समस्याओं का स्वागत करें
जीवन में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों का सामना करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? खेतों में चलने वाली तेज़ हवाओं और बारिशों के बीच खिलने वाले पौधों के माध्यम से सद्गुरु हमें समस्याओं का प्रेम से सामना करने को कह रहे हैं...
हर काम के साथ कुछ चुनौतियाँ आएंगी
आनंदप्रद समझकर आप जिस किसी भी काम को हाथ में लें, उसके साथ नत्थी होकर आएँगी कुछ चुनौतियाँ, जैसे खरीदे गए किसी सामान के साथ फोकट में मिलने वाली चीजों की तरह।
वह चुनौती आपसे कड़ी मेहनत माँग सकती है, जबर्दस्त प्रतियोगिता हो सकती है या फिर अप्रतीक्षित बाधाएँ आ खड़ी हो सकती हैं। चाहे कुछ भी आएँ, उन सभी को प्रेम के साथ खुशी से स्वीकार कीजिए।
अगर आप को दरअसल अपने विकास या उन्नति की इच्छा है तो समस्याओं का प्रेम से स्वागत करने का अभ्यास कर लीजिए।
परिस्थितियों को नाकामयाबी का कारण न बताएं
पता है, थके हारे लोग आम तौर पर अपनी नाकामयाबी के लिए क्या कारण बताते हैं?
‘इन दिनों मेरा वक्त ठीक नहीं है। अगर मैं आटा बेचने चलूँ तो जोर की हवा चलती है; नमक बेचने चलूँ तो भारी वर्षा होती है।’
आप चाहें या न चाहें, दुनिया आपके ऊपर समस्याएँ फेंककर, तमाशा देखने का मन बना चुकी है। फिर उनका सामना करने से क्यों हिचकते हैं?
समस्याएँ - अभिशाप नहीं वरदान हैं
मुश्किलें और समस्याएँ वास्तव में अभिशाप नहीं हैं, बल्कि आपको मिले वरदान हैं।
आप सिनेमाघर में बैठकर कोई फिल्म देख रहे हैं। एक के बाद एक सीन आपकी प्रतीक्षा और अनुमान के मुताबिक आ रहे हैं। तब आप क्या करेंगे? फिल्म को चाव से देखते रहेंगे या उठकर बाहर आ जाएँगे?
अप्रतीक्षित ढंग से आने वाले मोड़ ही जिंदगी को दिलचस्प बना सकते हैं। एक किसान भगवान से लडऩे चला गया।
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नन्हें पौधे भी मुश्किलों से लड़कर ऊँचे बढ़ते हैं
‘‘तुम्हें खेती के बारे में क्या मालूम है? जब मन में आता है, बारिश कराते हो। गलत समय पर हवाओं को भेजते हो। तुम्हारी वजह से हम बर्बाद हो गए हैं। ऐसे काम किसी किसान को सौंपकर निश्चित रह सकते हैं न?’’
भगवान ने फौरन मान लिया, ‘‘ऐसी बात? ठीक है, आइंदा प्रकाश, बारिश, हवा सब तुम्हारे नियंत्रण में रहेंगे।’’ ऐसा वरदान देकर वे वहाँ से निकल गए।
किसान की खुशी का कोई ठिकाना नहीं। अगला मौसम आया।
किसान ने आज्ञा दी, ‘वर्षा, बरसो’। पानी बरसा। जब रुकने के लिए कहा, बारिश रुक गई। उसने गीली माटी को जोत डाला। हवा को यथावश्यक गति पर चलवाकर खेत में बीजों को बिखेर दिया। वर्षा, धूप, हवा सभी ने उसका हुक्म माना। खेत में जहाँ देखो हरियाली, धान की बालियाँ लहलहा उठीं। खेत देखने में रमणीय लगा।
फसल काटने का समय आया तो किसान ने एक बाली को काटकर उसे खोल के देखा। अंदर दाना नदारद। अगली और फिर दूसरी यों एक के बाद एक बालियों को काट कर उन्हें खोलकर देखा। किसी में भी दाना नहीं मिला।
चुनौतियाँ ही पौधों की जड़ों को मज़बूत बनातीं हैं
‘‘अरे ओ भगवान!’’ उसने गुस्से में भरकर भगवान को बुलाया और पूछा, ‘‘मैंने वर्षा, धूप, हवा सभी का सही अनुपात में ही तो प्रयोग किया। फिर भी फसल बेकार हो गई, क्यों?’’
