सद्‌गुरु सद्‌गुरु हमें बता रहे हैं कि जीवन में किसी भी चीज़ का आनंद लेने के लिए बुनियादी जरुरत है कि हमें शांत होना चाहिए। साथ ही वे एक सरल योग अभ्यास नाड़ी शुद्धि भी सीखा रहे हैं जिससे विचारों में संतुलन लाया जा सकता है।

शांति जीवन का परम लक्ष्य नहीं है। यह सबसे बुनियादी जरूरत है। अगर आप उसे अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य मानते हैं, तो आप मृतक के समान हो जाएंगे। आप अगर आज अपने डिनर का आनंद उठाना चाहते हैं, तो आपको शांत होना चाहिए। अगर आप पार्क में टहलने या अपने परिवार के साथ समय बिताने का आनंद लेना चाहते हैं, तो कम से कम आपको शांत होना होगा। अपने जीवन के एक कुदरती पहलू को कोई गूढ़ चीज न बनाएं। शांति का रसायन पैदा करना आपकी ही जिम्मेदारी है।

अपने अंदर शांति का रसायन पैदा करने के कुछ तरीके व साधन हैं। अगर आप दिन में कुछ मिनट अपने अंदरूनी सुख को देने के लिए तैयार है तो शांत होना स्वाभाविक होगा।

कैसे पैदा करें शांति का रसायन

आप जो चीजें इकट्ठी करते हैं, वे आपकी हो सकती हैं, मगर आप खुद वो चीज नहीं हो सकते।

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जब आपके अंदर पहचान से मुक्त होने की यह प्रक्रिया शुरू होती है, जो हर काम में भागीदारी की बहुत गहरी भावना से संतुलित होती है, तो आप पागलपन से ध्यान की ओर बढऩे लगते हैं।
अगर इंसान किसी तरह की पहचान, जैसे शरीर, परिवार, समुदाय, योग्यता, जाति, वर्ग, नस्ल, देश यहां तक कि अपनी प्रजाति और असंख्य दूसरी पहचानों के साथ अपनी बुद्धि को नहीं उलझाता, तो जीवन कुदरती रूप से अपनी चरम प्रकृति की ओर बढ़ता। एक बार जब आप किसी ऐसी चीज के साथ अपनी पहचान जोड़ लेते हैं, जो आप नहीं हैं, तो मन एक तेज रफ्तार की रेलगाड़ी की तरह चलने लगता है जिसे आप रोक नहीं सकते। अब आप उसमें ब्रेक लगाना चाहते हैं मगर ऐसा संभव नहीं हो पाता। सबसे पहले आपको अपनी गति पर काबू पाना होगा। रोजाना कम से कम पांच मिनट तक खुद को याद दिलाएं कि आप जो कुछ भी ढो रहे हैं, अपना हैंडबैग, अपना पैसा, अपना पहचान पत्र, रिश्ते, अपने दिल का भारीपन, अपना शरीर, ये सब चीजें आपने समय के साथ इकट्ठी की हैं। जब आपके अंदर पहचान से मुक्त होने की यह प्रक्रिया शुरू होती है, जो हर काम में भागीदारी की बहुत गहरी भावना से संतुलित होती है, तो आप पागलपन से ध्यान की ओर बढ़ने लगते हैं।

सावधान : डर भंग कर सकता है आपकी शांति

जिज्ञासु : रोजमर्रा के जीवन में कई बार डर मुझे छोटी-बड़ी चीजें करने से रोकता है- नाकामयाबी का डर, कभी-कभार शायद ठुकराए जाने का डर। इस डर पर कैसे काबू पाएं?

सद्‌गुरु :  जिस चीज का अस्तित्व ही नहीं है, उस पर आप काबू नहीं पा सकते। अभी क्या आप डर रहे हैं?कि मैं कोई चोट पहुंचाने वाली बात कह दूंगा? क्या यह डर है? आप क्या अपने जीवन के हर पल में डरते हैं? नहीं।

