प्रश्न: मैं हर अवसर का, मेरे रास्ते में आने वाली तकलीफों का उपयोग अपने विकास के लिये कैसे करूँ?

सद्‌गुरु: हर चीज़ का, हर व्यक्ति का अपने विकास के लिये किस तरह उपयोग करें? सबसे पहले आप अपने आपको कृतज्ञता के भाव में आगे बढ़ाईये, भलाई करने में नहीं। मैं नहीं चाहता कि आप भला करने वाले बनें। मैं चाहता हूँ कि आप कृतज्ञता के भाव से पूरी तरह भरे हों। भलाई करने वाले लोग थोड़े समय के बाद बेपरवाह हो जाते हैं। गौतम बुद्ध ने एक सूत्र दिया था जब उन्होंने कहा, "यह समझ पाना बहुत कठिन है कि अपना भोजन किसी और को दे देने से आप ज्यादा मजबूत बनते हैं, कमज़ोर नहीं"। अपना भोजन दे कर क्या आप ज्यादा मजबूत हो जाते हैं? जो चीज़ आपके पास ज्यादा मात्रा है, उसको दे देने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वो चीज देना जो आपके स्वयं के लिये बहुत ज़रूरी है, भोजन, जो आपको जीवित रखता है, उसे ही दे देना - आपको दिव्यता के नज़दीक ले जाता है।

वो चीज देना जो आपके स्वयं के लिये बहुत ज़रूरी है, भोजन, जो आपको जीवित रखता है, उसे ही दे देना - आपको दिव्यता के नज़दीक ले जाता है।

एक संन्यासी अधिकतर समय भूखा ही होता है। वो दिन में सिर्फ एक बार भोजन के लिये भिक्षा माँगता है और खा लेता है। आज किसी को जो कुछ मिला है, उसमें से वो थोड़ा दे सकता है। किसी और दिन, हो सकता है कि उसे और भी कम मिले। जो कुछ भी मिले, नियम यही था कि वो एक दिन में सिर्फ एक ही घर से भिक्षा माँगेगा और किसी दिन ये भी हो सकता है कि उसे कुछ भी न मिले। थोड़े समय के बाद इस 'एक ही घर से' वाले नियम में थोड़ी छूट दे कर इसे 'तीन घरों से' का नियम बना दिया गया क्योंकि लोग भिक्षा देने में काफी सतर्क हो गये थे। तो संन्यासी हर समय भूखे ही रहते थे और गौतम कह रहे हैं कि अगर आप अपना भोजन दे देते हैं तो आप ज्यादा मजबूत बनते हैं, कमज़ोर नहीं। ये समझना मुश्किल है, पर यह सच है।

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ऑशविट्ज़ की एक कहानी

एक अद्भुत सच्ची घटना है जो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बदनाम जर्मन यातना शिविर 'ऑशविट्ज़' में घटी। लोगों को नंबर से बुलाया जा रहा था और उन्हें मारने वाले इलाके में ले जाया जा रहा था। कोई भी नंबर कभी भी बुलाया जा रहा था, और बूढ़े और कमज़ोर लोग जो काम नहीं कर सकते थे, उन्हें चुना जा रहा था। जिसका नंबर बुलाया जा रहा था, उसकी मौत तय थी। 

एक आदमी का नंबर बुलाया गया और वो बहुत ही डर गया। वो मरना नहीं चाहता था। उसके पास ही एक क्रिश्चियन मिशनरी खड़ा था, जिसका नंबर नहीं बुलाया गया था। उस आदमी का डर देख कर वो बोला, "डरो मत। तुम्हारी जगह मैं जाऊँगा"। उस आदमी को बहुत शर्म आयी पर उसने उनकी बात को नहीं ठुकराया। वो ज़िंदा रहना चाहता था। मिशनरी मारा गया।

बाद में जर्मनी की हार हुई और यह आदमी छूट कर बाहर आ गया। कई सालों तक वो हार और शर्म के भाव में जीता रहा और उसने ये बात अपनी जीवन कथा में कही। उसे ये समझ में आया कि उसके ये सब करने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि उसका जीवन ही किसी से मिला हुआ दान था। किसी और की महानता के कारण वो जी रहा था, नहीं तो उस दिन वो ही मारा जाता। नंबर उसी का था।

गर आप अपना जीवन स्वर्ग जाने के लोभ के बिना जीते हैं, तो आप सही रास्ते पर हैं। पर, अगर स्वर्ग का सौदे करके आप सही रास्ते पर चल सकते हैं तो जाईये, ऐसा कीजिये।

वो मिशनरी उसे नहीं जानता था। वो उसका दोस्त, पिता, या पुत्र, कुछ भी नहीं था। सिर्फ उसके डर और दुख को कम करने के लिये उसने ये निर्णय लिया था। केवल वह आदमी जीवन को जानेगा - वो जो चला गया, वो नहीं जो पीछे रह गया। सिर्फ वही अपने आप में एक खास मजबूती और शक्ति का अनुभव कर सकता है, वह आदमी नहीं जो अपने आप को बचा रहा है - वो ये अनुभव कभी नहीं कर सकता।

इसका मतलब ये नहीं है कि आप जा कर अपना बलिदान दे दें, या ऐसा कुछ पागलपन करें। वो आदमी जो अपनी मौत की तरफ गया, वो अपना बलिदान देने की बात नहीं सोच रहा था। वो किसी दूसरे के लिये अपने आप को बलिदान करने के लिये उतावला नहीं हो रहा था। उस समय उसने बस ये देखा कि क्या करने की ज़रूरत थी और उसने बिना दूसरा कोई विचार किये, बस ये कर दिया। ये एकदम अद्भुत बात है। पर अगर आप स्वयं का बलिदान देने की कोशिश करने लगें, ताकि आपको ताकत मिले या स्वर्ग जाने को मिले, तो बात वो नहीं होगी।

अगर आप अपना जीवन स्वर्ग जाने के लोभ के बिना जीते हैं, तो आप सही रास्ते पर हैं। पर, अगर स्वर्ग का सौदे करके आप सही रास्ते पर चल सकते हैं तो जाईये, ऐसा कीजिये। और अगर ऐसी परिपक्वता आप में आ जाती है कि आपको कोई सौदा नहीं चाहिये, और फिर भी आप ये कर सकते हैं, तो ये अच्छा है। आप अगर इन सीमाओं से बाहर आ गये हैं कि आप को कुछ दिया जाये, तो ही आप कुछ करेंगे, यानि भले ही आपका वेतन नहीं बढ़ाया जाये फिर भी आप ओवरटाईम करेंगे, तो आप में एक अलग तरह की ताकत है। जो आदमी सिर्फ उतना ही करता है, जितना उसी के लिये जरूरी है, तो उसे भी उतना ही मिलेगा। अपने जीवन में वह हमेशा भिखारी ही रहेगा। उसे कभी पता नहीं चलेगा कि वास्तव में ताकत क्या है, उसे दिव्यता का कुछ भी पता नहीं चलेगा क्योंकि दिव्यता सब कुछ बिना किसी उद्देश्य के करती है। आप ही देखिये! सृष्टि में सब कुछ बिना उद्देश्य के ही किया जाता है।

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