प्रश्न: जैसे-जैसे मैं आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहा हूँ, मेरी उलझनें बढ़ रही हैं। पर, फिर भी, साथ ही साथ, एक तरह की स्पष्टता भी दिखती है - एक उलझनभरी स्पष्टता! तो, क्या ऐसा समय आयेगा जब बिना किसी उलझन के, पूरी स्पष्टता होगी? और, अगर ऐसा है तो मैं उसे कैसे पाऊँगा?

सद्‌गुरु: जितने ज्यादा आप आध्यात्मिक मार्ग पर जा रहे हैं, उतने ही ज्यादा आप उलझन में हैं। ये एक अच्छा संकेत है क्योंकि मूर्खतापूर्ण निष्कर्षों में रहने से ये बेहतर है कि आप उलझन की अवस्था में रहें। आपने अपने जीवन में जो मूर्खतापूर्ण निष्कर्ष निकाल कर रखे थे, उनमें आराम था, दिलासा था और सुविधा भी थी। उनमें, सुरक्षा की एक झूठी भावना थी।

पर, जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर चल पड़ते हैं, सब कुछ अशांत हो जाता है। जिन चीजों के साथ आप आराम में थे, वे अब बेवकूफी भरी लगती हैं। जिन चीजों को आपने इतना महत्व दिया, इतना चाहा, वे अचानक ही इतनी महत्वहीन और बेकार लगने लगती हैं। अब, सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया है। एक बहुत सुंदर ज़ेन कहावत है, "जब आप अज्ञानी हैं, तो पहाड़ पहाड़ होते हैं, नदियाँ नदियाँ होती हैं, बादल बादल हैं, पेड़ पेड़ हैं। जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर प्रवेश करते हैं, तो अब पहाड़ सिर्फ पहाड़ नहीं रह जाते, नदियाँ भी अब बस नदियाँ नहीं रह जातीं, बादल सिर्फ बादल नहीं होते और पेड़ बस पेड़ नहीं रह जाते। पर, फिर जब आप 'वहाँ' पहुँच जाते हैं, जब आपको आत्मज्ञान हो जाता है, तब, फिर से, पहाड़ पहाड़ हैं, नदियाँ नदियाँ हैं, बादल बादल हैं, पेड़ पेड़ हैं। अज्ञान से आत्मज्ञान तक का रास्ता एक पूरा चक्र है, जिस पर चल कर आप फिर से उसी स्थान पर आ जाते हैं, पर एक बहुत बड़े फर्क के साथ! सारे संसार जितना फर्क, एक ऐसा फर्क जिसे समझाया नहीं जा सकता।

अपने दुख के बारे में जागरूक होना!

जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर आते हैं तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है, हर चीज़ पर सवाल उठता है। आप ये नहीं जानते कि आप कहाँ खड़े हैं। आप कुछ नहीं जानते। आध्यात्मिकता के बारे में कुछ भी जानने से पहले आप कम से कम आराम में थे। अपने आप में संतुष्ट थे। सुबह नाश्ता करते थे, कॉफी पीते थे और आपको लगता था कि बस यही सब कुछ है। अब, किसी चीज़ से कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी बात का कोई महत्व नहीं है। आपको खाने, सोने या कुछ भी करने की इच्छा नहीं होती क्योंकि कोई भी चीज़ अब किसी मतलब की नहीं लगती। सही बात तो ये है कि कभी भी इसका कोई मतलब नहीं था। पर, आप बस अपने आपको धोखा दे कर सोचते थे कि यही सब कुछ था। अगर सही में कोई मतलब होता तो ये सब कैसे चला जाता? अगर सही में आपको पता होता कि ये सब क्या है तो आप उलझन में क्यों होते? अगर आज आप उलझन में हैं तो मतलब यही है कि पहले आप कुछ नहीं जानते थे। बस, अपने आराम और अपनी सुरक्षा के लिये आपने गलत निष्कर्ष निकाल कर रखे थे।

अगर आपको आराम ही चाहिये तो अपने आपको, मानसिक रूप से ये मानने को तैयार कर लेना चाहिये कि आप शत प्रतिशत सही हैं, ये कि आपके जीवन के साथ सब कुछ सही चल रहा है। "मेरा घर अच्छा है, मेरा पति बहुत बढ़िया है, मेरा जीवन बहुत अच्छा चल रहा है, मेरे बच्चे अद्भुत हैं, मेरा कुत्ता भी मस्त है"। यही सब कुछ है। यही जीवन है। आपको अपने आपको रोज ये बताना चाहिये और इसी के साथ जीना चाहिये। ये बहुत अच्छा होगा, इसमें कुछ गलत नहीं है। बात बस ये है कि ये सब बहुत सीमित है और ये जीवन कभी भी, किसी भी ऐसी चीज़ के साथ हमेशा नहीं रह सकता जो सीमित हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितने तरीकों से आप अपने आपको बेवकूफ बनाने की कोशिश करते हैं, आप में, कहीं न कहीं, असीमित की चाह है। आपको, अपने जीवन में, जितनी भी खुशियाँ मिलीं हैं, उन पर सावधानी से ध्यान दीजिये। ऊपरी तौर पर खुशी है, पर, कहीं गहरे में, हर चीज़ में, अंदर एक पीड़ा है, कोई दुख है। ये दुख सिर्फ इसीलिये है कि इस दबे हुए जीव को हमेशा एक गहरी चाह है। पर, इस दुख के बारे में जागरूक होने में भी लोगों को कई जन्मों का समय लग जाता है।

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आध्यात्मिक मार्ग पर आने का मतलब है कि आप अपने दुख, अपनी पीड़ा के बारे में जागरूक हो गये हैं। जागरूकता के बिना, बेहोशी में, आप दुख भोग रहे थे। अब, आप इसके बारे में जागरूक हो गये हैं। जागरूकता की अवस्था में होने वाली पीड़ा, बिना जागरूकता के हो रही पीड़ा से ज्यादा गहरी होती है। पर, ये अच्छी है। कम से कम, आप इसके बारे में जागरूक तो हैं। जब तक आप जागरूक नहीं होते, यह पीड़ा हमेशा बनी रहेगी। जब आप जागरूक हो जाते हैं तो पीड़ा हमेशा के लिये नहीं रहेगी। एक संभावना तो है ही, है कि नहीं?

आध्यात्मिक मार्ग पर आने का मतलब है कि आप अपने दुख, अपनी पीड़ा के बारे में जागरूक हो गये हैं।

आध्यात्मिक मार्ग पर आना एक संभावना है। एक गुरु के साथ होना एक संभावना है। अगर संभावना को वास्तविकता बनना है तो पहला काम आपको ये करना होगा कि आप हर चीज़ को उसी तरह देखें जैसी वो है। आप कम से कम अपनी सीमाओं को पहचानने को तैयार हैं। अगर आप अपनी सीमाओं को छुपाना चाहते हैं तो फिर मुक्ति का सवाल ही कहाँ होगा? इससे तो आप अपनी संभावनाओं का पूरी तरह से नाश ही कर देते हैं। अगर अभी आप जंजीरों में बंधे हैं और स्वतंत्रता किसी दिन आनी है तो सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात ये है कि आप ये समझें कि अभी आप जंजीरों में बंधे हैं। अगर आप ये मानते ही नहीं कि आप जंजीरों में बंधे हैं तो फिर अपने आपको स्वतंत्र कराने का कोई सवाल ही नहीं उठता।

जब आप समझते हैं कि आप जंजीरों से बंधे हैं तो आपको दर्द और दुख होगा, आपके लिये संघर्ष भी होगा और उलझन भी होगी। पुरानी यादें कहेंगीं, "मैं पहले बेहतर था"। ये आपके मन की दशा है। आप जब हाईस्कूल में थे, तब आपका मन कहता था, "अरे, किंडरगार्टन अद्भुत था"! पर, आप खुद जानते हैं कि आप किंडरगार्टन कैसे जाते थे? जब आप कॉलेज गये तो आपको लगा, "वाह, मेरे हाईस्कूल के दिन कितने बढ़िया थे"! पर, हम जानते हैं कि आपने वो हाईस्कूल के दिन कैसे गुज़ारे थे!! जब आपकी पढ़ाई पूरी हो गयी तो आप कहने लगे, "हाँ, मेरे वो विश्वविद्यालय के दिन मेरे लिये सबसे ज्यादा आनंद वाले दिन थे"! और, हमें ये भी मालूम है कि आपको अपने पेपर्स लिखने में, पुस्तकालय से अपनी पसंद की किताब पाने में भी कैसी मुश्किलें होती थीं, आप उन कक्षाओं में और उन प्राध्यापकों के साथ कैसे परेशान रहते थे!! पर, अब वो सब खत्म हो चुका है तो आप दावा करते हैं कि वो अद्भुत था। जीवन जीने की एक तकनीक के रूप में, आपकी याददाश्त एक बहुत अच्छा तरीका इस्तेमाल करती है, जिसमें कुछ अप्रिय घटनाओं की यादें मिटा दी जाती हैं और अभी के मुक़ाबले गुज़रा हुआ समय हमेशा सुखद लगता है। ये जीवन में टिके रहने के लिये एक चाल है, नहीं तो मनोवैज्ञानिक रूप से आप टूट जायेंगे। आपके पास बीते समय की ऐसी सुखद यादें हमेशा होती हैं, जिन्हें याद करके आप कहते हैं, "अरे, वो समय बहुत अच्छा था"!

