ऐसी क्या आकर्षण था कृष्ण के भीतर कि पूतना जैसी राक्षसी जो उनकी जान लेने आई थी, खुद ही अपनी जान दे बैठी? यहां तक कि माता यशोदा भी कृष्ण की किसी गोपी की तरह ही रास का हिस्सा बन गई...

श्रीकृष्ण के जीवन में बहुत सारी स्त्रियां थीं। वे सभी कृष्ण को प्यारी थीं। हम उन सभी महिलाओं की चर्चा न करके केवल कुछ खास स्त्रियों की ही बात करेंगे। ये उनकी भक्त थीं, लेकिन उन्होंने खुद को कभी उनका भक्त नहीं कहा। वे उनकी प्रेमिकाएं थीं। शुरुआत उनकी मां यशोदा से करते हैं। वह कृष्ण को बहुत प्यार करती थीं, एक बेटे के रूप में नहीं, उससे भी कहीं बढक़र।

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वह उस बच्चे की ओर इतनी आकर्षित हो गई कि उसके अंदर भी मातृत्व उमड़ पड़ा। अब वह उस बच्चे को जहर न देकर खुद को ही सौंप देना चाहती थी।
जब वे शिशु थे तो यशोदा के लिए वह एक खूबसूरत बच्चे की तरह थे। लेकिन वह बहुत जल्दी बड़े हो गए, क्योंकि उनका विकास बड़ी तेजी के साथ हुआ। कोई भी मां इस तरह के तीव्र विकास के लिए खुद को तैयार नहीं कर सकती, इसलिए उनकी ममता कृष्ण के पांच-छह साल के होने तक ही खत्म हो गई। इसके बाद वह उनकी मां कम और प्रेमिका ज्यादा बन गईं और उन्हें उसी रूप में प्यार करने लगीं।

श्रीकृष्ण के साथ यशोदा का रिश्ता ऐसा बन गया, जैसे वह उनकी कोई गोपी हों। वह भी रास का ही हिस्सा बन गईं। वह राधा को पसंद नहीं करती थीं, क्योंकि उन्हें राधा कुछ ज्यादा ही तेज लगती थी। राधा का व्यवहार एक गांव की लडक़ी जैसा साधारण नहीं था। वह बातूनी किस्म की थी। यशोदा को लगता था कि वह उनके बेटे पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है। लेकिन कृष्ण के वहां से जाने के बाद राधा द्वारा आयोजित रासलीला में भाग लेने से वह खुद को रोक नहीं सकीं।

इसके बाद कृष्ण फिर कभी वृंदावन नहीं गए, अपनी मां से मिलने भी नहीं। कई बार नदी के उस ओर वे मथुरा में ही होते थे, लेकिन कभी वृंदावन नहीं गए। दरअसल, वृंदावन के लोगों के मन में कृष्ण की छवि एक अल्हड़ ग्वाले की थी और अब वहां जाकर वे इस छवि को तोडऩा नहीं चाहते थे। अब वे धर्म-संस्थापक बन गए थे और अब इस रूप में वो वहां नहीं जाना चाहते थे। दुनिया में धर्म को प्रतिष्ठित करने का कार्य अब उन्हें करना था। इसके लिए उन्हें कई ऐसे काम करने थे, जो उनके घरवालों का दिल दुखा सकता था। वे लोग जैसे थे, खुश थे। अब यशोदा राधा के साथ ही गोपी बन गई थीं, क्योंकि कृष्ण अब उनके बेटे नहीं रहे। यहां भी उनकी नीलिमा ने अपना जादू बिखेर रखा था।

पूतना एक राक्षसी थी। उसे कंस ने उन सभी नवजात बच्चों को मारने के लिए भेजा था, जिनका जन्म उस महीने हुआ था, जिस महीने में कृष्ण पैदा हुए थे। वह बड़ी ही बेरहमी से नवजात शिशुओं को मार रही थी। जब वह कृष्ण के घर पहुंची तो उसने अपनी मायावी शक्तियों का इस्तेमाल करके खुद को एक बेहद सुंदर स्त्री के रूप में बदल लिया। जब वह राजसी पोशाक में घर में आई तो लोग उसे देखकर दंग रह गए। उसने कहा कि वह इस बच्चे को अपनी गोद में लेना चाहती है।

श्रीकृष्ण के साथ यशोदा का रिश्ता ऐसा बन गया, जैसे वह उनकी कोई गोपी हों। वह भी रास का ही हिस्सा बन गईं। वह राधा को पसंद नहीं करती थीं, क्योंकि उन्हें राधा कुछ ज्यादा ही तेज लगती थी।
वह बच्चे को लेकर बाहर बैठ गई। उसने अपने स्तनों पर जहर लगा लिया और बच्चे को दूध पिलाने का नाटक करने लगी। उस समय इस देश में ऐसी प्रथा थी कि मां के अलावा अगर कोई दूसरी औरत बच्चे को संभाल रही है, तो वह उसे दूध पिला सकती थी। यह उस बच्चे के लिए अच्छी भेंट माना जाता था। चूंकि उन दिनों कोई गर्भनिरोधक तो होता नहीं था, इसीलिए बहुत सी जवान स्त्रियां ऐसा करने की हालत में होती थीं। इस तरह उन दिनों दूसरे के बच्चों को दूध पिलाना बुरा नहीं माना जाता था, जैसा कि आजकल है कि बच्चे को केवल जन्म देने वाली मां ही दूध पिलाती है।

तो पूतना अपने जहर लगे स्तनों से कृष्ण को मारने आई थी। लेकिन जैसे ही उसने उस बाल गोपाल की ओर देखा, उस नीले जादू ने उसको भी अपने वश में कर लिया। वह उस बच्चे की ओर इतनी आकर्षित हो गई कि उसके अंदर भी मातृत्व उमड़ पड़ा। अब वह उस बच्चे को जहर न देकर खुद को ही सौंप देना चाहती थी। उसने मन ही मन कहा कि कंस के आदेश पर मैं तो तुम्हें मारने आई थी। मेरे स्तनों पर जहर लगा है, लेकिन मेरा मन कह रहा है कि तुम केवल मेरा दूध ही नहीं पिओ, बल्कि मेरी जिंदगी भी ले लो। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं तुम्हें स्तनपान करा सकती हूं। यह सोचते हुए उसने भरपूर प्यार के साथ उस जहरीले स्तन से बच्चे को दूध पिला दिया। कृष्ण ने तुरंत ही उसकी जिंदगी छीन ली और वह मुस्कुराती हुई जमीन पर गिर पड़ी। वह अंत में यही सोच रही थी कि मेरी जिंदगी खुद भगवान ने ही ली है। इससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए?

तो वह हत्यारिन, जो कृष्ण को मारने आई थी, चंद मिनटों में ही उनके जादू में पडक़र उनके प्यार में फंस गई। लोग उनके इसी जादू के कायल थे।