पंचतत्व क्या हैं?
यहाँ सदगुरु हमें विस्तार से समझा रहे हैं कि पाँच तत्व या पंचतत्व क्या हैं, और साथ ही उन्हें शुद्ध करने और उन पर महारत हासिल करने की आसान प्रक्रियायें भी बता रहे हैं।
सदगुरु : मनुष्यों के व्यक्तिगत शरीर हों या हर तरफ फैला हुआ ब्रह्मांडीय शरीर, मूल रूप से ये पाँच तत्वों या पंचतत्व - मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश से ही बने हुए हैं।
#1 पाँच तत्व
#1.1 पानी
अब तो इस बात के काफी मात्रा में वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध हैं कि पानी में जबर्दस्त याददाश्त होती है। अगर आप पानी में देखते हुए कोई विचार बनायें तो पानी की आण्विक संरचना बदल जाती है। पानी को छूने से भी ये बदल जाती है। तो ये बहुत महत्वपूर्ण है कि आप पानी से किस तरह संपर्क बनाते हैं।
#1.2 मिट्टी
मिट्टी वो तत्व है जो बाकी के सभी तत्वों के विकसित होने का आधार है और ये हमारी भौतिकता का भी आधार है। हमारे आसपास के सभी भौतिक पदार्थों में मिट्टी का हिस्सा तो है ही। मिट्टी का अपने जीवन के आधार पर ही बोध करना और उसे समझना सबसे अच्छी बात है क्योंकि ज्यादातर लोग सिर्फ अपने शरीर और मन का ही अनुभव कर पाते हैं। अपने भीतर से, मिट्टी तत्व को जानना और अनुभव में लेना यौगिक प्रक्रिया का भाग है।
#1.3 वायु
यौगिक परंपराओं में हम हवा को वायु कहते हैं जिसका मतलब है कि ये सिर्फ नाइट्रोजन, ऑक्सिजन, कार्बन डाई ऑक्साइड और दूसरी गैसों का मिश्रण ही नहीं है बल्कि ये संचरण (एक से दूसरी जगह जाना या गति) का एक आयाम है। पाँच तत्वों में से वायु ही हमारी पहुँच में सबसे ज्यादा है। दूसरे तत्वों के मुकाबले, इस तत्व पर आसानी से महारत पाई जा सकती है। इसीलिये, वायु को आधार बनाकर ही बहुत सारी यौगिक प्रक्रियायें बनायी गयीं हैं।
#1.4 अग्नि
भारतीय संस्कृति में आग तत्व को अग्निदेव के रूप में दिखाया गया है, जो दो मुँह वाले देवता हैं और हर तरफ फैलने वाली, उग्र रूप धारण करने वाली सवारी पर घूमते हैं। ये दो मुँह प्रतीकात्मक हैं – वे अग्नि के जीवन देने वाले और जीवन लेने वाले दोनों ही रूपों को दर्शाते हैं। जब तक हमारे अंदर अग्नि न जल रही हो, तब तक कोई जीवन नहीं है, पर, अगर हम उसके बारे में सतर्क न रहें, तो अग्नि बहुत जल्दी बेकाबू हो कर हर चीज़ को खत्म कर सकती है।
#1.5 आकाश
आकाश को बस खाली स्थान समझ लेना सही नहीं है। आकाश ईथर है। वैसे ईथर कहना भी शत प्रतिशत सही नहीं है, पर ये सबसे नजदीकी अर्थ है। ईथर कोई खाली स्थान नहीं होता, ये अस्तित्व का एक सूक्ष्म आयाम है। खाली स्थान या रिक्तता यानि काल या अस्तित्वहीनता, जिसे शिव कहते हैं। शिव यानि "वह जो नहीं है"। लेकिन आकाश यानि "वह जो है"।
#2 हमें पाँच तत्वों या पंचतत्व का सहयोग क्यों चाहिये?
