32 देशों के 800 से अधिक प्रतिभागी आनंद से भरपूर, तनाव मुक्त और साधना पर आधारित एक नए जीवन की दिशा में प्रयास करने के लिए ईशा योग केंद्र, कोयंबटूर के प्राण-प्रतिष्ठित स्थान में 7 महीने बिताने एक साथ आ रहे हैं। इसमें प्रतिभागी एक गहन और अनुशासित साधना कार्यक्रम से गुजरते हैं, अपने हुनर से ईशा की गतिविधियों में योगदान देते हैं और आश्रम के कार्यक्रमों तथा समारोहों में खुद को डुबो देते हैं। इस ब्लॉग श्रृंखला में, हम उनकी यात्रा के उतार-चढ़ाव दिखाने के लिए आपको पर्दे के पीछे ले चलते हैं।

साधनापद में जीवन

शामिल होने का उत्साह

अभी-अभी कॉलेज की पढ़ाई करके निकले विद्यार्थियों से लेकर कारोबारी, प्रोफेशनल, डॉक्टर, इंजीनिय‍र, संगीतकार, सिविल कर्मचारी, वैज्ञानिकों और बाकियों तक, प्रतिभागियों की पृष्ठभूमि में उतनी ही विविधता है, जितनी संभावनाएं साधनापद प्रदान करता है।

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‘मैं वहां जा रहा हूं, यह सच है।’

‘वास्तव में यहां पहुंचने से पहले तक, मुझे खुद विश्वास नहीं हो रहा था कि मुझे स्वीकार कर लिया गया है। मैंने सोचा था कि यहां लोग बहुत सख्त होंगे और चूंकि मैंने पहले कभी आश्रम में स्वयंसेवा नहीं की है, तो मुझे वापस जाने के लिए भी कहा जा सकता है। मगर जिस पहली स्वयंसेवक से मैं मिला, उन्होंने बस ‘नमस्कारम’ किया और मुझे इतनी निष्कपट मुस्कुराहट दी कि उसी पल से सब कुछ बदल गया। मेरा बेवजह का डर दूर हो गया। यहां होना अविश्वसनीय है। आश्रम जाते समय तक भी, बिलबोर्डों पर सद्‌गुरु की तस्वीरें देखकर मैं उनकी ओर देखता रहा और खुद से कहता रहा, ‘मैं वहां जा रहा हूं, यह सच है।’ ’ – भीम, 18, झारखंड, भारत

‘जब मुझे स्वीकार कर लिया गया तो मैं खुशी से पागल हो गई...’

‘जब मुझे साधनापद के लिए स्वीकार कर लिया गया, तो मैं खुशी से पागल हो गई। मैं यह देखकर अभिभूत थी कि आंतरिक आध्यात्मिक रूपांतरण के लिए जरूरी ढांचे और सहयोग के साथ ऐसा एक संरचित प्रोग्राम मौजूद है। एक ऐसी जगह, जहां कोई परिवार अपनी बेटियों को बिना किसी हिचकिचाहट और पूरे विश्वास के साथ इतने समय के लिए भेज सकता है।’ – स्वाति, 42, लंदन, यूके

शुरुआती बाधाओं को पार करना

कुछ लोगों के लिए स्वीकार किए जाने की खुशी कुछ बाधाओं के साथ आई। एक आश्रम में रहने के लिए आना एक अपारंपरिक कदम है और अधिकांश के लिए एक मुश्किल काम हो सकता है। प्रतिभागियों को अपने बॉस को भरोसा दिलाना था, अपना आर्थिक प्रबंध करना था और अपने परिवारों को इस प्रोग्राम का महत्व समझाना था।

‘मेरे बिजनेस पार्टनर मेरे जाने से खुश नहीं थे’

‘मैं कुछ समय से ईशा के लिए स्वयंसेवा कर रहा हूं। मैंने साधनापद के बारे में सुना था मगर मुझे हमेशा लगता था कि यह मेरे लिए नहीं है। कई कारोबार चलाने वाले मेरे जैसे व्यक्ति के लिए, जिसके घर पर एक बूढी मां है, सात महीने का समय घर से दूर रहने के लिए बहुत लंबा समय है।

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‘मेरे बिजनेस पार्टनर मेरे जाने से खुश नहीं थे, मगर वे मान गए, जब मैंने उन्हें समझाया कि मैं खुद पर काम करने जा रहा हूं और उससे मैं और अधिक कार्यकुशल और उपयोगी बन सकता हूं। मैंने अपनी मां की देखभाल की व्यवस्था भी की।

