सम्पूर्ण सेहत के लिए क्या करें?
आज के इस संदेश में सद्गुरु समझा रहे हैं कि कैसे, कोई व्यक्ति, जीवन के हर पहलू में स्वस्थ रह सकता है, सिर्फ रोगमुक्त ही नहीं। अंग्रेज़ी शब्द हेल्थ (health) एक अन्य अंग्रेज़ी शब्द होल (whole) से आता है। जब आप का शरीर, आप का मन, आप की भावनायें और आप की उर्जायें एक दूसरे के साथ लय में हों और आप अपने आप में पूर्णता का अनुभव करें, तब ही आप सही में स्वस्थ अनुभव कर सकते हैं।
लेख : जून 19, 2014
सद्गुरु समझा रहे हैं कि कैसे कोई व्यक्ति जीवन के हर पहलू में, वास्तव में स्वस्थ रह सकता है, सिर्फ रोग मुक्त नहीं।
सद्गुरु: अंग्रेज़ी शब्द हेल्थ (health, स्वास्थ्य) एक अन्य अंग्रेज़ी शब्द होल (whole, पूर्ण) में से आता है। जब आप का शरीर, आप का मन, आप की भावनायें और आप की उर्जायें एक दूसरे के साथ लय में हों और आप अपने आप में पूर्णता का अनुभव करें, तब ही आप सही में स्वस्थ अनुभव कर सकते हैं। दुनिया में बहुत बड़ी संख्या में लोग, जिनमें चिकित्सकीय रूप से स्वस्थ माने जाने वाले लोग भी शामिल हैं, अस्वस्थ हैं। उन्हें किसी उपचार की ज़रूरत न भी हो तब भी उनकी शारीरिक प्रणाली को, उनकी व्यवस्था को किसी पूर्णता का अनुभव नहीं होता। उनमें शांति या खुशी का कोई भाव नहीं होता। आप को लगता है कि आप तब ही अस्वस्थ होते हैं जब आप एक खास सीमा से ज्यादा अवसादग्रस्त हो जायें। पर सही बात तो ये है कि अगर आप खुशी से फूले नहीं समा रहे, तो आप अस्वस्थ ही हैं। इसका अर्थ है कि अपनी आंतरिक संरचना में आप पूर्णता अनुभव नहीं कर रहे।
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ये इसलिये हुआ है क्योंकि आप ने कभी भी इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया है। सब कुछ बस बाहर से ठीक कर लेने का ये जो पूरा रवैया है, वह ख़त्म होना चाहिये। कोई डॉक्टर या कोई दवा आपको कभी भी स्वास्थ्य नहीं दे सकते। जब भी आप बीमार होते हैं तो वे बस आप को थोड़ी मदद कर सकते हैं, उससे बाहर आने में वे आप को थोड़ी सहायता दे सकते हैं। पर स्वास्थ्य आप के अंदर से आना चाहिये।
स्वास्थ्य सिर्फ शारीरिक पहलू नहीं है। आज आधुनिक चिकित्साशास्त्र कहता है कि मनुष्य मनोदैहिक है, यानि मन की समस्याओं से उलझा रहने वाला प्राणी है। जो मन में होता है वो स्वाभाविक रूप से शरीर में भी होता है। अतः जिस ढंग से हम यहाँ रह रहे हैं, हमारा रवैया, हमारी भावनायें, मूल मानसिक स्थिति, हमारी गतिविधि का स्तर, हमारे मन कितने सुव्यवस्थित हैं, ये सब आप के स्वास्थ्य के ही भाग हैं। अतः, अगर स्वास्थ्य अंदर से आना है तो हमें निश्चित रूप से कुछ आंतरिक इंजीनियरिंग करनी होगी। निश्चित रूप से हमें एक ऐसा वातावरण बनाना होगा जिससे हमारा शरीर और मन तथा हमारी भावनायें और उर्जायें एक दूसरे के साथ सामंजस्य में आ सकें।
अगर लोग, रोज सुबह, अपनी आंतरिक खुशहाली के लिये, लगभग 25 से 30 मिनट का समय लगायें, जिसमें वे कुछ खास सरल क्रियायें करें, जिनसे वे अपने शरीर और मन को एक लय में, सामंजस्य में ला कर पूर्ण स्वास्थ्य एवं खुशहाली का अनुभव करा सकें तो हर मनुष्य स्वस्थ एवं अच्छी तरह से रह सकता है।
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