इन पाँच तत्वों के सहयोग के बिना आप चाहे जितना संघर्ष कर लें, कुछ नहीं होगा। सिर्फ उनके सहयोग से ही, एकदम मूल पहलुओं से लेकर सबसे ऊँचे पहलू तक, आपका जीवन एक संभावना बनता है। इन पाँच तत्वों या पंचतत्व पर हम पूरी तरह महारत पा सकें, इसके लिये योग में जो मूल साधना है, उसे भूत शुद्धि कहते हैं। दरवाजा वही है। आप दरवाजे की किस तरफ हैं, ये समय और स्थान के संदर्भ में आपके जीवन की हर बात को तय करता है। मनुष्य का तंत्र एक दरवाजे की तरह है। हर दरवाजे के दो पहलू होते हैं - अगर आपको हमेशा बंद दरवाजे मिलते हैं तो आपके लिये दरवाजे का मतलब वो चीज़ है जो आपको रोकती है। अगर आपको दरवाजे खुले मिलते हैं तो दरवाजा आपके लिये वह चीज़ है जहाँ से आपके लिये कहीं पहुँचने की संभावना बनती है। दोनों ही स्थितियों में, दरवाजा वही है।
आप दरवाजे की किस तरफ हैं, ये समय और स्थान के संबंध में आपके जीवन की हर बात को तय करता है। आप इस शरीर को एक बड़ी संभावना के रूप में देखते हैं या एक बड़ी बाधा के रूप में, ये इस बात पर निर्भर करता है कि ये पाँच तत्व आपको कितनी मात्रा में सहयोग दे रहे हैं। ईशा योग में हरेक साधना द्वारा किसी न किसी तरह से इन पाँच तत्वों को इस तरह संगठित किया जाता है कि आपको व्यक्तिगत जीव से और ब्रह्मांडीय प्रकृति से भी सबसे अच्छा नतीजा मिले क्योंकि ये दोनों इन पाँच तत्वों के ही खेल हैं।
आपका व्यक्तिगत भौतिक शरीर आपको अंतिम संभावना की ओर ले जाने के लिये पहला कदम बनता है या कोई बाधा बनता है - ये मूल रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि आप इन पाँच तत्वों को कैसे संभालते हैं? आप अभी जो कुछ भी हैं वो कुछ मिट्टी, पानी, वायु और गर्मी के कारण हैं। यही चीज़ें आपके बगीचे में भी हैं, पर, बस एक दिव्य स्पर्श की वजह से यही चार चीजें आपको मनुष्य बना देती हैं। अभी अगर आप इस बारे में जागरूक हो जायें कि पानी, मिट्टी, वायु और अग्नि आपके शरीर में काम कर रहे हैं तो अचानक ही आप अपना जीवन इतनी आसानी से जीने लगेंगे कि लोग आपको कोई सुपरमैन समझने लगेंगे। पर हम यहाँ आपके सुपरमैन होने या न होने की बात नहीं कर रहे।
आपको ये समझाने की बात है कि मनुष्य होना ही अपने आपमें एक बहुत बड़ी बात है। पर मनुष्य होना कोई बड़ी बात तब बनेगी जब आप अपनी मनुष्यता को और इस मानव तंत्र को एक संभावना की तरह इस्तेमाल करना सीखेंगे, न कि इसे किसी बाधा की तरह देखेंगे।
#3 मानव शरीर में पाँच तत्वों या पंचतत्व की संरचना क्या है?
अगर आप रहस्यमयी, गूढ़ आयामों को हासिल करना नहीं चाहते तो आपको इन पाँच तत्वों में से आकाश तत्व के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं है। बाकी के 4 में से, पानी आपके शरीर का 72% भाग है, मिट्टी 12% है, वायु 6% और अग्नि 4% है। वायु का प्रबंधन (मैनेजमेंट) करना सबसे आसान है क्योंकि आपके पास साँस है जिसे आप एक खास तरह से संभाल सकते हैं। अग्नि पर महारत पाने से आपको बहुत कुछ मिल सकेगा पर चूंकि आप गृहस्थ हैं तो आपको अग्नि पर महारत पाने की ज़रूरत नहीं है। बाकी का 6% आकाश है, जिसकी आपको तब तक चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, जब तक कि आप अस्तित्व के रहस्यमयी, गूढ़ आयामों को हासिल नहीं करना चाहते। अच्छी तरह से जीने के लिये बाकी के 4 तत्व पर्याप्त हैं। पाँचवा तत्व, आकाश, उनके लिये महत्वपूर्ण नहीं है जो बस अच्छी तरह जीना चाहते हैं।
