विषय सूची
1. नाग पंचमी का महत्व कम क्यों हो गया है?
2.नाग पंचमी का यौगिक महत्व और मानवीय क्रमिक विकास के तीन स्तर
2.1 श्वान या कुत्ता : होशियारी से टिके रहना
2.2 काक या पक्षी : बुद्धिमत्ता और संवेदनशीलता
2.3 नाग या साँप : पाँच ज्ञानेंद्रियों के परे की समझ
3.आध्यात्मिकता में साँप का महत्व
4. दुनिया भर की संस्कृतियों में साँप की प्रतीकात्मकता
5. नाग के 12 आयाम
6. पौराणिक कथाओं में आदिशेष
7. नागपंचमी : सदगुरु की कविता

#1. नाग पंचमी का महत्व कम क्यों हो गया है?

सदगुरु  नागपंचमी या नागरापंचमी, जैसा कि इसे दक्षिणी भारत में जाना जाता है, एक समय भारत के सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक था। इसका महत्व धीरे धीरे कम होने का एक कारण ये है कि हम ज्यादा तर्क करने वाले हो गये हैं। चूंकि हमारा तर्क जीवन के कुछ पहलुओं को छू नहीं पाता, समझ नहीं सकता तो हम उन चीजों को छोड़ ही देते हैं। ये तब से होता चला आ रहा है जब से दुनिया में, चारों ओर, यूरोपीय शिक्षा एक सर्वमान्य शिक्षा बन गयी है। इसका परिणाम ये है कि विकास का एक खास रूप सामने आया है जिससे सुविधायें और आराम बढ़े हैं पर अगर हम जीवन के इस दृष्टिकोण के परिणामों की ओर देखें तो ये स्पष्ट है कि जिस धरती पर हम रह रहे हैं, उसी का नाश कर रहे हैं।

पहले एक संस्कृति ऐसी थी, जो ईशा योग सेंटर में अभी भी है कि हम अपने शरीर, मन और ऊर्जाओं को इस तरह का बना लेते हैं कि हम किसी पथरीली चट्टान पर भी आराम से बैठ सकते हैं। हमें किसी कोमल तकिये की ज़रूरत नहीं होती थी। अगर ये मिल जाये तो हम उसका मजा ले लेते थे पर कभी उसकी माँग नहीं करते थे। ऐसा इसलिये था क्योंकि हम तार्किक ढंग से अपनी सुविधाओं और अपने आराम को विकसित नहीं करते थे, उन्हें हम अपने जीवन के अनुभवों के आयाम के हिसाब से रखते थे। अब तो हम जानते ही हैं कि जब हम बहुत मजे में, सुविधाजनक स्थिति में, बढ़िया अनुभव ले रहे हों तो पथरीली चट्टान पर आराम का अनुभव नहीं कर पायेंगे। पर, अगर हम अवसादग्रस्त और दुखी हों तो दुनिया के सबसे बढ़िया कोमल तकिये भी हमारे लिये बहुत असुविधाजनक हो जाते हैं।

ये आपको आराम नहीं दे सकते क्योंकि आपने जीवन को ऐसी प्रक्रिया समझ लिया है जिसकी चीरफाड़ कर के उसे समझा जा सकता है। हमें ऐसा लगता है कि हम किसी भी चीज़ को अपने तर्क की छुरी से काट पीट कर जान सकते हैं। इसकी हमने बड़ी कीमत चुकाई है और अभी भी चुकाये चले जा रहे हैं। अगर हम कुछ चीजों को ठीक नहीं कर लेते तो आने वाली पीढ़ियों को भी बड़ी कीमत चुकानी होगी। टकराव, युद्ध, भुखमरी और सबसे ज्यादा पर्यावरण का नाश जैसी जो भी तकलीफें, मुसीबतें हम आज संसार में देख रहे हैं, वे सब इसी वजह से हैं कि जीवन के बारे में हमारे विचार बस एक सीधी लाइन में चलते हैं। जीवन जैसा है, वैसा उसे देखने की हमारी कोई तैयारी नहीं है। हम सारे ब्रह्मांड को अपने मन के किसी सुई के छेद जितनी जगह में से हो कर गुजार देना चाहते हैं। जब हमारा जीवन के प्रति दृष्टिकोण ज्यादा पूर्णता वाला था, हम सभी कुछ पूरी तरह से देखते थे, तब हमारी संस्कृति में नागपंचमी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक था। 

