सद्‌गुरुआध्यात्मिकता के लिए अकसर यह माना जाता है कि यह सांसारिक लोगों के लिए नहीं है, इसके लिए संसार छोड़ना पड़ेगा। अगर बिना कुछ छोड़े आध्यात्मिक बन सकते हैं, तो फिर सांसारिक और आध्यात्मिक व्यक्ति में क्या अंतर है?

आध्यात्मिक और सांसारिक के बीच अंतर

प्राय: लोग मुझसे पूछते हैं कि एक आध्यात्मिक व्यक्ति और एक सांसारिक व्यक्ति में क्या अंतर है? मैं एक बात कह सकता हूं कि एक सांसारिक व्यक्ति वह है, जो अपना भोजन खुद अर्जित करता है, परंतु और बाकी चीज़ों के लिए वह अपने जीवन में भीख मांगता है। अपनी शांति, अपनी खुशी, अपना प्रेम, सभी चीजों को वह अपने चारों ओर के लोगों से भीख में मांगता है। एक आध्यात्मिक व्यक्ति वह है, जिसके भीतर सभी चीजें मौजूद होती हैं, बस वह केवल अपने भोजन के लिए भिक्षा मांगता है। अगर वह अपना भोजन भी अर्जित करना चाहता है तो उसके लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। वह उसे भी कमा सकता है।

अध्यात्म के पूरे विज्ञान का अर्थ है उस प्रक्रिया से मुक्त हो जाना, जहां आपकी खुशी बाहरी परिस्थितियों के पास गिरवी रखी है।

अध्यात्म को नापसंद क्यों करते हैं लोग?

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चूंकि यह शरीर व मन आपका नहीं है, इसलिए इस शरीर व मन के आयाम से परे जो कुछ है, उस पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सभी लोगों के जीवन में आध्यात्मिक आयाम लाया जाए। आखिर क्या वजह है कि बहुत से लोग अध्यात्म को नापसंद करते हैं। इसकी एक बड़ी वजह है कि कुछ लोगों ने हमेशा उन्हें यह बताया है कि ‘अध्यात्म का आशय ही सब कुछ छोडक़र पहाड़ों पर चले जाना है।’ वैसे, अगर आप जंगल में जाना भी चाहें तो आप सभी के लिए पर्याप्त जंगल नहीं बचे हैं और जहां जंगल हैं भी, वहां अधिकांश जंगलों को जंगली डाकुओं ने घेर रखा है। वहां आपके लिए पर्याप्त जगह नहीं होगी। ऐसे में अब आपके लिए यही सीखना बेहतर होगा कि अपने ऑफिस, अपने घर, गलियों या जहां भी आप हैं, वहां आध्यात्मिक कैसे हुआ जाए। दरअसल, अध्यात्म आपके ‘अंर्तमन’ के बारे में बात करता है, इस बारे में नहीं कि बाहर आप क्या करते हैं। बाहर आप जो भी करते हैं, वह आपकी अपनी रुचि है। आप कैसे कपड़े पहनना चाहते हैं, क्या खाना चाहते हैं, कहां रहना चाहते हैं, यह सब आपकी अपनी व्यक्तिगत रुचि है।

अध्यात्म : आंतरिक विज्ञान का उपयोग करना होगा

अध्यात्म अपने ‘अंर्तमन’ को व्यवस्थित करने का विज्ञान है। उदाहरण के लिए, आज आपके पास आधुनिक विज्ञान है, जिसके जरिए आप अपने रहने के लिए ज़रूरत के मुताबिक बाहरी वातावरण बना लेते हैं। ठीक इसी तरह से अध्यात्म अपने आंतरिक वातावरण को अपने अनुकूल बनाने का एक ‘आंतरिक’ विज्ञान है। दरअसल, आपके जीवन की गुणवत्ता इस पर निर्भर नहीं करती कि आप कहां और कैसे रह रहे हैं, बल्कि इस पर निर्भर करती है कि फिलहाल आप अपने भीतर से किस तरह के हैं। आपका भीतरी तत्व ही आपके जीवन की गुणवत्ता तय करता है।  इस क्षण आपने क्या पहना है, बैंक में आपके पास कितना पैसा जमा है या फिर आपकी शैक्षिक योग्यता क्या है, इन सबसे आपके जीवन की गुणवत्ता तय नहीं होगी, बल्कि तय होगी इस बात से कि इस क्षण आप कितने प्रसन्नचित्त हैं, कितने शांतिपूर्ण हैं। हालांकि इस आयाम की आपने पूरी तरह उपेक्षा की है।