#4 पंचभूत मंदिर
भारत वो भूमि है जहाँ प्रकृति के पाँच तत्वों के लिये पाँच मंदिर हैं जो भौगोलिक दृष्टि से भारत के दक्षिणी पठार में स्थित हैं - चार तमिलनाडु में और एक आंध्रप्रदेश में। ये मंदिर पूजापाठ के लिये नहीं बल्कि साधना के लिये बनाये गये थे। पाँचों तत्वों पर साधना करने के लिये लोग एक से दूसरे मंदिर जाते थे।
एक मंदिर में वे मिट्टी पर साधना करते थे और फिर पानी पर साधना करने के लिये दूसरे मंदिर जाते थे। इसी तरह अलग अलग मंदिरों में अलग अलग तत्वों की साधना होती थी। दुर्भाग्य से अब ये सब नहीं रहा है क्योंकि साधना का वातावरण अब खत्म हो गया है, ये समझ और ये महारत सामान्य रूप से अब नहीं रही है। पर, ये पाँचों मंदिर अभी भी हैं और इनमें से कुछ ने अपनी गुणवत्ता को और अपनी जीवंतता को कायम रखा है जब कि कुछ मंदिर अब इस मामले में कमज़ोर पड़ गये हैं।
Subscribe
#5 तत्वों के देवता
पाँच तत्वों के लिये प्राण प्रतिष्ठापन किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर, मान लीजिये, हम वायु के लिये देवता बनाना चाहते हैं। तो हम एक ऊर्जा आकर बनायेंगे, जिसे कोई भी मनुष्य समझ सके, जिसके साथ अपना संबंध जोड़ सके। यौगिक प्रणाली में हम सामान्य रूप से मानव आकृति नहीं बनाते। तो हम वायु के लिये सिर्फ एक लंब-गोलाकार (एल्लिप्सोइड) आकृति बनायेंगे क्योंकि हम जानते हैं कि ये एक ऐसा आकार है जो सबसे ज्यादा समय तक चलेगा और जिसके लिये ज्यादा रख रखाव की ज़रूरत नहीं है।
#6 आदियोगी ने पाँच तत्वों या पंचतत्व के रहस्य को समझाया
15000 से भी ज्यादा वर्षों से पहले आदियोगी पाँच तत्वों या पंचतत्व के बारे में बोले। उन्होंने अपने पहले 7 शिष्यों को बताया कि ये सारा ब्रह्मांड बस पाँच तत्वों का खेल है और ये भी कि ये किस अनुपात में हमारे शरीर में काम करते हैं, और अगर आप उन पर महारत पा लें तो कैसे एक तरह से आपको सृष्टि पर भी महारत मिल जाती है! अगर आपको सृष्टि पर थोड़ी सी भी महारत हासिल हो जाये तो सृष्टि के स्रोत तक आपकी एकदम सीधी पहुँच बन जाती है। जब इस विज्ञान को बड़े विस्तार से और अभिव्यक्ति के सभी रूपों में समझाया गया तो वहाँ बैठे शिष्यों के रूप में सप्तऋषि और साथ ही ये सब देख, सुन रही आदियोगी की पत्नी पार्वती बहुत ही आश्चर्यचकित हुए और विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे। उन्हें यकीन नहीं हुआ कि सारा अस्तित्व बस पाँच चीजों के मेल से बना है और उनमें से एक चीज़ कुछ भी नहीं है, यानि सिर्फ चार चीजों से ही!
#7 आदियोगी ने सृष्टिरचना के स्रोत तक पहुँचने के दो मार्ग बताये
आदियोगी ने सृष्टिरचना की बुद्धिमानी को स्पष्ट करते हुए बताया कि इन चार चीज़ों से आप वो बना सकते हैं जिसे हम आज ब्रह्मांड कहते हैं। वो हर चीज़ जो भौतिक है, उसमें ये चार तत्व हैं। ज्यादातर, आप पाँचवे तत्व, आकाश का अनुभव नहीं करते। अगर मैं आपको ये चार चीजें दूँ तो क्या आप इनसे सांभार भी बना पायेंगे? सांभार बनाने के लिये भी आपको 25 चीज़ें चाहियें!
