शरीर : एक घड़ा जो सौर कुम्हार की चाक से निकला है
इस शरीर का अस्तित्व सौर्य मंडल से बहुत गहराई से जुड़ा है। सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि विश्व की प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद में आकाशगंगाओं और नक्षत्रों का वर्णन मिलता है, और ऐसा योगियों ने अपने ही भीतर जा कर पता लगाया था। आइये जानते हैं इस भीतर मुड़ने के विज्ञान - योग - के बारे में...
दुर्भाग्यवश, जब आप “योग” शब्द कहते हैं, तो लोगों को लगता है कि इसका मतलब किसी मुश्किल मुद्रा में बैठना है। मुद्रा योग का सिर्फ एक छोटा सा पहलू है। योग सिर्फ आपके शरीर को मोड़ने, सिर के बल खड़े होने या सांस रोकने का नाम नहीं है।
“योग” का अर्थ है मेल। मेल क्या है? किस चीज का किस चीज से मेल हो सकता है? अभी खुद को लेकर आपकी समझ और अनुभव बहुत प्रबल है। आप यहां एक व्यक्ति के रूप में हैं, लेकिन पेड़ जो सांस छोड़ते हैं, उसे आप अंदर लेते हैं और जिसे आप छोड़ते हैं, उसे वे अंदर लेते हैं। दूसरे शब्दों में आपके आधे फेफड़े वहां टंगे हुए हैं। उसके बिना आपके भीतर आपके फेफड़े काम करना बंद कर देंगे। फिर भी अपने अनुभव में आपको लगता है कि यह व्यक्ति सब कुछ है।
योग – अगर आप विश्वास नहीं अनुभव चाहते हैं
यह सब कुछ नहीं है। सिर्फ सांस के अर्थों में नहीं, आपके शरीर का हर सूक्ष्म कण आधुनिक भौतिकी के मुताबिक इस अस्तित्व में बाकी सभी चीजों के लगातार संपर्क में है। यदि यह संपर्क समाप्त हो जाता है, तो आपका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि पूरा अस्तित्व सिर्फ एक ऊर्जा है। लंबे समय से दुनिया के सभी धर्म कहते रहे हैं कि ईश्वर हर जगह है।
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किताब पढ़ना नहीं भीतर मुड़ना जरुरी है
अगर आप खुद जानना चाहते हैं, तो आपको अपने अंदर की ओर मुड़़ना चाहिए। आज लोग किताबें पढ़ते हुए अपने आप को जानने की गंभीर कोशिश कर रहे हैं। मैं किताबों के खिलाफ नहीं हूं। यदि आप किसी देश या व्यवसाय के बारे में जानने के लिए या इंजीनियरिंग सीखने के लिए कोई किताब पढ़ रहे हैं, तो अच्छी बात है। मगर अपने आप के बारे में जानने के लिए किताब पढ़ना बेवकूफाना है।
अस्तित्व की सबसे पुराणी किताब ऋग्वेद
समझ और अनुभव के विषय में हमारी परंपरा में बहुत सुंदर कहानियां हैं। आपने ऋग्वेद का नाम सुना है? यह दुनिया की प्राचीनतम किताब है। उसे लिखा नहीं गया था, उसे एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक बोलकर आगे बढ़ाया गया। ऋग्वेद में उपयुक्त चित्रों और गणितीय गणनाओं के साथ आकाशगंगा की व्यवस्थाओं और खास नक्षत्रों का विस्तार में वर्णन किया गया है।
“आज के न्यूरोसाइंटिस्टों का यह कहना अजीब है कि कोई मनुष्य फिलहाल जितना कुशाग्रबुद्धि है, उससे अधिक नहीं हो सकता।”
शरीर एक घड़ा है, जो सौर कुम्हार के चाक से बन कर निकला है। सौर प्रणाली जिस तरह घूमती है, उससे यह तय होता है कि शरीर कैसा होगा और सौर प्रणाली में जो भी होता है, वह शरीर में भी होता है। आदियोगी ने कहा था, “आपका शरीर एक ऐसे बिंदु तक विकसित हो चुका है, जहां आगे विकास संभव नहीं है, जब तक कि सौर प्रणाली में कोई बुनियादी बदलाव नहीं होता।”
मस्तिष्क का सिर्फ बेहतर उपयोग हो सकता है – विकास नहीं
आज के न्यूरोसाइंटिस्टों का यह कहना विचित्र है कि मानव मस्तिष्क और आगे विकसित नहीं हो सकता। एक मनुष्य फिलहाल जितना कुशाग्रबुद्धि है, उससे अधिक नहीं हो सकता। वह सिर्फ अपने मस्तिष्क का बेहतर इस्तेमाल कर सकता है, उसे और विकसित नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करने के लिए या तो न्यूरॉन का आकार बढ़ाना होगा या मस्तिष्क में न्यूरॉन की संख्या को बढ़ाना होगा।
लेकिन शारीरिक रूपांतरण या विकास इकलौता विकास नहीं है। शुद्ध शारीरिक विकास केवल पहला चरण है। शारीरिक विकास के बाद, विकास की प्रक्रिया शारीरिक से दूसरे आयामों में चली जाती है। जानवर से मनुष्य तक विभिन्न आयामों में विकास हुआ है। सबसे ऊपर, बुनियादी जागरूकता विकसित हुई है।
पूरी योगिक प्रक्रिया जागरूकता लाने से जुड़ी है
आध्यात्मिकता का समूचा महत्व आपको एक जागरूक प्रक्रिया में अधिक से अधिक लाने के उसके विभिन्न तरीकों में है। आपने अप्राकृतिक लगने वाले कारनामे करने वाले योगियों के बारे में सुना होगा – कोई अपनी हृदयगति रोक लेता है, कोई कुछ और रोक लेता है। ये ऐसे लोग हैं, जिन्होंने योग सीखा है लेकिन सर्कस कलाकार बनना चाहते हैं। लेकिन मूल रूप से इसका महत्व यह है कि आपके शरीर के स्वेच्छा से काम करने वाले अंग को भी एक जागरूक प्रक्रिया में लाया जा सकता है, जहां आप तय करते हैं कि आपका दिल किस गति से धड़केगा। वह अब एक स्वैच्छिक प्रक्रिया नहीं रह जाता।