अपनी मनचाही चीजों को कैसे पाएं
क्या आप मन की शक्ति का अपनी मनचाही चीज को साकार करने के लिए उपयोग कर सकते हैं? क्या आकर्षण का नियम असली है? एक भक्त की इच्छा कैसे श्रद्धा के जरिए साकार होती है? सद्गुरु इन सब सवालों का जवाब देते हैं।
मन की शक्ति
सद्गुरुः लोग जीवन में जिस भी चीज की आकांक्षा करते हैं - चाहे वह कारोबार को बढ़ाना हो, कोई घर बनाना हो, या कुछ और हो पहले यह विचार पैदा होता हैः ‘मैं यह चाहता हूँ।’ एक बार जब यह विचार आता है, तब ज्यादातर लोग अपनी ऊर्जा को कार्य के जरिए उस चीज की ओर लगा देते हैं और उसकी ओर काम करना शुरु कर देते हैं। अगर उनका कार्य पर्याप्त प्रभावशाली है, तो उनका विचार एक हकीकत बन जाता है। दुनिया में लोगों के काम करने का यह आम तरीका है। लेकिन वे यह नहीं जानते कि उस विचार को जीवन ऊर्जा के एक खास आयाम से कैसे सशक्त करें।अगर आपकी ऊर्जा में भौतिक शरीर से परे थोड़ी गतिशीलता है, और अगर वह गतिशीलता एक सचेतन प्रक्रिया बन जाती है, तो आप एक जगह बैठकर अपनी ऊर्जाओं को कहीं और भेज सकते हैं। लेकिन अगर आप अपनी जीवन ऊर्जाओं पर पर्याप्त महारत हासिल किए बिना ऐसा करते हैं, तो हो सकता है कि आपको पता नहीं हो कि ऊर्जाओं को वापस अपने अंदर कैसे खींचें। इस तरह आप अपना जीवन खो सकते हैं। आप देखेंगे, अगर किसी व्यक्ति की इच्छा एक खास तीव्रता से आगे हो, तो वे हमेशा जवान ही मरते हैं। ज्यादातर लोगों की इच्छाएं अस्थिर होती हैं। उनकी इच्छा आज किसी चीज की होती है, कल किसी दूसरी चीज की होती है - यह बदलती रहती है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति की कोई चीज के प्रति बहुत शक्तिशाली इच्छा है, तो वे जवान ही मर जाते हैं, चाहे वह चीज घटित हो या न हो। खासकर अगर वह साकार हो जाती है, तो वे जवान ही मर जाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अपनी जीवन ऊर्जाओं को बाहर कैसे लगाएं, लेकिन उनके पास पर्याप्त महारत नहीं होती कि वे उस काम को करने के बाद फिर वापस आ जाएँ।
एकाग्र मन शक्तिशाली होता है
विचार अपने आप में एक स्पंदन और ऊर्जा है। बिना ऊर्जा के आप विचार पैदा नहीं कर सकते। बात बस इतनी है कि चूंकि यह इतने बेतरतीब तरीके से हो रहा है तो शायद इसके पास खुद को अभिव्यक्त करने के लिए जरूरी ऊर्जा नहीं है। आप अपनी विचार प्रक्रिया से इतनी ज्यादा ऊर्जा पैदा कर सकते हैं कि आप किसी को मार भी सकते हैं। जब आपका मन एकाग्र होता है, तो वह एक शक्तिशाली साधन होता है। दुर्भाग्य से, लोगों के साथ यह एकाग्रता ज्यादातर समय एक नकारात्मक तरीके से होती है, सकारात्मक तरीके से नहीं। एक क्रोधित मन और कामातुर मन भी बहुत ज्यादा एकचित्त होते हैं। इसीलिए भारतीय संस्कृति में, बच्चों को हमेशा चेतावनी दी जाती है, ‘जब तुम गुस्से में हो, तो किसी के लिए कुछ भी नकारात्मक मत कहो,’ क्योंकि अगर आपका मन क्रोध से एकचित्त बन गया है, तो वह खुद को अभिव्यक्त कर सकता है।