इतना हक हर इंसान का है। क्या ऐसा नहीं है? चाहे दुनिया उस पर मेहरबान न हो, कम से कम उसका अपना दिमाग तो उस पर मेहरबान हो।
इसी तरह बाकी समय भी रहें क्योंकि डर पैदा करने के लिए आपको जरूरत से ज्यादा कल्पना करने की जरूरत पड़ती है। न डरने के लिए आपको कुछ नहीं करना पड़ता। डर जरूरत से ज्यादा कल्पनाएं करने से पैदा होता है - जो चीजें अभी घटित नहीं हुई हैं, उन्हें आप पैदा करते हैं। क्या हो सकता है, यह बात आपके मन में हजारों अलग-अलग रूपों में घटित होती है जबकि असलियत में शायद वह कभी सामने नहीं आता। जिन चीजों का आपको डर होता है... सौ ऐसी चीजें लें जिनका आपको डर था। शायद उनमें से निन्यानवे चीजें कभी नहीं हुईं होंगी, है न? तो आपका डर हमेशा उस चीज के बारे में होता है जिसका अस्तित्व नहीं है। आप उस चीज से नहीं लड़ सकते या उस पर काबू नहीं पा सकते जिसका अस्तित्व ही नहीं है। जिस चीज का अस्तित्व है, हम सिर्फ उस पर ही काबू पा सकते हैं। जिसका अस्तित्व ही नहीं है, उसे आप काबू में नहीं कर सकते। हमें बस उस कोशिश को छोडऩा होगा। डर का आनंद उठाएं। आखिरकार वह आपका ही पैदा किया हुआ है। आपको हॉरर फिल्में पसंद हैं?

हां। मेरा मतलब है, आप कह नहीं रहे हैं मगर आप उन्हें बना रहे हैं। बस उनसे कमाई नहीं हो रही है। डर का मतलब है कि आप अपने दिमाग में हॉरर फिल्में बना रहे हैं। कोई और उसे नहीं देखना चाहता। यह प्रॉड्यूसर के लिए अच्छी बात नहीं है मगर आप उन्हें बना रहे हैं। इसलिए आप कुछ और बनाएं - कॉमेडी बनाएं, लव स्टोरी बनाएं, सस्पेंस थ्रिलर बनाएं। इसे आज ही आजमा कर देखिए। बस बैठ जाइए, एक प्रेम कहानी, रोमांचक कहानी, कॉमेडी बनाइए। आप अपने दिमाग में पांच-पांच मिनट की फिल्में बनाते हैं। वाकई यह सच है। अपने दिमाग को अलग तरीके से इस्तेमाल करना शुरू कीजिए। यह आपका तरीका बन गया है। हर समय सिर्फ हॉरर फिल्में बनाने की आपकी आदत हो गई है। आपने काफी हॉरर फिल्में देखी हैं, वे ऊबाऊ होती हैं। कुछ और बनाइए। ऐसा नहीं है कि ऐसी फिल्में बनाने पर वे चीजें आपके जीवन में घटित होंगी। हो सकता है कि वे फिर भी घटित न हों। कम से कम आप फिल्म का आनंद तो उठाएंगे। असलियत में वह नहीं भी हो सकता है, तो क्या हुआ? अगर आप दुनिया में घट रही चीजों का आनंद नहीं उठा सकते, तो कम से कम अपने दिमाग में हो रही चीजों का मजा तो ले सकते हैं, है न?

इतना हक हर इंसान का है। क्या ऐसा नहीं है? चाहे दुनिया उस पर मेहरबान न हो, कम से कम उसका अपना दिमाग तो उस पर मेहरबान हो। तो कुछ अच्छी फिल्में बनाइए। कॉमेडी बनाने की कोशिश कीजिए।

योगाभ्‍यास : शांति के लिए नाड़ी शुद्धि

सद्‌गुरु : नाड़ी शुद्धि का शाब्दिक अर्थ नाड़ियों की सफाई है। नाड़ियों से हमारा मतलब 72,000 नाड़ियों से नहीं है, क्योंकि ये 72,000 नाड़ियां सिर्फ दो मूल नाड़ियों – पिंगला और इड़ा की शाखाएं हैं। 36,000 नाड़ियां पिंगला से निकलती हैं और 36,000 इड़ा से। यह एक इंसान की ऊर्जा प्रणाली होती है। नाड़ी शुद्धि में हम मूल रूप से पिंगला और इड़ा की शुद्धि की बात करते हैं ताकि ऊर्जा प्रणाली संतुलित रहे। आपकी सांस और मानसिक संरचना के बीच एक संबंध होता है। अगर आप अपने कार्यों, अपनी भावनाओं और अपने जीवन के नतीजों तथा दूसरे लोगों के जीवन पर आपका जो असर होता है, उसमें संतुलन लाना चाहते है, तो अपने विचारों में संतुलन लाना बहुत जरूरी है। इस बहुत ही जरूरी संतुलन को लाने में नाड़ी शुद्धि की एक अहम भूमिका है।