मौत अपने साथ भय और दुःख लाती है, और मौत से सामना होने पर, आम तौर पर मानव खुद को असहाय पाता है। क्या बिना डरे मौत का सामना किया जा सकता है?


लियेन:

मुझे मौत के समय भय की गैरकुदरती प्रक्रिया से डर लगता है क्योंकि आपने कहा था कि आपके अगले जन्म के लिए आपकी मृत्यु का पल बहुत महत्वपूर्ण होता है। तो अगर इस बार आप मरते समय भयभीत होते हैं, तो उसके बाद क्या होगा?

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सद्‌गुरु:

डर कोई गैरकुदरती चीज नहीं है। अगर आप एक खास तरीके से जीते हैं, तो यह आपके साथ होने वाली सबसे कुदरती चीज है। हमने पूरी मानव जाति को जीवन के मूल सिद्धांतों से पूरी तरह अनजान रखते हुए विकसित किया है। हमने उन्हें जीने के लिए विश्वविद्यालयों में, हर तरह की चीजें करने के लिए भेजा है मगर हमने उन्हें जीवन के मूल सिद्धांत नहीं सिखाए हैं। जिसने जन्म लिया है, वह मरेगा ही – इस बात से हम रोज बचते क्यों हैं? क्या यह महत्वपूर्ण नहीं है कि जब आप जानते हैं कि यह जीवन हमेशा के लिए नहीं है, तो आपको इसका बेहतरीन इस्तेमाल करना है? यह बहुत महत्वपूर्ण है। सबको बचपन से ही मृत्यु के बारे में बताया जाना चाहिए क्योंकि जो मरना नहीं चाहता, वह जी नहीं सकता। ‘मैं मरना नहीं चाहता, मैं मरना नहीं चाहता, मैं मरना नहीं चाहता’ करते हुए आप जीवन से दूर हो जाएंगे।

मौत का डर - क्या है कारण?

जो मरने को तैयार है, जो इस तरह से जीता है - ‘अगर मुझे आज मरना पड़े, तो मैं तैयार हूं। ऐसा नहीं है कि मैं मरना चाहता हूं लेकिन अगर मुझे मरना है, तो कोई बात नहीं’ – सिर्फ वही अपना जीवन जी सकता है। अगर आप मरना नहीं चाहते, तो आप जीना भी नहीं चाहते क्योंकि ये दो अलग-अलग चीजें नहीं हैं। हम अभी कह सकते हैं कि आप जी रहे हैं या हम कह सकते हैं कि आप मर रहे हैं, यह अलग-अलग चीज नहीं है।

मेरे बचपन के दिनों में, बहुत सालों तक मैं श्मशान में बैठकर लोगों की मदद करता रहा क्योंकि मैं देखना चाहता था कि मौत के बाद क्या होता है। मगर शवों के जलने के अलावा वहां कुछ नहीं होता था।
आप वाकई मर रहे हैं। इन दो शब्दों का भिन्न अर्थ नहीं है, उनका एक ही अर्थ है। अभी आप जी रहे हैं या मर रहे हैं, एक दिन दोनों प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। है न? इससे बचने की कोशिश में भय पैदा होता है जो कि एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। आप चाहें तो किसी भी चीज के बारे में डर उत्पन्न कर सकते हैं। आप किसी भी चीज को लेकर भयभीत हो सकते हैं। इस धरती पर छाया सबसे हानिरहित होती है। है न? छाया इस धरती पर सबसे हानिरहित चीज है, लेकिन लोग छाया से डरते हैं। इसमें क्या किया जा सकता है? क्या हम छाया से सुरक्षित कोई चीज बना सकते हैं? लोग हमेशा छाया से भयभीत होते हैं। इसलिए आपको यह समझने की जरूरत है – ये सब चीजें इसलिए नहीं हो रही हैं क्योंकि कोई मर रहा है। ये सब चीजें इसलिए हो रही हैं क्योंकि इन सब के पीछे अज्ञानता है। हम अपने मन की प्रकृति, शरीर की प्रकृति, अपने अंदर जीवन की प्रकृति को समझे बिना यहां एक गैरकुदरती रूप में रहने की कोशिश कर रहे हैं, हम जीवन में दिलचस्पी लिए बिना जीने की कोशिश कर रहे हैं, आप इस तरह नहीं जी सकते।

अगर आप जीना चाहते हैं, तो आपको जीवन में दिलचस्पी होनी चाहिए। जीवन में दिलचस्पी होने का मतलब पार्टी में जाना नहीं है, जीवन में दिलचस्पी होने का मतलब है कि आप यह जानने में दिलचस्पी रखते हैं कि यह जीवन क्या है। जीवन में लिप्त होने का मतलब है कि आपने इसकी गहराई में जाना शुरू कर दिया है क्योंकि आप जीवन के बारे में जानना चाहते हैं। अगर आप इस जीवन की प्रकृति को समझ लें, तो ये बेकार की बातें आपके दिमाग से गायब हो जाएंगी लेकिन अगर आप जहनी सुकून चाहते हैं, तो हम किसी मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं, हम संगीत बजा सकते हैं, हम कोशिश कर सकते हैं कि कोई इंसान अपनी मौत के बारे में भूल जाए। उसे मरना तो है ही, मगर हम ऐसी स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं कि वह इसे भूल जाए।

