Sadhguruचना और मूंगफली की पौष्टिक क्षमता का वर्णन तो इतिहास से लेकर विज्ञान तक में मिलता है। जहां चना ताकत का अच्छा स्रोत माना जाता है, वहीं मूंगफली एक संपूर्ण आहार समझा जाता है। आइए जानते हैं इनके बारे में कुछ और . . .

चना

चना एक प्रकार की दाल है, जो दक्षिण पूर्व एशियाई उपमहाद्वीप और ट्रॉपिकल अफ्रीका में उगाई जाती है। यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ने इस फली को भविष्य के लिए एक अच्छा खाद्य स्रोत बताया है। इसे पुराने जमाने से ही भारत में व्यापक तौर पर उगाया और खाया जाता रहा है। परंपरागत रूप से इसे घुड़दौड़ के घोड़ों को खिलाया जाता था, क्योंकि यह तत्काल ताकत देता है और प्रोटीन का जबरदस्त स्रोत है।
चना आहारीय लौह तत्व (आयरन) और कैल्शियम का भी अच्छा स्रोत है और प्रोटीन के सबसे अच्छे शाकाहारी स्रोतों में एक है।

लेकिन गरमी के मौसम में अगर चने खाने से आपके शरीर में अधिक गर्मी हो रही है, तो उसे अंकुरित मूंग खाकर संतुलित किया जाना चाहिए।
लेकिन, कैल्शियम और आयरन कुछ रासायनिक घेरों में होते हैं जिसके कारण शरीर काफी हद तक उन्हें ग्रहण नहीं कर सकता। चने का अंकुरण एक साधारण विधि है, जो इन घेरों को तोडक़र आयरन और कैल्शियम को शरीर के लिए आसानी से उपलब्ध करा देता है, जिससे उसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है। अंकुरित चना आसानी से पच भी जाता है।
चने को अंकुरित करने का एक आसान तरीका है कि साधारण चने को एक साफ कपड़े में बांध दें। उस पोटली को छह से आठ घंटों तक पानी से भरे एक बरतन में रखें। पोटली को बाहर निकाल कर चने को दूसरे कपड़े में खाली कर दें। इस नई पोटली को कम से कम तीन दिनों तक छोड़ दें। इस समय तक चना अंकुरित हो जाएगा और अंकुर लगभग आधे इंच के बराबर हो जाएगा। अंकुरित चने को कच्चा खाया जा सकता है लेकिन उसे अच्छी तरह चबाया जाना चाहिए।
चना शरीर में गर्मी का स्तर बढ़ाता है जिसे आयुर्वेद में उष्ण कहा गया है। उष्ण खाद्य पदार्थों से बरसात के मौसम में होने वाली खांसी और सर्दी-जुकाम से बचने में मदद मिलती है। लेकिन गरमी के मौसम में अगर चने खाने से आपके शरीर में अधिक गर्मी हो रही है, तो उसे अंकुरित मूंग खाकर संतुलित किया जाना चाहिए। 

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मूंगफली

मूंगफली एक संपूर्ण आहार है। भारत में बहुत से योगी कुछ समय के लिए सौ फीसदी मूंगफली के आहार पर चले जाते हैं, क्योंकि वह अपने आप में एक संपूर्ण भोजन है। मूंगफली को पानी में कम से कम छह घंटे भिगोना चाहिए, जिससे उसके कुछ हानिकारक तत्व निकल जाते हैं, जिन्हें आयुर्वेद में पित्त कहा जाता है। अगर उसे बिना भिगोए खाया जाए, तो इससे त्वचा पर दाने और अरुचि हो सकती है।
सद्‌गुरु भारतीय महाकाव्य महाभारत से मूंगफली का एक खूबसूरत किस्सा सुनाते हैं –

“पांच हजार साल पहले, पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र में हुई लड़ाई सबसे भीषण लड़ाई थी। कोई भी निष्पक्ष नहीं रह सकता था। आप या तो कौरवों की ओर हो सकते थे या पांडवों के पक्ष में। सैंकड़ों राजा किसी न किसी पक्ष से लड़ाई में शामिल हो गए।
लेकिन उडुपी के राजा ने निष्पक्ष रहने का फैसला किया। उन्होंने कृष्ण से बात की और कहा, 'लडऩे वालों को भोजन की जरूरत होती है। मैं इस युद्ध में खान-पान का प्रबंध करूंगा। उडुपी के बहुत से लोग आज भी इसी पेशे में हैं। कृष्ण बोले, 'ठीक है, किसी न किसी को तो खाना बनाना और परोसना ही है, तो आप यह काम कर लें। कहा जाता है कि करीब 5 लाख सैनिक इस लड़ाई के लिए इकट्ठे हुए थे। लड़ाई अठारह दिन चली और हर दिन हजारों लोग मर रहे थे। इसलिए उडुपी के राजा को उतना कम भोजन पकाना पड़ता था ताकि भोजन बरबाद न हो। किसी भी तरह भोजन का प्रबंध किया ही जाना था। पांच लाख लोगों के लिए भोजन पकाते रहने से काम नहीं चलता। या अगर वह कम भोजन पकाते, तो सैनिक भूखे रह जाते।
लेकिन उडुपी के राजा ने भोजन का प्रबंधन बहुत अच्छी तरह किया।

कैल्शियम और आयरन कुछ रासायनिक घेरों में होते हैं जिसके कारण शरीर काफी हद तक उन्हें ग्रहण नहीं कर सकता। चने का अंकुरण एक साधारण विधि है, जो इन घेरों को तोडक़र आयरन और कैल्शियम को शरीर के लिए आसानी से उपलब्ध करा देता है, जिससे उसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है।
गजब की बात यह थी कि हर दिन भोजन सभी सैनिकों के लिए पर्याप्त हो जाता और भोजन की कोई बरबादी भी नहीं होती। कुछ दिन बाद, लोग हैरान होने लगे, कि वह बिल्कुल सटीक मात्रा में भोजन कैसे पका पा रहे हैं! कोई नहीं बता सकता था कि किसी दिन कितने लोगों की मृत्यु हुई। इन चीजों का हिसाब लगाने तक अगले दिन की सुबह हो जाती और फिर से युद्ध का समय आ जाता। रसोइये के पास यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं था, कि हर दिन कितने हजार लोगों की मृत्यु हुई, लेकिन हर दिन वह ठीक उतना ही भोजन पकाता जो शेष बचे सैनिकों के लिए पर्याप्त होता।
जब किसी ने उडुपी के राजा से पूछा कि आप ऐसा कैसे कर पाते हैं? तो उडुपी के राजा ने जवाब दिया, 'मैं हर रात कृष्ण के शिविर में जाता हूं। कृष्ण रात में उबली हुई मूंगफली खाना पसंद करते हैं, इसलिए मैं उन्हें छील कर एक बरतन में रख देता हूं। वह कुछ ही मूंगफली खाते हैं, उनके खाने के बाद मैं गिनती करता हूं कि उन्होंने कितनी मूंगफली खाई। अगर उन्होंने दस मूंगफली खाई, तो मुझे पता चल जाता है कि अगले दिन दस हजार लोग मर जाएंगे। इसलिए अगले दिन दोपहर के भोजन में मैं दस हजार लोगों का खाना कम कर देता हूं। हर दिन मैं इन मूंगफलियों को गिन कर उसी के मुताबिक खाना पकाता हूं और खाना सभी सैनिकों के लिए काफी होता है। अब आपको पता चला, कि पूरे कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान कृष्ण इतने शांत और संयमशील क्यों थे!”

क्या आपको पता है?

मूंगफली के पौधे की उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका में हुई।

लगभग 5,000 साल पहले भारत और चीन में मूंगफली का सेवन किये जाने का पुरातात्विक प्रमाण है।

1492 में समुद्री मार्ग से कोलंबस ने अमेरिका की खोज की थी। लेकिन एशिया में मूंगफली का सेवन इससे पहले से किया जाता रहा है। कुछ पुरातत्वविद् इस बात को सबूत मानते हैं, कि एशिया और दक्षिणी अमेरिका के बीच 1492 से काफी पहले से व्यापार या संपर्क था।

मूंगफली असल में एक मेवा नहीं है। वह एक फली है। हाल के समय में मूंगफली ने बहुत लंबा सफर तय किया है। अपोलो 14 के कमांडर एलन शेफर्ड चांद पर अपने साथ एक मूंगफली लेकर गए - एस्ट्रो-नट!