भूत शुद्धि : मूल यौगिक प्रक्रिया
भूत शुद्धि अर्थात पाँच तत्वों के शुद्धिकरण का महत्व 
पाँच तत्वों का शुद्धिकरण क्यों जरूरी है?
पाँच तत्व और कर्मबंधन
भूत शुद्धि : कर्मबंधन की छाप से मुक्त होना 
ईशा भूत शुद्धि करने के फायदे 
अधिकतम फायदे के लिये भूत शुद्धि करने का सही ढंग 
भूत शुद्धि में एक गहन अंतर्दृष्टि 

भूत शुद्धि : मूल यौगिक प्रक्रिया

सदगुरु: आप जिसे 'मेरा शरीर' कहते हैं वो बस पाँच तत्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश की अभिव्यक्ति है, इन्हीं पाँच तत्वों से मिल कर ये शरीर बना है। अगर आप ये जान लें कि अपने अंदर इन पाँच तत्वों को सही ढंग से कैसे संगठित किया जाये, तो फिर जीवन में कुछ बाकी नहीं रह जाता। अगर इन पाँच तत्वों को सही ढंग से रखना आपको आता हो तो स्वास्थ्य, खुशहाली, समझ, जानना और आत्मज्ञान पाना, सब कुछ संभाल लिया जाता है। यौगिक प्रणाली की सबसे मूल प्रक्रिया ही भूत शुद्धि है जो हमारे द्वारा की जा रही हर बात का आधार है। भूत का मतलब है पाँच भूत या पाँच तत्व, और शुद्धि का मतलब है, उनकी सफाई यानी उनमें आयी हुई गंदगी को दूर करना। अगर आप अपनी प्रणाली में पाँच तत्वों का शुद्धिकरण करना सीख लेते हैं तो बस यही सब कुछ है। यौगिक क्रियाओं की बात करें तो आप चाहें यम करें या नियम, प्राणायम करें या आसन, धारणा, ध्यान, समाधि, शून्य कुछ भी करें, ये सब मूल रूप से भूत शुद्धि की मूल बातों का ही रूप हैं। बाकी सभी यौगिक क्रियायें योग की पाँच भूत व्यवस्था का सार ही हैं। 

अगर आप तत्वों का शुद्धिकरण कर लेते हैं, तो आपका जीवन अद्भुत हो जाता है। पर, अगर आप इन सब से परे हैं तो सबसे अच्छा ये होगा कि कि आप सुंदर जीवन जीने की बात भूल जायें और बस जीवन से परे चले जायें, क्योंकि एक सुंदर जीवन जीना जीवन के परे चले जाने से भी जटिल परिस्थिति है! जीवन से परे जाने का मतलब है कि आप सब कुछ पीछे छोड़ देते हैं, आपको इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। जो इन सब से परे है, वो भौतिकता की इतनी सारी जटिलताओं से परेशान नहीं होता। पर, अगर आप भौतिकताओं में रहते हुए भी उससे परे रहना चाहते हैं, तो उसके लिये आपको भौतिकता पर कुछ ज्यादा काबू पाना होगा। अगर आप भौतिकता पर काबू नहीं पा सकते, तो आप उसके गुलाम हो कर रह जायेंगे। 

अगर आप तत्वों के शुद्धिकरण के एक खास स्तर को पा लेते हैं तो आपकी भूत शुद्धि हो जाती है, और इसका मतलब ये होता है कि आपने तत्वों पर काबू पा लिया है। जब आप तत्वों पर काबू पा लेते हैं, तो आप न सिर्फ अपने मन और शरीर पर - बल्कि सारी सृष्टि पर ही काबू पा लेते हैं। 