‘इसके अलावा, घर पर मेरी साधना उस तरह नहीं चल रही थी, जिस तरह चलनी चाहिए थी। तो, मैं यहां आकर बहुत खुश हूं और अभी से अपने अंदर रूपांतरण को महसूस कर सकता हूं’ – श्रीकुमार, 48, केरल, भारत

‘हर किसी को लगा कि मैं पागल हो गया हूं।’

‘जब मैंने लोगों को बताया कि मैं 7 महीने के लिए आश्रम जा रहा हूं, तो कोई मुझसे सहमत नहीं था। हर किसी को लगा कि मैं पागल हो गया हूं। दूसरी चिंता 7 महीने के गैप के बाद मेरी नौकरी की संभावनाओं को लेकर थी। मैंने अपने माता-पिता को भरोसा दिलाया कि आश्रम में मेरा समय मेरे सीवी को और मजबूत बनाएगा।’

‘मेरे अंदर खुद को नुकसान पहुंचाने वाली कुछ आदतें थीं, जिन पर मेरे पिता का ध्यान गया था। मैंने उनसे कहा कि मैं खुद को बेहतर बनाना चाहता हूं और अपनी नींद को कम करना चाहता हूं, मैं अधिक एकाग्र, तीव्र और संतुलित होना चाहता हूं। मेरे इरादे और दृढसंकल्प को देखते हुए वे बोले, ‘तुम जा सकते हो। हमारी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं। तो मैं आ गया!’ ’ – शांतनु, 29, कश्मीर, भारत

‘मेरा परिवार बिल्कुल तैयार नहीं था, जब मैंने उन्हें बताया कि मैं 7 महीने बाहर रहूंगी’

‘मैं पहले कई बार आश्रम जा चुकी हूं और यहां रहना हमेशा एक बढ़िया मौका रहा है, मगर मेरा परिवार वाकई तैयार नहीं था, जब मैंने उन्हें बताया कि इस बार मैं 7 महीने बाहर रहूंगी। उन्हें यह समझाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी कि अपने कैरियर में आगे बढ़ने से पहले खुद पर थोड़ा समय लगाना मेरे लिए कितना महत्वपूर्ण है।

‘मैंने इसी साल ग्रेजुएशन किया था और मुझे कई मौके मिल रहे थे, इसलिए मेरा परिवार नहीं चाहता था कि मैं उन्हें ठुकराऊं। मगर मैं एक स्थिर आधार के लिए खुद पर मेहनत करना चाहती थी, ताकि अपने जीवन में इसके बाद जो कुछ करना चाहती हूं, उसके लिए तैयार हो सकूं।’ – शुभांगी, 22, जोधपुर, भारत।

गुरु पूर्णिमा और ‘इन द लैप ऑफ द मास्टर’ में पर्दे के पीछे

साधनापद वैसे तो 16 जुलाई, 2019 को गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर शुरू हुआ, मगर प्रतिभागी ‘इन द लैप ऑफ द मास्टर’ का हिस्सा बनने के लिए कुछ दिन पहले ही पहुंच गए। यह एक 2 दिवसीय कार्यक्रम था, जहां हज़ारों ईशा साधक सद्गुरु की मौजूदगी में रहने के लिए आश्रम पहुंचे। इतने बड़े पैमाने के कार्यक्रम के आयोजन में बहुत काम किया जाना था। मगर सैंकडों साधनापद प्रतिभागियों के आने और सेवा के लिए तैयार होने से, बिना किसी बाधा के कार्यक्रम संपन्न हुआ। फिर गुरु पूर्णिमा की रात को वे सद्गुरु के साथ एक अंतरंग सत्संग में शामिल हुए।

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‘इससे मुझे एक झलक मिली कि आश्रम में हर कोई किस तरह बिना थके काम करता है।’

मैंने इन द लैप ऑफ मास्‍टर प्रोग्राम के लिए स्‍वयंसेवा से शुरुआत की। इससे मुझे एक झलक मिली कि आश्रम में हर कोई किस तरह बिना थके और बिना किसी शिकायत के काम करता है। वे अपनी सेवा में असाधारण रूप से बेहतर हैं और उन्‍हें देखकर मैं अपने कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए उत्‍सुक हो गया। आश्रम में पिछले कुछ दिन मेरे अंदर एक जागृति लाने वाले रहे हैं। मुझे महसूस होता है कि मेरी जागरूकता दिन ब दिन बढ़ रही है। इस जगह होना अविश्‍वसनीय महसूस होता है और मैं लगातार एक जीवंत ऊर्जा की सक्रियता महसूस करता हूं। - क्षितिज, 28, बेंगलुरु

