सद्‌गुरुक्या हमें काम जीवन यापन के लिए करना चाहिए या फिर अपने मन पसंद की चीज़ से जुड़ा काम करना चाहिए? जानते हैं काम से जुड़े कुछ पहलू सद्‌गुरु से

एक निश्चित वय को प्राप्त होते ही आपके ऊपर धन कमाने की बाध्यता आ जाती है, आप कोई पेशा चुनते हैं, लेकिन दूसरा पेशा उससे बढिय़ा लगता है। मन डांवाडोल हो कर सोचने लगता है, क्यों न इस काम को छोडक़र उसे चुन लें?

इच्छा और विकल्प बदलते रहते हैं इसलिए लक्ष्य शिथिल हो जाता है। एक नौजवान ने मेरे पास आकर अपनी लाचारी व्यक्त की, “मुझे संगीत का बड़ा शौक है। लेकिन जीविका चलाने के लिए नौकरी करनी पड़ रही है।”

बताइए, उस युवक को कौन-सा काम चुनना चाहिए था? मेरे ख्याल में संगीत के वाद्य-यंत्रों की दुकान में झाडू लगाने का ही काम मिले तो उसे खुशी से स्वीकार करना चाहिए। भले ही वह काम वाद्य-यंत्रों को झाड़-पोंछकर रखने का हो, तो भी सौ-फीसदी लगन के साथ उसमें डूब जाना चाहिए।

कैसे पता चले कि क्या काम करें?

यों अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित करते हुए काम में मग्न होने पर उसका विकास जिस तरह होना हो, स्वत: हो जाएगा। किस क्षेत्र को चुनना है, यह तय करने की सूझबूझ आप में नहीं है? कोई बात नहीं।

जो भी कर्म करते हैं, उसमें सौ-फीसदी निष्ठा के साथ लग जाएंगे तो आपकी अंतश्चेतना आपको सही मार्ग पर स्वयं ले जाएगी।
इस समय आप जो भी काम कर रहे होते हैं, उसमें पूरे मन से लग जाइए, पूर्ण रूप से अपने आपको समर्पित कीजिए। ‘पूर्ण रूप से’ का मतलब, तन-मन से उसमें लग जाना है और जरूरत पडऩे पर जान की बाजी लगाने को तैयार रहना है। जो भी कर्म करते हैं, उसमें सौ-फीसदी निष्ठा के साथ लग जाएंगे तो आपकी अंतश्चेतना आपको सही मार्ग पर स्वयं ले जाएगी।

जब काम करते समय उसमें खुशी का एहसास होने लगे तभी समझिए कि आप पूर्ण रूप से काम कर रहे हैं। जोर-जबर्दस्ती के कारण या मजबूरी में आकर काम करने की भावना आप में आए तो उस काम को आप बेमन से कर रहे होते हैं। ऐसे में अल्सर, उच्च रकतचाप और नाना प्रकार के मनोरोग आपके शरीर में घर करने के लिए बिन बुलाए हाजिर हो जाएंगे।

अपना बोझ नीचे रखना सीखें

शंकरन पिल्लै एक बार रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे। सुविधा से बैठने के लिए जगह मिल गई तो बैठ गए। उसके बाद भी सिर पर रखी सामान की गठरी उन्होंने नीचे नहीं उतारी, उसे ढोते हुए बैठे रहे।

जिन लोगों को शंकरन पिल्लै की तरह अपने भार को उतारना नहीं आता, वे क्या किसी काम को तरीके से कर सकते हैं? परिवार के पूरे बोझ को कंधे पर ढोने के दुख के साथ जो लोग काम करते हैं उनकी कौन-सी इच्छा पूरी होगी?
टिकट-बाबू आए, खाने-पीने की चीजें बेचने वाले आए। गठरी सिर पर होने की वजह से शंकरन पिल्लै से सहज ढंग से कोई भी काम करते नहीं बन रहा था।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

सहयात्रियों में से किसी ने पूछा, “भाई साहब, गठरी काफी बड़ी होने के कारण शायद नीचे उतारना मुश्किल हो रहा है। क्या मैं आपकी मदद करूं?”

