क्या जेनेटिक तरीके से पैदा की गई फसलें फायदेमंद हैं?
बायोटेक्नालॉजी की कंपनी ‘बायोकॉन लिमिटेड’ और आई आई एम बेंगलुरु की चेयरपर्सन डॉ किरन मजूमदार शॉ ने सद्गुरु से बातचीत की। पेश है उस संवाद की एक कड़ी:
किरण मजूमदार शॉ: सद्गुरु, ‘जेनेटिकली मॉडिफायड’ फसलों के इतने सारे फायदे हैं, लेकिन लोग इन पर वैज्ञानिक तरीके से बहस करने के लिए तैयार नहीं हैं, वे लोग इस नई टेक्नालॉजी के लिए एक दीर्घकालीन व पूर्ण सुरक्षा की गारंटी चाहते हैं। हम लोग इससे कैसे निपटें?
सद्गुरु: लोग हर नई चीज का विरोध करते हैं। सबसे पहले विरोध करने वाले लोगों में धार्मिक समूह होते हैं। उसके बाद नैतिक मूल्यों की बात करने वाले, फिर दूसरे तरह के सामाजिक कार्यकर्ताओं की बारी आती है। हमेशा से ऐसा होता आया है। कोई भी नई चीज हो, उसका विरोध होगा ही। यहां बात सिर्फ बायो-टेक्नालॉजी की नहीं है, किसी भी क्षेत्र में नई चीज का विरोध होता है। दरअसल, बहुत सारे लोगों को लगता है कि यथास्थिति को बनाए रखना ही बहुत सारी समस्याओं का समाधान है। इसलिए हर बदलाव का विरोध होता है।
व्यावसायिक ताकतों से सावधान रहना होगा
जो भी चीज इंसान, पौधे या जानवर के बुनियादी जीवन निर्माण प्रक्रिया से जुड़ी हो, उसे लेकर हमें बेहद सावधानी से कदम बढ़ाना चाहिए।
Subscribe
मुझे लगता है कि गैर व्यावसायिक प्रतिष्ठान, हो सके तो गवर्नमेंट फंडेड प्रतिष्ठानों को इस दिशा में रिसर्च के लिए भारी निवेश करना चाहिए। जब इस दिशा में पर्याप्त समय तक काम हो जाए तो इसे सामने आना चाहिए। लेकिन जब यही काम व्यावसायिक ताकतें करती हैं तो उनके व्यावसायिक पहलू दूसरी चीजों पर हावी हो जाते हैं, क्योंकि हर दिन उनकी बैलेंसशीट बदल रही होती है। इसके लिए आप उन्हें दोष भी नहीं दे सकते, क्योंकि वे कारोबार करने आए हैं। तो इस लिहाज से हमें थोड़ा सा सावधान रहना होगा। इको-सिस्टम को जैसा होना चाहिए, अगर आप उसे वैसा ही बनाएं रखें तो हम जितना चाहें, उतना खाद्यान्न पैदा कर सकते हैं। पहले तो हमने उस पर्यावरण को बर्बाद कर दिया और अब हम उन्नत किस्म का समाधान सामने ला रहे हैं, हो सकता है कि यह उन्नत किस्में इस समस्या का कुछ समय के लिए समाधान कर दें, लेकिन ये हमारे लिए बाकी सभी चीजों को बर्बाद भी कर सकती हैं।
हम अपनी मिट्टी की गुणवत्ता बर्बाद कर चुके हैं
आज से तीस साल पहले जो टेक्नालॉजी आई, उसकी वजह से मिट्टी की गुणवत्ता पूरी तरह से बर्बाद हो गई है। तब कहा गया था, ‘इन सब जानवरों की, इतनी सारी चीजों की कोई जरुरत नहीं है, ये सब बेकार की चीजें हैं।
आज कई ऐसे अध्ययन हुए हैं, जिनमें यह बात निकलकर सामने आई है कि अपने देश में पिछले पच्चीस सालों में सब्जियों की न्यूट्रिशन वैल्यू में लगभग चालीस प्रतिशत की गिरावट आई है, क्योंकि मिट्टी के पोषण की भरपाई सिर्फ पत्तियों और जानवरों व पेड़-पौधों से हो सकती है। फिलहाल हम लोग लाखों मवेशियों को काटकर उनके मांस का निर्यात कर रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि आप मिट्टी की ऊपरी पर्त का निर्यात कर रहे हैं। आप जो भी खाते हैं उनमें से सिर्फ फलों को छोडक़र, जो पेड़ों से आते हैं, बाकी लगभग सारी चीजें धरती की चार इंच से लेकर अठ्ठारह इंच मोटी मिट्टी की पर्त से आ रही हैं। अगर आप मांस के रूप में इसी तरह देश की मिट्टी की ऊपरी पर्त का निर्यात करते रहे तो आने वाले तीस सालों में आपके लिए क्या बचेगा? पहले ही आपके अनाजों की पोषकता इतनी नीचे आ चुकी है।
हर खेत में पशु रखने से जुड़ी नीति बनानी होगी
देश में एक नीति होनी चाहिए कि अगर आप एक एकड़ जमीन चाहते हैं तो आपके पास कम से कम चार पशु होने चाहिए। ये पशु दूध या मांस के लिए नहीं, बल्कि गोबर के लिए होने चाहिए। इसी तरह से जमीन उपजाऊ हो सकती है। आपने पेड़ काट डाले। आप पशु मारे दे रहे हैं। आखिर आपकी योजना क्या है? अब आप मुझसे कहेंगे कि बायो-टेक्नालॉजी से आप एक छोटे से बर्तन में वे सारे अन्न उगा लेंगे, जिसकी हमें जरूरत है, तो मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं।
मैं जानता हूं कि बायो-टेक्नालॉजी की बहुत सारी अच्छी बातें और फायदे हैं, हमें इसका प्रयोग सावधानी और संवेदनशीलता के साथ करना चाहिए। मैं किसी भी तकनीक के खिलाफ नहीं हूं। तकनीक का इस्तेमाल न करने की बात कहना, कुछ ऐसा ही है, मानो हम अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करने से मना करें। अगर यह चीज सरकार के साथ साझेदारी में की जाए तो मुझे नहीं लगता कि हमें थोड़े बहुत एक्टिविज्म से ज्यादा डरना चाहिए। अगर सरकार ने इसमें पैसा लगाया है और कई अध्ययनों से ऐसे आंकड़े आए हैं, जो दिखाते हैं कि इससे किसी गंभीर तरह का खतरा या खराबी नहीं है, तो यह अपने आप एक वास्तविकता बनकर सामने आएगी।
नदी पुनरुद्धार नीति सिफारिश दस्तावेज डाउनलोड करें – डाउनलोड लिंक