सद्‌गुरु: कर्म कई चीजें हैं। मौजूदा समझ के अनुसार, हम उसी कर्म के बारे में अलग-अलग स्तरों पर बात करते हैं। कर्म का अर्थ है कार्य। किसका कार्य? "मेरा कार्य।" पहली बात यह समझना है कि, "कर्मों का यह खुलना केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि मैंने इसे बांधा या लपेटा है।" खुलना बहुत ही ऑटोमैटिक लगता है। "इसमें मेरी भागीदारी की जरूरत भी नहीं है। यह बस हो जाता है। मेरा गुस्सा बस हो जाता है, मेरे विचार बस हो जाते हैं, मेरी भावनाएं बस हो जाती हैं।"

इसके होने के लिए किसी इरादे या भागीदारी की जरूरत भी नहीं है। यह बस हो रहा है। यह लगभग ऐसा लगता है कि कोई दूसरा जीव यह सब कर रहा है। यदि आप कुछ समय के लिए मौन में रहें, और बस यह देखें कि मन किस तरह से चल रहा है, तो यह लगभग ऐसा है जैसे कि आप किसी और के वश में हैं। मानो वो अपनी ही चीजें कर रहा है। लेकिन यह केवल आपके किए को ही खोल रहा है।

अब, जीवन क्या केवल करना है, सपने केवल उलटना है? नहीं। जीवन करने और उलटने का मिश्रण है। आप जितने अधिक अचेतन होंगे, तो उलटना या खुलना उतना ही अधिक होगा। अगर आप आंशिक रूप से सचेत हो जाते हैं, तो आप कहीं ज़्यादा करेंगे। अगर आप पूरी तरह से सचेत हो जाते हैं, तो खुलना बहुत तेज़ी से होने लगेगा, करना पूरी तरह से रुक जाएगा। चेतना का आंशिक स्तर हमेशा ‘खोलने’ से ज्यादा ‘करना’ करता है। उदाहरण के लिए, एक सरल किसान बस अपने कर्मों को खत्म कर रहा है।

वह बहुत ज़्यादा चीज़ें जमा नहीं कर रहा है। वह सुबह उठता है, अपनी ज़मीन जोतता है, अपने जानवरों की देखभाल करता है, सरल चीजें करता है जो उसे करनी होती हैं और बस उतना ही। वह वहाँ दुनिया को जीतने के तरीके निकालने के बारे में सोचता नहीं रहता है। तो उसका जीवन काफ़ी हद तक कर्मों को खत्म करने के बारे में है। ऐसा नहीं है कि वह कुछ नहीं करता, लेकिन उसका ‘करना,’ ‘खोलने’ से बहुत कम है क्योंकि उसके जीवन की प्रकृति बहुत ज़्यादा करने नहीं देती; यह ज़्यादातर कर्म को खत्म करना होता है, लेकिन एक बार जब आप शिक्षित हो जाते हैं, तो आपका करना और खोलना मिलकर गड्ड-मड्ड हो जाता है, आप एक ही समय में करने और खोलने में काबिल होते हैं। 

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शिक्षा की भूमिका

एक स्तर पर, आपके विचार और भावनाएँ अचेतन तरीके से खुद को विसर्जित कर रही हैं। दूसरे स्तर पर, आपके पास पूरा करने के लिए इरादे होते हैं। ऐसा लोगों के साथ हमेशा होता रहता है। मैं इसका सारा दोष शिक्षा पर नहीं डालना चाहता, लेकिन आम तौर पर, जिस तरह की शिक्षा आप प्राप्त करते हैं, वह इसका कारण है - यह आपके अंदर प्रबल इरादे पैदा करती है। आज की शिक्षा जानने की प्रक्रिया नहीं है, यह बोध होने की प्रक्रिया नहीं है, यह आपके शरीर या आपके दिमाग को उसकी पूरी क्षमता तक विकसित करने की प्रक्रिया नहीं है। यह आपके अंदर बहुत प्रबल इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ पैदा करती है।

कर्म पैदा करने के लिए यह एक शक्तिशाली साधन है: इरादा। यह संकल्प है जो कर्म का कारण बनता है, न कि कार्य।

शिक्षित लोग असीमित इच्छाओं से पीड़ित हैं। वे पेट भर खाना खाकर खुशी से बैठ और सो नहीं सकते। नहीं। जब वे खाते हैं, तो वे धंधे की बातें कर रहे होते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि उन्होंने दुनिया का हित साधा है, किसी चीज का निर्माण करने के लिए, कुछ सृजन करने के लिए, अपने जीवन या सबके जीवन को शानदार बनाने के लिए। नहीं। वे बस और अधिक बकवास करना चाहते हैं क्योंकि बिना किसी विशेष उद्देश्य के बहुत मजबूत इरादे बना लिए गए हैं। कर्म पैदा करने का यह एक शक्तिशाली साधन है: इरादा। यह संकल्प है जो कर्म का कारण बनता है, न कि कार्य। 