अगर कोई बस चार चीजों से पूरा ब्रह्मांड बना सकता है तो ये बहुत ही आश्चर्यजनकप्रखर बुद्धिमानी है। इन तत्वों पर महारत पाने के लिये जरूरी विज्ञान और तकनीक का जब आदियोगी ने वर्णन किया तो वहाँ मौजूद वे सात शिष्य और पार्वती भी ये सब सुन रहे थे और आदियोगी द्वारा दिखाये जा रहे प्रयोगों को देख भी रहे थे। वे सभी मंत्रमुग्ध हो गये। फिर आदियोगी ने कहा या तो आप इन सब चीजों को पूरी तरह जान सकते हैं और उन पर महारत पा सकते हैं या इस बुद्धिमता के आगे पूर्ण समर्पण कर सकते हैं जिससे ये आपकी हो जायेगी"। वे सात पुरुष इस पर महारत पाने को उत्सुक थे लेकिन वहाँ जो स्त्री थी पार्वती उसने तय किया कि वो खुद को इसके आगे पूर्ण समर्पित करके उसका एक हिस्सा बन जाएंगी।
तो उन सातों को अलग अलग जगहों पर काम करने के लिये भेज दिया गया पर पार्वती को वहीं रखा गया क्योंकि उन्होंने पूर्ण समर्पण करके उस चीज़ को अपना ही एक हिस्सा बना लिया था। उन सातों को महर्षि कहा गया जब कि पार्वती देवी हो गयीं। हम यहाँ इस बारे में बात कर रहे हैं कि कोई अपने आपको किस तरह आगे बढ़ा सकता है! अगर आप किसी बात की बारीकियों में जायेंगे कि वो किस तरह अभिव्यक्त हुई है, तो आप लाखों सालों तक जीवित रहें और उनका अध्ययन करते रहें तो भी ये एक अंतहीन प्रक्रिया होगी। ये उत्साहित करने वाली ज़रूर है पर अंतहीन है। या फिर आप इस अंतहीन प्रक्रिया को एक तरफ रख दें और उस आयाम का स्पर्श करें जो इन सब का स्रोत है। अगर आप ये खेल खेलना चाहते हैं तो सृष्टिरचना के तत्वों के साथ घुलमिल जाईये उनसे जुड़ जाईये।
अगर आप ये खेल खेलना नहीं चाहते आप सिर्फ मुकाबले का परिणाम जीत के रूप में चाहते हैं - आपको खेल में रुचि नहीं है बस जीत कर आगे जाना चाहते हैं - तो आप सिर्फ उसे स्पर्श कीजिये जो सृष्टि का स्रोत है। आपको तत्वों के चक्कर में खो जाने की जरूरत नहीं है। आप खेल को खेलिये या फिर खेल आपके साथ खेलेगा पर अगर आप खेल नहीं खेलते तो खेल आपको खेल सकता है। परसारे खेल को अलग रखना और बस सृष्टि के स्रोत पर केंद्रित रहना सबसे आसान चीज़ लगती है। अगर आप खुद को कोई महत्व नहीं देते आपको खुद से कोई लगाव नहीं है अपने शरीर मन विचारों और अपनी भावनाओं और सभी चीजों से कोई लगाव नहीं है तो ये स्वाभाविक रूप से हो जायेगा वरना ये सबसे कठिन बात है। आप जब अपने जीवन के नायक हैं तो क्या अपने आपको अलग रख देना संभव है आप जब मुख्य भूमिका में हैं तो खुद को एक तरफ कर देना उसे कोई महत्व न देना आसानी से नहीं होता। पर यही सबसे आसान और महान तरीका हैनहीं तो आप एक बड़ा अंतहीन खेल खेलते ही रह जायेंगे। पर अगर आप खेल खेलना ही चाहते हैं तो उसे कुशलता से खेलें। एक बेकार खिलाड़ी को कोई पसंद नहीं करता।
#8 पाँच तत्वों या पंचतत्व पर महारत पाना क्यों महत्वपूर्ण है?