भूत शुद्धि या पाँच तत्वों के शुद्धिकरण का महत्व 

तत्वों के साथ हरेक की कुछ काबिलियत तो होती ही है, नहीं तो आप एक सामान्य जीवन भी नहीं जी पायेंगे। आपकी प्रणाली में पाँच तत्व कितनी अच्छी तरह से संगठित हैं, ये तय करता है कि ये शरीर कितना संतुलित, स्थिर और जैविक रूप से मजबूत है। आपके अंदर जो पाँच तत्व हैं, उन पर नियंत्रण पाने के लिये बहुत सारी क्रियाओं की एक पूरी व्यवस्था है। कुछ सीधी हैं, कुछ अलग ढंग की हैं। भूत शुद्धि की क्रिया बहुत ही आसान तरीके से की जा सकती है, या फिर एकदम बनावटी ढंग से भी हो सकती है। या, अगर आप नहीं जानते कि इसे कैसे करें तो कोई और ये करेगा और उसकी हाजरी में रह कर आप उसका फायदा ले सकते हैं।

ये तत्व आपकी सृष्टि के आधार हैं। अगर आपको इन पर थोड़ा सी भी महारत है, तो आपके रहने का ढंग लोगों को जादुई ही लगेगा। पर इसमें जादुई जैसा कुछ भी नहीं है। अभी ही, मान लीजिये कि आप पानी पी रहे हैं। पानी न तो आपकी तरह दिखता है, न ही ये आप जैसा है, पर जब आप इसे पीते हैं तो ये 'आप' हो जाता है। ये बात ही जादुई है। आपका रोग मिट जाना कोई चमत्कार नहीं है। पर ये पानी आप हो जाना एक अद्भुत चमत्कार है। जब आप ऐसा जादू करने की काबिलियत रखते हैं, तो आपमें बहुत सी छोटी छोटी चीजें करने की काबिलियत भी होनी चाहिये जैसे किसी बीमारी को ठीक करना, या किसी ऐसी चीज़ को ठीक करना जो आपने बिगाड़ ही दी हो, क्योंकि आप चार तत्वों का उपयोग करते हुए सारे शरीर को अंदर से बना रहे हैं। दुर्भाग्य से, बेहोशी में, बिना जागरूकता के ये सब हो रहा है। हमें इसके बारे में जागरूक होना चाहिये कि कैसे ये चार तत्व मनुष्य का शरीर बन जाते हैं। 

पाँच तत्वों का शुद्धिकरण करने की ज़रूरत क्या है?

प्रश्नकर्ता: पाँच तत्वों का शुद्धिकरण करने की ज़रूरत क्यों पड़ती है?

सदगुरु: अगर आप नाले से पानी लेते हैं, तो ये आपको अशुद्ध लग सकता है पर ऐसा नहीं है। आप जो बोतल का पानी पीते हैं, उसमें जो जीवन होता है, उससे कहीं ज्यादा जीवन नाले के पानी में होता है, और वो जीवन के ज्यादा अनुकूल होता है। बात बस इतनी है कि नाले का पानी आपके लिये सही नहीं है। मनुष्य की समझ और उसकी भाषा में बस उसी पानी को शुद्ध कहा जाता है, जो उसके अनुकूल होता है। पर नाले का पानी बहुत से अलग अलग जीवनों के लिये बहुत अनुकूल है, शुद्ध है। आपके लिये जो पानी शुद्ध कहा जा रहा है उसमें बहुत सारे जीवों को मार दिया गया होता है। बहुत सारे दूसरे जीवों को लगता है - कि आपका बोतलबंद पानी शुद्ध नहीं है, वो जीवनरहित है!

