योग विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर की पांच परतें होतीं हैं। अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय और आनंदमय कोष। जानते हैं कि कैसे प्राणमय कोष को संतुलित करके हम शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पा सकते हैं।
योगी एक ऐसा व्यक्ति है जो अपने शरीर को रूपांतरित करते हुए उसे स्वर्ग की सीढ़ी बना लेता है। उसके लिए रीढ़ पर थोड़ा अधिकार होना जरूरी हो जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि स्वर्ग की तैंतीस सीढ़ियां होती हैं। कुछ लोगों ने स्वर्ग के चित्र बनाए और उनमें तैंतीस सीढ़ियों के ऊपर ईश्वर को बैठे दिखाया। ऐसा कुछ नहीं है। आपकी रीढ़ में तैंतीस हड्डियां हैं। आपकी यह रीढ़ आपके लिए कष्ट कारी भी हो सकती है या फिर आप चाहें तो इसे उस सीढ़ी का रूप दे सकते हैं जिस पर चढ़कर आप अपने भीतर चेतना, आनंद और परमानंद के उच्चतम स्तर पर पहुंच सकें।
योग : सभी के लिए काम करता है
योग का एक पहलू जीवन की सभी संभावनाओं, यहां तक कि आध्यात्मिक संभावनाओं को लगभग भौतिक विज्ञान की तरह बनाना है। आपको किसी धारणा या विश्वास के साथ शुरुआत नहीं करनी है।
हजारों लोगों ने साधारण योगाभ्यासों के द्वारा अपनी प्रणाली को संतुलित करते हुए रोगों से छुटकारा पाया है। एक तर्कशील व्यक्ति को यह चमत्कार लगता है।
आप सिर्फ साधारण ज्ञान के साथ शुरुआत करते हैं और फिर उसके साथ प्रयोग करना शुरू करते हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिए आपने दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग ऑक्सीजन को एक साथ मिलाया, तो आपको पानी मिलेगा। चाहे यह काम कोई महान वैज्ञानिक करे या कोई मूर्ख, एक ही नतीजा होगा। इसी तरह, योग में हमने उसे बहुत सरल बना दिया – आप
ऐसा करें तो ऐसा होगा। समझने और महसूस करने के लिए, हमने मनुष्य के सभी पहलुओं को पांच शरीरों में बांट दिया ताकि आप उसे एक भौतिक तत्व के रूप में समझ सकें। शरीर की ये पांच परतें हैं - अन्नमय कोष, मनोमय कोष, प्राणमय कोष, विज्ञानमय कोष और आनंदमय कोष।
अन्नमय और मनोमय शरीर - पहली दो परतें
पहली परत अन्नमय कोश का अर्थ है ‘अन्न शरीर’। हम उसे अन्न शरीर कहते हैं क्योंकि जिसे आप अभी ‘मेरा शरीर’ कह रहे हैं, वह सिर्फ उस भोजन का एक ढेर है, जो आपने खाया है।
समझने और महसूस करने के लिए, हमने मनुष्य के सभी पहलुओं को पांच शरीरों में बांट दिया ताकि आप उसे एक भौतिक तत्व के रूप में समझ सकें।
जब आपका जन्म हुआ था, तो आपका शरीर बहुत छोटा था और वह इतना बड़ा सिर्फ उस भोजन के कारण हुआ है, जो आपने खाया है। दूसरी परत को मनोमय कोश या ‘मानसिक शरीर’ कहा जाता है। आजकल डॉक्टर कहते हैं कि आप मनोदेह (साइकोसोम) यानी मन और शरीर का एक मेल हैं। जिन लोगों को मनोदैहिक रोग होते हैं, वे मन की एक
