आध्यात्मिक खोज – इनर इंजीनियरिंग करने से पहले मैं साठ प्रतिशत मरी हुई थी
एक खोजी शेरिल सिमोन ने अपनी रोचक जीवन-यात्रा को ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ नामक किताब में व्यक्त किया है। आप इस स्तंभ में इसे एक धारावाहिक के रूप में पढ़ रहे हैं। पेश है अगली कड़ी:
सद्गुरु ने भारत आने को कहा
मैंने सद्गुरु को अपनी पिछली भारत-यात्रा की आपबीती सुनाई और यह भी बताया कि मेरा स्वास्थ्य कितना नाजुक है। पल भर शांत रहने के बाद उन्होंने कहा कि भारत आना मेरे लिए ठीक रहेगा और वहां रहते समय मुझे कोई रोग नहीं होगा।
मैं फिर भी मानने को तैयार नहीं हुई। मैं जाना तो चाहती थी लेकिन इतने लंबे दौरे में स्वास्थ्य और बाकी सब-कुछ संभालने को ले कर मेरे मन में अनेक संदेह और भय थे।
सद्गुरु से सब कुछ सीखने की चाहत
उस समय मेरे पास यह जानने का कोई साधन नहीं था कि सद्गुरु के शब्दों पर कितना भरोसा किया जा सकता है। वे ऐसे लग रहे थे मानो उन पर किसी भी चीज का कोई बुरा असर नहीं होता, विशेष रूप से गर्मी या यात्रा की तकलीफ का। इसलिए मैंने सोचा कि शायद वे नहीं समझ पायेंगे कि गर्मी में भारत की यात्रा करना मेरे लिए कितनी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। हालांकि मैंने भारत आने के उनके शुरुआती आमंत्रण को ठुकरा दिया था, लेकिन मैंने शीघ्र अपना ध्यान इस बात पर केंद्रित कर लिया कि जल्दी-से-जल्दी सद्गुरु से वह सब सीख लूं जो मैं सीख सकती थी।
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इनर इंजीनियरिंग : सद्गुरु द्वारा रचा गया मूल कार्यक्रम
सद्गुरु द्वारा रचे गए ईशा योग में मूल कार्यक्रम को ‘इनर इंजिनियरिंग’ कहा जाता है। वैज्ञानिक रूप से तैयार किया गयायह कार्यक्रम,उत्तम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य और शक्ति बनाये रखने में हमारी मदद करता है।
भारत जाने पर स्वास्थ्य बिलकुल ठीक बना रहा
मैंने योजना बना ली थी कि उनकी अगली कक्षा जब भी अमेरिका के किसी भी शहर में होगी तो मैं उसमें जरूर शामिल होऊंगी। लेकिन मुझे यात्रा नहीं करनी पड़ी, क्योंकि छह महीने बाद अटलांटा में मेरे निवास के बहुत पास ही उनकी कक्षा आयोजित हुई।
जब मैंने इनर इंजीनियरिंग शुरू किया था, तब मैं हर दिन डॉक्टर की लिखी चार दवाइयां लेती थी। किसी को ये बहुत ज्यादा लग सकती हैं पर यह जान कर मुझे अचरज हुआ कि ये ज्यादा नहीं थीं! मेरा स्वास्थ्य अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ था। मेरा हाइपरथायरॉयडिज्म लाइलाज मर्ज था। ऐसी बहुत-सी और भी चीजें थीं जो मेरी शारीरिक प्रणाली को कठिनाई में डाल रही थीं। मुझे निरंतर थकान, एलर्जी, पेट में परेशानी, शरीर में भयानक दर्द और निरंतर अनिद्रा की तकलीफें थीं। मेरा स्वास्थ्य इतना खराब हो चला था कि इससे मैं शर्मिंदगी महसूस करती थी। धीरे-धीरे कई सालों से यह लगातार खराब होता जा रहा था। सच कहूं तो मैं साठ प्रतिशत मरी हुई महसूस कर रही थी। काम करते रहने के लिए मुझे बहुत कोशिश करनी पड़ती थी।