सब कुछ बाहर नहीं है

आप अपनी मां के गर्भ से बाहर आए, अपनी आंखें खोलीं, बाहर की दुनिया को देखा और उसकी ओर तीव्रता से आकृष्ट हो गए। आपने सोचा कि सब कुछ बाहर ही है। आपने बाहर भले ही कितना कुछ किया हो, लेकिन यह कोई मायने नहीं रखता। जब तक आप अपने आंतरिक भाग के लिए कुछ नहीं करते, तब तक आप जान नहीं पाएंगे कि शांतिपूर्ण होना क्या है, आप जान ही नहीं पाएंगे कि आनंदमय होना क्या है, आप जान नहीं पाएंगे कि मात्र एक भौतिक शरीर और मन बने रहने की सीमाओं से परे कैसे जाया जाए। जब मैं कहता हूं ‘आपका भौतिक शरीर’ और ‘आपका मन’, तब मैं आपको यह समझाना चाहता हूँ कि यह शरीर आपका नहीं है।

अध्यात्म का मूल : शरीर और मन आप नहीं हैं

जब आप पैदा हुए तो एक छोटा-सा शरीर आपके साथ आया था, जिसे आपके माता-पिता ने आपको दिया था। फिर आपने खा-खाकर इस शरीर को इतना बड़ा बना दिया। फिलहाल जो शरीर आपके पास है, वह आपने पृथ्वी से उधार लिया है। जब आप इस दुनिया से जाएंगे तो इसका एक कण भी नहीं ले जा सकते। आपको सब कुछ छोडक़र जाना होगा, इसलिए वास्तव में यह शरीर आपका है ही नहीं। जो भी आपने खाया है, यह उसका एक ढेर है। आपका मन भी आपका नहीं है। जरा ध्यान से अपने मन को देखिए, आप पाएंगे कि आपका मन समाज का कूड़ादान है। आपके बगल से गुजरने वाले हर इंसान ने आपके मन में अपना कुछ कचरा डाल दिया। यही सब आपको मिला है। आप अपने मन में जरा छान-बीन करके देखिए, आप पाएंगे कि वहां आपकी माता बैठी हैं, आपके पिता वहां बैठे हैं, आपके शिक्षक कहीं और बैठे हैं, आपके शत्रु और मित्र भी वहां है, जो फिल्म आपने देखी है, जो पुस्तकें आपने पढ़ी है, वह सब आपके भीतर बहुत कुछ करते हुए मिल जाएंगे। आप जिस परिवेश में पले-बड़े थे, वहां से आपने बहुत कुछ इकठ्ठा किया है, इसलिए आपका मन उन सभी चीज़ों का एक संग्रह है।

सिर्फ खाने के लिए इतने जटिल शरीर की जरूरत नहीं

अगर मानवता ही आपका कर्तव्य है, तो आप खुद को अपना पहला कर्तव्य बनाइए।
चूंकि यह शरीर व मन आपका नहीं है, इसलिए इस शरीर व मन के आयाम से परे जो कुछ है, उस पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है। मानव शरीर धारण करने के बाद अगर आप उस आयाम का अनुभव नहीं करते यानी आप शरीर और मन की सीमा से परे खुद को अनुभव नहीं कर पाते तो समझ लीजिए कि यह मानव शरीर आपके लिए व्यर्थ हो गया। क्योंकि खाने, सोने, संतान-उत्पत्ति और मरने के लिए आपको इस तरह के शरीर की ज़रूरत नहीं होती। आपको इस तरह की बुद्धि की भी ज़रूरत नहीं होती। हर कीड़ा-मकोड़ा, हर चिडिय़ा, हर जानवर इन सभी कामों - खाने, सोने, बच्चे पैदा करने और मर जाने को बहुत सक्षमतापूर्वक कर रहे हैं। वास्तविकता तो यह है कि इन मामलों में आप उनकी बराबरी नहीं कर पाएंगे। कुछ ऐसे कीड़े-मकोड़े हैं, जो चौबीस घंटे में अपने वजऩ से हजार गुना खा सकते हैं। अगर आपका वजन पचास किलोग्राम है तो आपको प्रतिदिन पचास टन भोजन खा जाना चाहिए। सचमुच तभी तो पार्टी होगी। लेकिन जिस तरह का शरीर आपको मिला है, अगर आप उसकी ज़रूरत से थोड़ा-सा ज्यादा खा लेंगे, तो समझ लीजिए या तो आपको शौचालय की ज़रूरत होगी या डॉक्टर के पास जाना होगा। आपका शरीर इसी तरह का है। इसलिए खाने की प्रतियोगिता में आप खुद को कहीं खड़ा नहीं पाएंगे।