चलिए विचार पैदा होने की प्रक्रिया पर गौर करते हैं। क्या आपका विचार सचेतन है या वह बस उन लाखों चीजों का परिणाम है जो आपके मन में चल रही हैं? जब आपका विचार अचेतन होता है, तो ज्यादातर समय वह मानसिक दस्त जैसा होता है। उस पर कोई काबू नहीं रहता। वह बस भटकता रहता है क्योंकि पुरानी सामग्री अंदर भरी है। यह बिलकुल वैसा है - आपके पेट में खराब खाना जितना ज्यादा होगा, उतने ज्यादा आपके दस्त चलते रहेंगे। जब आपको मानसिक दस्त हो रहे हों, तो आप उसे विचार नहीं कह सकते।
एक औरत ने एक बार कुछ दोस्तों को खाने पर आमंत्रित किया। उसने भोजन परोसा और फिर अपनी 6-साल की बेटी से कहा, ‘आज दुआ तुम क्यों नहीं बोलतीं? वह अपनी बेटी का थोड़ा दिखावा करना चाहती थी। बेटी ने कहा, ‘मैं नहीं जानती कि दुआ कैसे कही जाती है।’ मां ने कहा, ‘बस वही दोहराओ जो तुम्हारी मां कहती है।’ तो लड़की ने बहुत आदर से अपना सिर झुकाया, अपने दोनों हाथ एक साथ थामे और कहा, ‘पता नहीं क्यों मैंने इन लोगों को खाने पर बुलाया है।’ क्या आपके साथ ऐसी चीजें नहीं हो रही हैं? आप ध्यान करना चाहते हैं, लेकिन आपका मन तमामों चीजें बोल रहा है।
अपनी स्लेट को साफ करना
अगर आपको ब्लैकबोर्ड पर लिखना है, तो पहले आपको उसे पोंछकर साफ करना होगा। सिर्फ तभी आप उस पर स्पष्ट लिख पाएंगे। अगर उस पर पहले ही लाखों चीजें लिखी हुई हैं, और आप उस पर कुछ और लिखते हैं, तो कोई पता नहीं लगा सकता कि आपने क्या लिखा है। और कुछ समय बाद आपको भी पता नहीं रहेगा। आपको उस जगह को पहले साफ करना होगा और तब एक विचार को सचेतन रूप से पैदा करना होगा।
अगर लोगों ने अपनी जगह को साफ कर लिया है और तब वे कोई विचार लाते हैं, तो यह विचार वाकई मायने रखता है क्योंकि वह एक सचेतन प्रक्रिया से पैदा हुआ है। एक बार जब यह विचार इस तरह जारी रहता है और इसे उस स्पष्टता में कायम रखा जाता है, तब उसे ऊर्जा से भरा जा सकता है। अगर आप अपने मन में सचेतन रूप से एक विचार पैदा करते हैं और अगर वह एकाग्र है, तो वह दुनिया में अपना रास्ता खोज लेगा। वह स्वाभाविक रूप से खुद को साकार कर लेगा। और अगर आपके पास अपनी जीवन ऊर्जाओं पर थोड़ा ज्यादा नियंत्रण है, तो आप उसे और परिमार्जित कर सकते हैं।
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जो आप चाहते हैं, उसे कैसे साकार करें
मनुष्य के रूप में, हर चीज जो हमने इस धरती पर बनाई है, उसने पहले मन में अभिव्यक्ति पाई, तब वह बाहरी दुनिया में साकार हुई। इस धरती पर हमने जो शानदार चीजें की हैं, और इस धरती पर हमने जो भयानक चीजें की हैं, वो दोनों ही मानव मन की उपज हैं। अगर हम इस बात की परवाह करते हैं कि हम इस दुनिया में क्या पैदा करें, तो यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पहले हम अपने मन में सही चीजें पैदा करना सीखें। अगर हमारे पास अपने मन को वैसे रखने की शक्ति नहीं है जैसे हम चाहते हैं, तो हम दुनिया में जो चीजें बनाएंगे, वो भी बहुत संयोगवश और बेतरतीब होंगी।
