Sadhguruबुद्धि का मूल काम चीजों को अलग करना है, उनमें अंतर करना है। योग मेल की बात करता है। एक मैं हूं, दूसरे आप हैं, बिल्कुल अलग-अलग। यह मेल कैसे होगा?

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प्रश्न:आमतौर पर जहां कहीं भी प्रवचन होता है और हम योग के बारे में सुनते हैं, आमतौर पर जो बताया जाता है वह उन शारीरिक आसनों के परे की बात होती हैं, जो पश्चिम से लौटकर आए हैं। कहा जाता है कि योग जीवन जीने का तरीका है। तो फि र जीवन और योग में क्या फ र्क है?

सद्‌गुरु: अगर कोई कह रहा है कि योग जीवन जीने का तरीका है तो या तो वह अज्ञानतावश ऐसा कह रहा है या मार्केटिंग करने में वह अच्छा है। वे केवल उन बातों को बता रहे हैं, जो आपके लिए आज अभी जरूरी हैं क्योंकि अगर वे बहुत सारी बातें बताएंगे तो आप वहां नहीं जाएंगे। जब आप पहले दिन जाते हैं, वे कहेंगे ‘यह कुछ और नहीं है, यह तो जीवन जीने का एक तरीका है, जीवन पद्धति है। आपको कुछ भी नहीं करना है। आप अपने जीवन में सब कुछ कर सकते हैं और फि र भी इसे कर सकते हैं।’ यह मार्केटिंग है और यह करनी ही पड़ेगी, नहीं तो बात कैसे बनेगी।

क्या योग एक व्यायाम है?

तो क्या योग एक व्यायाम है या जीवन पद्धति है? योग का शाब्दिक अर्थ होता है मेल। जब हम मेल कहते हैं तो इसका अर्थ है कि आप अपना व्यक्तिगत अस्तित्व विलीन कर रहे हैं। आपके अनुभव में हर चीज आपका ही हिस्सा बन जाती है। यह कैसे संभव है? आज आधुनिक विज्ञान यह साबित कर रहा है कि पूरा का पूरा अस्तित्व एक ही ऊर्जा है। जब आइंस्टीन ने कहा E = mc² तो वह इसी बात की गणितीय अभिव्यक्ति थी। इसका मतलब यही था कि पूरी की पूरी सृष्टि सिर्फ एक ऊर्जा है, जो अरबों अलग-अलग तरीके से अभिव्यक्त हो रही है, लेकिन है सब एक ही ऊर्जा। आप जानते ही हैं कि जिस धरती पर आप बैठे हैं, वही जब खेती की गई तो भोजन बन गई। आपने जब उसे खाया तो इससे आपके शरीर का निर्माण हुआ। तो इस तरह से आप और यह धरती अलग नहीं हैं। जिन पांच तत्वों से मिलकर इस धरती का निर्माण हुआ है, वही इस जगत की तमाम दूसरी चीजों का भी निर्माण करते हैं। यह सब हम जानते हैं।

आप जानते ही हैं कि जिस धरती पर आप बैठे हैं, वही जब खेती की गई तो भोजन बन गई। आपने जब उसे खाया तो इससे आपके शरीर का निर्माण हुआ। तो इस तरह से आप और यह धरती अलग नहीं हैं।

तो ऊर्जा एक ही है, लेकिन ऐसा क्यों है कि आप इसे इस तरह से महसूस नहीं करते। इसकी वजह यह है कि अभी आपकी बुद्धि काम कर रही है। बुद्धि का मूल काम चीजों को अलग करना है, उनमें अंतर करना है। आप इंसान और कुर्सी के बीच अंतर कर सकते हैं क्योंकि आपकी बुद्धि काम कर रही है। आप किसी इंसान और अपने बीच फ र्क कर सकते हैं क्योंकि आपकी बुद्धि काम कर रही है। इस अंतर के भाव के बिना आप इस धरती पर जीवित ही नहीं रह पाएंगे। इस धरती पर जीवित रहने के लिए यह जरूरी है कि आपके भीतर चीजों को अलग करने का बोध हो। अगर आप कहीं जाएं और आपकी बुद्धि काम न कर रही हो तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि आपको कहां से अंदर जाना है, खिडक़ी से, दरवाजे से या दीवार फांदकर। चूंकि आपकी बुद्धि काम कर रही है इसीलिए आपको पता है कि आपको कहां जाना है, नहीं तो आप यह कभी नहीं जान पाएंगे।