हम जो पानी पीते हैं, जिस हवा में हम साँस लेते हैं, जो खाना हम खाते हैं, उनके गुणों को हम अपने इरादे, अपनी भावनाओं या विचार प्रक्रिया से बदल सकते हैं।

शुद्धिकरण मूल रूप से मनुष्यों के संदर्भ में है, तत्वों के संदर्भ में नहीं। इसी तरह से, बहुत से रसायन, जो सीधे औषधियों के रूप में और कई प्रकार की रासायनिक दवाईयों, सामग्रियों में भी इस्तेमाल होते हैं, उनके औद्योगिक और चिकित्सकीय रूप अलग-अलग होते हैं क्योंकि जो मनुष्यों के उपयोग के लिये है, और जो अलग-अलग औद्योगिक, घरेलू उद्देश्यों के लिये है, उनमें काफी अंतर होता है। इसका ये मतलब नहीं कि उनका औद्योगिक रूप अशुद्ध है। बस उसकी स्थिति ऐसी नहीं होती, जो मनुष्यों के लिये सही हो। हम जब तत्वों की बात करते हैं, तब, हम, अपने लिये जो ज्यादा अनुकूल है, उसके संदर्भ में बात करते हैं। तो, इसी संदर्भ में हमें तत्वों का शुद्धिकरण करना चाहिये। 

पाँच तत्व और कर्मबंधन

हमारा शरीर, सारा संसार और ये सारा ब्रह्मांड - ये सभी पाँच तत्वों के खेल हैं। अगर तत्वों में दूसरे गुणों को या दूसरी सम्भावनाओं को हासिल कर लेने की काबिलियत न हो तो आप, किसी भी तरह से, इन पाँच तत्वों में से अरबों, खरबों अभिव्यक्तियाँ नहीं बना सकते। तत्व प्रकृति में स्वाभाविक रूप से ग्रहणशील होते हैं। आज हमें मालूम है कि हम उन पर असर डाल सकते हैं। हम जो पानी पीते हैं, जिस हवा में हम साँस लेते हैं, जो खाना हम खाते हैं, उसके गुणों को हम अपने इरादे से, अपनी भावनाओं या विचार प्रक्रिया से बदल सकते हैं। आपके अंदर ये पाँच तत्व, जो ये शरीर बनाते हैं, उन पर एक खास इकट्ठा हुई जानकारी की परत का गहरा असर होता है। इसी जानकारी की परत को हम कर्मबंधन के नाम से जानते हैं जिनके बिना, आपके अंदर ये तत्व एक खास तरह से काम नहीं करेंगे। अगर इस तरह की खास जानकारी सब के अंदर नहीं होती, तो सभी मनुष्य एक जैसे ही होते। आप जिसे अपना व्यक्तिगत, खुद का रूप कहते हैं, वो मूल रूप से जानकारी की एक खास मात्रा है, और ये मूल तरह से आप में तत्वों के माध्यम से भरी होती है, क्योंकि तत्वों के अलावा कुछ और है ही नहीं। 

यही कारण है कि योग में हर चीज़ को शरीर कहते हैं - भौतिक शरीर, मानसिक शरीर, उर्जा शरीर - पर मन नहीं क्योंकि जिस मनोवैज्ञानिक गतिविधि को आप बहुत ज्यादा महत्व देते हैं, उसका कोई महत्व नहीं है, कोई परिणाम नहीं है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

तत्वों के शुद्धिकरण का मतलब है, इन्हें इकट्ठा की हुई जानकारी या कर्मबंधनो से मुक्त करना। अगर ये नहीं किया जाता तो आप एक मजबूर व्यक्ति होंगे पर आपको ये कभी पता नहीं चलेगा कि आपने अपने आप के लिये जो सीमायें बना रखी हैं, उन्हें कैसे तोड़ा जाये! जो सीमायें आपने बना रखी हैं, अगर आप उनके पार नहीं जा सकते, तो जीवन को जीने का ये तरीका बेवकूफी भरा ही है। बिना वजह जाने आप अपनी सीमायें बना लेते हैं, और फिर कुछ समय बाद उनके पार नहीं जा पाते, और ये मानने लगते हैं कि मैं ऐसा ही हूँ। पर, आप ऐसे नहीं हैं। आपने खुद अपने आपको ऐसा बना रखा है। 

