सद्‌गुरुभारत तकनीक और उद्यम के कुछ क्षेत्रों में बड़ी छलांग भर रहा है, मगर घटते जल संसाधन और मिट्टी के रूप में एक बड़ी आपदा हमारे ऊपर मंडरा रही है। आखिर क्या है उपाय?

आज देश ने बहुत सी वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल की हैं और बड़े-बड़े उद्यम स्थापित हुए हैं। लेकिन इन उपलब्धियों में से एक यह भी है कि हमारे किसान बिना किसी तकनीक या इन्फ्रास्ट्रक्चर के अब भी सवा अरब से भी अधिक लोगों का पेट भरने में सक्षम हैं।
पेड़ और पशु की कमी से रेगिस्तान बन रही है हमारी ज़मीन-4
बदकिस्मती से जो किसान हमारे लिए भोजन पैदा करता है, उसके अपने बच्चे भी हैं जो भूख से मर रहे हैं और वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है। इसे देखकर मेरा सिर शर्म से झुक जाता है। इसकी कई वजहें हैं मगर सबसे बड़ी समस्याओं में एक है, जल संसाधनों और मिट्टी का नुकसान। हम देश की पूरी आबादी का भरण-पोषण इसलिए कर पा रहे थे क्योंकि हमारी मिट्टी बहुत उपजाऊ थी। हम साल के बारह महीने जो चाहते थे, वह उगा सकते थे। मगर अब यह मिट्टी तेजी से खत्म होती जा रही है।
पेड़ और पशु की कमी से रेगिस्तान बन रही है हमारी ज़मीन-3

देश रेगिस्तान बन रहा है

आप कोई भी फसल उगाते हैं, मान लीजिए दस टन गन्ना, तो मुख्य रूप से आपने दस टन मिट्टी खत्म कर दी है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.
पिछले कुछ दशकों में हमने इसकी भारी उपेक्षा की है और इसलिए देश का 25 फीसदी हिस्सा मरुस्थल बनने की ओर बढ़ रहा है।
उसकी किसी न किसी रूप में भरपाई करनी होगी। मगर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है क्योंकि मिट्टी की वापसी वापस सिर्फ हरे पेड़-पौधों और पशुओं के गोबर से हो सकती है। लेकिन हमारे पेड़ कट चुके हैं।  हम अपने पशुओं को मार रहे हैं और दूसरे देशों को निर्यात कर रहे हैं। पशुओं और पेड़ों के बिना आप मिट्टी की गुणवत्ता को बरकरार नहीं रख सकते। पिछले कुछ दशकों में हमने इसकी भारी उपेक्षा की है और इसलिए देश का 25 फीसदी हिस्सा मरुस्थल बनने की ओर बढ़ रहा है।

दूसरा पहलू यह है कि हमारी नदियां इस हद से घट रही हैं कि लाखों सालों से जल का बारहमासी स्रोत रही नदियां एक ही पीढ़ी में मौसमी बन रही हैं। कावेरी पहले ही साल के लगभग तीन महीने समुद्र तक नहीं पहुंचती और इस घटती हुई नदी को लेकर दो राज्य आपस में लड़ रहे हैं। कृष्णा लगभग चार से पांच महीने समुद्र तक नहीं पहुंचती। ऐसा देश में हर जगह हो रहा है। हम बाकी सभी अनिश्चतताओं को झेल सकते हैं,  लेकिन अगर हमारे पास पानी और अपनी आबादी के लिए भोजन उगाने की क्षमता नहीं बची तो एक भारी  विपत्ति हमारे सामने होगी।

पेड़ और पशुओं के गोबर से समाधान संभव होगा

इसका सबसे आसान हल यह है कि हर नदी के दोनों किनारों पर कम से कम एक किलोमीटर तक हम पेड़ लगाएं।  

नदी के तट पर खेती करने वाले सभी किसानों को नियमित फसलों से बागवानी और पेड़ों पर आधारित खेती की ओर जाने के लिए पांच साल की सब्सिडी मिलनी चाहिए। 
 इससे यह पक्का हो जाएगा कि बारिश होने पर मिट्टी नमी को थाम कर रखेगी और धीरे-धीरे साल भर नदियों को पानी देती रहेगी। लोग सोचते हैं कि पानी के कारण पेड़ होते हैं। नहीं, पेड़ों के कारण पानी होता है। इसलिए जहां सरकारी जमीन है, वहां जंगल उगाए जाएं। अपना पेट भरने के लिए संघर्ष करने वाले गरीब किसान से धरती बचाने की बात करना ठीक नहीं है। इसलिए हमारे पास एक आर्थिक योजना है जिसका पर्यावरण पर भी काफी असर पड़ेगा और इसे संगठित रूप में करने पर किसान की आमदनी पांच-छह सालों में दोगुनी से अधिक हो जाएगी। नदी के तट पर खेती करने वाले सभी किसानों को नियमित फसलों से बागवानी और पेड़ों पर आधारित खेती की ओर जाने के लिए पांच साल की सब्सिडी मिलनी चाहिए। अगर हम पेड़ उगाएंगे और पशु तथा पशुओं का गोबर उपलब्ध होगा तो मिट्टी और नदियों को फिर से जीवित किया जा सकेगा।
पेड़ और पशु की कमी से रेगिस्तान बन रही है हमारी ज़मीन-1

नदी अभियान के समापन पर नीति की सिफारिश पेश करेंगे

इसे संभव बनाने के लिए हम सरकार के लिए एक नीति सिफारिश तैयार कर रहे हैं। साथ ही हम 3 सितंबर से 2 अक्टूबर तक नदी अभियान आयोजित कर रहे हैं जिसमें मैं खुद कन्याकुमारी से हिमालय तक गाड़ी चलाऊंगा ताकि देश में यह जागरूकता फैलाई जा सके कि हमारी नदियां मर रही हैं। मैं गाड़ी चलाते हुए 16 राज्यों से गुजरूंगा, जहां बड़े समारोह आयोजित किए जाएंगे। कई मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों ने इसमें शामिल होने की सहमति दी है। दिल्ली में हम सरकार को नीति की सिफारिश पेश करेंगे।
old-bridge-1251047_1920

मैं आप सभी से विनती करता हूं कि आप किसी भी रूप में इसमें भागीदारी करें। आप सभी से मेरा मतलब है, जो भी इंसान पानी पीता है। हमारी नदियां बहती रहें, यह धरती उपजाऊ और खुशहाल बनी रहे, यही भावी पीढ़ियों को हमारा सबसे अच्छा उपहार होगा।