खास स्थिति के कारण शरीर से बीमार हो जाते हैं। जिस तरह हमारा भौतिक शरीर होता है, एक मानसिक शरीर भी होता है। शरीर की हर कोशिका की अपनी बुद्धिमत्ता होती है, इसलिए एक पूरा मानसिक शरीर ही होता है। मन के स्तर पर जो भी होता है, वह स्वाभाविक रूप से शरीर के स्तर पर भी होता है और जो भी शरीर के स्तर पर होता है, वह बदले में मन के स्तर पर होता है।
योग का कार्यक्षेत्र - प्राणमय कोष
आप फिलहाल अपने शरीर, मन और भावनाओं को ही महसूस कर पाते हैं। आप अनुमान लगा सकते हैं कि ये तीनों चीजें जिस तरह से घटित होती हैं, उनके घटने के पीछे जरूर कोई ऊर्जा है।
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पहली परत अन्नमय कोश का अर्थ है ‘अन्न शरीर’। हम उसे अन्न शरीर कहते हैं क्योंकि जिसे आप अभी ‘मेरा शरीर’ कह रहे हैं, वह सिर्फ उस भोजन का एक ढेर है, जो आपने खाया है।
ऊर्जा के बिना, यह सब घटित नहीं हो सकता है। जैसे एक माइक्रोफोन आवाज को बढ़ा कर पेश करता है। चाहे आप माइक्रोफोन के बारे में कुछ न जानते हों, आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि उसे चलाने वाला कोई स्रोत है। आपके शरीर के तीसरे आयाम को ऊर्जा शरीर या प्राणमय कोश कहा जाता है। ऊर्जा शरीर एक खास तरीके से प्रतिध्वनित होता है और वह जिस तरीके से प्रतिध्वनित होता है या गूंजता है, उसी रूप में आपके मानसिक शरीर और भौतिक शरीर होते हैं। योग का मूल कार्य अक्सर प्राणमय कोश के स्तर पर होता है क्योंकि यदि आप इसका उपयुक्त रूप से संचालन करें, तो भौतिक सुख अपने आप आ जाता है।
ऊर्जा पर महारत शरीर और मन पर भी महारत दिलाती है
प्राणमय कोश सभी भौतिक जीवों की मूल ऊर्जा है। यदि अपने प्राण या ऊर्जा पर आपका अधिकार है, तो इसका असर सिर्फ आपके जीवन और स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि अपने आस-पास की स्थितियों पर भी आपका अधिकार होगा। जैसे-जैसे आपकी ऊर्जा अधिक संतुलित होती जाती है, आपके कुछ सोचने से पहले ही अचानक से आपके जीवन की स्थितियां आपके अनुकूल होने लगती हैं। आपको जीवन के साथ घिसटना नहीं पड़ता।
जिस तरह हमारा भौतिक शरीर होता है, एक मानसिक शरीर भी होता है। शरीर की हर कोशिका की अपनी बुद्धिमत्ता होती है, इसलिए एक पूरा मानसिक शरीर ही होता है।
आप जो भी करते हैं, आप पर कोई दबाव नहीं होता क्योंकि हर काम सही होता है। अगर आप लगातार कई दिनों तक, दिन में चौबीस घंटे भी काम करें, तो भी आप के ऊपर कोई तनाव या दबाव नहीं होता। यदि आप मेरी नाड़ी देखें, तो अक्सर भूखे पेट होने पर वह चालीस के नीचे होती है। भोजन के बाद, वह बयालीस से पैंतालीस के बीच होती है। अगर मैं शारीरिक रूप से सक्रिय रहूं, तो वह पचास, चौवन तक पहुंच जाती है। केवल दौड़ कर सीढ़ियां चढ़ने या ऐसा कोई काम करने पर, वह उससे अधिक जाएगी। जब शरीर इस तरह होता है, तो ऐसा लगता है मानो आप हर समय एक गहरी नींद में हैं, फिर भी पूरे जाग्रत हैं। शरीर को इस तरह बनाने के बाद तनाव जैसी कोई चीज नहीं होती। यदि इन तीन आयामों, भौतिक शरीर, मानसिक शरीर और ऊर्जा शरीर को एक खास सीध में रखा जाए, तो उससे गहरा एक आयाम अपने आप काम करने लगता है। वह आयाम सृष्टि का स्रोत है।
