योगी और दिव्यदर्शी सद्‌गुरु के बताये हुए इन तीन तरीकों से प्रेरणा पाना और अपने रचनात्मक कार्यों को बढ़ाना उनके लिये आसान हो जायेगा जो रचनात्मक होना चाहते हैं।

#1. हर कहीं से प्रेरणा पायें

सद्‌गुरु:हर वो चीज़ जो मनुष्य ने बनायी है, पहले से मौजूद किसी चीज़ की नकल है या उसमें किया हुआ सुधार है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस तरह की मशीन बनाते हैं, सबसे बढ़िया यांत्रिक और इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम और सबसे जटिल रासायनिक कारखाना आपका शरीर है। या फिर, अगर आप रचनात्मकता को कला के रूप में देखें तो आप जो कुछ भी करते हैं वो बस प्रकृति की एक छोटी सी नकल है। वैसे देखा जाये तो कोई वास्तविक रचनात्मकता है ही नहीं। सृष्टि के रूप में रचना पहले ही हो चुकी है। आप सिर्फ इस रचना की नकल करते हैं। 

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तो अगर आपको समझ में नहीं आ रहा कि किसी भी क्षेत्र में रचनात्मक कैसे बनें तो आपको बस ये करना है कि गहरे से निरीक्षण करें। अगर अपने द्वारा की गयी और अपने आसपास हो रही हर छोटी चीज़ को बारीकी से देखने की आदत बना लें तो यह आप में एक बहुत बड़ी समझ, दूरदृष्टि ला देगा कि आप हर चीज़ के साथ क्या कर सकते हैं। 

रचनात्मकता का ये मतलब नहीं है कि आप किसी अद्भुत चीज़ का आविष्कार करें। कोई फर्श को किस तरह से साफ करता है, इसके बारे में भी रचनात्मक हो सकता है। अगर आप अपने आप में ये देखने लगें कि आप के अंदर अलग-अलग स्तरों पर क्या हो रहा है, तो आप काफी ज्यादा रचनात्मक हों जायेंगे। अगर आप अपने आसपास हो रही चीजों का लगातार निरीक्षण करते रहें तो आप पायेंगे कि हर चीज़ को एक ज्यादा बेहतर ढंग से करने का कोई तरीका, कहीं न कहीं, हमेशा होगा।

#2बिना विकृत किये हर चीज़ को देखना सीखें

सद्‌गुरु: अगर रचनात्मक काम होना है तो हमारे मन में किसी भी चीज़ को, उसके मूल रूप में, बिना उसे विकृत किये देखने का एक खास स्तर बनना चाहिये। अगर आप सारा समय जीवन का बोझ ले कर घूमते हैं तो आप किसी भी चीज़ को उस तरह नहीं देख सकते जैसी वो है। योग में, हम मन को हमेशा दर्पण कहते हैं। कोई दर्पण आपके लिये तभी उपयोगी हो सकता है, अगर वो सीधा और साफ है। अगर वो सीधा नहीं है या उस पर कुछ इकट्ठा हो गया है तो वो आप को चीजें वैसी नहीं दिखायेगा जैसी वो हैं। दर्पण का स्वभाव ऐसा होता है कि अगर आप उसके सामने खड़े हों तो वह आपको आपकी पूरी ख़ूबसूरती में दिखायेगा। और अगर आप वहाँ से हट जाते हैं तो वह आपको 100% छोड़ देगा। वो आपका एक कण भी अपने पास नहीं रखेगा। वहाँ खड़े होने वाले अगले इंसान को भी वह उसकी पूरी ख़ूबसूरती में दिखायेगा। चाहे लाखों लोग उस दर्पण में अपनी छवि देख लें, फिर भी वे उसमें अपने गुणों का एक कण भी नहीं छोड़ पायेंगे।

अगर आप अपने मन को इस तरह से रखें कि जीवन के साथ आपका संपर्क, आपके अनुभव आपके मन पर कुछ भी छाप न छोड़ें तो आप चीजों को वैसे ही देखेंगे जैसी वे हैं। फिर आप अपने जीवन के हर पहलू को सुधार सकते हैं, नया कर सकते हैं। अगर आप जीवन को सिर्फ लें, ग्रहण करें, मन या विचारों का एक गट्ठर बन जाने की जगह, अगर आप जीवन की बस एक छवि बनें तो आपके पास वही चीज़ होगी जिसे सामान्य रूप से रचनात्मकता कहा जाता है।

#3 हर चीज़ के साथ शामिल हों

Sसद्‌गुरु: क्या महत्वपूर्ण है और क्या महत्वपूर्ण नहीं है या आपको क्या पसंद है और क्या पसंद नहीं है, ऐसा अंतर अगर आप न करें तो आप हर चीज़ को वैसे ही देखेंगे जैसी वो है। पर, जिस पल आप तय कर लेते हैं कि क्या मेरा है और क्या मेरा नहीं है, क्या महत्वपूर्ण है और क्या महत्वपूर्ण नहीं है, तो आप उस चीज़ के साथ कैसे जुड़ेंगे जिसे आप अपना नहीं मानते? जहाँ जुड़ाव नहीं होता वहाँ कुछ भी सही ढंग से नहीं होता। आप जब हर चीज़ के साथ गहराई से जुड़ते हैं, शामिल होते हैं, तभी आप चीज़ों को एकदम साफ देख सकते हैं, जैसे कि वो देखी जानी चाहिये। जब आप चीजों को इस तरह से देखते हैं, तो रचनात्मक रूप से कुछ भी बनाना बहुत ही आसान हो जाता है, क्योंकि अब सवाल बस यही रह जाता है कि आपके हाथ में कौन सी सामग्री है और उससे क्या बनाया जाए।

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