकत रखते हैं।

सद्‌गुरु: चाहे हम किसी भी तरह के सामाजिक ढाँचे और निजी हालात में हों, चाहे दुनिया के हालात कुछ भी हों, फिर भी हर आदमी के पास चुनने का मौक़ा होता है। हम सभी एक ही समाज में रहते हैं, लेकिन जरूरी नहीं है कि हम सभी सही चुनाव करें। हम क्या खाते हैं, कैसे बैठते और खड़े होते हैं – यह निश्चित रूप से हमारा अपना चुनाव है। बात बस इतनी है कि अधिकतर लोग सामूहिक उन्माद(बिना होश के किए जाने वाले काम) के साथ चल देते हैं।

डॉ. हाइमन: हां, मेरे ख्याल से समस्याएं ग्लोबल हैं, मगर यह बात मेरे मन में आती है कि इसके समाधान लोकल हैं। ये उतने ही लोकल हैं, जितने हमारे विचार और वह खाना जो हम खाते हैं। और इसे बदलने के लिए हम इन सरल तरीकों से शुरुआत कर सकते हैं।

व्यक्तिगत रूपांतरण और वैश्विक(ग्लोबल) रूपांतरण

सद्‌गुरु: इसीलिए ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं। अगर आप अपनी सेहत को सुधारना चाहते हैं, तो उसका एक तरीका है। अगर आप दुनिया में सभी की सेहत को बदलने में दिलचस्पी रखते हैं, तो इसका तरीका अलग है।

डॉ. हाइमन: आप उन्हें अलग कैसे मानते हैं? मेरे ख्याल से जितने अधिक व्यक्ति अपने लिए चुनाव करेंगे, जो उनके लिए अच्छा होगा, वह धरती के लिए भी अच्छा होगा।

सद्‌गुरु: हर व्यक्ति में सही चुनाव करने की क्षमता नहीं है। अधिकतर लोग भीड़ के साथ चलते हैं। जब तक कि स्वास्थ्य एक सामूहिक आंदोलन नहीं बन जाता, ग्लोबल हेल्थ नहीं बदल सकता। लेकिन अगर आप एक व्यक्ति के रूप में अपने लिए सेहत चाहते हैं, तो यह कोई बड़ा काम नहीं है, आप यह कर सकते हैं। थोड़ा बहुत जहर आपको सांस से अंदर लेना और पीना पड़ेगा, उससे आप नहीं बच सकते, मगर आप अपने अंदर जो जहर पैदा कर रहे हैं, उसे आप अपनी इच्छा से तत्काल(एकदम से) रोक सकते हैं।