"कर्म बंधन क्या है"? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर देते समय अच्छे और बुरे के बारे में समझाया जाता है। लेकिन कर्म बंधन इससे कहीं ज्यादा गहरे होते हैं। सद्‌गुरु, जो एक योगी तथा दिव्यदर्शी हैं, इन प्रश्नों की चर्चा करते हुए एक आध्यात्मिक जिज्ञासु के जीवन में कर्म बंधन की भूमिका को स्पष्ट कर रहे हैं।

प्रश्नकर्ता: कर्म बंधन क्या है ? क्या कर्म बंधन के कई प्रकार हैं ? वे हम पर कैसे असर डालते हैं ?

सद्‌गुरु: आप जिसे 'मेरा जीवन' कहते हैं, वह एक निश्चित मात्रा की ऊर्जा है, जो एक निश्चित मात्रा की जानकारी से नियंत्रित होती है। आजकल की शब्दावली के अनुसार इस जानकारी को हम सॉफ्टवेयर कह सकते हैं। जीवन ऊर्जा की एक खास मात्रा से सूचना की एक खास मात्रा जुड़ी होती है। इन दोनों के मिलने से जो सूचना तकनीक (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) बनती है, वो ही आप हैं।

आप में भरी गयी एक खास प्रकार की जानकारी के कारण आप एक विशेष प्रकार के इंसान बन जाते हैं। जो प्रभाव अतीत में जीवन पर पड़े हैं, वो आपके जन्म से कहीं पुराने हैं, लेकिन अगर आपके वर्तमान के बोध के अनुसार देखें, तो आपके जन्म से आज तक , आपके माता पिता कैसे थे, आपका परिवार कैसा था, आपको कैसी शिक्षा मिली, धार्मिक और सामाजिक रूप से आपपर कैसे प्रभाव पड़े, आपके आस-पास किस तरह की सांस्कृतिक वास्तविकताएं थीं – ये सभी प्रभाव आपके भीतर गए हैं। कोई दूसरा व्यक्ति अलग होता है क्योंकि उसके अंदर गई जानकारी अलग प्रकार की थी। यही कर्म बंधन है। यह सूचना, यह जानकारी पारंपरिक रूप से कर्म बंधन, या कर्म शरीर या कारण शरीर कहलाती है -- वह जो जीवन का कारण बनती है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

कर्म बंधन के विभिन्न प्रकार

ये सूचनायें कई अलग अलग स्तरों पर होती हैं। इसके चार आयाम हैं, जिनमें से दो अभी प्रासंगिक नहीं हैं। सही ढंग से समझने के लिये हम बाकी के दो के बारे में बात कर सकते हैं। एक है ‘संचित कर्म’। ये एक तरह से कर्म बंधनों का भंडार है जिसमें एक कोशिकीय जीव और निष्प्राण पदार्थों तक के भी कर्म शामिल हैं अर्थात वहाँ तक, जहाँ से जीवन विकसित हुआ है। सभी सूचनायें वहाँ जमा हैं। अगर आप अपनी आँखें बंद कर लें, पर्याप्त मात्रा में जागरूक हो जायें और अपने अंदर देखें तो आप को ब्रह्मांड की प्रकृति का पता चल जायेगा - इसलिये नहीं कि आप अपने दिमाग के माध्यम से देख रहे हैं बल्कि इसलिये कि इन सारी सूचनाओं ने ही आपके शरीर का निर्माण किया है। यह शरीर सृष्टि की रचना के समय से लेकर आज तक की सूचनाओं का भंडार है। ये आप का संचित कर्म है। लेकिन इस भंडार से आप खुदरा (रिटेल) कारोबार नहीं कर सकते। ऐसे कारोबार को करने के लिये आप के पास एक दुकान होनी चाहिये। वो, जो इस जीवन के लिये खुदरा दुकान है उसे ही ‘प्रारब्ध’ कहते हैं।

प्रारब्ध वह सूचनायें हैं जो आपको इस जीवन के लिये प्रदान की गयी हैं। आप के जीवन में कितना कंपन है, किस स्तर की हलचल है, उसके हिसाब से जीवन अपने लिये आवश्यक सूचनायें निर्धारित करता है। सृष्टि अत्यंत करुणामय है। अगर वो आप को आप के सभी कर्म बंधनों की सारी सूचनायें एक साथ दे दे तो आप मर जायेंगे। अभी भी बहुत से लोग मात्र 30 - 40 वर्ष के अपने इस जीवन की स्मृतियों से ही कष्ट में रहते हैं। अगर उन्हें इन स्मृतियों का 100 गुना दे दिया जाये तो वे सह ही नहीं पाएँगे। इसलिए प्रकृति आप को प्रारब्ध देती है। सिर्फ उतनी मात्रा में कर्म बंधन, उतनी ही सूचनायें जो आप संभाल सकें।

कर्म बंधन क्या है और एक जिज्ञासु के जीवन में इसकी भूमिका क्या है?

जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर होते हैं तो आप कहते हैं, "मुझे अपनी अंतिम मंज़िल पर पहुंचने की जल्दी है"। अब आप 100 जन्म नहीं चाहते। और अगर आप को और सौ जन्म लेने पड़े तो आप इतने कर्म बंधन बना लेंगे कि वो अगले हज़ार जन्मों तक चलेंगे। लेकिन आप इस सब को ख़त्म करना चाहते हैं। तो जब आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू होती है, अगर आप को एक खास ढंग से दीक्षित किया जाये तो ऐसे आयाम खुल जाते हैं जो इसके बिना ना खुलते। अगर आप आध्यात्मिक न होते तो आप एक ज्यादा शांतिपूर्ण जीवन जी रहे होते, लेकिन वह जीवन एक उद्देश्यहीन, जीवनविहीन जीवन होता, जीवन की बजाय मृत्यु के अधिक निकट होता। अपने अंदर कोई भी मूल परिवर्तन किये बिना आप शायद बस आराम से जीकर चले जाते।

तो इसका अर्थ क्या ये है कि जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर आते हैं तो आप साथ सब नकारात्मक बातें ही होती हैं ? नहीं, ऐसा नहीं है। बात बस ये है कि तब जीवन बहुत ही तीव्र गति से चलता है - आप के चारों ओर के लोगों के जीवन की गति से बहुत ज्यादा तेज़ - तो आप को ऐसा लगता है कि आप के जीवन में बस त्रासदियाँ ही हो रही हैं। वास्तव में आप के साथ कोई त्रासदी नहीं हो रही होती। बात बस इतनी है कि उनका जीवन सामान्य गति से चल रहा है जबकि आप का जीवन तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है, फ़ास्ट फॉरवर्ड पर है।

...सुविधाजनक विचार पद्धति पर रहने वाले और एक ही ढर्रे पर सोचने वालों को सब कुछ स्पष्ट लगेगा, लेकिन अगर आप वाकई आध्यात्मिक मार्ग पर हैं तो आप के लिए कुछ भी स्पष्ट नहीं होगा, बल्कि सब कुछ धुंधला होगा।

कुछ लोगों को ये गलतफहमी होती है कि जब आप एक बार आध्यात्मिक मार्ग पर आ जाते हैं तो आप बहुत शांतिपूर्ण हो जाते हैं, एवं आपके लिए सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। सुविधाजनक विचार पद्धति पर रहने वाले और एक ही ढर्रे पर सोचने वालों को सब कुछ स्पष्ट लगेगा, लेकिन अगर आप वाकई आध्यात्मिक मार्ग पर हैं तो आप के लिए कुछ भी स्पष्ट नहीं होगा, बल्कि सब कुछ धुंधला होगा। आप जितनी तेज़ी से जाएंगे, चीज़ें उतनी ही धुंधली होती जाएंगी।

कुछ साल पहले मैं जर्मनी में था और कार्यक्रम पूरा होने के बाद मुझे फ्रांस जाना था, जो 440 किमी दूर था। मैं जहाँ पर था, वहाँ से सामान्य रूप से 5 घंटे की यात्रा थी। मैं रास्ते पर 5 घंटे बिताना नहीं चाहता था, इसलिए मैंने कार की गति काफी बढ़ा दी और हम लगभग 200 किमी प्रति घंटे की गति पर चल रहे थे। उस भाग में ग्रामीण क्षेत्र बहुत सुंदर था और मैंने सोचा था कि मैं उसे देखने का आनंद लूँगा। पर जब भी मैं आँखें घुमाता था, तो सब कुछ धुंधला दिखता था और मैं रास्ते पर से एक क्षण से ज्यादा नज़र हटा नहीं सकता था। बर्फ गिर रही थी और हम बहुत तेज़ गति से जा रहे थे।

तो जब आप तेज़ गति से जाते हैं, तब सब कुछ धुंधला दिखता है और आप जो कर रहे हैं उस पर से दृष्टि नहीं हटा सकते। अगर आप को ग्रामीण दृश्यों का आनंद लेना है तो आराम से और धीरे धीरे जाना होगा। पर यदि आप अपनी मंज़िल पर पहुँचने की जल्दी में हैं, तो आप को गति बढ़ानी होगी और आप कुछ भी देख नहीं पायेंगे, आप बस जा रहे होंगे। आध्यात्मिक मार्ग भी ऐसा ही है। अगर आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं तो आप के चारों ओर सब कुछ गड़बड़ होगा, उल्टा सीधा होगा लेकिन आप फिर भी गतिमान रहते हैं तो ये ठीक है। क्या ये ठीक है? अगर ये ठीक नहीं है तो आप आराम से मानवीय विकास दर पर चल सकते हैं, पर तब शायद आप को वहाँ पहुँचने में लाखों साल लग जायें।

उनके लिये, जो जल्दी में हैं, एक प्रकार का मार्ग होता है और जो जल्दी में नहीं हैं, उनके लिये अलग ढंग का मार्ग है। आपको यह स्पष्ट होना चाहिये कि आप आखिर चाहते क्या हैं ? आप अगर तेज़ गति के मार्ग पर हैं पर धीरे चलते हैं तो आप गाड़ी के नीचे आ जायेंगे। यदि आप धीमी गति के मार्ग पर हैं पर तेज़ चल रहे हैं तो आप का चालान हो जायेगा। इसलिए प्रत्येक जिज्ञासु को ये तय कर लेना होगा - कि वह बस मार्ग का आनंद लेना चाहता है या मंज़िल पर जल्दी पहुँचना चाहता है?


संपादकीय टिप्पणी'मिस्टिक्स म्युसिंग्स' पढ़िये और सद्‌गुरु की गहरी अंतर्दृष्टि तथा असीम बुद्धिमत्ता का लाभ पाईये। लेकिन ये कमज़ोर दिल वालों के लिये नहीं है। हमारे डर, क्रोध, आशाओं और संघर्षों के परे वाली वास्तविकताओं से जुड़े उत्तरों से भरपूर ये पुस्तक आपका मार्गदर्शन करती है। सद्‌गुरु के साथ इस यात्रा पर कई बार हम तर्कों की सीमाओं पर लड़खड़ाते हैं, डगमगाते हैं पर जीवन, मृत्यु, पुनर्जन्म, कर्म बंधन और 'स्व' की यात्रा के बारे में प्रश्नों के उनके उत्तर हमें मंत्रमुग्ध कर देते हैं।