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4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर जागरूकता बढ़ाने के लिये अभियान चलाये जाते हैं और कैंसर के इलाज, उसकी रोकथाम और रिसर्च करने के लिये पैसा भी इकट्ठा किया जाता है। यहाँ सद्‌गुरु समझा रहे हैं कि यौगिक प्रणाली कैंसर को किस तरह से देखती है, और इस रोग को दूर रखने के लिये क्या किया जा सकता है?

कैंसर क्यों होता है?

सद्‌गुरु: कैंसर के बारे में जो कुछ लिखा जाता है, अगर आपने उसे पढ़ा है तो आपने ध्यान दिया होगा कि विशेषज्ञों की राय और धारणायें बार-बार बदलती रहती हैं, और कभी-कभी तो वह नाटकीय ढंग से बदलती हैं! पर मूल रूप से, शरीर शास्त्र, रसायन शास्त्र और आपके अस्तित्व के आधार में कोई बदलाव नहीं हुआ है। तो फिर, ये धारणायें क्यों बदलतीं हैं? इसका कारण ये है कि धारणाओं और चेतना के बीच बहुत लंबी दूरी है। चेतना, धारणाओं से नहीं बनती। तो बाहर से पढ़ कर क्या सही है और क्या गलत, इसके बारे में उलझन में पड़ने की बजाय, अगर आप अपने शरीर को सुनने लगें और अपनी शारीरिक प्रणाली के बारे में ज्यादा गहरी समझ और अंर्तदृष्टि पा लें, तो आप अपने शरीर को ज्यादा कुशलता से संभाल पायेंगे।

हर एक के शरीर में कैंसरग्रस्त कोशिकायें होती हैं पर अगर ऐसी कोशिकायें थोड़ी ही हैं तो वे आपके जीवन और स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं डालतीं।

हम यहाँ इसे प्रयोगात्मक नज़रिये से देख रहे हैं, क्योंकि जो आप हैं वही सब कुछ है। अगर आप अंदर की ओर मुड़ें तो जो कुछ भी जानना ज़रूरी है, वो एक ही पल में जाना जा सकता है। आप ये नहीं जान पायेंगे कि परमाण्विक भट्टी कैसे बनायी जाये, पर आप ये पता लगा लेंगे कि आपके शरीर के परमाणु कैसे काम कर रहे हैं? अगर आप अंदर की ओर मुड़ें तो ये सब वहाँ है - आप अपने आप में ब्रह्मांड हैं।

आज लाखों लोग हैं जो कैंसर की अलग-अलग अवस्थाओं में हैं। ये चीजें बहुत सारे कारणों से होती हैं और हम सभी इसके गुज़रते हैं। ये केवल बाहरी परिस्थितियों के कारण नहीं होता, आप अपनी शारीरिक प्रणाली को जिस तरह से रखते हैं उसके कारण भी होता है। सिर्फ बाहरी रासायनिक प्रभाव ही आप पर काम नहीं कर रहे। आपका शरीर सबसे बड़ा रासायनिक कारखाना है। अगर आप इस कारखाने को सही ढंग से नहीं संभालते, तो ये गलत तरह के रसायन बनाता है जो आप पर ग़लत असर डालते हैं।

यौग की दृष्टि में कैंसर

योग में हम कैंसर को अलग-अलग प्रकारों में नहीं देखते। किसी व्यक्ति में ये कहाँ और कैसे अभिव्यक्त होता है, यह कई पहलुओं पर निर्भर करता है, जैसे व्यक्ति की शारीरिक प्रणाली, अनुवांशिकी, जीवन शैली, आहार आदि। योग में हम बीमारी के मूल कारण को हमेशा प्राणमय कोष और ऊर्जा शरीर के बीच असुंतलन के रूप में देखते हैं।

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मूल रूप से, यौगिक प्रणाली शरीर को पाँच अलग-अलग कोषों, या सतहों के रूप में देखती है। हम यहाँ पहले तीन को ही देखेंगे - बाकी दोनों का शरीर से संबंध नहीं है। पहली सतह को अन्नमय कोष या भोजन शरीर कहते हैं। हम जो भोजन लेते हैं, वही ये शरीर बन गया है, है कि नहीं? अगर आप कुछ न खायें तो ये शरीर धीरे-धीरे खत्म हो जायेगा। इसीलिये, भौतिक शरीर को भोजन शरीर कहते हैं।

यौगिक दृष्टि से, हमारी शारीरिक प्रणाली अंदर से कैंसर, या और जो भी गड़बड़ पैदा करती है, वो ऊर्जा शरीर के असंतुलन की वजह से होती है।