#2. नाग पंचमी का यौगिक महत्व और मानवीय क्रमिक विकास के तीन स्तर

संसार के क्रमिक विकास को आधार मानें तो यौगिक प्रणाली विकास के तीन स्तरों को बहुत महत्वपूर्ण मानती है। एककोशीय अमीबा से ले कर हमारे आज के विकसित रूप तक, तीन जानवर ऐसे हैं जो अभी भी अलग अलग ढंग से हमारे अंदर रहते हैं और अलग अलग पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हें श्वान, काक और नाग कहते हैं। योग में, आपके अंदर विकास की इन तीन स्थितियों को महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जाता है। नागपंचमी इसके कुछ खास पहलू को ही दर्शाती है। जो दुनिया में होशियार होना चाहते हैं, उनके लिये श्वान है, जो सब कुछ देखना और अपने अंदर बुद्धिमान महसूस करना चाहते हैं, उनके लिये काक है और जो खुद को जीवन में डुबो देना चाहते हैं, उनके लिये नाग है।

#2.1 श्वान या कुत्ता : होशियारी से टिके रहना

श्वान का मतलब है कुत्ता। ये एक ऐसा स्तनधारी प्राणी है जो अपने आपको टिकाये रखने में बहुत ही होशियार है, अच्छा है। बहुत लंबे समय तक लोग कहते थे कि कुत्ता मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र है। लोग कुत्ते को पालतू बना कर रखते थे क्योंकि जब वे घर पर नहीं होते थे तब कुत्ता उनके घर की रखवाली करता था। कुत्ते की सूँघने और सुनने की समझ और काबिलियत बहुत ज्यादा अच्छी है। जहाँ तक योग का सवाल है, कुत्ते का गुण मस्तिष्क और साँस के बारे में है। आपके अंदर का श्वान पहलू आपके कुछ आयामों को उत्तेजित करता है जिससे आपके टिके रहने की प्रक्रिया ज्यादा बढ़ती है और आप होशियार बनते हैं। पर, होशियारी को बुद्धिमानी समझना गलत होगा। बुद्धिमानी अपने आपमें रहने की प्रक्रिया है। होशियार होने का मतलब दूसरों के साथ प्रतियोगिता में होने से है, यानि दूसरों से बेहतर होने में। ये आयाम आपके अंदर है और अपनी साँस को एक खास तरह से चला कर आप अपने अंदर के श्वान को सक्रिय कर सकते हैं जिससे आपके मस्तिष्क में टिके रहने के भाव तेज हो जाते हैं क्योंकि आपकी साँस और आपका मस्तिष्क इस पहलू से जुड़े हुए हैं।

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#2.2 काक या पक्षी : बुद्धिमत्ता और संवेदनशीलता

अगले स्तर पर काक है। काक का मतलब सिर्फ कौआ नहीं है बल्कि पक्षी है। श्वान या कुत्ते में सूँघने और सुनने का बोध जबर्दस्त है तो काक या पक्षी में संवेदना और देखने की समझ बहुत ही महत्वपूर्ण है । पक्षी के पास दूर तक देखने की काबिलियत होती है। चूंकि ये उड़ता है और इसे लंबी दूरी तय करनी होती है तो इसके लिये खास दृष्टि से दूर तक देखने की काबिलियत जरूरी है जिससे इनमें एक खास तरह की बुद्धिमानी भी आती है। कई समाजों में कुछ खास पक्षियों को बुद्धिमत्तापूर्ण माना जाता है जिनमें अनुवांशिक बुद्धिमत्ता होती है। कुछ और संस्कृतियों में उल्लू को बुद्धिमान माना गया है जब कि भारत में उल्लू को मूर्ख माना जाता है। ये सब संस्कृतियों की बात है पर अगर आपके पास किसी चीज़ के बारे में 'पक्षी की आँख' वाली दृष्टि है तो आप स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान हो जाते हैं ।

क्योंकि आपके पास एक ज्यादा बड़ी तस्वीर है जो जमीन पर रेंगने वालों के पास नहीं हो सकती। तो, दुनिया की चीज़ों के बारे में ज्यादा बड़ी बुद्धिमत्ता चाहने वालों को अपने अंदर के काक को सक्रिय करना चाहिये। दूसरा पहलू संवेदन है। पक्षी पंखों से ढँका होता है। पर, पंखों में वास्तविक जीवन नहीं होता। पंख जीवित तो होते हैं पर शरीर के दूसरे हिस्सों की तरह नहीं। ये आपके बालों की तरह हैं। पंख शरीर में इस तरह लगे होते हैं कि वे पक्षी को गहरी संवेदना से भरपूर रखते हैं। मैं बहुत दिनों तक पेड़ों पर सोया हूँ और मैंने देखा है कि वे आँखे बंद होते हुए भी कूद जाते हैं, सोते हुए भी पेड़ की शाखा के आखिरी किनारे तक चले जाते हैं। आप में से जो नींद में चलने वाले होते हैं, वे समझ सकते हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ? अपने आसपास की बहुत छोटी चीज़ें होते हुए भी पक्षियों को दिख जाती हैं क्योंकि उनकी संवेदनशीलता बहुत गहरी होती है।

