शरीर – एक उपकरण की तरह इस्तेमाल करना होगा
सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि अगर हम अपने आपको शरीर मानते हैं तो हम या तो उस पर गर्व करने लगेंगे या फिर शर्मिंदा होने लगेंगे। दोनों ही हालातों में हम शरीर का एक साधन की तरह उपयोग नहीं कर सकते। पर योग विज्ञान के अनुसार शरीर को एक उपकरण की तरह उपयोग में लाया जाना चाहिए
हाल में, भारत की कुछ सेलफोन कंपनियों ने एक सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में पाया गया कि 97 फीसदी लोग एक आम फोन की क्षमता का सिर्फ सात फीसदी काम में ला रहे हैं। यहां स्मार्ट फोन की बात नहीं हो रही है, मैं “मामूली” मोबाइल फोनों की बात कर रहा हूं। यदि वे उसका नब्बे फीसदी हिस्सा हटा दें, तो भी अधिकतर लोगों को अंतर का पता नहीं चलेगा और कंपनियां पांच सौ रुपये की छूट भी दे सकती हैं। ग्राहक भी खुश होगा, कंपनियां भी खुश होंगी।
शरीर का कितना फीसदी इस्तेमाल कर रहे हैं आप
उस छोटे से उपकरण का सिर्फ सात फीसदी हिस्सा आप इस्तेमाल कर रहे हैं। तो अपने शरीर के बारे में सोचिए। यह वह उपकरण है जिससे हर तुच्छ उपकरण उत्पन्न हुआ है। आप इस उपकरण का कितना फीसदी काम में ला रहे हैं? एक फीसदी से भी कम, क्योंकि जीवित रहने के लिए, भौतिक दुनिया में ज़िन्दगी बसर करने के लिए, आपको अपने शरीर की क्षमता के एक फीसदी की भी जरूरत नहीं है।
शारीरिक बल के मामले में आप किसी भी जानवर से मुकाबला नहीं कर सकते। आप किसी कीड़े को ही ले लें, उस नन्हें से जीव में कितनी शक्ति होती है। वह अपने शरीर की लंबाई के करीब पचास से सौ गुना ऊंची छलांग लगा सकता है। उस हिसाब से यदि आप पांच या छह फीट लंबे हैं, तो आपको पांच सौ फीट उछलना चाहिए। शारीरिक बल के मामले में प्रकृति का कोई भी जीव, चाहे वह कीड़ा-मकोड़ा हो या पशु-पक्षी, आपसे अधिक समर्थ बनाया गया है। मानव शरीर में एक बिल्कुल अलग क्षमता होती है।
मनुष्य शरीर में दिव्य क्षमता है
एक मनुष्य के रूप में, आपमें कुछ अलग संभावनाएं होती हैं, एक खास क्षमता होती है कि आप जीवित रहने की अपनी सहज प्रवृत्ति के परे कुछ कर सकते हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण है। फिर भी, अधिकतर मनुष्य जीवित रहने की जरूरत से परे देखने की बजाय सिर्फ अपना जीवन स्तर और बढ़ा लेते हैं। एक समय में जीविका का अर्थ दिन में एक या दो बार भोजन प्राप्त करना था।
“जीवन की प्रक्रिया ही एक महान चमत्कार है। जिस तरीके से आप दो सूक्ष्म कोशिकाओं से यहां तक पहुंच गए, क्या यह चमत्कार नहीं है?”
योग का एक मूलभूत पहलू है, अपने शरीर को एक साधन की तरह इस्तेमाल करना। अधिकांश , लोग अपने शरीर से इतना जुड़ाव रखते हैं कि वे उसे अपना रूप मानते हैं।
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शरीर का उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना सीखना होगा
यह मानव प्रणाली कोई साधारण तंत्र नहीं है। आप इसके साथ बाजीगरी करते हुए ऐसी चीजें कर सकते हैं, जिनके संभव होने की आपने कभी कल्पना नहीं की होगी। अपने अनुभव में जब आप अपने शरीर के साथ जुड़े होते हैं और उसे “स्व” के रूप में देखते हैं, तो आप या तो उस पर गर्व करते हैं या उससे शर्मिंदा होते हैं। ऐसी समस्याएं होने पर, आप इसे एक साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकते।
आपकी संवेदनाएँ भौतिक शरीर से परे जा सकतीं हैं
आज मेडिकल विज्ञान ने भी यह मान लिया है कि आपकी इंद्रियों या आपके संवेदी शरीर की सीमाओं की भौतिक शरीर के परे भी मौजूदगी है। डॉक्टर साफ-साफ कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति का पैर काट दिया जाता है, तो भौतिक पैर के अलग हो जाने के बाद भी संवेदी पैर मौजूद होता है।
अपने संवेदना शरीर को फैलाया जा सकता है
कुछ ऐसे तरीके हैं जिनसे आप अपने शरीर के वोल्टेज को बढ़ा कर अपने संवेदी शरीर को फैला सकते हैं। अपने संवेदी शरीर का आकार बढ़ाने के बाद आपको हर चीज अपना ही एक हिस्सा लगेगी। जिस तरह आप अपने हाथ की पांचों उंगलियों को महसूस करते हैं, आप उस हर चीज को महसूस कर सकते हैं, जिसे आप अपना अंश बनाने के इच्छुक हैं।
विश्व और आप एक हो सकते हैं
आप अपने संवेदी शरीर को कितना भी फैलाव दे सकते हैं, आप पूरे ब्रह्मांड को अपना अंश मान सकते हैं। इसे ही हम योग कहते हैं। योग का अर्थ है मेल। उसका मतलब है कि व्यक्ति और विश्व एकाकार हो गए है। अपने अनुभव में सिर्फ “आप” हैं। सब कुछ आप हैं। जिस पल आप अपने अनुभव से यह जान जाएंगे, किसी विचार या दर्शन के रूप में नहीं बल्कि हकीकत में, जब आप हर चीज को अपने अंश के रूप में देखेंगे, तो किसी को भी आपको यह बताने की जरूरत नहीं है कि आपको किस तरह होना चाहिए।
पशुओं के रीढ़विहीन होने से रीढ़सहित होने तक का विकास शरीर के विकास के संबंध में एक बड़ी उछाल थी। उसके बाद क्षैतिज रीढ़ से लंबवत या सीधी रीढ़ तक का विकास, मस्तिष्क के विकास में उससे भी बड़ा कदम था।
योग में रीढ़ को सीधी मुद्रा में रखना जरुरी है
वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि रीढ़ के सीधे होने के बाद ही मस्तिष्क का विकास शुरू हुआ। इसी ज्ञान के कारण कुछ योगी कभी नहीं लेटते। यदि उन्हें सोना भी होता है, तो वे बैठे-बैठे सोते हैं। यदि किसी को इसी जीवन के भीतर बड़े स्तर पर विकास करना है, तो जहां तक संभव हो, सीधी मुद्रा में रहना बहुत जरूरी है। यदि आपको पता हो कि आप सीधी मुद्रा में पर्याप्त आराम से और तनावमुक्त कैसे रह सकते हैं, तो आप देखेंगे कि लेटने और सोने की जरूरत बहुत कम हो जाती है। सीधी मुद्रा में तनाव में रहने पर ही नींद की जरूरत बढ़ती है।
संपादक की टिप्पणी:
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