विशुद्धि चक्र – परा-विद्याओं का नीले आभामंडल वाला केंद्र
@तंत्र विद्याओं से जुड़े दो चक्र होते हैं – मूलाधार और विशुद्धि। विशुद्धि चक्र सक्रिय होने से आभामंडल नीला हो जाता है। जानते हैं इस चक्र की विशेषताओं के बारे में।
विशुद्धि का बुनियादी अर्थ होता है, छलनी यानी ‘फिल्टर’। विशुद्धि ऐसा आयाम है, जिसे हम आमतौर पर अनदेखा करके पार कर जाते हैं। दरअसल, अगर आपका विशुद्धि चक्र सक्रिय हो गया तो इसका एक आयाम यह भी है कि आप परा-विद्याओं(तंत्र विद्या) को अच्छे से जान जाते हैं।
अगर आप अनाहत को छोड़ दें तो स्वाभाविक रूप से आप विशुद्धि पर जाकर रुकेंगे। विशुद्धि परा-विद्याओं(तन्त्र से जुड़ी विद्या) का केंद्र है। परा-विद्याएं दो तरह की होती हैं। मूलाधार कोटि की परा-विद्या और विशुद्धि कोटि की परा-विद्या। आदियोगी विशुद्धि से जुड़ी परा-विद्या के महारती थे, इसीलिए उनका कंठ नीला हो गया था।
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भगवान शिव को विशुद्धि पर महारत हासिल थी
अगर आप जीसस की चर्चा करेंगे तो लोग उनके बारे में सबसे पहली चीज कहेंगे, ‘वह पानी पर चलते थे।’ इसी तरह से शिव ऐसी चीजें करने के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें आमतौर पर लोग असंभव या आम आदमी की क्षमताओं से परे की चीज मानते थे।
अगर कोई अपने आसपास की परिस्थितियों को रूपांतरित करवाना चाहता है, तो इसके लिए विशुद्धि पर एक खास तरह की महारत हासिल करना बहुत जरुरी है। लेकिन व्यक्ति अगर पूरी तरह से विशुद्धि पर केंद्रित है, तो फिर ऐसे व्यक्ति को सामाजिक ढांचे के बीच रख पाना थोड़ा मुश्किल है। आपने आदियोगी की कहानियां तो जरूर सुनी होंगी, जिसमें कभी वह पुरुष सौंदर्य का काफी तेजस्वी रूप नजर आते हैं, तो कभी किसी और वक्त में वह काफी अजीबोगरीब दिखाई देते हैं। जब लोगों ने उन्हें विशुद्धि की अवस्था में देखा तो उस समय वह श्मशान में थे, जहां वे जबरदस्त भयानक नजर आ रहे थे। उनके चारों तरफ उनके गण व हर तरह के विचित्र जीव थे। दरअसल, जैसे ही किसी का विशुद्धि सक्रिय होता है, वैसे ही उसके साथ एक चीज तो जरूर होगी, उसकी तरफ अशरीरी प्राणी व शक्तियां स्वाभाविक रूप से आने लगती हैं।
विशुद्धि और नीला आभामंडल
जब कोई व्यक्ति विशुद्धि पर अपनी सारी एकाग्रता(फोकस) स्थापित कर लेता है, तो वह अपने चारों तरफ चटकीले नीले रंग का आभामंडल तैयार कर लेता है। इसीलिए भारत में अतीत में हुए सभी सक्रिय व सक्षम लोग नीली आभा वाले हुए। राम का रंग नीला था, कृष्ण का वर्ण नीला था, शिव तो थे ही नीले रंग वाले, क्योंकि अगर आप सिद्ध और सक्रिय दोनों एक साथ होना चाहते हैं तो आपको नीले आभामंडल की जरूरत होगी। इसका मतलब है कि आपके विशुद्धि को सक्रिय होने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं होगा तो आप सामान्य क्षमताओं से परे जाकर काम नहीं कर पाएंगे। इसलिए वे सभी नीली देह वाले हैं, उनकी नील वर्ण के पीछे वजह यह नहीं थी कि उनकी त्वचा सांवली या नीली थी। जिन लोगों में आवश्यक चेतना थी, उन लोगों ने जब इन हस्तियों को देखा, तो उन्हें उनमें एक नीला आभामंडल दिखाई दिया। चूंकि देखने वालों ने उनके नीले आभामंडल को देखा, इसलिए उन लोगों ने उन्हें नीले शरीर वाला करार दिया और उसके बाद कलाकारों ने अपने चित्र में उन्हें सिर से पैर तक नीले रंग में पेश कर दिया।
भारत में नीलवर्णी लोगों के बारे में काफी साहित्य मिलता है, क्योंकि नीले रंग का मतलब भावनाओं की मिठास व विवेक के साथ काम करना है। अगर भावनाओं की मिठास बहुत ज्यादा होगी तो आप दुनियादारी में उलझना ही नहीं चाहेंगे, क्योंकि तब आप जैसे हैं, उसी में आनंद में रहते हैं। अगर आपकी बुद्धि और विवेक इस बिंदु पर पहुंच जाते हैं, जहां आपको हर चीज पूरी स्पष्टता से दिखाई देती है तो भी आप दुनिया में उलझना नहीं चाहते, क्योंकि आपको उलझने जैसा कुछ लगता ही नहीं। आखिर उलझने के लिए है क्या? इसलिए आप सबसे अलग हो जाते हैं।
अनाहत और आज्ञा के बीच का चक्र
देखिए अनाहत और आज्ञा के बीच में विशुद्धि होती है। अगर विशुद्धि चक्र सक्रिय होता है, तो आप नील वर्णी हो जाते हैं, तब आपमें भावनाओं की मिठास होगी, आपमें विवेक होगा, तब आप जिस तरह चाहे, इस दुनिया के साथ खेल सकते हैं और इसके बावजूद इन सबसे निर्लिप्त(दूर) रह सकते हैं। तब आप दूसरे तरह के प्रेम सबंधों में होते हैं, जहां आप किसी चीज या व्यक्ति से प्रेम नहीं करते। इसका मतलब यह हुआ कि आपकी भावनाएं पूरी तरह आपकी हैं, या कहें आपके काबू में हैं, आप जैसे चाहें इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसे में अगर आप थोड़ी-बहुत कड़वाहट से गुजर रहे होंगे, तो आपको पता होगा कि यह आप पर क्या असर डाल रही है। तो जाहिर है कि आप भावनाओं की मिठास को चुनेंगे। चूंकि आपके भीतर एक खास तरह की मिठास बनी रहती है, इसलिए कभी आप अच्छी बात बोलते हैं, तो कभी कोई अच्छा काम करते हैं।