साधारण सी योग प्रक्रिया शरीर को ठीक कर सकती है
लोगों को अपनी शारीरिक और मानसिक स्थितियों में चमत्कारी बदलाव नजर आते हैं क्योंकि आपके ऊर्जा शरीर के उचित संतुलन और पूर्ण प्रवाह में होने पर, आपको शारीरिक या मानसिक बीमारियां नहीं हो सकतीं।
यदि आप मेरी नाड़ी देखें, तो अक्सर भूखे पेट होने पर वह चालीस के नीचे होती है। भोजन के बाद, वह बयालीस से पैंतालीस के बीच होती है। अगर मैं शारीरिक रूप से सक्रिय रहूं, तो वह पचास, चौवन तक पहुंच जाती है।
चाहे वह कोई भी बीमारी हो। यह ऐसा ही है मानो आपकी कार स्टार्ट नहीं हो रही थी, तो आपने उसे धक्का दिया, लात मारी, कोसा, सब कुछ किया। आपके मैकेनिक ने आकर बस उसे छुआ और सब कुछ ठीक हो गया। यही हाल आपके शरीर का है, आप नहीं समझते कि कहां पर क्या है और कैसे काम करता है। चाहे आप जो भी करें, वह कारगर नहीं होता। फिर एक साधारण सी प्रक्रिया से सब ठीक हो जाता है। हजारों लोगों ने साधारण योगाभ्यासों के द्वारा अपनी प्रणाली को संतुलित करते हुए रोगों से छुटकारा पाया है। एक तर्कशील व्यक्ति को यह चमत्कार लगता है।
इन तीनों परतों की प्रकृति स्थूल है
आप जिस चीज को भी समझ नहीं पाते, उसे चमत्कार कह देते हैं। मान लीजिए आप बिजली के बारे में कुछ नहीं जानते और मैं आपसे कहूं, ‘अगर मैं दीवार को स्पर्श करूंगा, तो पूरा कक्ष रोशनी से नहा जाएगा,’ तो क्या आप मेरा यकीन करेंगे? अगर मैं स्विच दबाऊं और पूरा कमरा रोशनी से भर जाएगा, तो आपको लगेगा कि मैं ईश्वर का दूत या ईश्वर का पुत्र या स्वयं ईश्वर हूं क्योंकि आप नहीं समझते कि वह कैसे काम करता है। जो भी आपको समझ नहीं आता, वह आपके मन में चमत्कार लगता है।
प्राणमय कोश सभी भौतिक जीवों की मूल ऊर्जा है। यदि अपने प्राण या ऊर्जा पर आपका अधिकार है, तो इसका असर सिर्फ आपके जीवन और स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि अपने आस-पास की स्थितियों पर भी आपका अधिकार होगा।
जीवन की प्रक्रिया ही अपने आप में एक बड़ा चमत्कार है। दो सूक्ष्म कोशिकाओं से विकसित होकर आप यहां तक पहुंचे हैं, क्या यह चमत्कार नहीं है? जीवन से जुड़ी हर चीज चमत्कारी है। वैसे अगर आप उसे स्पष्ट करना शुरू करें, तो कुछ भी चमत्कार नहीं है। ये तीन आयाम, भौतिक या स्थूल शरीर, मानसिक शरीर और ऊर्जा शरीर स्थूल प्रकृति के हैं। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं, वे सूक्ष्म होते जाते हैं – पूर्णत: स्थूल से थोड़ा सूक्ष्म, उससे थोड़ा और सूक्ष्म, लेकिन ये सब मूल रूप से स्थूल प्रकृति के ही होते हैं। आपको साफ-साफ दिखाई देता है कि बिजली का बल्ब स्थूल रूप है, लेकिन जो बिजली उसे रोशनी देती है, वह भी स्थूल है, वह जो रोशनी उत्पन्न करता है, वह भी स्थूल है। इसी तरह, शरीर की ये तीनों परत स्थूल प्रकृति की हैं।
संपादक की टिप्पणी:
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