भगवान मुस्कराए। बोले, ‘‘प्रकृति के तत्व जब मेरे संचालन में रहे, हवा जोर से चलती थी। तब धान के छोटे-छोटे पौधे जिस तरह बच्चे माँ की छाती को कस कर पकड़ लेते हैं, वैसे ही धरती के अंदर अपनी जड़ों को कसकर पकड़ लेते। बारिश कम होने पर जड़ों को पानी की तलाश में चारों तरफ भेजते। संघर्ष की स्थिति में ही वनस्पतियाँ अपनी रक्षा करते हुए मजबूती से बढ़ती हैं। तुमने उनके लिए सब कुछ आसान कर दिया था, ऐसे में तुम्हारे पौधों पर सुस्ती छा गई। भले ही वे लहलहाकर समृद्ध हुए, लेकिन उन्हें स्वस्थ दानों को पैदा करना नहीं आया।’’
‘‘नहीं चाहिए मुझे तुम्हारी वर्षा और हवा! इन्हें तुम्हीं अपने पास रख लो।’’ यों कहकर किसान ने फिर से यह काम भगवान को सौंप दिया।
समस्याएँ ही क्षमता बढ़ाएँगी
हाँ... अगर जिंदगी हर तरह से सुविधापूर्ण बन जाए तो उस स्थिति के जैसा खालीपन और किसी में नहीं।
जब समस्याएँ आप पर दबाव ड़ालें तभी आपकी क्षमता बढ़ेगी। चुनौतियाँ ही मनुष्य को पूर्ण बनाती हैं।
अँधेरा नाम से एक समस्या थी, तभी तो आपने बिजली की बत्ती ईजाद की! यात्रा करने में समस्याएँ आईं तभी तो अपने तरह-तरह की सवारियाँ बनाईं! दूरस्थ लोगों से संपर्क करना दूभर हो गया तभी तो आपने टेलीफोन को रूप दिया!
कुछ विशेष होने की प्रतीक्षा न करें
अगर समस्याएँ ही न रहे तो आप अपने दिमाग की काबिलियत के बारे में क्या जानेंगे?
शंकरन पिल्लै अपना नया मकान बनाना चाहते थे। निर्माता ने तरह-तरह के खाके दिखाए।
‘‘ना, यह नहीं... यह भी नहीं। मेरे मन में जो रूपरेखा है वह दूसरी तरह की है।’’ शंकरन पिल्लै हरेक मॉडल को नकारते गए। निर्माता थक गए। पूछा, ‘‘आखिर आपके मन में क्या प्लान है, बताइए न?’’
शंकरन पिल्लै ने अपनी जेब से पीतल का एक पुराना हत्था निकालकर दिखाया और कहा, ‘‘आपने अभी तक मुझे कोई ऐसा प्लान नहीं दिखाया जिसमें यह हत्था किवाड़ पर लग जाए।’’
समस्याओं का सामना करने का साहस नहीं रहता लेकिन प्रतीक्षा करते हैं कि जीवन सारी सुविधाओं से संपन्न रहे। ऐसे लोग शंकरन पिल्लै की तरह हाथ में किवाड़ के हत्थे के साथ महल की कामना करते होते हैं।
प्रेम से चुनौतियों का सामना करें
सभी काम योजना के अनुसार क्यों संपन्न हों? उनमें से किसी चीज में कोई खोट आ जाए तो आने दो। उसका सामना करें, संघर्ष करके उसे ठीक करें। यही तो है न असली कामयाबी?
पहले से ही बेकार की चिंता मत करें कि परिणाम अनुकूल रहेगा या नहीं। पूरी लगन के साथ काम कीजिए।
आइंदा चुनौतियाँ आएँ तो उन्हें कभी न कोसें। प्रेम के साथ सामना कीजिए।