हमारा शरीर परम आनंद की सीढ़ी और मन है एक चमत्कार
यह मानव शरीर एक ऐसा तोहफा है आपके लिए जिसे आप चाहें तो स्वर्ग की सीढ़ी बना लें या अपने लिए परेशानियों का द्वार। और हमारा मन एक कमाल का यंत्र है, बस यह समझिए कि सुप्रीम कंप्यूटर।
जी हां, यह मानव शरीर एक ऐसा तोहफा है आपके लिए जिसे आप चाहें तो स्वर्ग की सीढ़ी बना लें या अपने लिए परेशानियों का द्वार। और हमारा मन एक कमाल का यंत्र है, बस यह समझिए कि सुप्रीम कंप्यूटर। लेकिन अफसोस कि हम इसको समझने और इसका इस्तेमाल सीखने के लिए उतना समय भी नहीं देते जितना एक मामूली कंप्यूटर को सीखने में देते हैं। यही वजह है कि हम इस बेमिसाल यंत्र के पूरे और सही इस्तेमाल से चूक जाते हैं।
इस मानव-प्रणाली को साधारण न समझें, आप इससे ऐसी चीजें कर सकते हैं, जिनके संभव होने की आपने कभी कल्पना नहीं की होगी। एक खास तरह की जीवन-शैली अपना कर आप इस शरीर को एक ऐसा साधन बना सकते हैं, जो ब्रह्मांड की धुरी बन जाता है।
शारीरिक विकास की प्रक्रिया में, पशुओं के बिना रीढ़ का होने से रीढ़वाले होने तक का विकास एक बड़ी उछाल थी। उसके बाद उसके पशुओं जैसी रीढ़ से लंबवत या सीधी रीढ़ तक का जो विकास हुआ वो मनुष्य के दिमाग के विकास से भी बड़ा कदम था।
वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि रीढ़ के सीधे होने के बाद ही मस्तिष्क का विकास शुरू हुआ। इसीलिए योग में मेरुदंड को इतना महत्व दिया जाता है। योगी एक ऐसा व्यक्ति होता है जो अपने शरीर को रूपांतरित करके उसे स्वर्ग की सीढ़ी बना लेता है। इसके लिए रीढ़ पर थोड़ा अधिकार होना जरूरी हो जाता है। पारंपरिक रूप से कहा जाता है कि स्वर्ग की तैंतीस सीढिय़ां होती हैं। ऐसा शायद इसीलिए कहा जाता है क्योंकि आपकी रीढ़ में तैंतीस हड्डियां हैं। यह रीढ़ कष्टदायक भी हो सकती है या इसे उस सीढ़ी का रूप दिया जा सकता है, जिस पर चढक़र आप अपने भीतर चेतना, आनंद और परमानंद के उच्चतम स्तर पर पहुंच सकें।
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मानव स्वभाव कोई संघर्ष नहीं है, लोग इसे संघर्ष बना रहे हैं। आपको एक शानदार तंत्र से नवाजा गया है जिसे दिमाग कहते हैं। इस दिमाग को विकसित होने में करोड़ों साल का समय लग गया। करोड़ों साल तक ‘आर एंड डी’ (शोध और विकास) के चरणों से गुजरने के बाद कहीं जाकर इस शानदार यंत्र का निर्माण हुआ। लेकिन ज्यादातर लोग इस शानदार यंत्र का धड़ल्ले के साथ इस्तेमाल कर रहे हैं, बिना यह जाने कि इसका प्रयोग सही तरीके से कैसे किया जाता है।
अगर मैं आपको एक सस्ता सा सेलफोन लाकर दूं तो आपको उस पर बस दस-बारह बटन मिलेंगे।
आपका फोन, आपकी कार, आपका अंतरिक्षयान, आपका सुपर-कंप्यूटर या ऐसी ही दूसरी चीजें जिन्हें इंसान ने बनाया है, इसी दिमाग की उपज हैं। यह दिमाग एक बेहद जटिल यंत्र है। अगर आपके पास साधारण फोन है तो उसका इस्तेमाल सीखने के लिए आपको पांच से दस मिनट का वक्त चाहिए। अगर आपके पास स्मार्ट-फोन है तो हो सकता है कि उसके साथ मिली निर्देशिका को पढऩे में ही आपका आधा दिन निकल जाए और उसके बारे में सीखने में आपको दो-चार दिन ध्यान देना पड़े। अगर कंप्यूटर की बात करें तो आपको और भी ज्यादा समय लगाने की जरूरत हो सकती है। हो सकता है कि एक दो महीने लग जाएं। अगर आपको सुपर-कंप्यूटर दे दिया जाए तो उस पर काम करना सीखने के लिए हो सकता है कि आपको पांच साल लग जाएं। अगर आपको सुप्रीम-कंप्यूटर मिलता है, जो कि आपके पास ही है, तो आपको उसे सीखने में कुछ समय लगाना चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे समाज में ज्यादातर लोगों ने दिमाग को इस्तेमाल करने का तरीका ठीक ढंग से सीखने में भरपूर समय नहीं दिया, इसीलिए वे झंझटों में उलझे रहते हैं। यह इत्तेफाक की बात है कि कुछ लोगों ने दिमाग का अच्छी तरह से प्रयोग करना सीख लिया है, बाकियों ने इसे लेकर सब गड़बड़ कर रखा है।
संपादक की टिप्पणी:
*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:
21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया
*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है: