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चाहो सब कुछ चाहो

About the Book

चाहो! सबकुछचाहो ‘‘लोगमुझसेअक्सरपूछतेहैं,’’ ‘बुद्धनेकहाइच्छानकरो।लेकिनआपतोकहतेहैं-साराकुछपानेकीइच्छाकरो।यहविरोधाभासक्योंहै?’ जोअपनेजीवन-कालकेअंदरसमस्तमानवजातिकोज्ञानप्रदानकरनेकीइच्छाकरतेरह, क्याउन्होंनेलोगोंकोइच्छाकात्यागकरनेकोकहाहोगा? कभीनही।बड़ीसेबड़ीइच्छाएंपालिए।उन्हेंपानेकेलिएसौफीसदीलगनकेसाथकार्यकीजिए।ध्यानपूर्वकइच्छाकानिर्वाहकरेंगेतोवांछितमनोरथपासकतेहैं।’’ -सद्गुरुबेहदलोकप्रियसाप्तहिक ‘आनंदविकटन’ मेंएकवर्ष-पर्यतधारावाहिकरूपसेनिकलकर, फिरपुस्तकाकारप्रकाशितसद्गुरुकेवचनामृतअबआपकेहाथोंमेंहै - ‘चाहो! सबकुछचाहो’ येहैंजीवनकीबाधाओंकोजीतकर, वांछितमनोरथप्राप्तकरतेहुएसम्पूर्णजीवनजीनेकीराहबतानेवालेअनमोलवचन; जीवनमेंकायाकल्पलानेवालेअमोघवचन|

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