सद्‌गुरु : कोटेडीएलवायर में हो रहे सीओपी 15 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दुनिया के सभी देश इकट्ठा हुए हैं। दुनिया भर में हो रही मिट्टी की खराब होती क्वालिटी को ठीक करने के लिये सरकारों की नीतियों की कोशिशों को दुगुना करने का यह हमारे लिये एक महत्वपूर्ण अवसर है। इसका लाभ ले कर सही काम करते हुए हम सारी मानवता को मिट्टी खत्म होने के कगार पर से वापस ला सकते हैं।

बहुत बड़े स्तर पर मिट्टी बचाओ  के लिये, उसकी गुणवत्ता को सुधारने के लिये, हमें बहुत बड़ा और गहराई में जाकर काम करने वाला एक जन आंदोलन खड़ा करना होगा।

पर्यावरण संबंधी जिस भयानक समस्या का हम सामना कर रहे हैं, उसका रूप काफी जटिल है पर, फिर भी, एक सफल जन आंदोलन तभी खड़ा किया जा सकता है जब हम सुधार की कार्रवाई को एक सूत्रीय फोकस में लाकर उसे एकदम स्पष्ट और आसान तरीके से समझायें। पर्यावरण सुरक्षा की कोशिशों का इतिहास हमें बताता है कि बहुत कम कोशिशें पूरी तरह से सफल हुई हैं और, ज्यादातर, इसकी वजह यह रही है कि हम जटिल वैज्ञानिक तर्कों को, आसानी से समझ में आने वाले और सीधे-साधे ढंग से किये जाने वाले कामों में बदलने में असफल रहे। 1987 के मॉन्ट्रियल प्रोटोकल की अक्सर, अब तक के एक अकेले, सबसे ज्यादा सफल अंतरराष्ट्रीय समझौते के रूप में तारीफ की जाती है। ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि उसमें पूरा फोकस सिर्फ एक ही चीज़ करने पर था -ओज़ोन लेयर की कम होती मात्रा को रोकना!

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इसी तरह से, मिट्टी के अलग अलग प्रकार के हालातों में, कई तरह की खेती और जलवायु वाले क्षेत्रों में और बहुत सारी आर्थिक और सांस्कृतिक परंपराओं के संदर्भ में, जमीन की दुर्दशा को रोकने के लिये भी बहुत सारे वैज्ञानिक उपायों की कई बारीकियाँ हैं। यह सब बहुत जटिल है पर फिर भी ये संभव है कि हम एक सर्वसामान्य उद्देश्य तय कर लें - " यह पक्का करना कि खेती की मिट्टी में जैविक (ऑर्गेनिक) अंश कम से कम 3 से 6% हो"। ये हमारी मिट्टी को ज़िंदा, जीवंत रखेगा और सभी तरह की खेती की जमीनों पर काम कर सकेगा।

मिट्टी में कम से कम 3 से 6% जैविक अंश को सुनिश्चित करने का सर्वसामान्य उद्देश्य तीन आसान, व्यवहारिक रणनीतियों से हासिल किया जा सकता है।

1. हम किसानों को आकर्षक प्रोत्साहन (आर्थिक फायदे) देकर उन्हें अपनी खेती की जमीन में 3 से 6% जैविक अंश की कम से कम सीमा पाने के लिये प्रेरित कर सकते हैं।इन प्रोत्साहनों से किसानों में एक दूसरे से आगे जाने की भावना जागेगी और वे इस पर काम करेंगे। एक बात को ध्यान में लेना चाहिये कि यह काम कई सालों के समय में, कुछ चरणों में होना चाहिये। पहले चरण में समझाया जाये, प्रेरणा दी जाये। दूसरे चरण में उनको प्रोत्साहन मिले, और फिर तीसरे चरण में जैविक अंश बढ़ाने का काम हो जिसमें उन्हें कुछ उचित तकलीफें भी होंगीं। हमें किसानों के लिये कार्बन क्रेडिट प्रोत्साहनों की व्यवस्था करनी होगी।

2. कार्बन क्रेडिट लाभ पाने की अभी जो प्रक्रियायें हैं, वे बहुत ज्यादा जटिल हैं और उनको काफी ज्यादा आसान करना जरूरी है।

3. जिन जमीनों की मिट्टी में 3 से 6% तक का लक्ष्य हासिल हो गया हो, उनके लिये ऊंची क्वालिटी वाला अन्न उगाने के मापदंड, पैमाने तय करने होंगे। इसके साथ ही, ऐसा अन्न खाने से मिलने वाले बहुत से स्वास्थ्य संबंधी, पोषण संबंधी और रोग रोकने के फायदे अच्छी तरह से समझाने होंगे।

ऐसा करके, जैविक अंश बढ़ाकर लोग ज्यादा स्वस्थ, ज्यादा मज़बूत और ज़्यादा लचीले होंगे, जिससे प्रति व्यक्ति उत्पादक काम बढ़ेगा और हमारी मुख्य स्वास्थ्य प्रणाली पर पड़ने वाला दबाव घटेगा। अभी हमारे पास सिर्फ जैविक उत्पाद और गैर जैविक उत्पाद में अंतर बताने की प्रणाली हे है। उसकी तुलना में ऊंची क्वालिटी वाले अन्न का मानक लोगों को बताना ज्यादा अर्थपूर्ण, और आसानी से समझ में आने वाला होगा।

समय तेजी से बीत रहा है पर एक अच्छी बात यह है कि अब हम जानते हैं कि हमें करना क्या है! सही ढंग की सरकारी नीतियाँ बनाने से हम मिट्टी के होने वाले नाश को रोक सकते हैं और मिट्टी की दशा को सुधार सकते हैं। सारी दुनिया में उचित सरकारी नीतियों को जल्दी बनाने के काम को करने के लिये हमारा 'मिट्टी बचाओ' अभियान एक पुस्तिका तैयार कर रहा है जिसमें 193 देशों में से हरेक के लिये उचित सिफारिशें होंगीं। इसका और ज्यादा विवरण/जानकारी, इस अभियान की वेबसाइट savesoil.org/hi  पर मिल सकता है।

आइए इसे संभव बनाएं!