प्रश्नः भावनाएं किसी काम की होने के बजाय एक परेशनी ज्यादा लगती हैं। क्या हम उनके बिना बेहतर नहीं होंगे? 

सदगुरु: अगर किसी इंसान में कोई भावना नहीं है, तो आप उसे मनुष्य नहीं कह सकते। भावना मानव जीवन का एक सुंदर पहलू है, उसके बिना एक इंसान भद्दा हो जाएगा। लेकिन जैसा किसी भी चीज के साथ है, अगर भावना बेलगाम हो जाती है, तो वो पागलपन बन जाती है। अगर आपके विचार बेकाबू हो जाते हैं, तो वो पागलपन बन जाते हैं। अगर आपकी भावनाएं बेकाबू हो जाती हैं, तो वो भी पागलपन बन जाती हैं। 

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भावना समस्या नहीं है

लोग भावना को समस्या की तरह इसलिए देखते हैं क्योंकि उनकी भावनाएं पीड़ादायक हैं। अगर उनके पास सुंदर भावनाएं होतीं, तो क्या वो उसे समस्या कहते? अगर आप अपने भीतर आनंद, प्रेम और करुणा से भरे हैं, अगर आपकी भावनाएं उस तरह से बह रही होतीं और व्यक्त हो रही होतीं, तो क्या आप उन्हें समस्या मानते? नहीं। 

अगर आपका शरीर बहुत अच्छी तरह और सुंदरता से काम कर रहा हो, तो क्या आप उसे एक समस्या मानेंगे? नहीं। अगर वह तकलीफ देता है या बीमार है, तब बैठना, खड़ा होना या सुबह के समय झुकना वाकई तकलीफदेह होगा - तो आपको लगेगा कि यह शरीर एक समस्या है। इसी तरह, हो सकता है कि आप कहें कि आपको भावनाएं नहीं चाहिए क्योंकि आपने उनको एक झमेला बना लिया है। अगर आपके अंदर आपकी भावनाएं वाकई सुंदर हों, जिन्होंने आपके जीवन को एक फूल की तरह बना दिया है, तो आप भावनाएं न रखने की नहीं सोचेंगे।

मैं आपसे भावनाओं को त्याग देने या उनसे परे जाने को नहीं कह रहा हूँ। मैं बस इतना कह रहा हूँ, चाहे वह आपका शरीर हो, आपका मन, आपकी भावना, या आपकी ऊर्जा हो - चार आयाम जो अभी आपके अनुभव में हो सकते हैं - पहली और सबसे महत्वपूर्ण चीज है उनको बहुत सुखद बनाना। एक बार जब वो बहुत सुखद हो जाते हैं, फिर वो कोई समस्या नहीं रह जाते। जब भावनाएं समस्या नहीं रहतीं - जब लोग किसी और चीज की आकांक्षा नहीं करते और बहुत आनंदमय होते हैं - सिर्फ तभी परे जाने की लालसा पैदा होती है। 



न यहां पर, और न ही वहां पर

वरना आप बस जीवन-संरक्षण की कोशिश करते रहते हैं। अगर आप भगवान को पुकारते भी हैं, तो वह भी सिर्फ जीवन-संरक्षण की पुकार होती है, है न? जब आप यहां ठीक से जीने में असफल रहते हैं, तब आप स्वर्ग जाने की सोचने लगते हैं। अगर आप यहां पर जीवन नहीं चला पाए, तो क्या गारंटी है कि आप वहां ठीक से रहेंगे। कर्नाटक के प्रसिद्ध ऋषि और महान कवि बासवअन्ना ने कहा था, ‘इल्ले सल्लाडवरु अल्लियू सल्लारैया,’ जिसका मतलब है, ‘जो यहां खुश नहीं रह पाया वह वहां भी खुश नहीं रहेगा।’ तो यह भावनाओं से परे जाने के बारे में नहीं है। आपको परे जाना चाहिए, लेकिन ‘परे’ का मतलब भावनाओं या मन या इससे या उससे परे जाना नहीं है। आपको उन सीमाओं से परे जाना चाहिए जो आपको अभी जकड़े हुए हैं। आपके लिए भावना और विचार भी मार्ग बनने का एक तरीका और एक साधन बन सकते हैं।

अगर आप अपनी सीमाओं से परे जाने के लिए अपने मन का उपयोग करते हैं तो हम उसे ज्ञान योग कहते हैं। अगर आप सीमाओं से परे जाने के लिए भावना का उपयोग करते हैं तो हम उसे भक्ति योग कहते हैं। अगर आप सीमाओं से परे जाने के लिए अपनी ऊर्जाओं का उपयोग करते हैं तो हम उसे क्रिया योग कहते हैं। उनमें से प्रत्येक एक द्वार है। कोई द्वार आपको या तो रोक सकता है या आपको आगे जाने दे सकता है। तो परे जाने के लिए अपनी भावनाओं को त्यागने और खारिज करने की जरूरत नहीं है। आप उन्हें त्याग नहीं सकते। अगर आप भावनाओं से खाली होने की कोशिश करते हैं, तो आपको भावनाओं को दबाना होगा, और आप शुष्क बन जाएंगे। आपको अपनी भावनाओं को एक बहुत गहन तरीके से स्वीकार करने की जरूरत है ताकि वह आपकी मित्र बन जाएं। मित्र वह होता है जो आपके लिए सुखद हो।