कुछ समय पहले तक, चिकित्सा विज्ञान बस भोजन शरीर या अन्नमयकोष से ही जुड़ा था। किसी और चीज़ पर उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया था। उन्हें लगता था कि वे दुनिया के सारे संक्रामक रोगों को संभाल सकते हैं। पर, फिर उन्हें पता चला कि वे बी. पी.(रक्तचाप), डायबिटीज(मधुमेह) जैसी गंभीर बीमारियों के बारे में कुछ नहीं कर सकते। इसकी वजह यही है कि वे बस भोजन शरीर की ओर ही ध्यान देते हैं जो एक बाहरी अभिव्यक्ति है।

इसके अंदर होता है मनोमयकोष, अर्थात मानसिक शरीर। अब, चिकित्सा विज्ञान भी ये मानता है कि मनुष्य साइको सोमा है अर्थात जो कुछ भी मन में होता है वो स्वाभाविक रूप से शरीर में भी व्यक्त होता है। उदाहरण के लिये, अगर आपको मानसिक तनाव है तो आपका बी. पी. ऊँचा हो जायेगा। तो, हमें अपने मानसिक शरीर को ठीक से संभालना होगा। ये मानसिक और भौतिक शरीर सिर्फ इसीलिये काम कर सकते हैं क्योंकि आपका एक ऊर्जा शरीर भी है। योग का काम मूल रूप से ऊर्जा शरीर अर्थात प्राणमयकोष के स्तर पर होता है। यौगिक दृष्टि से, हमारी शारीरिक प्रणाली अंदर से कैंसर या और जो भी गड़बड़ पैदा करती है, वो ऊर्जा शरीर के असंतुलन की वजह से होती है।

हर किसी के शरीर में कैंसरग्रस्त कोशिकायें होती हैं पर अगर ऐसी कोशिकायें थोड़ी ही हैं तो वे आपके जीवन और स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं डालतीं। पर, अगर आप ऊर्जा शरीर के अंदर कुछ खास परिस्थितियाँ बनाते हैं तो ये कैंसर कोशिकायें अपने आपको संगठित कर लेती हैं, और छिट- पुट अपराधों से आगे बढ़ कर योजनाबद्ध अपराधों तक पहुँच जाती हैं।

कैंसर कोशिकायें : शरीर के अपराधी

अगर कैंसरग्रस्त कोशिकाओं का वर्णन करने के लिये हमें कोई उपमा देनी हो, तो हम कह सकते हैं कि वे समाज के अपराधियों जैसी हैं। अगर कुछ गिने-चुने लोग, इधर-उधर कोई छोटी-मोटी गड़बड़ियां कर रहे हैं तो वे पूरे समाज पर कोई गंभीर असर नहीं करते। हर शहर में छोटे-मोटे अपराधी होते हैं जो इधर-उधर जेब काटने जैसे अपराध करते हैं। इनसे कोई बड़ी समस्या नहीं होती। पर, अगर उनमें से 50 लोग संगठित हो जायें तो शहर का सारा वातावरण ही अचानक बदल जाता है। जब ये 50 अपराधी साथ हों तो आपका रास्ते पर चलना भी मुश्किल हो जाता है। शरीर में भी यही सब होता है। अगर कुछ कैंसरग्रस्त कोशिकायें अपने आप में इधर-उधर घूमती हैं तो कोई समस्या नहीं है। जब वे एक जगह इकट्ठा हो जाती हैं और हमला करती हैं तो ये एक समस्या बन जाती है।

अगर शरीर के कुछ खास हिस्सों में ऊर्जा का प्रवाह सही नहीं है तो कैंसरग्रस्त कोशिकायें सामान्य रुप से ऐसे स्थानों को चुनती हैं जहाँ वे बढ़ सकें और उस भाग को खराब कर सकें।

शुरुआत में, कोई अपराधी किसी की जेब काट कर भी खुश रहता है। अगर दो मिल जायें तो फिर वे किसी मकान में चोरी करने का सपना देखने लगते हैं। अगर पाँच इकट्ठा हो जायें तो बैंक में डकैती करना चाहते हैं। अगर कानून लागू करने वाला प्रशासन जागरूक और सक्रिय है तो वो ये सुनिश्चित करेगा कि अपराधी बड़ी संख्या में इकट्ठा न हों और कोई बड़ी समस्या खड़ी न करें। शरीर के साथ भी यही बात है। इन खराब कोशिकाओं को इकट्ठा होने से पहले ही खत्म कर देना चाहिये।

आपकी जीवन शैली, आपका भोजन, आपका रवैया, और बहुत सारे दूसरे कारणों से आपके प्राणमय शरीर में कुछ खाली जगहें बन जाती हैं जिससे ऊर्जा शरीर पर खराब असर पड़ता है। अगर शरीर के कुछ खास हिस्सों में ऊर्जा का प्रवाह सही नहीं है तो कैंसरग्रस्त कोशिकायें सामान्य रूप से ऐसे स्थानों को चुनती हैं जहाँ वे बढ़ सकें और उस भाग को खराब कर सकें। अगर हम लंबे समय से चलने वाली गंभीर बीमारियों की बात करें तो उनका मूल कारण हमेशा ऊर्जा शरीर में होता है। जब ऊर्जा शरीर में गड़बड़ी होती है तो ये स्वाभाविक ढंग से शारीरिक और मनोवैज्ञानिक, दोनों ही तरह से अभिव्यक्त होती है।