जब आप खेल खेलना ही चुन लेते हैं तो इन तत्वों पर कुछ महारत पाना अहम है, नहीं तो आप अपने जीवन में एक बेकार खिलाड़ी सिद्ध होंगे। अगर जीवन के किसी भी क्षेत्र में कोई सफल हुआ है, तो इसका मतलब है कि जाने अनजाने उसने तत्वों पर किसी न किसी ढंग से कुछ महारत पायी है, वरना किसी भी चीज़ में कोई सफलता नहीं मिल सकती। हो सकता है कि उसने कहीं और इस पर काम किया हो या अभी और यहीं इस पर काम कर रहा हो। किसी भी चीज़ पर कुछ महारत पाये बिना जीवन में कोई सफलता नहीं मिलती।
अगर आपने कोई गतिविधि करना तय कर लिया है तो मनुष्य के जीवन में सफलता ही सबसे ज्यादा अहम, सबसे मधुर बात है। कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें दार्शनिक कहा जाता है और जो इस तरह की फालतू बातें फैलाते हैं जब वे कहते हैं, "कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप जीतते हैं या हारते हैं - सब ठीक है"। पर जीवन में ऐसी फालतू बात नहीं होती। जब आप कोई खेल खेलते हैं तो जीतना चाहते हैं। खेल पूरा हो जाने के बाद, अगर आप हार जाते हैं तो ठीक है पर अगर खेल खेलने से पहले ही आप ऐसा सोचते हैं कि हारना ठीक है तो आपको पता ही नहीं है कि खेल क्या है? जब आप एक बार कोई खेल खेलना तय कर लेते हैं - चाहे वो बाज़ार हो या शादी या जीवन या आध्यात्मिक प्रक्रिया - तो आपको जीतना ही चाहिये। और, कई बार ये खेल दो दलों के बीच होता है। कभी-कभी आप भूल जाते हैं कि आप तभी जीत सकते हैं जब आपके साथी भी जीत रहे हों। अगर आप शादीशुदा हैं और ये सोचते हैं कि सिर्फ आपको ही खेल जीतना है तो आपका जीवनसाथी आपके जीवन को तकलीफों से भर देगा!
#9 भूत शुद्धि : पाँच तत्वों या पंचतत्व पर महारत पाने का यौगिक तरीका
भूत शुद्धि जागरूकतापूर्वक जीतने का तरीका है क्योंकि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उसमें अगर आपको महारत हासिल नहीं है तो आपकी जीत महज संयोगवश होगी। आपके विरोधी खिलाड़ी बेकार होंगे, तो शायद आप जीत जाएं। उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे जैसे भी हो, आप अपनी काबिलियत के सबसे बेहतरीन ढंग से, या उससे भी आगे जाकर खेलिये। हम जब भी हठयोग के लिये निर्देश देते हैं तो कहते हैं, "अपने आपको उतना खींचिये जितना आप खींच सकते हैं, और उससे भी थोड़ा ज्यादा"! ये 'थोड़ा ज्यादा' ही सबसे अहम पहलू है। उसी में जीवन है। जीतने और हारने में यही अंतर है - कोई वो 'थोड़ा ज्यादा' कर रहा है और कोई नहीं कर रहा।
1970 के दशक में केनी रॉबर्ट्स ने विश्व मोटरसाइकिल विजेता ट्रॉफी लगातार तीन बार जीती। ये कोई आसान चीज़ नहीं है क्योंकि इस दौड़ में दुनिया की सबसे बेहतरीन मशीनें इस्तेमाल होती हैं और उनके चालक इस धरती के बहुत ही ऊँचे दर्जे के होते हैं जिससे कई बार जीत सेकंड के सौंवे हिस्से से भी होती है! ये ट्रॉफी जीतने के लिये आपको उसके पहले, सीज़न में 12 - 15 प्रतियोगितायें जीतनी होती हैं। तो, ऐसा लगातार तीन बार करना लगभग असंभव है।
जब लोगों ने उससे पूछा, "आपने ये कैसे किया"? तो उसने कहा, "मैं नियंत्रण रखते हुए, नियंत्रण से बाहर चला जाता हूँ"! उसके पास नियंत्रण से बाहर जाने का साहस था पर बहुत ज्यादा बाहर नहीं जाने की बुद्धिमानी भी थी। आपमें कुछ करने की हिम्मत तभी होगी, जब आपमें कुछ काबिलियत होगी - वरना ये साहस एक बड़ी विपत्ति बन सकता है। जब आप इसे सफलतापूर्वक कर लेते हैं, तो लोग आपको साहसी कहेंगे पर अगर आप गिर जायें तो लोग आपको बेवकूफ ही कहेंगे। ये सीमारेखा बहुत ही पतली है और उस सीमारेखा तक जाने की, उसे पार करने की आपकी काबिलियत बेहतर से ज्यादा बेहतर होती चली जाती है, अगर आपको अपने अस्तित्व की मूल बातों पर महारत हासिल हो तो।
जो लोग इसके लिये कोई साधना करना नहीं चाहते, उनके लिये हम ध्यानलिंग मंदिर में पंचभूत क्रिया करवाते हैं जिससे कम से कम वे वहाँ होने का फायदा पा सकें। किसी कर्म-कांड (संस्कार) का यही महत्व है। संस्कार मूल रूप से उन लोगों के लिये है जो उस प्रक्रिया को खुद नहीं कर सकते। तो, ये एक सार्वजनिक साधना है। जब आप साधना करते हैं तो वहाँ सिर्फ आप होते हैं पर संस्कार वहाँ मौजूद सभी लोगों के फायदे के लिये होता है। निश्चित ही साधना की प्रकृति ज्यादा बड़ी है पर संस्कार ज्यादा लोगों के फायदे के लिये होता है।
#10 अगर आप पाँच तत्वों या पंचतत्व पर महारत हासिल कर लेते हैं तो क्या होगा?
