डर हर इंसान की एक बुनियादी समस्या है। किसी न किसी रूप में हर इंसान में कहीं गहरे बैठा यह डर अनगिनत तकलीफों और समस्याओं को जन्म दे रहा है। अगर आपके पास कुछ नहीं है तो जरुरत के वक्त अभाव का डर, अगर कुछ है तो उसे खोने का डर, स्वस्थ हैं तो बीमारी का डर, बीमार हैं तो मृत्यु का डर....

प्रश्नकर्ता : सद्‌गुरु, हमें हमेशा यह डर क्यों सताता है कि कहीं हमारे साथ कोई अनहोनी न हो जाए? इस डर से छुटकारा कैसे पाएं? डर अपने आप में जीवन के सबसे अप्रिय अनुभवों में से एक है। आपको जिस चीज का डर लगता है, वास्तव में वह उतनी डरावनी नहीं होती, जितना कि खुद डर। कोई आए और आपका दिल दुखाए, उससे पहले आप खुद ही अपने को इतना दुख पहुंचा लेते हैं कि उसके करने के लिए ज्यादा कुछ बचता ही नहीं। आजकल जो प्रतियोगिता चल रही हैं उससे तो आप वाकिफ  हैं ही।

सद्‌गुरु सद्‌गुरु : आप एक ऐसे समाज में रह रहे हैं, जो हर पल अपने लक्ष्य के इर्द गिर्द चक्कर काटता है। जाहिर है, यहां हर चीज में प्रतियोगिता है। मान लीजिए, मैं आपका दिमाग ले लूं तो क्या आप डरेंगे? नहीं। या यूं कहें कि अगर मैं आपका शरीर ले लूं, तो क्या उसके बाद आप डरेंगे? हालांकि डर से बचने के लिए आपको अपना शरीर छोडऩे की कोई जरूरत नहीं है। आपको बस इतना करना है कि अपने शरीर से थोड़ी सी दूरी बनानी है।

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साहसी लोग अकसर बेवकूफी भरी हरकतें करते हैं। जबकि डरे हुए लोग कुछ भी नहीं करते। अगर आप निडर हैं तो आप जीवन को उसी तरह देखते हैं, जैसा वह है और जितना अच्छा संभव हो सकता है, उतना करते हैं।
ठीक इसी तरह आपको अपने मन से भी थोड़ी दूरी बनानी है। एक बार अगर आपके और आपके शरीर व मन के बीच थोड़ी दूरी बन गई, तो फिर आपको भला किस बात का डर होगा? डर सिर्फ  इस शरीर की वजह से ही होता है- दर्द का डर, कष्टों का डर, मौत का डर। साहसी लोग अकसर बेवकूफी भरी हरकतें करते हैं। जबकि डरे हुए लोग कुछ भी नहीं करते।

अगर आप निडर हैं तो आप जीवन को उसी तरह देखते हैं, जैसा वह है और जितना अच्छा संभव हो सकता है, उतना करते हैं। डर का सबसे बड़ा कारण है कि आपने अपने शरीर के साथ जरूरत से ज्यादा अपनी पहचान बना ली है। शरीर और मन के साथ कुछ भी गलत नहीं है, वे शानदार चीजें हैं, लेकिन आपने उनका एक बार इस्तेमाल किया और आप उसी में अटक गए। सब कुछ इतनी बुरी तरह से उलझ गया है कि आपको यह भी पता नहीं है कि आप कौन हैं और आपका शरीर कौन हैं। आप कौन हैं और आपका मन कौन है। आपने इन चीजों के साथ एक जबर्दस्त  पहचान बना ली है।

मान लीजिए, आपके पास एक बहुत पुराना फूलदान है, जो बीस पीढिय़ों से चला आ रहा है और अब आपको मिला है। आपको हमेशा यह बताया गया कि यह बहुत भाग्यशाली फूलदान है। हमारे परिवार के लोगों की जिंदगी बस इसी फूलदान की वजह से अच्छी तरह चलती रही है। अगर मैं आकर उस फूलदान को तोड़ दूं तो क्या होगा? आपका दिल टूट जाएगा, क्योंकि आपने इस फूलदान के साथ अपनी बहुत ज्यादा पहचान बना ली है। अगर मैं आपके मन में डर पैदा करना चाहता हूँ तो मुझे इस कमरे में आग लगाने की जरूरत नहीं है। अगर मैं आपको एक झूठी कॉल करके यह कह दूं कि आपके घर में आग लग गई है, तो सोचिए क्या होगा? आपके मन में जबर्दस्त डर बैठ जाएगा और आपके दिमाग में उथल-पुथल होने लगेगी। मैं नहीं चाहता कि घर में आग लगने जैसी कोई भी घटना हो।