तत्वों का शुद्धिकरण तब सार्थक बनता है जब स्वतंत्रता और मुक्ति आपके जीवन के उद्देश्य बन जाते हैं और आप अपने आपको इन सीमाओं से परे ले जाते हैं। अगर आप अपने आपको एक ठोस कंक्रीट गेंद जैसा बनाना चाहते हैं, तो फिर शुद्धिकरण करने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। कार्मिक प्रक्रियाओं को ठोस बना लेने से आप कठोर हो जाते हैं, अपना लचीलापन खो देते हैं - और इससे आपको बहुत ज्यादा मात्रा में पीड़ा होती है, तकलीफ झेलनी पड़ती है। आपके लिये अलग से कोई आफत आने की ज़रूरत नहीं रह जाती, आप खुद ही एक आफत बन जाते हैं। ये इस वजह से है कि कर्मबंधनो की छाप आप में इतनी गहरी है, कि आप हमेशा पहले से ही तयशुदा, मजबूरन व्यवहार करते है। वही परिस्थिति हज़ार बार हो चुकी होती है, पर अगर ये फिर से आती है तो आप बिलकुल उसी तरह से काम करेंगे। आप अलग ढंग से जवाब दें, इसके लिये आपको जागरूकता लानी पड़ती है, और अपने आपको काफी हिलाना पड़ता है। भूत शुद्धि यही काम, एकदम बुनियादी स्तर पर करती है। 

भूत शुद्धि : कर्मबंधन की छाप से मुक्त होना 

हम अगर आपके मन का सुबह में शुद्धिकरण कर दें, तो दोपहर तक आपका मन एक पूरी नयी दुनिया बना लेगा। तो सुबह में वो सब करना बेकार हो जाता है। यही कारण है कि यौगिक प्रणाली में आपकी मानसिक अवस्था को कोई महत्व नहीं दिया जाता। ये इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं करती कि आप क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं क्योंकि आज अगर आप इसे बदलते भी हैं, तो भी कुछ ही घंटों में आप इसे फिर से नये ढंग से बदल देंगे। 

यौगिक व्यवस्था सिर्फ शरीर में रुचि रखती है। यही कारण है कि योग में हर चीज़ को शरीर कहते हैं - भौतिक शरीर, मानसिक शरीर, ऊर्जा शरीर - पर मन नहीं क्योंकि जिस मानसिक गतिविधि को आप बहुत ज्यादा महत्व देते हैं, उसका कोई महत्व नहीं है, परिणाम नहीं है। आपके अंदर जो भी जानकारी छपी है, आपके चाहे जैसे कर्मबंधन या संस्कार हों, आप उसी के अनुसार सोचते और महसूस करते हैं। सब कुछ उसी ढंग से होता है। आप अगर किसी पेड़ की छँटाई करते हैं तो वो तेजी से फिर उग कर बड़ा हो जायेगा, पर अगर आप जड़ें ही काट दें तो वो ज़रूर मर जायेगा। इसीलिये यौगिक व्यवस्था जड़ों पर काम करने में रुचि रखती है, और कार्मिक छाप की जड़ें पांच तत्वों में ही हैं। 

ईशा भूत शुद्धि क्रिया करने के फायदे 

bhuta-shuddhi-practice

भूत शुद्धि का मतलब ये है कि आप अपने आपको खो देना चाहते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये अच्छा है या खराब, गंदा है या सुंदर, आप वो सब खो देना चाहते हैं जो आपने बनाया है - जिससे सृष्टिकर्ता ने जो कुछ बनाया है, वो आपके अंदर स्थिर हो सके, चमके। इसके लिये कुछ खास तरह का काम करना होगा। हम जो भूत शुद्धि सिखाते हैं वो बहुत ही शुरुआती बात है। आप अगर भूत शुद्धि के कुछ गंभीर प्रकार करना चाहते हैं - तो उस पर आपको पूरा समय और ध्यान देना होगा, वो कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो आप बाकी के काम करते करते कर लें। ये आपका पूरा जीवन ले लेगा, और उसे बदल देगा, पर अगर आप भूत शुद्धि का एक बहुत छोटा सा रूप भी करें तो आप देखेंगे कि आपमें आने वाला बदलाव स्थायी होगा। फिर से वहीं पहुँच जाने की बात नहीं रहेगी, वो रुझान नहीं रहेगा और ये महत्वपूर्ण है नहीं तो हर कोई दो तीन दिनों के लिये बदलेगा और वापस उसी निचले स्तर पर आ जायेगा। अगर आप अपनी दूसरी यौगिक क्रियाओं का साथ देने के लिये भूत शुद्धि भी करें तो ऐसा नहीं होगा। 

