प्रश्नकर्ता: मृत्यु के बाद क्या होता है? क्या पुनर्जन्म होता है? यदि हाँ, तो वह क्या है जो किसी मनुष्य को एक जन्म से दूसरे जन्म तक ले जाता है?

सदगुरु: योग में, हम शरीर को 5 आयामों अथवा 5 कोषों की तरह देखते हैं। भौतिक शरीर, अन्नमय कोष कहलाता है। अन्न का अर्थ है भोजन, अतः यह भोजन शरीर है। दूसरा है मनोमय कोष, अर्थात मानसिक शरीर। तीसरे को प्राणमय कोष कहते हैं, जिसका अर्थ ऊर्जा शरीर है। भौतिक, मानसिक एवं ऊर्जा शरीर, ये तीनों ही जीवन के भौतिक आयाम हैं । उदाहरण के लिये, आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि प्रकाश का बल्ब भौतिक है। तार में हो कर बहने वाली विद्युत या इलेक्ट्रॉन के कण भी भौतिक हैं और इसमें से निकलने वाला प्रकाश भी भौतिक है। ये तीनों ही भौतिक हैं। इसी तरह भौतिक शरीर स्थूल है, मानसिक शरीर उससे ज़्यादा सूक्ष्म है, और प्राणिक या ऊर्जा शरीर उससे भी ज़्यादा सूक्ष्म है, पर ये तीनों अस्तित्व की दृष्टि से स्थूल ही हैं।

हरेक का कर्म, उसके शरीर, मन और ऊर्जा पर लिखा रहता है। कार्मिक छाप या कार्मिक संरचना वह सीमेंट है जो आप को भौतिक शरीर से जोड़े रखता है। यद्यपि कर्म एक बंधन है, फिर भी कार्मिक सामग्री के कारण ही आप शरीर को पकड़ कर रखते हैं और यहाँ होते हैं।

अगले दो आयाम विज्ञानमय कोष एवं आनंदमय कोष कहलाते हैं। विज्ञानमय कोष अभौतिक है पर भौतिक से संबंधित है। विशेष ज्ञान या विज्ञान का अर्थ है असामान्य ज्ञान अथवा वो ज्ञान जो इंद्रियों की पहुँच के परे है। यह एक आकाशीय शरीर है, आर पार जाने वाला शरीर है जो भौतिक से अभौतिक की ओर जाता है। यह न तो पूरी तरह से भौतिक है, न अभौतिक। ये दोनों के बीच एक कड़ी की तरह है। आनंदमय कोष एक आनंद शरीर है एवं पूर्णतः अभौतिक है। इसका अपना कोई आकार या रूप नहीं है। यदि भौतिक, मानसिक तथा ऊर्जा शरीर अपने आकार में, संतुलन में हों तो ही वे आनंदमय कोष को पकड़ कर रख सकते हैं। अगर ये चीजें ले ली जायें तो आनंदमय शरीर ब्रह्मांड का हिस्सा बन जाता है।

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मृत्यु क्या है?

जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो लोग कहते हैं, "अब वो व्यक्ति नहीं रहा"। लेकिन ये सच नहीं है। हाँ, वो व्यक्ति अब उस प्रकार से नहीं है, जैसे आप उसे जानते हैं, पर वो अभी भी है। भौतिक शरीर चला गया है पर मानसिक और प्राणिक (ऊर्जा) शरीर अभी भी हैं, जिनका आधार कर्म की मजबूती पर है। अन्य गर्भ में जाने के लिये, कार्मिक संरचना की तीव्रता कम होना ज़रूरी है, इसको थोड़ा निष्क्रिय होना पड़ता है। अगर कार्मिक संरचना ने अपना काम पूरा कर लिया है, यदि वह कमज़ोर हो गया है तो उसे दूसरा शरीर आसानी से मिल जाता है। जब कोई इस जन्म के लिये आबंटित कर्म पूरे कर लेता है, तो वह ऐसे ही मर जाएगा - बिना किसी रोग, चोट या दुर्घटना के! उस व्यक्ति को कुछ ही घंटों में नया शरीर मिल सकता है।

अगर आप कार्मिक संरचना को शत प्रतिशत तोड़ देते हैं तो आप का अस्तित्व के साथ विलय हो जाता है।

कोई अगर अपना जीवन पूर्ण कर लेता है और शांति से मरता है, तो वह इधर उधर भटकता नहीं और तुरंत चला जाता है। लेकिन यदि कार्मिक संरचना बहुत तीव्र है, पूरी नहीं हुई है, तो उसे पूरा करना पड़ता है। तब उसे नया शरीर प्राप्त करने में ज्यादा समय लगता है। ये वही हैं, जिन्हें आप भूत कहते हैं। आप उन्हें अनुभव कर सकते हैं क्योंकि उनकी कार्मिक संरचना अधिक तीव्र होती है। आप के चारों ओर ऐसे असंख्य जीव हैं। आप चाहे ये जानते हों या नहीं, पर आप उनका अनुभव नहीं कर पायेंगे, क्योंकि उनके कर्म एकदम कमज़ोर पड़ गये हैं पर पूरी तरह से समाप्त नहीं हुए हैं। वे कर्मों के और अधिक नष्ट होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिससे उन्हें नया शरीर मिल सके।

महासमाधि -- अंतिम मुक्ति

जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे हैं तो, हरेक आध्यात्मिक जिज्ञासु का अंतिम उद्देश्य है - इस पूरी प्रक्रिया को तोड़ना। ये एक बुलबुले की तरह है। बुलबुले की बाहरी परत आप की कार्मिक संरचना है, और अंदर हवा है। मान लीजिये, आप बुलबुले को फोड़ देते हैं, तो आप की हवा कहाँ गयी ? अब, आप की हवा नाम की कोई चीज़ नहीं रह गयी है, वो तो सारे अस्तित्व का भाग बन गयी है। अभी यह असीमितता, सीमित कार्मिक संरचना के अंदर बंद है, तो आप को यह लगता है कि आप एक अलग इकाई हैं, अलग व्यक्तित्व हैं। यदि आप कार्मिक संरचना को शत प्रतिशत तोड़ देते हैं तो आप का अस्तित्व के साथ विलय हो जाता है।

मुक्ति का अर्थ है - शरीर एवं मन की मूल संरचनाओं से मुक्त होना -जीवन,जन्म और मरण की प्रक्रिया से ही मुक्त होना!

यह वो है जिसे हम ‘महासमाधि’ कहते हैं। आप धीरे-धीरे समझते हैं कि हल क्या है, और फिर कार्मिक संरचना को पूरी तरह से तोड़ते हैं,जिससे आप वास्तव में नहीं रहेंगे। हिंदु परंपराओं में, इसे ही ‘मुक्ति’ कहा जाता है, यौगिक परंपराओं में इसे ‘महासमाधि’ कहते हैं। बौद्ध मार्ग में इसे ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है। सामान्य रूप से, अंग्रेज़ी में हम इसे लिबरेशन कहते हैं -जिसका अर्थ है -शरीर एवं मन की मूल संरचनाओं से मुक्त होना - जीवन, जन्म और मरण की प्रक्रिया से ही मुक्त होना!


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IEO

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