कर्म प्रक्रिया में, गतिविधि के कारण कर्म विसर्जन या अनवाइंडिंग हो रही है। मजबूत इरादों के कारण वाइंडिंग हो रही है। जितना अधिक आप अपने बारे में सोचते हैं, आपके इरादे उतने ही मजबूत हो जाते हैं। जब मैं इरादों की बात करता हूं, तो मैं महान इरादों की बात नहीं कर रहा हूं - मैं मजबूत इरादों की बात कर रहा हूं। जब आप गुस्से में होते हैं, तो आप अनवाइंडिंग कर सकते हैं, लेकिन आप वाइंडिंग भी कर सकते हैं। आप गुस्से में आकर फिर  शांत हो सकते हैं। या फिर आप गुस्से में फूट सकते हैं और फिर कोई इरादा बना सकते हैं: "पता है मैं उसके साथ क्या करना चाहता हूं?" अब आप बड़े पैमाने पर वाइंडिंग कर रहे होंगे। क्रोध बस एक विस्फोट है। क्रोध आपके भीतर घटित हुई किसी चीज़ का खुलना है। क्रोध से घृणा पैदा हो सकती है। घृणा एक इरादा है। घृणा ऐसा क्रोध है जिसने कोई इरादा बना लिया है। ईर्ष्या अनवाइंडिंग हो सकती है, हम कह सकते हैं कि कुढ़ना इरादा है - यह ईर्ष्या है जिसने एक इरादा बना लिया है। अब, एक खास ठंडक के साथ, भले ही आप क्रोधित हों, अगर आप घृणा से भरे रहते हैं, तो आप अपना गुस्सा या घृणा अब दिखाते नहीं हैं । आप एक शांत चेहरा बनाते हैं और कुटिल चीजें करते हैं, है न? उदाहरण के लिए वासना अनवाइंडिंग है। जुनून वाइंडिंग है क्योंकि वह इरादा है। 

तथाकथित परिष्कृत लोग

यदि आप अपने भीतर होने वाले सभी विचारों और भावनाओं को अभिव्यक्त कर पाएं, तो आप लगभग क्रूर बन जाएंगे। उसे सहज दिखाने के लिए, आप एक इरादा बनाते हैं - वह वाइंडिंग है। यह तथाकथित परिष्कार आत्महत्या है क्योंकि आप जितना खोलते हैं उससे ज़्यादा तेज़ी से लगातार लपेटते हैं, क्योंकि मन दो-मुंहा हो जाता है। एक स्तर पर, यह खुल रहा है, एक दूसरे स्तर पर, इसके अपने इरादे हैं। आप तथाकथित परिष्कृत लोगों को देखेंगे - जब मैं "परिष्कृत" कहता हूं, तो मेरा मतलब सामाजिक रूप से परिष्कृत लोगों से है, न कि सचमुच परिष्कृत लोगों से - वे सरल लोगों की तुलना में हमेशा बहुत अधिक पीड़ित रहते हैं। सरल लोगों का गुस्सा, नफरत और पूर्वाग्रह खुले तौर पर अभिव्यक्त होते हैं। वे भले ही असभ्य दिखें लेकिन चालाकी के मामले में, वे तथाकथित परिष्कृत लोगों से कई अंक नीचे हैं। अधिक परिष्कृत लोग, शुरुआत में दूसरों को धोखा देना सीखते हैं। कुछ समय बाद, वे एक्सपर्ट हो जाते हैं और वे खुद को भी धोखा दे सकते हैं। उनके अपने इरादे खुद के सामने भी प्रकट नहीं होते।

शिक्षा इस क्षमता को बढ़ाती है क्योंकि यह आपको कई तरह की चीजों को आपके संपर्क में लाती  है, बिना इस बात की उचित समझ के कि मानव मन कैसे काम करता है, कैसे विकसित होता है, क्या उसे खिलने में मदद कर सकता है, क्या उसे गंदा बना सकता है - इन चीजों को किसी भी तरह की गहराई से नहीं देखा जा रहा है। बस तरह-तरह की जानकारी हर तरह  के लोगों को दे  दी जाती है। तो आम तौर पर, दुर्भाग्य से, लोग शिक्षा का उपयोग खुद को वाइंड करने के लिए कर रहे हैं। अपने आस-पास की दुनिया के संदर्भ में, जानकारी के संदर्भ में, वे अधिक जान सकते हैं, लेकिन जीवन प्रक्रिया के संदर्भ में, शिक्षित लोग आम तौर पर अशिक्षित लोगों की तुलना में अधिक अज्ञानी होते हैं।

यदि आप भारत में एक सरल अशिक्षित किसान के घर जाते हैं, तो जीवन की उसकी समझ, शरीर की उसकी समझ, शारीरिक आराम की उसकी समझ, किसी के साथ क्या काम करता है और क्या नहीं, इस बारे में उसकी समझ दुनिया के अधिकांश शिक्षित समुदायों की तुलना में बहुत अधिक स्पष्ट और विवेकपूर्ण  होती है। क्योंकि उसके दिमाग में इतने भ्रामक विचार नहीं होते। वह अपने दिमाग में भ्रमित नहीं होता, जैसा कि शिक्षित लोगों के एक बड़े वर्ग के साथ हुआ है। ऐसा नहीं है कि शिक्षा ही दोषी है, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बारे में कोई दिशा-निर्देश नहीं है कि इसका उपयोग व्यक्ति की भलाई के लिए कैसे किया जाए। तो दुर्भाग्य से, शिक्षा जो सशक्तीकरण होनी चाहिए थी, शिक्षा जो स्पष्टता होनी चाहिए थी, उसने जीवन प्रक्रिया के बारे में और अधिक भ्रम पैदा कर दिया है।

तो जागृत अवस्था और स्वप्न - सबसे अच्छा यह है कि आप दोनों के बीच अंतर न करें। मैं चाहता हूं कि आप इन दोनों अवस्थाओं को या तो स्वप्न के रूप में देखें, या इन दोनों अवस्थाओं को जागृति के विभिन्न स्तरों के रूप में देखें। यह एक तरह का स्वप्न है, वह एक अधिक गहरा स्वप्न है। या यह एक तरह की वास्तविकता है, वह एक दूसरे तरह की वास्तविकता है। यदि आप इसे इस तरह से देखते हैं, तो आप दोनों को बंधने (वाइंडिंग) के बजाय खुलने (अनवाइंडिंग) की प्रक्रिया बना सकते हैं।