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये अच्छा है या खराब, गंदा है या सुंदर, आप वो सब खो देना चाहते हैं जो आपने बनाया है, जिससे सृष्टिकर्ताने जो कुछ बनाया है वो आपके अंदर स्थिर होकर चमके।

अगर आप भूत शुद्धि क्रिया करते रहते हैं, ये क्रिया चाहे कितनी ही छोटी क्यों न हो, समय बीतने के साथ आप देखेंगे कि इसका असर आप पर स्पष्ट रूप से दिखेगा - मान लीजिये आप 6 महीने तक रोज योगासन करते हैं - और फिर 1 साल तक नहीं करते तो फिर सब कुछ वैसा ही हो जायेगा जैसा पहले था। अगर आप शक्तिचलन जैसी शक्तिशाली क्रिया करते हैं, तो इसका प्रभाव होगा पर अगर आप कुछ समय तक इसे नहीं करते, तो ये अपना असर खो देगी। आप शून्य ध्यान कुछ समय तक करें और फिर एक खास समय तक न करें, तो धीरे धीरे सब वापस वैसा अही हो जाएगा। पर भूत शुद्धि का ये स्वभाव नहीं है। अगर आप भूत शुद्धि करते हैं, तो ऐसे लगेगा जैसे कुछ भी नहीं हो रहा क्योंकि ये बहुत धीमी और मूल बात है। पर जब तक आप इस शरीर में रहेंगे, ये आपके साथ रहेगी, वापस नहीं जायेगी क्योंकि ये एकदम मूल स्तर पर है। यही भूत शुद्धि का महत्व है। अगर आप किसी पेशे में नहीं हैं, और आपका कोई परिवार भी नहीं है, तो हम भूत शुद्धि का एक बड़ा, गंभीर रूप कर सकते हैं क्योंकि इसमें समय बहुत लगता है। 

अधिकतम फायदे के लिये भूत शुद्धि करने का सही ढंग 

अक्सर लोग बिना जागरूकता के, बिना जानकारी के और बिना किसी इरादे के भूत शुद्धि करते रहते हैं। उदाहरण के लिये, ऐसे नेता होते हैं जो अपनी उपस्थिति मात्र से अपने आसपास के वातावरण को बदल देते हैं। बहुत से ऐसे लोग भी हैं, सिर्फ आध्यात्मिक व्यक्ति ही नहीं, दूसरे भी, जो जैसे ही किसी कमरे या हॉल में आते हैं तो एक ही मिनिट में वहाँ के वातावरण को बदल देते हैं। ये एक खास तरह की भूत शुद्धि ही है, जो बिना जागरूकता के हो जाती है। पर, अगर आप इसे जागरूकता के साथ करें, तो ये ज्यादा अच्छे परिणाम देने वाली होती है। ऊर्जा के कई दूसरे ऐसे पहलू हैं, जिन पर कोई व्यक्ति असर डाल सकता है, और उससे वहाँ के वातावरण को बदल सकता है, पर ये दूसरे लोगों पर उतनी गहनता से असर नहीं डालता, जितनी गहनता से तब डालता है, जब तत्व अपने आपको ऊर्जा और इरादे की एक खास हाजिरी होने से, अलग ढंग से व्यवस्थित कर लेते हैं। 

