हमारी बुद्धि ही हमारी उलझन बन गई है
इस ब्लॉग में सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि कैसे एक समाधान की तरह अपनाई गई हर चीज़ को, चेतनता की कमी के कारण हम खुद एक समस्या में बदल रहे हैं।
ज्यादातर लोगों के लिए उनकी बुद्धि ही उनकी उलझन है। रोजाना आने वाली परेशानियों की वजह भी यही है। किसी और प्राणी से तुलना की जाए तो मानव-बुद्धि का स्तर सबसे ऊंचा है। इसका मतलब यह हुआ कि यह बुद्धि इंसान के लिए एक बहुत बड़े समाधान की तरह होनी चाहिए, लेकिन लोगों ने हर समाधान को एक समस्या बनाने का तरीका सीख लिया है।
हर समाधान को हम समस्या में बदलते गए
एक समय हम शिकारी और संग्रहकर्ता हुआ करते थे। फिर हमें लगा कि यह तो बहुत मुश्किल काम है, क्योंकि ऐसा करके तो रोज खाना नहीं मिल पाता। ऐसे में हमने खेती करना सीख लिया।
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तो यह हाल है इंसानी बुद्धि का। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इससे किसी समस्या का समाधान नहीं मिलता। मेरे कहने का मतलब यह है कि एक समाधान अपने साथ कई परेशानियां भी लेकर आता है। हमें बस इस मूल बात को समझना है कि जीवन और जीवन की गुणवत्ता खुद यह जीवन ही है, न कि इससे जुड़ी वे मददगार चीजें, जो हमने बनाई हैं। हमने जीवन को बेहतर बनाने के लिए बहुत-सी चीजें इकट्ठी की हैं, लेकिन यह सब इतना ज्यादा हो गया है कि हम अपने जीवन को ही भूल गए हैं। जो कुछ भी हमने इकठ्ठा किया, वह जीवन से ज्यादा जरूरी हो गया है।
हमारा जीवन उच्च स्तर पर स्पंदित होना चाहिए
आप इस पहलू को अच्छी तरह अपने भीतर उतार लें कि जीवन का संबंध तो स्पंदन से है, धडक़न से है, यह जीवन स्पंदन के सबसे ऊंचे स्तर पर होना चाहिए।
भौतिकता और आध्यात्मिकता में बस एक ही फर्क है - अगर आप साफ तौर पर यह समझते हैं कि आप अपने शरीर के अंदर जीवन को जिस तरह से रखते हैं – वही आपके जीवन का सार है, अगर आप इस बात को लेकर जागरूक हैं तो इसका मतलब है कि आप आध्यात्मिक हैं। लेकिन अगर आप अपने सुख की चीजें इकट्ठी करने में व्यस्त हैं और आपको इसकी कोई परवाह नहीं कि यह जीवन किस हाल में है, तो इसका मतलब है कि आप भौतिकतावादी हो गए हैं। एक बार की बात है। शंकरन पिल्लै मछली पकडऩे गए। वह कांटे में छोटा-सा टुकड़ा लगाकर लगभग आधे दिन बैठे रहे, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। तभी एक सात-आठ साल का लडक़ा अपने पिता के साथ वहां से गुजरा। शंकरन ऐसे दिख रहे थे, जैसे वह मछली पकडऩे से बोर हो गए हों। अचानक एक बड़ी सी मछली कांटे से टकराई और उसमें अटक गई। मछली इतनी बड़ी थी कि शंकरन अपना संतुलन नहीं रख पाए और पानी में जा गिरे। यह देख उस लडक़े ने अपने पिता से पूछा कि यह आदमी मछली पकड़ रहा था या मछली इस आदमी को पकड़ रही थी? ज्यादातर लोगों के साथ यही होता है कि वे मछली पकडऩे जाते हैं और इतनी बड़ी मछली पकड़ लेते हैं कि उल्टे खुद ही गिर जाते हैं। जो चीज़ वे पकड़ते हैं, वे खुद उनसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती हैं।
चेतना और सुविधाओं में फर्क करना होगा
जिस तरह की व्यवस्था हम अपने घरों में, अपने समाज में या दुनिया में अपने आस-पास बनाते हैं, वह केवल हमारे आराम के लिए होती है और आराम कभी चेतना नहीं बन सकता।