जब पाँच तत्वों पर कुछ खास हद तक की महारत हासिल हो जाती है, तो अंदरूनी और बाहरी जैसी कोई चीज़ नहीं रह जाती क्योंकि ये तत्व आपकी सीमाओं की परवाह नहीं करते। इस बात को सबसे आसान ढंग से ऐसे कहा जा सकता है कि जब आप यहाँ बैठे हैं और साँस ले रहे हैं और वायु आपकी सीमाओं की परवाह नहीं करती। ये लगातार अंदर आती है और बाहर जाती है। ये सिर्फ वायु के साथ ही नहीं है, ऐसा हरेक चीज़ के साथ होता है। खाना, पीना और सारी चीज़ों का बाहर निकलना और अंदर आना लगातार होता ही रहता है। ऐसे कहा जा सकता है कि जब आप यहाँ बैठे हैं और साँस ले रहे हैं और वायु आपकी सीमाओं की परवाह नहीं करती। ये सिर्फ वायु के साथ ही नहीं है, ऐसा हरेक चीज़ के साथ होता है। आपके शरीर की सीमायें सिर्फ आपकी मानसिक सुविधा के लिये हैं। पाँच तत्वों को उनसे कुछ लेना देना नहीं है और बिना आपकी अनुमति लिये भी वे आपके अंदर और बाहर लेन देन करते रहते हैं। अगर तत्वों की प्रकृति का अनुभव करने तक आपकी थोड़ी भी पहुँच है, तो आप भी अपने शरीर की सीमाओं को छोड़ देंगे, या दूसरे शब्दों में, आपकी कोई निजता (प्राइवेसी) नहीं रहेगी क्योंकि हर चीज़ लगातार आपके अंदर बाहर होती रहेगी।
#11 पाँच तत्वों या पंचतत्व पर महारत कैसे पायें?
#11.1 नाग पद्धति
जिन्हें तत्वों पर महारत पानी है, वे खुद को तत्वों के सामने खुला छोड़ देते हैं। पुराने आध्यात्मिक पंथ जैसे नागा, जैन, गोरखनाथी आदि के साधक साधना के मूल स्तर पर अपने आपको तत्वों के सामने खुला छोड़ देते थे - क्योंकि वे सारा लेन देन बिना रोक टोक के होने देना चाहते थे। आजकल दुनिया में निर्वस्त्र (बिना कपड़ों के) घूमना संभव नहीं है पर भारत में कुछ पंथों में ये अभी भी होता है। आप उन्हें हज़ारों की संख्या में नग्नावस्था में चलते देखेंगे और वे सामाजिक नियमों की परवाह नहीं करते। पर आपके लिये ये संभव नहीं है। प्रश्न : तत्वों के सामने खुद को खुला छोड़ देना क्या इस ढंग से संभव है कि उनके बारे में ज्यादा जागरूक होने के लिये हम खुले स्थानों, जैसे खेतों, मैदानों में या समुद्र तट पर बैठें और क्षितिज को, आकाश को, समुद्र को देखते रहें या खाली स्थानों में कुछ समय गुज़ारें? सदगुरु : इससे मदद मिल सकती है पर लोग सामान्य रूप से खुले स्थानों पर खुद को ढँक कर, सुरक्षित रखते हैं क्योंकि अलग अलग जगहों पर लोगों को तापमान, हवाओं और मौसम में काफी फर्क मालूम पड़ता है। फिर भी, हाँ, ये एक संभावना है पर ज़रूरी नहीं कि ये हो ही। जब आप बाहर बैठते हैं तो इसका उपयोग कर सकते हैं।
#11.2 ढीले कपड़े पहनें