भूत शुद्धि किसी व्यायाम या क्रिया की तरह नहीं होनी चाहिये बल्कि ये एक प्रेम प्रकरण की तरह होनी चाहिये - पूरी तरह से शामिल हो कर।

भूत शुद्धि, भक्ति और प्रेम की भावना के साथ होनी चाहिये। तत्व जिस ढंग से आपके अंदर काम कर रहे हैं, उनको फिर से व्यवस्थित करना ही भूत शुद्धि है। आप उस इरादे को बदलना चाहते हैं, जिसके साथ ये तत्व आपके अंदर काम कर रहे हैं। अगर तत्व आपके अंदर उसी ढंग से काम करते हों, जैसे वे किसी पेड़ के अंदर या पृथ्वी में काम करते हैं, तो ये आपके लिये उपयोगी नहीं होगा। मानवीय व्यवस्था में तत्व, एक खास तरह से काम करते हैं। यौगिक प्रणाली चाहती है, कि ये उस खास तरह से काम करें और अपने आपको ज्यादा ऊँची संभावनाओं में बदल लें। 

सही तौर पर हरेक व्यक्ति में पांचों तत्व एक अलग तरह से काम करते हैं। संसार के पूर्वी भागों (भारत, चीन, जापान आदि) की पारंपरिक चिकित्सकीय प्रणालियों ने हमेशा व्यक्तिगत फर्क को पहचाना है। उनकी चिकित्सा पद्धति किसी को हुए रोग पर नहीं, बल्कि इस बात पर आधारित होती है, कि किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत प्रणाली किस तरह से काम कर रही है। सब के लिये एक जैसी चिकित्सा नहीं होती। जब तक चिकित्सक हरेक व्यक्ति को ठीक से देखकर, ये तय ना कर ले कि कि उस खास व्यक्ति को किस चीज़ की ज़रूरत है, कोई भी औषधि उतना अच्छा काम नहीं करती, जितना उसको करना चाहिये। चिकित्सा इस बात के अनुसार होती है, कि कोई खास शरीर और उसकी प्रणाली कैसे काम कर रहे हैं, और अंदर से ये प्रणाली किस तरह से बनी हुई है? ये रोग के लक्षणों के अनुसार नहीं होती। दूसरे शब्दों में, पूर्वी चिकित्सा प्रणालियों में चिकित्सा कभी भी लक्षणों पर आधारित नहीं होती, जबकि पश्चिमी एलोपैथिक प्रणाली में ये शत प्रतिशत लक्षणों पर आधारित होती है। इसमें, अगर पाँच लोगों में रोग के एक जैसे लक्षण हैं, तो पाँचों को एक ही दवाई दी जाती है। पर, सिद्ध और आयुर्वेद में, अगर पाँच लोगों में एक ही प्रकार के लक्षण ,हैं तो भी उन सब को अलग अलग तरह की दवाई दी जायेगी, क्योंकि हरेक की दवा उसकी अपनी प्रणाली के लिये है, लक्षणों के हिसाब से रोग के लिये नहीं। 

कुछ बहुत ही जटिल और अद्भुत व्यवस्था का निर्माण करने के लिये इन पाँच तत्वों का साथ में आना एक जबर्दस्त प्रेम प्रकरण की तरह है। भूत शुद्धि किसी व्यायाम या क्रिया की तरह नहीं होनी चाहिये बल्कि ये एक प्रेम प्रकरण की तरह होनी चाहिये - पूरी तरह से शामिल होकर। आपका मन, आपका शरीर, आपकी भावनायें और उर्जायें सब कुछ इसमें शामिल होने चाहियें। बिना पूरी तरह से शामिल हुए, आपको फिर भी कुछ भौतिक लाभ मिल सकते हैं पर इस प्रक्रिया की पूरी गहनता को और इसके सभी आयामों को आप नहीं जान पायेंगे। अगर आप अपने आपको इसमें पूरी तरह समर्पित कर देंगे - तो ये सरल प्रक्रिया आपके जीवन के मूल पहलुओं को ही बदल देगी। 