#2.3 नाग या साँप : पाँच ज्ञानेंद्रियों के परे की समझ

तीसरा है नाग या साँप। आपके भौतिक शरीर में, आप जो कुछ भी हैं उसके आँत संबंधी पहलू के साथ ये जुड़ा हुआ है और आपके शरीर में कोशिकाओं की गतिविधि और ख़ून का बहना, ये नाग से संबंधित है। श्वान और काक आपकी सुनने, सूँघने, देखने और महसूस करने की काबिलियत को ज्यादा तेज करने की प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करते हैं जब कि नाग उस आयाम को दर्शाता है जो इंद्रियों से समझ में नहीं आता। यही वजह है कि यौगिक संस्कृति में नाग पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया है। जहाँ पांच ज्ञानेन्द्रियाँ काम नहीं करतीं, वहीं से नाग का काम शुरू होता है।

#3. आध्यात्मिकता में साँप का महत्व

एक होती है बुद्धिमत्ता और एक होती है, उसके ऊपर, समझ! अगर आप बुद्धिमत्ता को ज्यादा शक्तिशाली बनाते हैं तो आप बहुत होशियार होंगे, पर, तभी जब आपके चारों ओर बेवकूफ भरें हों वरना आपको होशियार कौन कहेगा? मैं जीवन को जिस तरह देखता हूँ, आप जो भी काम कर सकते हैं, उनमें, करोड़ों डॉलर्स इकट्ठा कर लेना तो सबसे ज्यादा बेवकूफी भरा काम है। ये इसलिये कि मैं जानता हूँ कि हमारी इस धरती से बाहर कहीं कोई बैंकिंग व्यवस्था नहीं है और यहाँ, मेंरे पास समय सीमित है। तो ये करोड़ों डॉलर्स मैं किसलिये इकट्ठा करूँ? पर, लोगों को लगता है कि ये बहुत होशियारी का काम है। तो, मैं कहता हूँ कि खुद को होशियार महसूस करने के लिये आपके चारों ओर बेवकूफ होने चाहियें पर अगर आप चाहते हैं कि आपके लिये जीवन अपनी पूरी शान में हो तो शायद आपको समाज में होशियार नहीं समझा जायेगा। अगर आप यहाँ आँख बंद करके बैठें तो आप न तो होशियार हैं न बुद्धू, आप बस जीवन हैं और वही महत्वपूर्ण है। आप कितने गतिशील, प्रचुर, आनंदित और अद्भुत जीवन हैं, यही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस दिशा में नाग बहुत महत्वपूर्ण है।

#4. दुनिया भर की संस्कृतियों में साँप की प्रतीकात्मकता

नाग वहाँ महत्वपूर्ण हो गया जहाँ कहीं भी लोग आँखें बंद कर के ज्यादा समय बिताते और पाँच ज्ञानेंद्रियों के परे कुछ समझ है। साँप का महत्व इस ढंग से देखा जा सकता है। जब आप तर्कपूर्ण होंगे तो जीवन को पकड़ने की कोशिश करेंगे। जब आप बहुत ही सहज ज्ञान वाले और अनुभव करने वाले हो जायें तो आप इसके लिये भी तैयार हो जायेंगे कि जीवन आप को पकड़ ले क्योंकि आप अपनी सीमितताओं को जान चुके होंगें। अभी भी ये मत सोचिये कि आप जीवन को कुछ कर रहे हैं। सही बात तो ये है कि आपके लिये जीवन हो रहा है। इसमें कोई सवाल नहीं है कि अभी यहाँ सबसे बड़ी बात जो हो रही है, वो जीवन है। जब ये अपने आप ही हो रहा है तो आपको और क्या करना है, बस यही कि अपने शरीर में कुछ अच्छा खाना डालते रहिये और शरीर को चलने दीजिये। इसके लिये इतनी ज्यादा मुसीबत उठाने की ज़रूरत क्या है? ये इसलिये हो रहा है कि हमने साँपों की जीवन जीने की रीत छोड़ दी है। हम जीवन को अपने चारों ओर कुंडली नहीं मारने दे रहे। हम इसे पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं। अगर आप इसे थोड़ा ढीला छोड़ दें तो ये आपके चारों ओर लपेटे जाने को तैयार है ।

#5. नाग के 12 आयाम

भारत में नाग के 12 आयामों की पूजा होती है - अनंत, वासुकी, शेष, पद्म, कंबला, कारकोटा, अश्वत्र, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिया, तक्षक और पिंगला। ये 12 आयाम हमारे पंचांग में वर्ष के 12 महीनों से संबंध रखते हैं।