अगर आप अपने मन को एक खास स्तर तक व्यवस्थित करते हैं, तो आपका शरीर, भावना, और बुनियादी जीवन ऊर्जाएं उस दिशा में व्यवस्थित हो जाती हैं। एक बार जब आपके ये चारों आयाम एक दिशा में व्यवस्थित होते हैं, तो आप जिस भी चीज की कामना करते हैं, वह बिना एक उंगली उठाए ही हो जाती है। इसमें क्रिया को जोड़ना मददगार होगा, लेकिन किसी क्रिया के बिना भी आप उसे साकार कर सकते हैं जो आप चाहते हैं, अगर आप इन चार आयामों को एक दिशा में व्यवस्थित कर लेते हैं और उसे उस दिशा में समय के एक खास दौर तक अटल रखते हैं।
श्रद्धा और प्रतिबद्धता को ब्रह्माण्ड भी जवाब देता है
आपने शायद उन लोगों के बारे में सुना होगा जिन्होंने कुछ मांगा और वह उम्मीदों से भी बढ़कर सच हो गया। आम तौर पर, ऐसा उन लोगों के साथ होता है जो श्रद्धावान हैं। मान लीजिए आप एक घर बनाना चाहते हैं। अगर आप सोचना शुरू करते हैं, ‘अरे, मुझे घर बनाने के लिए 50 लाख चाहिए, लेकिन मेरी जेब में मेरे पास सिर्फ 50 रुपए हैं - संभव नहीं है, संभव नहीं है, संभव नहीं है।’ जिस पल आप सोचते हैं, ‘संभव नहीं है,’ आप यह भी सोच रहे हैं, ‘मैं इसे नहीं चाहता।’
एक स्तर पर आप इच्छा पैदा कर रहे हैं कि आप कुछ चाहते हैं और दूसरे स्तर पर आप कह रहे हैं कि आप उसे नहीं चाहते। इस टकराव में, शायद यह घटित न हो। श्रद्धा सिर्फ उन लोगों के लिए काम करती है जो सरल मन के हैं। यह उन लोगों के लिए कभी काम नहीं करती जो बहुत ज्यादा सोचने वाले हैं। एक बालसुलभ इंसान, जिसे अपने भगवान या अपने मंदिर में सरल श्रद्धा है, मंदिर जाता है और कहता है, ‘शिव जी! मैं घर चाहता हूँ, मैं नहीं जानता कि कैसे, आपको उसे मेरे लिए बनाना चाहिए।’ उसके मन में कोई नकारात्मक विचार नहीं हैं। अपार श्रद्धा से वो चीजें पूरी तरह से हट गई हैं। अब उसे विश्वास है कि शिव उसके लिए वह करेंगे और वह हो जाएगा। क्या शिव आकर आपके लिए घर बनाने वाले हैं? नहीं। मैं चाहता हूँ कि आप समझें कि भगवान आपके लिए अपनी छोटी उंगली भी नहीं उठाएंगे। जिसे आप ईश्वर कहते हैं वह सृष्टि का स्रोत है।
एक सृष्टिकर्ता के रूप में उन्होंने अद्भुत काम किया है। लेकिन अगर आप चाहते हैं कि जीवन वैसे घटित हो जैसे आप सोचते हैं कि उसे होना चाहिए, तो आप कितनी एकाग्रता से सोचते हैं, आपका विचार कितना स्थिर है, और विचार प्रक्रिया में कितना स्पंदन मौजूद है, यह तय करेगा कि आपका विचार एक हकीकत बनेगा या बस एक खोखला विचार बना रहेगा। क्या संभव है और क्या संभव नहीं है, वह आपका मामला नहीं है, वह प्रकृति का काम है। प्रकृति उसे तय करेगी। आप बस यह देखिए कि वह क्या है जो आप वाकई चाहते हैं और उसके लिए प्रयास कीजिए। अगर आपका विचार एक शक्तिशाली तरीके से पैदा हुआ है, और विचार प्रक्रिया की तीव्रता को नीचे लाने वाले कोई नकारात्मक विचार नहीं हैं, तो वह जरूर साकार होगा।
