मुक्ति और कर्म - कर्मों से बंधे हैं हम
सद्गुरु से प्रश्न पूछा गया कि अगर हमारे दुःख पिछले कर्मों का नतीजा हैं, तो अब हमें कैसे कम करने चाहिएं जिससे कि भविष्य में दुखों का सामना न हो? जानते हैं सद्गुरु का उत्तर।
प्रश्न: सद्गुरु, आपने कई बार बताया है कि हमारे जीवन के कड़वे अनुभव हमारे पिछले कर्मों के नतीजे होते हैं। भविष्य में कटुता से बचने के लिए हमें वर्तमान में कैसे काम करने चाहिए?
घटना अपने आप में कड़वी नहीं होती
सद्गुरु: किसी अनुभव की कड़वाहट उस घटना में नहीं होती। कड़वाहट इस पर निर्भर करती है कि आपने उस घटना को किस तरह ग्रहण किया है। जो चीज एक व्यक्ति के लिए बहुत कटु है, वह किसी दूसरे के लिए वरदान हो सकती है।
एक बार एक दु:खी व्यक्ति एक कब्र से लिपटकर बुरी तरह रो रहा था और कब्र पर अपना सर पटक रहा था।
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एक पादरी ने उधर से गुजरते हुए उसकी बात सुनी तो पूछा, ‘शायद इस कब्र के नीचे जो इंसान है, वह तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण था।’
‘महत्वपूर्ण?’ वह आदमी और भी जोर-जोर से रोता हुआ बोला, ‘बिल्कुल। वह मेरी बीवी का पहला पति था।’
तो कड़वाहट किसी घटना में नहीं होती। यह इस पर निर्भर करता है कि आप खुद को उस घटना को किस तरह अनुभव करने देते हैं। इसी तरह, आपके पिछले कर्मों का संबंध उस समय किए गए कार्यों के अर्थ में नहीं, बल्कि जिस इच्छा से उन्हें किया गया था, उससे है। जागरूकता का मतलब है, किसी पसंद-नापसंद का न होना। जब पसंद-नापसंद नहीं होती, तो कर्म नहीं होता। चाहे जो भी स्थिति हो, आप बस वह करते हैं, जो जरूरी होता है। आप अपनी जागरूकता और काबिलियत के अनुसार किसी काम को करते हैं। कर्म आप अपनी पसंद-नापसंदों से उपजी इच्छाओं से जमा करते हैं, कर्म अच्छे हों या बुरे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपकी इन इच्छाओं की तीव्रता ही कर्म को जमा करती है।
ऐसा काम जिनसे कर्म नहीं जमा होते
लोग बार-बार मुझसे एक ही सवाल करते हैं, ‘सद्गुरु, आपका मिशन क्या है?’ जब मैं उनसे कहता हूं, ‘मेरा कोई मिशन नहीं है, मैं बस मौज-मस्ती कर रहा हूं’, तो उन्हें लगता है कि मैं मज़ाक कर रहा हूं।