सहवाग: नमस्कारम सद्‌गुरु। मैं हमारी भारतीय जाति व्यवस्था की सच्चाई जानना चाहता हूं। हम अधिक समावेश और बराबरी कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?

सद्‌गुरु : नमस्कारम वीरू। आपने जाति व्यवस्था के बारे में जो प्रश्न पूछा, पहले हमें समझना चाहिए कि यह व्यवस्था शुरू कैसे हुई। यह व्यवस्था दरअसल श्रम(कामों) के बंटवारे से शुरू हुई। दुर्भाग्यवश, समय के साथ ये बंटवारे भेदभाव से भर गए और लोग एक-दूसरे के खिलाफ हो गए। एक समाज के काम करने के लिए, यह जरूरी है कि आबादी में एक खास तादाद में लोग अलग-अलग कौशल और कारीगरी करें, कोई प्रशासन का ध्यान रखे, कोई समाज के लिए शिक्षा और आध्यात्मिक प्रक्रिया को देखे। इस तरह उन्होंने चार मूलभूत विभाजन किए।

प्राचीन काल में लोग घर पर ही काम सीखते थे

हमें यह भी समझना चाहिए कि प्राचीन समय में कोई इंजीनियरिंग स्कूल और मेडिकल स्कूल नहीं थे। अगर आपके पिता बढ़ई थे, तो आप बचपन से घर पर बढ़ईगिरी सीखते थे और एक अच्छे बढ़ई बनते थे। इस जाति व्यवस्था को कायम रखते हुए कौशल को पीढ़ी दर पीढ़ी संप्रेषित किया(आगे पहुंचाया) जाता था।

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मगर दुर्भाग्यवश, बीच में कहीं किसी सुनार ने खुद को लोहार से अधिक श्रेष्ठ समझना शुरू कर दिया।

मगर दुर्भाग्यवश, बीच में कहीं किसी सुनार ने खुद को लोहार से अधिक श्रेष्ठ समझना शुरू कर दिया। हालांकि समाज के लिए एक लोहार का काम सुनार से कहीं ज्यादा उपयोगी हो सकता है, मगर किसी न किसी तरह एक खुद को दूसरे से श्रेष्ठ समझने लगा और पीढ़ियों के साथ यह श्रेष्ठता स्थापित हो गई। इस श्रेष्ठता को स्थापित करने की कोशिश में हर तरह की शोषणकारी प्रक्रियाएं शुरू हुईं और वह ऐसी जगह पहुंच गईं जहां जाति व्यवस्था लगभग रंग-भेद की तरह अभिव्यक्त(प्रकट) होना शुरू हो गई।

पिछले कुछ सौ सालों में लोगों के साथ भयंकर चीज़ें की गई हैं। भारत के कई गावों में, निचली जाती के कहे जाने वाले लोगों – जिन्हें आप दलित कहते हैं – के पास बुनियादी मानव अधिकार भी नहीं हैं। हालांकि, पिछले पच्चीस सालों में बहुत कुछ बदल गया है, फिर भी कई ऐसी चीज़ें होती रहती हैं, जिसकी कोई कभी इच्छा नहीं कर सकता।

जाति व्यवस्था मुसीबत के समय में सामाजिक सुरक्षा देती है

इसका उपाय क्या है? एक चीज यह है, आज कौशल को कई रूपों में संचारित किया(आगे पहुंचाया) जा सकता है। हमारे पास शैक्षिक और तकनीकी संस्थान हैं। काफी हद तक अब कौशल का हस्तांतरण परिवार के जरिये नहीं होता। उस मामले में जाति व्यवस्था अब प्रासंगिक(अर्थपूर्ण) नहीं है।

लोग अब भी जाति व्यवस्था से इसलिए जुड़े हैं, क्योंकि ये सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है।

मगर जाति व्यवस्था अब भी सामाजिक सुरक्षा की तरह काम कर रही है। लोग अपने वर्ग और जाति का ध्यान रखते हैं। वे हमेशा अपनी जाति के लोगों की मुसीबत में मदद करते हैं। जब तक कि हम इस देश के हर नागरिक के लिए एक राष्ट्रव्यापी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली नहीं लाते, तब तक जाति व्यवस्था कुछ हद तक जारी रहेगी।

सिर्फ जाति व्यवस्था को खत्म करने के प्रयास और उसके खिलाफ काम करने का कोई नतीजा नहीं निकलेगा। लोग अब भी जाति व्यवस्था से इसलिए जुड़े हैं, क्योंकि ये सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम एक राष्ट्रव्यापी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली और ऐसी शिक्षा व्यवस्था लाएं जो हर किसी की क्षमता के मुताबिक उन्हें कौशल प्रदान करे। ऐसा होने पर जाति व्यवस्था का महत्व पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। ऐसा होने के बाद मेरे ख्याल से जाति व्यवस्था अपने आप खत्म हो जाएगी।

संपादक का नोट : चाहे आप एक विवादास्पद प्रश्न से जूझ रहे हों, एक गलत माने जाने वाले विषय के बारे में परेशान महसूस कर रहे हों, या आपके भीतर ऐसा प्रश्न हो जिसका कोई भी जवाब देने को तैयार न हो, उस प्रश्न को पूछने का यही मौक़ा है! - unplugwithsadhguru.org