भूत शुद्धि में एक गहन अंतर्दृष्टि 

हमारा शरीर पाँच तत्वों का खेल है, सारा संसार और सारा ब्रह्मांड भी ऐसा ही है। सब कुछ पाँच तत्वों का ही खेल है। अगर आप गूढ़ आयामों की खोज करना नहीं चाहते, तो आपको आकाश तत्व के बारे में परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। बाकी के चार तत्वों में - हमारे शरीर का 72% भाग पानी है, 12% पृथ्वी(मिट्टी) है, 6% वायु है और 4% अग्नि है। बचा हुआ 6% आकाश है। अच्छी तरह से जीने के लिये पहले चार तत्व पर्याप्त हैं। जो केवल अच्छा जीवन जीना चाहते हैं, उनके लिये आकाश तत्व महत्वपूर्ण नहीं है। 

हमारा शरीर पाँच तत्वों का खेल है, सारा संसार और सारा ब्रह्मांड भी ऐसा ही है। सब कुछ पाँच तत्वों का ही खेल है।

आपके शरीर का 72% भाग पानी है। ये धरती की तरह है। धरती में भी 72% भाग पानी ही है। जीवन का क्रमिक विकास इसी तरह से हुआ है। धरती का स्वभाव, कई तरह से, आपके शरीर में अभिव्यक्त हुआ है। तो, जब आप खाते हैं तब आपको ऐसे पदार्थ ही खाने चाहियें जिनमें 72% पानी हो। इस एक चीज़ की ओर पश्चिमी समाज कोई ध्यान नहीं दे रहे, और इसकी भारी कीमत चुका रहे हैं। सब्जियों में 72% भाग पानी होता है, फलों में 90% से ज्यादा पानी होता है। अगर आप शुद्धिकरण करना चाहते हैं, तो आपको फल खाने चाहियें। अगर आप अपने शरीर को ऐसा ही रखना चाहते हैं तो सब्जी ये काम करती है। लगभग सभी पूर्वी संस्कृतियों में खाना बनाने की पद्धतियों में 72% पानी रहता ही है, क्योंकि वे इसकी जानकारी रखते हैं। अगर आप ऊपर से पानी पीते हैं तो ये उस तरह से काम नहीं करता। आपके खाने में 72% से ज्यादा पानी होना चाहिये। 

इन सभी चार तत्वों में याददाश्त होती है, खास तौर पर पानी और पृथ्वी की याददाश्त बहुत मजबूत होती है। आजकल, आधुनिक विज्ञान इस बारे में बड़े पैमाने पर खोज कर रहा है, और वे ये सिद्ध कर रहे हैं कि पानी में जबर्दस्त याददाश्त होती है। पानी के बारे में बहुत सारा शोधकार्य किया गया है। जिस तरह की याददाश्त पानी ले कर चलता है, उसके आधार पर ये खास तरह से व्यवहार करता है। यही कारण है कि लोग प्राण-प्रतिष्ठित स्थानों और मंदिरों में जाते हैं, और वहाँ के जल की कुछ बूंदें पाने की कोशिश करते हैं, क्योंकि पानी में दिव्यता की यादें रहती हैं। तीर्थ वही पानी है, जिसमें दिव्यता की स्मृति होती है, और आप यही चाहते हैं कि आपके अंदर वो पानी जाये जिसके पास अच्छी यादें हैं। 

अगर आप अपने अंदर के पानी को मीठा बना लेते हैं, तो आप 72% ठीक हो जायेंगे। अगर आप अपने अंदर की पृथ्वी/मिट्टी को भी सही कर लेते हैं, तो इस 12% के साथ, आप 84% बढ़िया रहेंगे। वायु को सही कर के आप 90% बढ़िया हो जायेंगे। अगर आप अपने अंदर की अग्नि को शुद्ध करना चाहते हैं - तो आपको ज्यादा काम करना होगा। 

