यहाँ सद्‌गुरु इस प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं कि इस धरती पर अपने जीवन के अंतिम भाग में हमें क्या विशेष करना चाहिये।

प्रश्न: सद्‌गुरु, हमें इस धरती पर अपनी यात्रा के अंतिम भाग के लिये आध्यात्मिक, भौतिक और नैतिक दृष्टि से कैसी तैयारी करनी चाहिये?

सद्‌गुरु: ये आप का आखरी कदम है तो धीरे मत चलिये। पूरा जोर लगा दीजिये। पहले और आखरी कदम के बीच कोई अंतर मत रखिये। अगर आप ने शुरुआत में कोई अंतर रखा था तो कम से कम अब सीख लीजिये कि अब ऐसा नहीं करना है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप को अभी 100 कदम चलने हैं या बस एक! आप एक ही तरह से चलिये, कोई अंतर मत रखिये। लोग कहते हैं, "अपने जीवन के, कम से कम अंतिम समय में आप को ईश्वर के बारे में सोचना चाहिये"। लेकिन, यदि आप सारा जीवन एक अंधे की तरह जीते हैं और अब सोचते हैं कि अंतिम क्षणों में राम-राम कहने से सब ठीक हो जायेगा, तो समझ लीजिये, कि ऐसा नहीं होता है।

क्या आप ने बीजू पटनायक के बारे में सुना है ? वे ओडिशा के मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री रहते हुए, राजनैतिक प्रसिद्धि के बावजूद वे अपना जीवन अपने ही ढंग से जीते थे। जब वे मृत्यु शैया पर थे, तब लोग उनके लिये गीता ले आये और उनके सामने उसे पढ़ने की तैयारी करने लगे। तब बीजू ने कहा, "ये सब बकवास बंद करो, मैंने अपना जीवन अच्छी तरह से जिया है"।”

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एक बच्चा पूरी तरह से खेल में व्यस्त रहता है, आप उससे अंतिम सत्य के बारे में बात नहीं कर सकते। युवा पूरी तरह से हार्मोन्स के शिकंजे में होते हैं, उनसे भी आप ये बातें नहीं कर सकते। बूढ़े लोग बस इस चिंता में लगे रहते हैं कि वे स्वर्ग में कहाँ होंगे? तो आप उनसे भी इस बारे में बात नहीं कर सकते।

पूर्णकालिक अति व्यस्तता

तो फिर आप को क्या करना चाहिये? संस्कृत का एक श्लोक है, "बालास्तवत क्रीड़ासक्तः" - अर्थात् बच्चे की तरह खेल में आसक्त रहो। जब आप बच्चे थे तब आप का खेलकूद आप को पूरी तरह व्यस्त रखता था, आप का खेलकूद हर समय चलता रहता था। आप जब युवा हुए तो वो सब खेलकूद आप को थोड़ा मूर्खतापूर्ण लगने लगा, आप को लगा कि अब आप थोड़े गंभीर और उद्देश्यपूर्ण हो गये हैं। उसके बाद क्या हुआ? आप की बुद्धिमत्ता को आप के हार्मोन्स ने जकड़ लिया। फिर आप कुछ भी स्पष्ट रूप से दिखना बंद हो गया। अचानक ये होने लगा कि जब भी आप किसी स्त्री या पुरुष को देखते थे तो सभी प्रकार की चीजें हो जाती थीं। फिर, धीरे धीरे, आप बूढ़े होने लगे। बूढ़े लोग बस हमेशा चिंतित रहते हैं। एक बच्चा पूरी तरह से खेल में व्यस्त रहता है, आप उससे अंतिम सत्य के बारे में बात नहीं कर सकते। युवा पूरी तरह से हार्मोन्स के शिकंजे में होते हैं, उनसे भी आप ये बातें नहीं कर सकते। बूढ़े लोग बस इस चिंता में लगे रहते हैं कि वे स्वर्ग में कहाँ होंगे? तो आप उनसे भी इस बारे में बात नहीं कर सकते। फिर बताईये, यहाँ है कौन? कोई ऐसा, जो न बच्चा हो, न युवा, न वृद्ध - कोई ऐसा जो सिर्फ जीवन हो - सिर्फ़ उससे ही आप ये बात कर सकते हैं।

 

 

जीवन का एक अंश

अतः,इस बात को आप अपने पहले या आखरी कदम के रूप में न देखें। यहाँ बस जीवन के एक अंश की तरह रहें। उस तरह से रहना ही सबसे अच्छी तरह से 'होना' है। आप कोई युवा नहीं हैं, न ही कोई वृद्ध हैं। ये तो धरती तय करेगी कि आप के शरीर को कब वापस लेना है। जब खाद तैयार हो जायेगी तब धरती इसे वापस ले लेगी, पेड़ तो प्रतीक्षा कर ही रहे हैं। इस बारे में चिंता मत कीजिये। आप बस जीवन का एक अंश हैं। इस जीवन के रूप में कोई युवा नहीं, कोई वृद्ध नहीं, कोई बच्चा नहीं। इस जीवन को बस कुछ बड़े में परिपक्व होना है!

आप चाहे दो दिन के हों या आप के जीवन के बस दो दिन बचे हों, आप बस ये देखिये कि किसी के साथ बिना पहचान जोड़े, एक जीवन के रूप में यहाँ कैसे रहा जाये ?

जीवन के सभी पहलू आप के लिये सिर्फ तभी घटित होंगे जब आप यहाँ बस जीवन के एक अंश के रूप में होंगे। आप अगर यहाँ एक पुरुष के रूप में हैं, तो आप के लिये कुछ चीज़ें घटित होंगी। यदि आप एक स्त्री के रूप में हैं तो कुछ अन्य चीजें होंगी। और अगर आप बस एक बच्चे के रूप में हैं तो कुछ और होगा। अगर आप एक डॉक्टर के रूप में हैं, या एक इंजीनियर या कलाकार, या कुछ और, तो आप के लिये कुछ अलग अलग चीजें घटित होंगी। लेकिन, अगर आप यहाँ जीवन के एक अंश की तरह होंगे तो फिर जीवन के साथ जो कुछ हो सकता है, वो सब आप के साथ होगा।

आप चाहे दो दिन के हों या आप के जीवन के बस दो दिन बचे हों, आप बस ये देखिये कि किसी के साथ बिना पहचान जोड़े, एक जीवन के रूप में, यहाँ कैसे रहा जाये ? अपने आप को पृथ्वी या स्वर्ग से ना जोड़ें, यहाँ सिर्फ रहें। फिर आप के जीवन का सिर्फ एक दिन बाकी हो या 100 वर्ष, क्या फर्क पड़ता है ? जब कोई फर्क नहीं पड़ता तो जो कुछ भी इस जीवन के साथ होना चाहिये, वो सब किसी भी तरह से आप के साथ होगा ही। और, यही सम्मति के साथ जीना है!

Editor’s Note: Check out “Unraveling Death”, the latest DVD from Sadhguru.