सोने के मामले में भी आप अन्य प्रणियों की बराबरी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि कुछ कीड़े-मकोड़े, पशु व पक्षी ऐसे हैं, जो लगातार तीन से छह महीने तक सो सकते हैं। बहुत आरामदेह गद्दों के बावजूद आप जितनी देर सोते हैं, उससे कुछ घंटे ज़्यादा नहीं सो सकते। संतान उत्पत्ति के मामले में, एक बच्चे पैदा करना आपके लिए एक जंजाल है! वे हज़ारों की संख्या में पैदा करते हैं, उनमें से कुछ तो लाखों की संख्या में पैदा कर रहे हैं। मरने के संबंध में भी आपने कितना बड़ा हंगामा खड़ा कर रखा है। इसे भी वे बहुत शालीनतापूर्वक कर रहे हैं।

मृत्यु के प्रति जागरूकता ही आध्यात्मिक प्रेरणा है

इसलिए खाने, सोने, संतान-उत्पत्ति और मर जाने के लिए ऐसे शरीर और ऐसी बुद्धि की ज़रूरत नहीं है। आप अलग संभावनाओं के साथ आए हैं। हो सकता है कि फिलहाल आप सोच रहे हों, ‘नहीं, नहीं। मैं केवल खा, सो और बच्चे ही पैदा नहीं कर रहा हूँ। मैं एक उद्योग चला रहा हूं, उद्योगपति हूं, मैं रोटरी क्लब का सदस्य हूं।’ यह सब तो बहुत अच्छा है। लेकिन जिस दिन आपको मरना होगा, उस दिन . . .?  क्या आपको पता है कि एक दिन आप मर जाएंगे? क्या आप इसके प्रति जागरूक हैं? मैं आपको एक लंबे जीवन के लिए आशीर्वाद देता हूं, लेकिन फिर भी आप एक दिन मर जाएंगे। क्या आपको यह पता है? इसलिए जब मरने का समय आएगा, तब आप देखेंगे कि जीवन में जो कुछ भी हुआ, वह बस खाने, सोने और सन्तान-उत्पत्ति करने तक ही सीमित रह गया, इसके अलावा और कुछ नहीं हो सका। पीढ़ी दर पीढ़ी लाखों-करोड़ों लोग जो इस पृथ्वी पर आए और चले गए, अगर आप पीछे मुडक़र देखेंगे तो पाएंगे कि ये लोग भी इससे कुछ अलग हटकर नहीं कर पाए। बहुत कम ऐसे लोग हुए जो इससे ऊपर उठ पाए, ज़्यादातर लोग मात्र जीने तक ही सीमित रह गए।

चेतनता को ऊंचा उठा कर, बनेंगे सभी के लिए उपयोगी

जो सबसे मौलिक बात है, वह है कि अगर मानवता ही आपका कर्तव्य है, तो आप खुद को अपना पहला कर्तव्य बनाइए। तभी देखेंगे कि आप मानवता के लिए कुछ ऐसा कर सकते हैं, जो काफी लंबे समय तक कायम रहेगा। अगर आप भौतिक संदर्भों में गौतम बुद्ध व ईसा मसीह या उनके जैसे कई और लोगों के जीवन पर नजर डालेंगे तो देखेंगे कि उन्होंने कोई बहुत ज़्यादा काम नहीं किया था। वास्तव में उन्होंने इतना काम भी नहीं किया था, जितना आप कर रहे हैं- आपमें से कुछ तो अपनी क्षमता से भी ज़्यादा काम कर रहे हैं। लेकिन उन लोगों ने जो कुछ भी किया, वह आज तक कायम है, इसकी वजह थी कि वे लोग जो कुछ भी करते थे, वह उनके ‘भीतरी’ आयाम से संचालित होता था। उनके कार्य करने का कुछ अलग ही आयाम था। आप कई आयामों में काम कर सकते हैं- अपने शरीर से, अपने मन से, अपने भाव से अथवा अपने अंदर के बिल्कुल ही अलग आयाम से। अगर आप अपने शरीर और मन से काम कर सकते हैं तो उस काम की जीवन-अवधि बहुत ही छोटी होगी। वह कुछ समय के लिए होगी, आज तो वह बहुत सार्थक लगेगी, लेकिन हो सकता है कि कल उसका कोई महत्व न रह जाए।

चेतनता में किया गया काम हमेशा के लिए बना रहता है

इसलिए वे लोग, जिन्होंने अपनी चेतना के साथ काम किया, उनका काम हमेशा के लिए कायम रहा। चेतना के साथ काम करने का हमेशा यह अर्थ नहीं होता कि आपको कोई आंदोलन चलाना है या कोई क्रांति शुरू करनी है। आप चाहे जो भी काम कर रहे हों- चाहे व्यवसाय में, ऑफिस में, या घर पर, वह काम अपनी चेतना के साथ भी कर सकते हैं। आपका हर एक कार्य चेतना के एक बिल्कुल ही अलग स्तर से घटित हो सकता है। जब लोग इस तरह से काम करने लगते हैं, तो वे चाहे जो कुछ भी करें, यह संसार रहने के लिए एक बहुत सुखद स्थान बन जाएगा।