उदाहरण के लिये, हम देखते हैं कि नियमित धूम्रपान करने वालों की श्वसन क्रिया कभी धूम्रपान न करने वालों की तुलना में बहुत अलग होती है। इस सीमित, रुकी-रुकी सी, अटकती हुई साँस लेने की प्रक्रिया की वजह से ऐसे लोगों में, शरीर के उन खास स्थानों में, ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है और उन स्थानों (गला, मुँह, फेफड़े, नाक आदि) में कैंसर का असर होता है।

align=”right”>अगर आपका ऊर्जा शरीर सही ढंग से संतुलित है और अपने पूरे प्रवाह में काम कर रहा है तो आपके भौतिक या मानसिक, किसी भी शरीर में कोई रोग नहीं हो सकता।

दूसरा उदाहरण स्तन कैंसर का है, जो आजकल बहुत बढ़ गया है, खास तौर पर पश्चिमी समाजों में। इसकी वजह ये है कि बहुत सारी स्त्रियां जब बच्चे पैदा करने की उम्र में होती हैं तब वे गर्भ धारण नहीं करतीं। स्तन की कार्यप्रणाली जो मुख्य रूप से बच्चे को दूध पिलाने की है, वो या तो उपयोग में आती ही नहीं या बहुत थोड़े समय के लिये आती है। पहले के समय में, जो स्त्री सामान्य प्रक्रिया से गर्भ धारण करती थी, वो 16 या 18 से लगभग 45 की उम्र तक, कई बार गर्भवती होती थी जिससे उसका गर्भाशय, उसके स्तन और सारी प्रणाली सक्रिय रहते थे और ऊर्जा प्रवाह भी सही रहता था।

आजकल, बहुत सारी स्त्रियाँ गर्भ धारण ही नहीं करतीं, और अधिकतर स्त्रियाँ 30 की उम्र तक बच्चे पैदा कर लेती हैं। फिर, अगले 15 से 20 साल तक जब तक शरीर बच्चे पैदा कर सकता है तो उनके शरीर में ज़रूरी हारमोन्स और एन्जाइम्स तो बनते ही रहते हैं पर उनका कोई उपयोग नहीं होता। शारीरिक रूप से, उन भागों का जैसा उपयोग होना चाहिये, वैसा नहीं होने के कारण, उन भागों में ऊर्जा कम हो जाने से, वहाँ कैंसरग्रस्त कोशिकायें आकर्षित हो कर उन भागों में इकट्ठा हो जातीं हैं।

क्या इसका मतलब ये है कि हमें और ज्यादा बच्चे पैदा करने चाहियें? नहीं, कृपया ऐसा न करें। पहले ही दुनिया में ज़रूरत से ज्यादा आबादी है। इसके लिये दूसरे उपाय हैं। जिन परिस्थितियों में, जैसे वातावरण में आप रहते हैं, उनमें ये सब होने देने की बजाय, आपकी शारीरिक प्रणाली को संतुलित कर के, और उसे ज्यादा नियंत्रित कर के सही किया जा सकता है। कुछ ऐसी यौगिक क्रियायें या आंतरिक प्रक्रियायें हैं जिनसे शरीर के हारमोन्स के स्तरों को नियंत्रित किया जा सकता है, और इस समस्या को संभाला जा सकता है।

ऊर्जा शरीर - स्वास्थ्य से संबंध

अगर आपका ऊर्जा शरीर सही ढंग से संतुलित है और अपने पूरे प्रवाह में काम कर रहा है तो, आपके भौतिक या मानसिक, किसी भी शरीर में कोई रोग नहीं हो सकता। उदाहरण के लिये, लोग हमारे पास अस्थमा की समस्या के साथ आते हैं और हम उन्हें एक खास क्रिया सिखाते हैं, जिसे कर के वे अपनी इस अवस्था से बाहर आ सकते हैं। कोई और डायबिटीज के साथ आता है और हम उसे भी वही क्रिया सिखाते हैं और ये उसके लिये भी काम करती है। इसकी वजह ये है कि हम किसी रोग का इलाज नहीं कर रहे। रोग तो बस ऊर्जा शरीर में गड़बड़ी होने से होता है। हम उस गड़बड़ी को देखते हैं।

मूल रूप से, योग कोई इलाज की विधि नहीं है। ये आपकी आंतरिक ऊर्जाओं को संतुलित करने का एक तरीका है। इस अर्थ में, हम भौतिक शरीर या मानसिक शरीर का इलाज नहीं करते। रोग चाहे कोई भी हो, हम बस ऊर्जा शरीर को संतुलित और सक्रिय करने का काम करते हैं।

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Editor's Note: For more of Sadhguru’s insights on cancer and healthy living, download the ebook, Cancer – A Yogic Perspective.