नवंबर 2012 में, लगभग 200 उद्यमी और व्यापार संघ के सदस्य, जो अपने कारोबार को और अपनी व्यक्तिगत काबिलियत को बढ़ाना चाहते थे, एक बहुत ही खास बिज़नेस लीडरशिप कार्यक्रम 'इनसाईट -सफलता का डीएनए' में शामिल हुए। सद्‌गुरु द्वारा तैयार किये गये इस कार्यक्रम को दुनिया के मशहूर सीईओ प्रशिक्षक डॉ. रामचरण ने अच्छी तरह से आयोजित किया और पैनल सदस्यों में के. वी. कामथ और जी. एम. राव भी थे।

इस कार्यक्रम का दूसरा संस्करण ईशा योग सेंटर में 23 से 26 नवंबर तक होगा। इस कार्यक्रम की तैयारी में हम आपको 'खुशहाली का कारोबार' श्रेणी के वीडियो दिखाते आ रहे हैं। 2012 की पैनल चर्चा में सद्‌गुरु और डॉ. रामचरण का इंटरव्यू फ़ोर्ब्स इंडिया पत्रिका के भूतपूर्व संपादक इंद्रजीत गुप्ता ने लिया था। इस वीडियो में वे रचनात्मकता और आध्यात्मिकता के बारे में बात कर रहे हैं।

इंद्रजीत गुप्ता: रचनात्मक और उन्नतिशील होने के लिये क्या वास्तव में आध्यात्मिकता ज़रूरी है? क्योंकि जब भी आध्यात्मिकता की बात आती है, तो मैं देखता हूँ कि बहुत सारे लोग ऐसे हैं, और इस कमरे में भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो इसको धार्मिकता से जोड़ कर देखते हैं। कम से कम उनके लिये, आध्यात्मिकता धार्मिक जुड़ाव लिये हुए है।

सद्‌गुरु: मुझे आध्यात्मिकता को परिभाषित करने दीजिये क्योंकि दुनिया में ये सबसे ज्यादा भ्रष्ट किया गया शब्द है। लोगों ने इसका कई अलग-अलग तरीकों से उपयोग और दुरुपयोग किया है। हमारे कुछ सूत्रों में से एक ये भी था, "ईशा - जियें, और पूरी तरह से जियें" (लिव, एंड लिव टोटली)! जब मैं कहता हूँ, "जियें, और पूरी तरह से जियें" तो कुछ लोगों को ये लगता है कि उन्हें सप्ताह के सातों दिन जम कर पार्टी करनी चाहिये, मौज उड़ानी चाहिये! पर, मैं पार्टी करने के बारे में बात नहीं कर रहा। आप पार्टी इसलिये करते हैं क्योंकि आप सिर्फ शाम को ही जीवित होते हैं। आप बस तभी जीवित होते हैं जब आप अपने अंदर कुछ डालते हैं।

नहीं, मैं जो बात कर रहा हूँ वो ये है - जीवन आपके कामकाज में नहीं है, आपके आसपास के संसार में भी नहीं है। जीवन तो बस यहाँ है, यही जीवन है, है कि नहीं? हम नहीं जानते कि आप दुनिया के सबसे अमीर आदमी बनेंगे या नहीं, या आप सारे ब्रह्मांड का पता लगायेंगे या नहीं पर मरने से पहले, आपको कम से कम, इस जीवन के टुकड़े को इसकी पूर्णता में जान लेना चाहिये। अपने सारे जीवन में मैंने यही किया है।

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मनुष्य होने की विशालता पूरी तरह से बस इसलिये खो गयी है क्योंकि हर कोई कुछ करने के बारे में सोचता रहता है, और उसी में व्यस्त है।