सद्गुरु के साथ एडवांस कार्यक्रम का अनुभव
सद्गुरु का कार्यक्रम शुरू होने पर बाकी सब लोगों को तो यह आनंदमय लग रहा था, पर शरीर में भयानक दर्द के कारण मेरे लिए एक जगह बैठ पाना ही मुश्किल हो रहा था।
मैं उन चरम अनुभूतियों का अनुभव नहीं कर पा रही थी जो दूसरे लोग कर रहे थे। फिर भी बिलकुल निराश होने के बावजूद मैं क्रियाओं का अभ्यास करती रही। मैं जानती थी कि यदि कोई चीज मुझमें बदलाव ला सकती है तो वह यही है। सद्गुरु को इससे लाभ अवश्य हुआ होगा वरना वे इन क्रियाओं में अपना समय नहीं गवांते। ये क्रियाएं किसी व्यक्ति में तन, मन, भावना और ऊर्जा के बीच तालमेल बिठाने और उनको गहराई देने की एक अनोखी प्रणाली हैं, इनमें अन्य क्रियाओं के अलावा सांस लेने की शक्तिशाली तकनीकें और ध्यान हैं। मेरे जैसे स्वास्थ्य की हालत में भी इन क्रियाओं को किया जा सकता था। मुझे यह मानना होगा कि सुबह के मेरे अभ्यास से मुझे दिन भर शांति और आनंद मिलता है और मैं इसे कभी छोडऩा नहीं चाहती। मैं हर दिन ये क्रियाएं करती रही और इसका लाभ यह हुआ कि बहुत-सी चीजों में तब्दीली आयी - और वह भी बड़ी तेजी से।
तीन महीनों से पाया अधिकतर दवाओं से छुटकारा
तीन महीने में मैं डॉक्टर की लिखी अधिकतर दवाओं से छुटकारा पा गयी थी। जब मेरे डॉक्टर ने मेरे ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट देखी तो आश्चर्य से वे चौंक पड़े।
स्वस्थ हो जाने के अलावा मैंने ऐसी बहुत सारी चीजों का अनुभव किया है, जिनकी चर्चा सद्गुरु ने पहली कक्षा में किया था। मैं हमेशा चिंतित रहा करती थी। अब बेहद बुरी घटनाओं की कल्पना कर के निरंतर चिंता करते रहने की आदत से छुटकारा मिल जाने से कितना आराम महसूस हो रहा था! हाल में मैं अपने पिता से बातचीत कर रही थी, तब उन्होंने पूछा, ‘तुम्हें सचमुच कोई चीज परेशान नहीं करती?’
‘नहीं, कम-से-कम उस तरह तो नहीं जैसा वह पहले करती थी,’ मैंने जवाब दिया।
‘कितना अच्छा होता यदि मैं भी वैसा हो सकता!’ उन्होंने कहा।
मन की शांति सिर्फ शुरुआत है
समय के साथ मेरा मस्तिष्क भी मेरे पिता जैसा ही चिंताग्रस्त हो गया था। वह चिंताओं को ढूंढ़ कर उन पर चिंतन करने और फिर दूसरी चिंता को ढूंढऩे की कोशिश में लगातार लगा रहता था। अब अधिकतर समय मैं आनंद के एक निरंतर गहरे भाव में डूबी रहती हूं, हालांकि मेरा मन अभी भी मेरी इच्छा से अधिक सक्रिय रहता है। चुनौती-भरे मौके अब भी आते हैं पर अब वे मेरी नींद नहीं उड़ाते। सद्गुरु ने कहा है कि मन की शांति केवल एक शुरुआत है, लक्ष्य नहीं। यह बात मेरे लिए बहुत उत्साह जगाने वाली थी, क्योंकि हालांकि अब मेरा स्वास्थ्य अच्छा हो गया था और मेरा मन शांत हो गया था पर मैं यहां कुछ और प्राप्त करने आयी थी।