अगर आप जीवन की प्रकृति को अपने अंदर समझते हैं या महसूस करते हैं, तो ये मुद्दे आपके लिए कोई मायने नहीं रखते, यह हास्यास्पद है लेकिन मैं उसका महत्व समझ सकता हूं, क्योंकि आप जो भी जानते हैं, वह सब सिर्फ आपके विचार होते हैं, और कुछ नहीं। आप अपने विचारों और भावनाओं के अलावा जीवन को बिल्कुल भी नहीं जानते, इस स्थिति में मौत एक तकलीफदेह चीज होती है। आप कभी अपने मन में उसे स्वीकार नहीं कर सकते। है न? चाहे आप कुछ भी कर लें, आपकी सोच कभी इसे स्वीकार नहीं कर सकती।
आपके किसी प्रिय की मौत होने वाली हो, तो आप कहेंगे - ‘आपका दर्शन अपनी जगह ठीक है मगर मैं उसे मरते नहीं देखना चाहता,’ बस इतना ही मुद्दा है। मौत कोई दर्शन नहीं है, वह एक हकीकत है जिससे आप इनकार नहीं कर सकते, मगर फिलहाल हम जीवन को इस रूप में ढंक देते हैं, मानो मौत का अस्तित्व नहीं है। मेरे ख्याल से दुनिया के इस हिस्से में जब किसी की मौत होती है, तो आप उसे एक बढ़िया चमकीले बक्से में रखते हैं। कई बार मैं बहुत से लोगों को, जब वे साधना कर रहे होते हैं, कहता हूं, ‘आप जाकर श्मशान भूमि में थोड़ा समय बिताइए।’ आपको शवों का दाह-संस्कार देखना चाहिए। आपको वाराणसी जाकर देखना चाहिए – वहां दर्जनों शव जल रहे होते हैं। एक-एक करके शव आते रहते हैं और लोग उनका दाह-संस्कार करते रहते हैं। वहां बैठकर थोड़ी देर इस पर विचार करना चाहिए।

मेरे बचपन के दिनों में, बहुत सालों तक मैं श्मशान में बैठकर लोगों की मदद करता रहा क्योंकि मैं देखना चाहता था कि मौत के बाद क्या होता है। मगर शवों के जलने के अलावा वहां कुछ नहीं होता था। मैं शरीर से कुछ निकलते हुए देखना चाहता था। लोग भूतों के बारे में, इसके-उसके बारे में चर्चा करते थे, मैं देखना चाहता था कि क्या वह पेड़ों पर या यहां-वहां लटकते रहते हैं।

हमने उन्हें जीने के लिए विश्वविद्यालयों में, हर तरह की चीजें करने के लिए भेजा है मगर हमने उन्हें जीवन के मूल सिद्धांत नहीं सिखाए हैं। जिसने जन्म लिया है, वह मरेगा ही – इस बात से हम रोज बचते क्यों हैं?
हर तरह की खौफनाक कहानियां प्रचलित थीं लेकिन मैं एक के बाद दूसरे दिन वहां जाकर बैठता रहा, मैं दिन-रात वहां जाकर बैठा। लोग आते थे, शवों को आग लगाकर वहां एक-डेढ़ घंटे बैठते थे, और उसके बाद अपने काम में लग जाते थे। वे रोते थे, आंसू बहाते थे, फिर उनके आंसू खत्म हो जाते थे, उन्हें घर जाकर बाकी चीजें करनी होती थीं, तो वे चले जाते थे। फिर सिर्फ मैं वहां बैठकर देखता था। आम तौर पर चिता में जो आग लगाई जाती थी, कुछ देर बाद वह आग हल्की पड़ने लगती थी। एक चीज जो आम तौर पर हमेशा होती थी, वह यह कि सिर अलग हो जाता था। क्योंकि गरदन जल जाती है, सिर नहीं जलता, इसलिए आग का यह गोला चारो ओर लुढकता रहता है।

मैं नहीं चाहता था कि सिर वहां पड़ा रहे इसलिए मैं ही उसे उठाकर वापस रख देता था, और वहीं बैठता था कि शायद कोई आएगा, मगर वे कभी नहीं आए। मुझे यह समझने में कुछ साल लगे कि इन चीज़ों के बारे में जानने का यह तरीका नहीं है। भूत अंदर ही होता है, उस भूत को देखने की बजाय आप किसी दूसरे भूत को खोजने की कोशिश करते हैं, ऐसा कभी संभव नहीं होता। लेकिन जिस पल आप अपने आप के भीतर देखते हैं, वे सभी चीजें असली हो जाती हैं। आप एक शरीरी भूत हैं। है न? आप शरीर के साथ भूत है। कोई और शरीर के बिना भूत है। केवल इसलिए कि उन्होंने अपना ऋण चुका दिया है, इतना भेदभाव क्यों? मौत को इतनी गंभीर चीज मत बनाइए, वह इतनी गंभीर चीज नहीं है।