क्या भारत सुपरपॉवर बन सकता है?
इस वर्ष एक जनवरी को हिंदी दैनिक ‘प्रभात खबर’ ने सद्गुरु का साक्षात्कार प्रकाशित किया। प्रभात खबर के समाचार संपादक रंजन राजन ने देश व समाज के मौजूदा हालातों पर कई प्रश्न किये। आइये पढ़ते हैं सद्गुरु के उत्तर:
प्रभात खबर: आजादी के बाद से अब तक की भारत की आर्थिक तरक्की को आप कैसे देखते हैं? क्या भारत को दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनने के बारे में सोचना चाहिए? यदि हां तो यह कैसे मुमकिन होगा?
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सद्गुरु: मैं नहीं चाहता कि भारत सुपर-पॉवर बने। बल्कि मैं चाहता हूं कि भारत एक खुशहाल देश बने, जहां सिर्फ दौलत व जीत के अभद्र मानदंडों से खुशहाली तय न हो। दुर्भाग्य से भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा कुपोषण का शिकार है। एक ऐसे देश का निर्माण हो, जहां लोगों के लिए पर्याप्त भोजन हो, लोग बुद्धिमान हों, और अध्यात्म के प्रति जागरूक हों - सफ लता का मेरा नजरिया यही है।
हजारों सालों से भारत दुनिया की आध्यात्मिक राजधानी रहा है - जो कोई भी आंतरिक खुशहाली चाहता था, वह हमेशा यहां पर आया, क्योंकि किसी दूसरी संस्कृति ने आंतरिक विज्ञान को इतनी गहराई से नहीं देखा है। दुर्भाग्य से, जो आध्यात्मिक संस्कृति हम आज देख रहे हैं, वह कई तरह से बाहरी आक्रमणों से टूटी हुई और लंबे दौर की गरीबी से विकृत हो गई है।
प्र.ख.: कहने को तो भारत विकास के पथ पर लगातार अग्रसर है लेकिन गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसी समस्याओं को दूर करने में हम सफ ल नहीं हो सके हैं। आखिर क्यों? और क्या है रास्ता?
सद्गुरु: हम आधी मानवता को दयनीय गरीबी में रखे हुए हैं, जिन्हें जीवन की बुनियादी चीजें उपलब्ध नहीं हैं, और दस प्रतिशत जनसंख्या ठाठ-बाट से मौज कर रही है। हमें उन लोगों को नीचे नहीं खींचना है, जो अच्छी जिंदगी गुजार रहे हैं। हमें उन लोगों को ऊपर उठाना है, जिनकी जिंदगी अच्छी नहीं है। यह बिलकुल संभव है, कोई सपना नहीं है। इतिहास में पहली बार, हमारे पास जरूरी टेक्नालॉजी है, संसाधन हैं, और इस धरती पर मानव की लगभग हर समस्या को हल करने की क्षमता है। लेकिन हम बस हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, क्योंकि मानव चेतना का अभाव है। जो सबसे महत्वपूर्ण है और जिसे किए जाने की जरूरत है, वह है लोगों की, खासकर युवाओं की चेतना को जागृत करके एक सर्व-समावेशी चेतना में रूपांतरित करना। यह एक दृष्टिकोण नहीं है। यह एक बौद्धिक प्रक्रिया नहीं है। इसे एक जीता-जागता अनुभव बनना चाहिए। एक सक्रिय आध्यात्मिक प्रक्रिया ही यह बदलाव ला सकती है।
प्र.ख.: मनुष्य की धन की भूख शांत नहीं हो पाती। शायद भ्रष्टाचार के लगातार बढऩे का मूल कारण यही है। भ्रष्टाचार कई अन्य समस्याओं को जन्म देता है। इसका निदान कैसे हो सकता है?
सद्गुरु: कुछ साल पहले मैं तमिलनाडु में त्रिची के एक स्कूल में गया था। मैं नवीं और दसवीं कक्षा के छात्रों से बात कर रहा था। मैंने उनसे पूछा, ‘आप अपने जीवन में क्या करना चाहते हैं?’ किसी ने कहा, ‘मैं आर.टी.ओ. बनना चाहता हूं।’