आप एक आसान सा काम कर सकते हैं। पहनने के लिये ढीले कपड़े लें। उनमें आपका फिगर शायद अच्छा न दिखे पर तत्वों के स्तर पर देखा जाए, तो आपका कोई आकार ही नहीं है। तत्वों लगातार लेन-देन करते रहते हैं। इसे करने के लिये, इसके प्रति जागरूक रहने के लिये ये अहम होगा कि आपके शरीर और कपड़ों के बीच थोड़ा खाली स्थान हो यानी एकदम चिपके हुए, तंग कपड़े न पहनें। ये एक काम तो आप कर ही सकते हैं।
#11.3 साँस की ओर ध्यान दें
अगर आप ध्यान दें तो देख सकेंगे कि इस साँस के अलावा भी आपके शरीर में लगातार बहुत सारे लेन देन चल रहे हैं। सभी तरह के लेन-देन पर पर्याप्त ध्यान देने से आप धीरे धीरे अपने भीतर तत्वों की प्रकृति और उनकी संरचना को समझ सकेंगे। तब, एक आयाम को बढ़ाना, या उपयुक्त क्रियाओं के द्वारा अपने तंत्र में आकाश तत्व को बढ़ाना संभव है। जब आपको बुद्धि से नहीं पर ध्यान देने से मालूम पड़ जाए कि लेन देन चल रहा है, तो हम इस लेन देन को इस तरह से बदल सकेंगे कि वो हमें फायदा दे।
#11.4 खाने और पानी पर ध्यान दें
पहला काम तो ये है कि आप अपने सबसे ज्यादा स्पष्ट लेन देन की ओर ध्यान दें, उन्हें संभालें। साँस लेना, खाना, पीना, शरीर का तापमान और बाहरी तापमान ये एकदम स्पष्ट हैं। इनकी ओर थोड़ा ज्यादा ध्यान दें।
मुझे इस बात से हमेशा हैरानी होती है कि लोग कैसे अपनी साँस को भी कभी जान नहीं पाते, जो सबसे ज्यादा स्पष्ट लेन देन है और वो भी शांति से नहीं होता। ये सारे शरीर को हिलाता है, गति में रखता है। अगर आपको साँस का ही पता न चलता हो तो उससे ज्यादा सूक्ष्म लेन देन को आप कैसे समझ पायेंगे? अगर आप अपने खाने, पीने, साँस लेने, और हर चीज़ को छूने की ओर ध्यान दें, तो आप देखेंगे कि आपका जीवन का अनुभव एक अलग ही स्तर पर पहुँच जायेगा।
ज्यादातर लोग ये आसान सी चीज़ नहीं करते। वे जो कुछ भी खाते या पीते हैं, बस निगल जाते हैं और बिल्कुल बिना जागरूकता के साँस लेते हैं। किसी भी चीज़ को छूते हुए वे जानते या महसूस ही नहीं करते कि वो क्या है! लोग सोचते हैं कि वे साँस के प्रति तभी जागरूक हो सकते हैं जब वे कुछ और न करें, सिर्फ साँस ले रहे हों। पर मनुष्य होने की सबसे सुंदर बात ये है कि हम अपने अंदर बहुत सी जटिल गतिविधियाँ करते हुए भी उनकी ओर ध्यान दे सकते हैं।
ये वैसा ही है जैसे गाड़ी चलाते समय भी आप दूसरे के साथ बातचीत कर सकते हैं। एक ही समय पर ध्यान देने के दो स्तर बने रह सकते हैं। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, वो करते हुए भी साँस पर ध्यान दे सकते हैं। आप जो खाना खा रहे हैं या जो पानी पी रहे हैं, उसकी ओर भी ध्यान दे सकते हैं। आप जो कुछ भी हैं, उसकी तत्वीय संरचना में ही अस्तित्व की रहस्यमय, गूढ़ प्रकृति के अंदर उतरकर, उसके परे के आयामों को जानने की संभावना गहराई में छुपी हुई है। इसमें बदलाव लाने से आपके साथ अद्भुत चीजें हो सकती हैं।
संपादकीय टिप्पणी : भूत शुद्धि क्रिया और ऑन लाईन पंचभूत क्रिया के बारे में ज्यादा जानिये।