मान लीजिए अगर ऐसा हो गया तो क्या आपको इस बात पर खुश नहीं होना चाहिए कि आप घर में नहीं होने की वजह से बच गए? जब आप किसी चीज के साथ अपनी इतनी ज्यादा पहचान बना लेते हैं तो आप यह तय नहीं कर पाते कि कौन सी चीज आप हैं और कौन सी चीज आप नहीं हैं। डर होता ही इसलिए है क्योंकि आप उन चीजों के बारे में मान लेते हैं कि ये ही मैं हूं, जबकि वह हकीकत नहीं हैं। चाहे आपका मन हो, आपके विचार हों, आपका शरीर हो या कुछ और, इन सारी चीजों को हासिल किया गया है।

कुल मिलाकर डर बस कष्टों का और मौत का होता है। मौत का मतलब है आपने अपने शरीर को खो दिया। दर्द के डर का मतलब है कि किसी कारण से आपका शरीर दुखदायी हो गया है।

डर को जीतने की कोशिश मत कीजिए। बस अपने शरीर व मन से थोड़ी सी दूरी बना लें अपने मन के साथ आपने इतनी घनी पहचान बना ली है कि चाह कर भी आप इस पर काबू नहीं कर पाते और इसीलिए आपको दुख होता है।
कष्टों के डर का मतलब है कि किसी वजह से आपका मन परेशान हो गया है। दर्द का डर समझ में आता है। आप दर्द से बचना चाहते हैं, लेकिन जब डर आपको अपनी गिरफ्त में ले लेता है तो यह बेहद दर्दनाक हो जाता है। यह दर्द आपकी उंगली काट दिए जाने पर होने वाले दर्द से भी भयानक होता है। अगर आपकी हड्डी टूट जाए तो इसमें दर्द होता है, लेकिन जब हड्डियां बारह से पंद्रह बार टूट चुकी हैं? ऐसे में आप इस सबके आदी हो जाते हैं। हड्डी टूटने की दुर्घटना दो से तीन बार हो जाए, बस उसके बाद तो आपको लगने लगता है कि कोई बात नहीं। अगर टूट गई है तो जुड़ भी जाएगी, लेकिन डर की वजह से जो कष्ट पैदा होता है, वह हड्डी टूटने से होने वाले दुख से कहीं बड़ा होता है।

डर को जीतने की कोशिश मत कीजिए। बस अपने शरीर व मन से थोड़ी सी दूरी बना लें अपने मन के साथ आपने इतनी घनी पहचान बना ली है कि चाह कर भी आप इस पर काबू नहीं कर पाते और इसीलिए आपको दुख होता है। आप इससे वह सब कुछ नहीं करा सकते, जो आप चाहते हैं। ऐसे में यह आपकी मर्जी के खिलाफ  काम कर रहा है। डर को जीतने की कोशिश मत कीजिए। ऐसा करना बेवकूफी है। बस सभी चीजों को सही स्थान दीजिए। अगर आप अपने शरीर व मन से पहचान बनाए बिना शरीर को सिर्फ शरीर के स्तर पर और मन को मन के स्तर तक ही रहने देंगे तो आप देखेंगे कि डर जैसी कोई बात नहीं रह जाएगी। आप जीवन को समझदारी से संभाल सकेंगे।

निडर होने का मतलब यह कतई नहीं है कि आप जाकर दीवार से भिड़ जाएं या दीवार में सिर मारें। निडर होने का मतलब है कि आप हर चीज को उसी रूप में देखें, जैसी वह है। साथ ही जीवन को इस तरह चलाएं, जैसे उसे चलाया जाना चाहिए। अगर आप डरे हुए हैं तो आप अपने जीवन को उसके सहज रूप में नहीं चला सकते। अगर आप बहुत साहसी हैं, तो भी आप अपने जीवन को उस तरह से नहीं चला सकते, जैसे उसे चलाया जाना चाहिए। साहसी लोग अकसर बेवकूफी भरी हरकतें करते हैं। जबकि डरे हुए लोग कुछ भी नहीं करते। अगर आप निडर हैं तो आप जीवन को उसी तरह देखते हैं, जैसा वह है और जितना अच्छा संभव हो सकता है, उतना करते हैं। इसलिए साहसी या निडर बनने की कोशिश मत कीजिए। अगर आपने अपने शरीर व मन से थोड़ी सी दूरी बना ली तो आपके जीवन में डर जैसी कोई चीज नहीं होगी। मुझे नहीं पता डर क्या होता है! इसके बारे में मुझे जो भी जानकारी है, वह बस दूसरों के अनुभवों की वजह से है। अपने आसपास मौजूद लोगों को मैने जबर्दस्त डरे हुए देखा है, लेकिन मुझे कभी डर का अहसास नहीं हुआ। मैंने कई बार अपने को डराने की कोशिश भी की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।