#6. पौराणिक कथाओं में आदिशेष 

शिव के गले में पड़े हुए नाग को वासुकी कहते हैं। विष्णु जिस नाग पर आराम करते हुए दिखाये जाते हैं, वो शेषनाग है। भारत की स्थानीय भाषाओं में, भारतीय गणित का एक सामान्य शब्द है शेष, जिसका मतलब है बचा हुआ। बचे हुए के लिये शेष शब्द का उपयोग इसलिये होता है क्योंकि जब कोई खास सृष्टि खत्म हो जाती है तो मुख्य पहलू बाकी बच जाता है जिससे एक नयी सृष्टि का निर्माण होता है। यही वो शेषनाग है जिस पर विष्णु आराम करते हुए दिखाई देते हैं। इसका मतलब है कि जब पालन पोषण करने के लिये कोई सृष्टि नहीं होती तब वे बचे हुए (शेष) पर आराम करते हैं। ये और भी गहरी बात है पर इस समय मेरी समस्या ये है कि मैं अंग्रेज़ी में बोल रहा हूँ और मेरी बात आपको तर्कसम्मत लगनी चाहिये। हमारे अच्छी तरह से रहने के लिये तर्क एक शक्तिशाली साधन है पर ये इतना शक्तिशाली भी नहीं है कि जीवन के हर पहलू में गहरा उतर सके। आपके अस्तित्व के वर्तमान आयाम से आपको परे ले जा सके, तर्क उतना शक्तिशाली भी नहीं है।

पौराणिक कथायें कहती हैं कि शेषनाग अपनी कुंडली खोलता है तो समय आगे बढ़ता है। इसका मतलब ये है कि पिछली सृष्टि में से जो कुछ बचा हुआ है वह रहता है और जब वो अपने आपको खोलने लगता है तो इसे आदिशेष कहते हैं क्योंकि ये पहली बची हुई चीज़ है। जब ये खुलने लगता है तो इसका मतलब है कि दूसरी सृष्टि का बनना शुरू हो जाता है। जीवन के बहुत ही गहन पहलू को इस तरह से प्रतीकों के रूप में व्यक्त किया गया है। नागर पंचमी या नाग पंचमी इसी को दर्शाती है। ये दिन उन लोगों के लिये बहुत महत्वपूर्ण है जो गहरे उतरना चाहते हैं और जीवन को अपनी भौतिकता से परे, पाँच ज्ञानेंद्रियों से परे ले जाना चाहते हैं।ये कोई बस, अनुभव करना, मुक्ति पाना या आत्मज्ञान पाना नहीं है - ये जानना है! शायद हर कोई जानना नहीं चाहता। कुछ लोग बस मुक्त होना चाहते हैं और वे जानने की परवाह नहीं करते। ये ठीक है पर जो जानना चाहते हैं, उनके लिये क्रमिक विकास का ये शेष जो आपके अंदर है, वो बहुत ही महत्वपूर्ण है।

प्रतीकात्मकता के साथ या फिर वास्तविक रूप से, आप चाहे जुड़ें या न जुड़ें, आपको इस आयाम को सबल, मजबूत बनाना होगा। अगर आपको पाँच ज्ञानेंद्रियों से परे के पहलुओं को जानना है तो आपके आदिशेष को खुलना होगा। आगे बढ़ना होगा। भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही एक बात को बहुत महत्व दिया है और वो ये है कि हम कभी भी साँपों को मारते नहीं थे। अगर गलती से, दुर्घटनावश कोई किसी साँप को मार दे तो वे उसका अंतिम संस्कार सही ढंग से करते थे, वैसे ही जैसे किसी मनुष्य का करते हैं। ये इसलिये कि साँप जो कुछ भी है, उसके कुछ पहलुओं को हम मानते थे।

#7. नागपंचमी : सदगुरु की कविता  

अगर ये साँप नहीं होता,
तो आदियोगी के पास एक 
सरकने वाला आभूषण नहीं होता!
वो पहली स्त्री - पुरुष की जोड़ी,
बस, अपने अंगूठे घुमाती रहती।
उनका मूल भौतिक उद्देश्य भी,
उनके लिये पूरा नहीं हो पाता।।
और, मैं सृष्टि और सृष्टिकर्ता के भेद
जानने का प्रयास भी नहीं करता।
न ही मैं जान पाता कि शिव की इच्छा को,
किस तरह से ऐसा बनाऊँ कि वह तेज और 
सही ढंग से काम कर सके!!
अगर ये साँप नहीं होता...... 

संपादकीय टिप्पणी : 

यहाँ सदगुरु गूढ़ रहस्यवाद और साँपों के बीच के संबंध को और इस रहस्यमय प्राणी की शक्ति और ऊर्जा के बारे में समझा रहे हैं।