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धमाकेदार शुरुआत

गुरु पूर्णिमा के बाद, प्रतिभागी एक गहन ओरियेंटेशन से गुजरे, जहां उन्‍होंने न सिर्फ हठ योग सीखा बल्कि इनर इंजीनियरिंग को भी दोहराया और बुनियादी चीजों पर फिर से गहराई से नज़र डाली जो आगामी 7 महीने की साधना का आधार है। ओरियेंटेशन एक बवंडर था, जिसमें सद्गुरु के पहले कभी न देखे गए वीडियो, एक लाइव प्रक्रिया के रूप में गुरु पूजा का अनुभव, आदियोगी प्रदक्षिणा के जरिये तीव्रता को आत्‍मसात करना और तमाम दूसरी प्रक्रियाएं शामिल थीं। इस दौरान, अप्रत्‍याशित रूप से, सद्गुरु अपने व्‍यस्‍त शिड्यूल के बीच थोड़ी देर के लिए प्रतिभागियों से मिले ताकि उन्‍हें आने वाली चीजों के लिए तैयार कर सकें।

‘प्रोग्राम की शुरुआत में ही सद्गुरु के साथ एक सत्र होना एक वरदान था’

‘ओरियेंटेशन के दौरान इनर इंजीनियरिंग रिफ्रेशर बहुत जरूरी था। उसने मुझे अपनी शांभवी को गहन बनाने में मदद की और यह समझने में भी मदद की कि कैसे ये सरल उपकरण इतना बड़ा अंतर ला सकते हैं।

हठ योग क्रियाओं को करने से मुझे अपने आसनों को सुधारने और हर आसन के साथ जुड़ाव बढ़ाने में मदद मिली। दूसरी बार गुरु पूजा को सीखना मददगार था क्‍योंकि पहले मैंने उसकी अहमियत नहीं समझी थी। आखिरकार कार्यक्रम की शुरुआत में ही सद्गुरु के साथ एक सत्र होना एक वरदान था।’ – नेहा, 26, जयपुर, भारत

‘सद्गुरु ने मुझे जो भेंट दिया है, मैं उसके योग्‍य बनने के लिए प्रतिबद्ध हूं।’

‘सद्गुरु जैसे व्‍यक्ति का अपना कीमती समय और ऊर्जा मुझे पर खर्च करना मेरे लिए बहुत मायने रखता है। उनकी करुणा और चिंता, बस हमें यह भेंट करने का उनका एकमात्र फोकस, हमें रूपांतरित होते देखने की उनकी तीव्र इच्‍छा – इसने मुझे पिघला दिया है। सद्गुरु ने मुझे जो भेंट दिया है, मैं उसके योग्‍य बनने के लिए प्रतिबद्ध हूं। चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।’ – अश्विनी, 27, हैदराबाद, भारत

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सद्गुरु ने साधनापद प्रतिभागियों से क्‍या कहा

‘साधना का मूल सिद्धांत यह है - जिस चीज़ को भी मैं छूता हूं, उसके साथ पूर्ण जुड़ाव, मगर अपनी तरफ उदासीनता। तभी आप जीवन के उपकरणों को एक खास प्रकार से इस्‍तेमाल कर पाएंगे। सबसे बढ़कर आपके शरीर और मन को आपका उपकरण बनना चाहिए, साधना का मकसद यही है। अभी आपकी चीजों से हर कोई जो चाहता है, वह करता है। स्थितियां तय करती हैं कि आपका शरीर और मन क्‍या करेगा। साधना का अर्थ है कि सिर्फ मैं तय करूं कि मेरे शरीर और मन को क्‍या करना चाहिए।’

आगे क्‍या है...

और इसी तरह साधनापद 2019 के पहले दो सप्‍ताह समाप्‍त हुए। प्रतिभागियों को रूपांतरण के शक्तिशाली उपकरण दिए गए और जैसे ही उन्‍हें लगा कि अब उनके पास थोड़ा खाली समय है तो आगे योगाभ्‍यास और सेवा उनके इंतज़ार में है। इस श्रृंखला के अगले हिस्‍से में हम देखेंगे कि वे कैसे आश्रम सेवा की तीव्रता (कोई वीकएंड नहीं!) में घुलना-मिलना सीखते हैं और साधनापद के रूप में सद्गुरु की भेंट का पूरा लाभ उठाने के लिए अपनी पसंद-नापसंद से ऊपर उठते हैं।