अपने जीवन में, मैंने जो एक ही साधना की, वो थी अशिक्षित रहने की। मैं ये बात शिक्षा के लिये किसी असम्मान के भाव से नहीं कह रहा हूँ। अशिक्षित रहना आसान नहीं है क्योंकि जिस पल आप पैदा होते हैं तभी से आपके माता पिता, आसपास के सभी बड़े लोग, शिक्षक और दुनिया का हर व्यक्ति हमेशा आपको कुछ न कुछ ऐसा सिखाने की कोशिश करते रहते हैं, जो उनके अपने जीवन में कभी किसी काम नहीं आया है। अगर आप देखें कि वे 5 साल की उम्र में कैसे थे और अब, 35 या 40 में कैसे हैं - वे बिल्कुल आनंदहीन, लंबा सा चेहरा बनाये, तनाव से भरे हुए हैं। स्पष्ट है कि उनके लिये कोई चीज़ काम नहीं आयी है। जो उनके लिये काम में नहीं आयी है, वे उसी को सब को सिखाने की कोशिश कर रहे हैं।

तो अनपढ़, अशिक्षित रहने के लिये अपने माता पिता से, परिवार, संस्कृति, धर्म, समाज, शिक्षक, इन सभी से प्रभावित न होना, बिल्कुल अनपढ़ रहना, जैसा सृष्टिकर्ता आपको रखना चाहते थे, अगर आप ऐसे रहते हैं तो आप स्वाभाविक ही जीवन को उसकी पूर्णता में जान लेंगे।

अगर आपका कामकाज या जो कुछ भी आप कर रहे हैं, वो आपके लिये महत्वपूर्ण है तो आप स्वयं जो कुछ भी हैं, उस पर काम करना ज़रूरी है।

अगर आप किसी उपकरण का उपयोग करना चाहते हैं तो आप जितना ज्यादा उसके बारे में जानेंगे, उतना ही उसका बेहतर उपयोग कर सकेंगे, है कि नहीं? यही आध्यात्मिकता है। आप तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक आप इस जीवन के टुकड़े को इसकी पूर्णता में नहीं जान लेते। अगर आप इसे पूरी तरह से जान जाते हैं तो आप जो करना चाहते हैं, वो करेंगे। और आप जब वो करते हैं जो आप करना चाहते हैं तब लोगों को ये चमत्कारिक लगता है।.

मनुष्य होने की विशालता पूरी तरह से बस इसलिये खो गयी है क्योंकि हर कोई कुछ करने के बारे में सोचता रहता है, और उसी में व्यस्त है। देखिये, अगर आप चाहते हैं कि आम का कोई पेड़ आपको फल दे तो आपको कोई 'आम का ध्यान' करने की ज़रूरत नहीं है। या अगर आप बैठ कर आमों के बारे में सोचें, उनके सपने देखें, तो वे आपके पास नहीं आ जायेंगे। आपको बस उस पेड़ के लिये अच्छी मिट्टी, खाद, पानी, सूरज की रोशनी जैसी साधारण चीजों की व्यवस्था करनी है, जो हर कोई जानता है पर करता कुछ नहीं।

हम योग में कहते हैं, "अगर आपकी एक आँख मंज़िल पर टिकी है तो रास्ता ढूंढने के लिये आपके पास बस एक ही आँख है"। और, ये एक अकुशल तरीका है। अगर आपकी दोनों आँखें रास्ता ढूंढने में लगें तो आप कुशलता से रास्ता पा लेंगे। आप कितनी दूर जाते हैं ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन हैं? तो अगर आपका कामकाज या जो कुछ भी आप कर रहे हैं, वो आपके लिये महत्वपूर्ण है, तो आप स्वयं जो कुछ भी हैं उस पर काम करना ज़रूरी है। पर, आप सिर्फ बाहरी चीज़ों पर काम कर रहे हैं। आप, लगातार, अपने काम-धंधे पर, अपने कारोबार पर काम कर रहे हैं, पर, अपने आप पर कभी नहीं। आप कौन हैं, इस पर काम करना ज़रूरी है - सिर्फ आपका ज्ञान नहीं, आपकी योग्यता नहीं, जानकारियाँ या चालाकियाँ नहीं। आप जो हैं, उसकी योग्यता बढ़ाये बिना आप ऊपर नहीं उठ सकते। आप मारुति 800 से 'फॉर्मूला वन' रेस नहीं दौड़ सकते। आपको सही प्रकार की मशीन चाहिये।

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