प्रश्न :मैं अपनी क्रियाओं में एकाग्रित रहने के लिये संघर्ष कर रहा हूँ। इसमें थोड़ा सुधार हुआ है पर क्या आप मुझे बता सकते हैं कि मैं पूरी तरह से केंद्रित कैसे रहूँ और समाधि की गहरी अवस्थाओं का अनुभव कैसे करूँ? 

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सद्गुरु: एकाग्रचित्तता लाने का प्रयास मत कीजिये। किसी भी चीज़ में पूरी तरह से शामिल होने की कोशिश कीजिये। अगर आप किसी चीज़ में गहराई से शामिल हैं तो एकाग्रितता अपने आप आ जायेगी। जहाँ आप पूरी तरह शामिल ही नहीं हैं, वहाँ अगर आप केंद्रित होने की कोशिश करते हैं तो यह एक तरह से यातना होगी, एकाग्रितता नहीं आयेगी।

उदाहरण के लिये, अधिकतर बच्चों को उनकी पाठ्यपुस्तकें यातना लगती हैं। इसका ये कारण नहीं है कि उसमें जो लिखा है वह रोचक नहीं है। कई अद्भुत बातें छोटी सी पाठ्यपुस्तकों में भरी होती हैं पर उनका लिखे जाने का ढंग ऐसा होता है कि वे रुचिकर नहीं लगतीं। ये बस इसीलिये है कि वे उस ढंग से लिखी जातीं हैं। आप अगर बच्चों को किसी चीज़ में पूरी तरह से शामिल करा सकें तो आपको उनकी एकाग्रितता के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। वे एकाग्रित हो कर पूरे समय, पूरी तरह से उसमें लगे रहेंगे। यही बात आपके लिये भी सही है।

अगर आप किसी चीज़ से जुड़े बिना और उसमें पूरी तरह से शामिल हुए बिना उस पर केंद्रित होने की कोशिश करते हैं तो ये सिर्फ आपकी यातना को बढ़ायेगा। ये आपकी खुशहाली को नहीं बढ़ायेगा। जब आप किसी चीज़ पर एकाग्रित होना चाहते हैं, उस पर एकाग्रितता लाने की बजाय कुछ ऐसा होना चाहिये कि उसके और आपके जीवन के बीच प्यार का संबंध हो जाए। मैंने ये बात कई बार कही है पर शायद आप एकाग्रित नहीं थे, ध्यान नहीं दे रहे थे।
 
मान लीजिये, आपको पड़ोस की किसी लड़की से प्यार हो गया है। क्या मुझे आपको ये बताना पड़ेगा कि आप उस लड़की पर एकाग्रितता बनाये रखें? नहीं ना, क्योंकि वो पहले ही आपके मन पर राज कर रही होगी। तो आपको बस उस चीज़ के साथ प्यार में पड़ना होगा। शुरुआत में, जब आपके हारमोन्स उफान पर हैं, उस समय आपका प्यार का संबंध बस ऐसी ही चीज़ों से होगा। पर अगर आप बुद्धिमत्ता से काम करें तो आप देखेंगे कि आप जिस भी चीज़ को चाहें उस चीज़ के साथ प्यार में पड़ सकते हैं। और फिर, एकाग्रितता अपने आप आ जायेगी।