अग्नि में पाँच आयाम होते हैं - प्रजनन अग्नि, पाचक अग्नि, मानसिक अग्नि, हृदय अग्नि और अंतर अग्नि। साधारण मनुष्यों के लिये इन पाँच अग्नियों पर काम करना मुश्किल होता है। उसके लिये बहुत अनुशासन चाहिये। पर, इनमें से तीन पर काम हो सकता है। प्रजनन, पाचक और मानसिक अग्नियों पर कुछ ही कोशिश के साथ आसानी से काम हो सकता है। बाकी दो पर काफी काम करना पड़ेगा। जो इन अग्नियों को शुद्ध कर लेते हैं, वे साधारण मनुष्य नहीं रह जाते। वे सिर्फ स्वस्थ, प्रसन्न व्यक्ति ही नहीं रहते, बहुत कुछ ज्यादा हो जाते हैं क्योंकि जिन्हें एक बार अपने अंदर के अग्नि तत्व पर काबू हो जाता है, वे आकाश तत्व को छू लेते हैं। आप बस एक ही कदम दूर हैं। अचानक ही, आप कोई साधारण मनुष्य नहीं रह जाते, आपके अंदर कुछ और ही दहक रहा है, जो दुनिया के दूसरे लोग नहीं जान पाते। सभी को ये पता हो यही हमारा उद्देश्य है। अगर आपने अपने प्रजनन अंग, पेट और मन की अग्नि पर काबू पा लिया तो आप इस जीवन के साथ बहुत सारी चमत्कारिक बातें कर सकते हैं। आप अपनी आदतों या मजबूरियों के गुलाम हो कर नहीं बल्कि जागरूकता के साथ और अपनी इच्छा के अनुसार जी सकेंगे। इसका मतलब ये नहीं है - कि आप ये करें या वो ना करें। इसका मतलब बस यही है कि सब कुछ आपके चयन से होगा, किसी मजबूरी से नहीं।

 

ईशा भूत शुद्धि की क्रिया

ईशा भूत शुद्धि की क्रिया को किसी हठयोग शिक्षक से सीखें। यहाँ क्लिक कर के अपने नज़दीक के हठयोग शिक्षक के बारे में जानें।

भूत शुद्धि किट

भूत शुद्धि किट ज़रूरी है भूत शुद्धि क्रिया सीखने के लिये। ये किट हाथों से बने, तांबे के सुंदर डिब्बे में और जैविक सूती थैले में आती है। ऑन लाईन खरीदने के लिये यहाँ क्लिक करें। 

भूत शुद्धि रिफिल्स यानी भूमि(मिट्टी की गोलियाँ) और कपूर की टिकिया 

भूमि(मिट्टी की गोलियाँ) भूत शुद्धि में जो पाँच तत्व हैं, उनमे से पृथ्वी/मिट्टी को भूमि कहते हैं। भूमि वेलियनगिरी पर्वत के एक खास क्षेत्र में से ली जाती है, जहाँ सदगुरु ने काफी समय तक साधना की है। इसे शुद्ध और प्राण-प्रतिष्ठित करने के बाद भूत शुद्धि प्रक्रिया में इस्तेमाल किया जाता है। इसे ऑनलाइन पाने के लिये 

यहाँ क्लिक करें।  

कपूर या कर्पूरम को आयुर्वेद में चंद्रभस्म भी कहते हैं। इसे भूत शुद्धि क्रिया में अग्नि तत्व के लिये इस्तेमाल किया जाता है। औषधि की पारंपरिक प्रणाली के अनुसार कपूर एक प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में वायु को शुद्ध करता है और ये छाती में बन रहे दबाव को भी मिटाता है। किट में दिया गया कपूर तीन महीने चलता है और हम इसे इसके प्राकृतिक तत्वों से बनाते हैं। जलाने पर इसके क्रिस्टल बिना धुआँ छोड़े जलते हैं। इसे ऑनलाईन पाने के लिये 

यहाँ क्लिक करें।