आज आधुनिक विज्ञान सिद्ध कर रहा है कि पूरा अस्तित्व एक स्पंदन है। इसी तरह, आपका विचार भी स्पंदन है। अगर आप एक शक्तिशाली विचार पैदा करते हैं और उसे बाहर छोड़ते हैं, तो वह हमेशा खुद को अभिव्यक्त करेगा। आम तौर पर, लोग नकारात्मक विचार दूर करने के लिए श्रद्धा को एक साधन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन जब आप एक सोचने वाले व्यक्ति बन गए हैं, तो आपकी श्रद्धा बहुत गहरी नहीं होगी। आप सोचते है आप बहुत श्रद्धावान है, लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता, कहीं न कहीं संदेह हमेशा उभर ही आते हैं। आपका मन अभी जिस तरह का है, अगर भगवान भी यहां प्रकट हो जाते हैं, तो आप उनको समर्पण नहीं करेंगे; आप जांच करना चाहेंगे कि वे वाकई भगवान हैं भी या नहीं।
इस तरह के मन के साथ, आपको श्रद्धा पर अपना समय नष्ट नहीं करना चाहिए। एक दूसरा विकल्प प्रतिबद्धता का है। आप जो चाहते हैं, अगर आप खुद को उसके निर्माण के लिए प्रतिबद्ध बना देते हैं, तो अब एक बार फिर आपका विचार इस तरह व्यवस्थित हो जाता है कि फिर ‘यह संभव है या नहीं’ जैसी कोई चीज नहीं रह जाती। आपकी विचार प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं रहती। आप जो चाहते हैं, उस ओर आपका विचार सरलता से प्रवाहित होता है। जब ऐसा होता है, तो उसे साकार करना भी स्वाभाविक रूप से होगा।
आप जिसकी वाकई परवाह करते हैं, उसे बनाने के लिए सबसे पहली और महत्वपूर्ण चीज यह है कि आप क्या चाहते हैं ये आपके मन में ठीक से स्पष्ट होना चाहिए। क्या यही चीज आप चाहते हैं? आपको इस पर गौर करना चाहिए, क्योंकि अपने जीवन में कितनी ही चीजों के लिए आपने सोचा है, ‘बस यही चाहिए।’ जिस पल आपको वह चीज मिल जाती हैं, आपको एहसास होता है कि यह वो नहीं है - यह अगली वाली है और फिर अगली वाली। तो, सबसे पहले आपको यह पता लगाना चाहिए कि वह क्या है जो आप वाकई चाहते हैं। एक बार जब वह स्पष्ट हो, और आप उसे बनाने के लिए प्रतिबद्ध हों, तो अब उस दिशा में विचार की अनवरत प्रक्रिया मौजूद रहती है। जब आप विचार का एक संतुलित प्रवाह, बिना दिशा बदले कायम रख सकते हैं, तो वह आपके जीवन में निश्चित रूप से हकीकत के रूप में साकार होगा।
सद्गुरु ‘आकर्षण के नियम’ की गप्प का पर्दाफाश करते हैं
प्रश्नकर्ताः आकर्षण का नियम वाकई कैसे काम करता है?
सद्गुरुः यह काम नहीं करता।
प्रश्नकर्ताः तो क्या काम करता है? क्या आप अपना भाग्य रच सकते हैं?
