सद्‌गुरु: चेतना का अर्थ यह नहीं है कि आप खुद के बारे में सचेत रहें। खुद के प्रति सचेत रहना एक बीमारी है, और अचेत होना मृत्यु। चेतन होने का मतलब ये है कि आप अपने मूल से जुड़े रहते हैं। आप जिसे चेतना कहते हैं, वह कोई कार्य, कोई विचार या गुण नहीं है -- यह तो सृष्टि का आधार है। अगर हम कहते हैं कि आप की चेतना बढ़ गयी है तो इसका अर्थ ये नहीं है कि आप अपने जर्मन शेपर्ड (कुत्ते) से ज्यादा सतर्क हो गये हैं। सतर्कता दिमाग का विषय है। चेतना दिमाग की नहीं होती, लेकिन अगर चेतना जागृत है तो मन स्पष्ट हो जाता है। यह आपके मन और शरीर के माध्यम से, आपकी हर एक कोशिका से, शक्तिशाली रूप से अभिव्यक्त होती है।

चेतना हमेशा आप के जीवन में प्रभाव डालती है। प्रश्न ये है कि क्या आप की पहुंच चेतना तक है?

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चेतना इसलिये नहीं होती, कि आप कुछ कर रहे हैं, ये बस इसलिये होती है कि आप ने इसे होने दिया है। आप का जीवन भी चल रहा है लेकिन आप कुछ भी नहीं कर रहे। हम जिसे चेतना कहते हैं, वो आप के जीवन और अस्तित्व का आधार है। यह कोई ऐसी बात नहीं है जो आप किसी ख़ास समय पर कर सकते हैं या किसी खास समय पर नहीं कर सकते। चेतना तो तब भी है जब आप इस शरीर में हैं या बिना शरीर के हैं। प्रश्न सिर्फ ये है कि वह आप को उपलब्ध है या नहीं? आप हमेशा चेतना के लिये उपलब्ध होते हैं, आप उससे बच नहीं सकते, पर क्या वह आप को उपलब्ध है?

चेतना हमेशा आप के जीवन में प्रभाव डालती है। प्रश्न ये है कि क्या आप की पहुंच चेतना तक है? आप के इस पहुंच से दूर रहने का कारण ये है कि अगर आप इस तक पहुंच बना लेते हैं तो 'आप' गायब हो जायेंगे, 'आप' का अस्तित्व नहीं रहेगा। आप के पास न गर्व रहेगा, न शर्म रहेगी, न दर्द न सुख। लेकिन आप वह सब कर सकेंगे जो आप करना चाहते हैं। देखिये, मैं वो सब कर रहा हूँ जो मैं करना चाहता हूँ, पर वास्तव में, मैं कुछ भी नहीं कर रहा! आप के पास जीवन में बड़ी सफलतायें नहीं होंगी और आप अपने अंदर, किसी दूसरे की अपेक्षा न बेहतर होंगे न बदतर। आप न ऊपर जायेंगे न नीचे, लेकिन आप वो सब कर सकेंगे जो आप चाहते हैं। आप अपने जीवन में हर अनुभव पा सकेंगे, जो भी आप चाहें!

बेफिक्री का अर्थ ये नहीं है कि आप इस चीज़ या उस चीज़ के प्रति बेफिक्र हो जाएं -- आप खुद अपने आप के प्रति बेफिक्र हो जाते हैं। आप खुद के आलावा हर चीज़ को मूल्यवान मानते हैं। अगर आप ऐसा करते हैं तो फिर जीवन अच्छा या बुरा नहीं होता।

जीवन से कुछ भी बनाने की स्वतंत्रता

अगर मैं चाहूँ, अभी कुछ ही क्षणों में, मैं अपने आप को बहुत दुःखी बना सकता हूँ, दुःख और आँसुओं से भरा हुआ, या फिर अपने आप को अति आनंदित बना सकता हूँ, लेकिन दोनों ही अवस्थाओं में मैं जानता हूँ कि ये मेरी ही बनाई हुई हैं। आप जिन्हें जीवन के खेल कहते हैं, वैसा कुछ भी नहीं होता, पर स्वतंत्रता होती है। आप इससे कुछ भी बना सकते हैं। अगर आप का सबसे ऊंचा लक्ष्य मुक्ति है, तो आप को बस बेफिक्री की स्थिति की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये। इसका मतलब ये नहीं है कि आप अपनी जिम्मेदारियों को लेकर बेफिक्र हो जाएं। ये सबसे पहली चीज़ है जिसके बारे में लोग बेफिक्र होना चाहते हैं, क्योंकि वे सबसे पहले उन सब बातों की बेफिक्री चाहते हैं जो असुविधाजनक हैं -- उनका परिवार और बाकी सब कुछ। लेकिन वे अपने विचार, अपनी राय, अपनी नीतियाँ और जीवन के प्रति अपने अहंकारी दृष्टिकोण के प्रति बेफिक्र नहीं होते।

 

बेफिक्री का अर्थ ये नहीं है कि आप इस चीज़ या उस चीज़ के प्रति बेफिक्र हो जाएं -- आप खुद अपने आप के प्रति बेफिक्र हो जाते हैं। आप खुद के आलावा हर चीज़ को मूल्यवान मानते हैं। अगर आप ऐसा करते हैं तो फिर जीवन अच्छा या बुरा नहीं होता। ये न तो सुंदर होता है, न बदसूरत -- ये कुछ ऐसा होता है जिसे आप कोई नाम नहीं दे सकते। ये उस तरह से नहीं होता, जिस तरह लोग जीवन को जानते हैं। ये बस ऐसा है कि अगर आप प्राथमिक स्कूल से गुज़र चुके हैं, तो अब समय आ गया है कि आप अगला कदम उठाएं।