उलझन भरी स्पष्टता

पर, अब एक उलझन भरी स्पष्टता है! क्या ये अच्छी नहीं है? आप उलझन में हैं, पर, अभी भी स्पष्ट हैं। एक दिन, एक किसान अपने ट्रक में जानवरों को भर के, उन्हें बेचने के लिये बाज़ार जा रहा था। उसको बीच रास्ते में एक यात्री मिल गया, जिसे उसने ट्रक में बैठा लिया। शहर जाने के रास्ते पर, वो किसान घर की बनी शराब पीने लगा और फिर रास्ते पर लहराते हुए, उसका ट्रक एक खाई में जा गिरा। वो यात्री ट्रक में से बाहर फेंका गया और खाई में गिरने से उसकी पसलियाँ टूट गयीं, एक पैर ज़ख्मी हो गया और एक बाँह कुचली गयी - वो बुरी तरह घायल था। ट्रक में भरे हुए जानवर भी चोटों से अस्तव्यस्त हो गये। किसान को थोड़ी ही चोटें लगीं थीं। वो ट्रक के बाहर आया और अपने जानवरों को देखने लगा।चूजों की टांगें टूट गयीं थीं और वे मुश्किल से चल सकते थे। उनको ऐसा देख कर उसे गुस्सा आया, "ओफ़, ये चूजें अब बेकार हैं, कोई इन्हें नहीं खरीदेगा"। उसने ट्रक में से अपनी बंदूक उठाई और उन सब को मार डाला। फिर उसने देखा कि सारे सुअर भी चोट खाये हुए थे और उनका खून बह रहा था, "ये सुअर भी अब बेकार हैं"। तो फिर से बंदूक भर कर उसने उन्हें भी खत्म कर दिया। फिर उसने देखा कि चूजों और सुअरों की तरह भेड़ें भी बेकार हो गयीं थीं और वो चिल्लाया, "बेकार भेड़ें"! बंदूक में फिर से गोलियाँ भर कर उसने उन्हें भी मार डाला। ये सब देख कर वो घायल यात्री बहुत डर गया था। फिर वो किसान खाई की तरफ आया और नीचे देख कर चिल्लाया, "अरे, तुम नीचे गिरे हो क्या, तुम ठीक हो"? तुरंत ही यात्री तेजी से ऊपर चढ़ते हुए बोला, "हाँ, बिल्कुल! मैं इससे बेहतर पहले कभी नहीं था"!!

जब तक आप जागरूक नहीं होते, पीड़ा बनी रहेगी।

इसका मतलब ये है कि अगर हम आपको नर्क में भी फेंक दें तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, आप बिल्कुल सही होंगे। मैं लोगों को स्वर्ग भेजना नहीं चाहता। मैं उन्हें ऐसा बनाना चाहता हूँ कि अगर वे नर्क भी जायें तो कोई उन्हें दुख न दे पाये। यही स्वतंत्रता है, यही मुक्ति है। "मैं स्वर्ग जाना चाहता हूँ" ये बहुत बड़ा बंधन है। अगर आप गलत जगह पहुँच जायें तो? मान लीजिये, आपके स्वर्ग जाने के रास्ते पर कोई आपके जहाज का अपहरण कर ले और वो इसे कहीं गिराये नहीं, पर, बस, गलत जगह पर उतार दे, तो? आप तो मुसीबत में आ जायेंगे। आप हमेशा ऐसी चीज़ के साथ रह रहे हैं जिसे कोई व्यक्ति या कुछ भी आपके पास से खींचकर ले जा सकता है। सच्ची स्वतंत्रता, मुक्ति तब है जब कोई भी आपके पास से कुछ भी न ले जा सके। और, वो, जो कोई भी आपके पास से छीन न सके, वो है आपकी आनंदपूर्णता, आपकी पीड़ित न होने की योग्यता। "मैं स्वर्ग जाना चाहता हूँ", इसका मतलब ये है कि आप अभी भी दुखी होने की, पीड़ित होने की योग्यता रखते हैं और इसीलिये, किसी अच्छी जगह जाना चाहते हैं।

गौतम बार-बार कहते थे, "मैं स्वर्ग जाना नहीं चाहता, मैं नर्क जाना चाहता हूँ"। लोगों को लगता था कि वे पागल हैं। पर, एक मुक्त व्यक्ति ऐसा ही होगा। "नर्क के साथ मुझे क्या समस्या है? वे किसी भी तरह से मुझे पीड़ा नहीं दे सकते। तो मैं नर्क में जाऊंगा"। ये आदमी मुक्त है। तो अगर आप उलझन में हैं और स्पष्ट हैं तो ये अच्छा है। "मेरी सारी उलझनें कब खत्म होंगीं? पूरी स्वतंत्रता कब आयेगी"? मैं कोई तारीख तय करना नहीं चाहता पर मेरा आपको आशिर्वाद है कि ये आज ही हो। कल क्यों? आज बहुत सारा समय बचा है। तो ये आज ही हो।

ieo

 

Editor’s Note: Excerpted from Mystic’s Musings. Not for the faint-hearted, this book deftly guides us with answers about reality that transcend our fears, angers, hopes, and struggles. Sadhguru keeps us teetering on the edge of logic and captivates us with his answers to questions relating to life, death, rebirth, suffering, karma, and the journey of the Self. Download the sample pdf or purchase the ebook.