शरीर और मन से परे

तो योग मेल की बात करता है। यह मेल कैसे होगा? यह कैसे संभव होगा? एक मैं हूं, दूसरे आप हैं, बिल्कुल अलग-अलग। दोनों चीजों के एक दूसरे के साथ मिल जाने का कोई सवाल ही नहीं है। लेकिन हर चीज एक कैसे हो सकती है? यह पानी, वह भोजन जो आपने खाया है, वह आप हैं क्योंकि ये आपके इंद्रियबोध की सीमाओं के भीतर चले गए हैं। अगर यह आपके इंद्रियबोध की सीमाओं से बाहर हों तो यह ‘आप’ नहीं हैं। अगर ये भीतर हैं, तो ये ‘आप’ हैं। यही आपके जीवन का अनुभव है। आपने जो अपना यह वजन बढ़ाया है, यह पूरा वजन इससे पहले इस धरती पर मौजूद था। धीरे-धीरे नाश्ता-खाना, नाश्ता-खाना और यह सब आप में समाता चला गया। आपने इस धरती को अपने इंद्रियबोध की सीमाओं के भीतर कर लिया। अब आप इसे ‘मैं’ समझते हैं।

जैसे आप यह महसूस करते हैं कि आपकी पांचों उंगलियां आपकी हैं, वैसे ही आप पूरे जगत को अपना महसूस करने लगते हैं। योग का यही मतलब है।

इंद्रियों की सीमाएं केवल शरीर तक ही सीमित नहीं हैं। उनका अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व भी होता है। आपने कभी न कभी इसका अनुभव किया होगा। क्या कभी आप इतने आनंद में रहे हैं कि आपकी आंखों से आंसू आ गए हों? ऐसे में अगर आप अपने शरीर से आठ या नौ इंच की दूरी से भी अपने हाथ को शरीर पर फेरें तो आपके शरीर में आपको थोड़ी बहुत संवेदना महसूस होगी। आपको स्पर्श करने की जरूरत नहीं है, फि र भी संवेदनाएं होंगी। क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है? किसी भी वजह से जब आप बहुत खुश होते हैं, अगर आपकी ऊर्जा उस वक्त जबर्दस्त तरीके से स्पंदित हो रही हो, तो आप अपने शरीर को उससे आठ-नौ इंच की दूरी पर भी महसूस कर सकते हैं। क्योंकि जब भी आप बहुत अधिक खुश होते हैं तो आपकी संवेदना या कहें आपका संवेदी शरीर अपना विस्तार कर लेता है। इतना ही नहीं, कुछ खतनराक स्थितियों में भी आपको इसका अनुभव हो सकता है। यह चिकित्सा विज्ञान द्वारा प्रमाणित तथ्य है कि अगर किसी की टांग काट दी जाए तो भी उसको अपने टांग की संवेदना महसूस होती है, क्योंकि संवेदी टांग वैसी की वैसी ही बनी रहती है। उस शख्स को अपने उस पैर में दर्द भी महसूस होगा, जो अब है ही नहीं। इसका मतलब यह हुआ कि आपके संवेदी शरीर का अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व है, जो शरीर से परे है। योग का मतलब है कि आप अपनी ऊर्जा को इतना तीव्र और स्पंदित बनाएं कि आपका संवेदी शरीर इस ब्रह्मांड जितना विशाल हो जाए। अब आप बैठे-बैठे पूरे जगत को अपने भीतर महसूस कर सकते हैं। जैसे आप यह महसूस करते हैं कि आपकी पांचों उंगलियां आपकी हैं, वैसे ही आप पूरे जगत को अपना महसूस करने लगते हैं। योग का यही मतलब है।