सद्गुरुः आप अपना भाग्य तय कर सकते हैं और आपको ऐसा करना चाहिए क्योंकि मनुष्य होने का यही मतलब है। इस धरती पर सारे दूसरे जीव विवशतापूर्ण चक्रों के अनुसार जीते हैं। उनके लिए यह ठीक है क्योंकि वे बस इसी में सक्षम हैं। असल में, अगर आप अपने जीवन को देखें, तो आप उससे बहुत ज्यादा अलग कुछ नहीं कर रहे हैं, जो दूसरे जीव कर रहे हैं। वे पैदा होते हैं - आप पैदा हुए। आप बड़े हुए - वे भी बड़े होते हैं। वे बच्चे पैदा करते हैं - आपने बच्चे पैदा किए। वे मरते हैं - आप भी मरेंगे। बहुत ज्यादा फर्क नहीं है, लेकिन हम इन्हीं सरल चीजों को चेतनापूर्वक कर सकते हैं। मनुष्य होने के बारे में यही महत्वपूर्ण चीज है।
अगर आप अपने हाथ को सचेतन रूप से संचालित करते हैं, तो अब यह हाथ वह करेगा जो आप चाहते हैं। अगर आप अपने विचार को चेतनापूर्वक संचालित करते हैं, तो यह वह करेगा जो आप चाहते हैं। अगर आपका विचार वह करता होता जो आप चाहते हैं, तो आप खुद को प्रसन्न रखते, दुखी नहीं। अगर आप प्रसन्न हैं, तो आपका जीवन खुशी की खोज में नहीं होगा। ये चीजें जिन्हें लोग अपने जीवन में सबसे बड़ी चीज मानते हैं - शांत और प्रसन्न रहना - उनके आपके लिए कोई मायने नहीं रहेंगे जब आप प्रसन्न हों तब। अगर ऐसा होता है, तो आपकी पूरी जीवन प्रक्रिया पूर्णतः सहज बन जाएगी। अभी आप एक घात लगाए बाघ की तरह हैं - आपको हमेशा कुछ हासिल करना होता है। हासिल करने के लिए कुछ नहीं है।
अगर आप यहां बैठते हैं, आपका जीवन पूर्ण होता है - अब यह पूर्ण सहजता पर होता है। जब यह इस किस्म की सहजता में होता है तो यह बोध में सक्षम बन जाएगा। बस एक पेशे को जारी रखना, पैसा कमाना, या आनंदमय होना या प्यार मे पड़ना, आपके लिए किसी चीज के कोई मायने नहीं रहते, क्योंकि बस यहां बैठने से ही आपको सर्वोच्च स्तर की प्रसन्नता हो रही है।
ऐसे जीवन से आप क्या करेंगे? स्वाभाविक रूप से, आप किसी ऐसी चीज की खोज करेंगे जो अभी आपके बोध में नहीं है। आध्यात्मिक प्रक्रिया इसी तरह शुरू होती है; इसी तरह आप अपने जीवन को अपने हाथ में लेते हैं। अगर आप खुद का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेते हैं, तो अब आप अपनी खुशी की खोज नहीं करते; आप किसी चीज को लेकर तनाव में नहीं होते; आपके सिर पर कोई तलवार नहीं लटकती। आप हर चीज पूरे दिल से, पूर्णतया करेंगे।
चाहे जो भी होता है, आपको पता है कि आप फिर भी ठीक होंगे। अब आप हर चीज स्वाभाविक रूप से बहुत अच्छी तरह करेंगे क्योंकि बिलकुल कोई चिंता नहीं है, क्योंकि अब आपका कोई निहित स्वार्थ नहीं रहा। आप वह करेंगे जिसकी जरूरत है, बिना किसी प्रयास के। जिसे कोई दूसरा एक बड़ा कमाल मान सकता है, उसे आप आनंदपूर्वक और खेल-खेल में कर डालेंगे।