“शुक्रिया, ऐसी कोई बात नहीं है।”

“ओह, अब समझा! गठरी के अंदर मूल्यवान वस्तुएं होंगी। चोरी का भय हो तो गठरी को नीचे रखकर आप उसके ऊपर बैठ सकते हैं न।”

“ना, कोई कीमती सामान नहीं। पुराने-कपड़े लत्ते हैं बस।”

“फिर उसे क्यों आप नाहक ढो रहे हैं?”

“बस यही सोचता हूं, अपने इस बोझ को बेकार रेलगाड़ी पर क्यों डालूँ?”

शंकरन पिल्लै बोले।

जिन लोगों को शंकरन पिल्लै की तरह अपने भार को उतारना नहीं आता, वे क्या किसी काम को तरीके से कर सकते हैं? परिवार के पूरे बोझ को कंधे पर ढोने के दुख के साथ जो लोग काम करते हैं उनकी कौन-सी इच्छा पूरी होगी?

मेहरबानी करके अपने मन के बोझ को उतार डालिए। जिस काम को कर रहे हैं उसे खुशी के साथ निभाइए।

ख़ुशी पाने के लिए खुद को दुखी न करें

प्लेटफॉर्म पर घोषणा सुनाई दे रही है, “आपकी गाड़ी चार घंटे विलंब से रवाना होगी।”

प्लेटफॉर्म पर मौजूद सारे के सारे प्रौढ़ जन, हां आप लोग, मुहर्रमी चेहरे के साथ बैठे रहेंगे मानों कयामत आने वाली हो। प्रतीक्षा करने के चार घंटे के दौरान कांटों पर बैठने की खीझ के साथ रेल-प्रबंधन को कोसते रहेंगे।

दुखी होने से मन का बोझ कम होने वाला नहीं है। खुशगवार जन ही किसी भी काम को अनायास खेल-खेल में कर सकते हैं।
लेकिन यात्रा के लिए इंतजार कर रहे बच्चों पर जरा गौर कीजिए। अपने हाथ में छोटी-मोटी जो भी चीज है उसे लेकर अपनी जगह पर मस्ती से खेलते हुए मिलेंगे, किसी तरह की खीझ के बिना। बच्चे अनावश्यक रूप से अपने आपको दुख नहीं देते। जो भी क्षण सामने हैं, खुशी से उनका आनंद लेते हैं। बिना किसी झंझट पाले, अपने जीवन को पूर्ण बना लेते हैं। लेकिन आप? जिंदगी में खुशी पाने के मकसद से अपने आपको दुखी बना लेते हैं। फिर भी आनंद लूटने का गुर न जानकर हार जाते हैं। परेशान हुए बिना तनाव के दबाव में आए बगैर, जिस काम को करना हो उसे जिम्मेदारी की भावना के साथ निभाइए। रेलगाड़ी न मिले तो बस पकड़ सकते हैं या टैक्सी ले सकते हैं। दूसरे किसी साधन के बारे में पूछताछ कर सकते हैं कोई भी साधन मिलने की गुंजाइश न हो तो प्रतीक्षा करने का जो समय मिला है उसे आनंदपूर्वक काट सकते हैं। दुखी होने से मन का बोझ कम होने वाला नहीं है। खुशगवार जन ही किसी भी काम को अनायास खेल-खेल में कर सकते हैं।

व्यापार में तरक्की पाने के लिए किस देवता को नमन करूँ?

यदि मैं किसी मंदिर का नाम लूं तो आप वहां जाएंगे। वहां जो देवता विराजे हैं, उनसे सीधे संवाद करने की कला आपको नहीं आती। इसलिए आप मंदिर के पुजारी को भगवान का एजेंट मान लेंगे।

मैदान में उतर कर अपने कौशल को दिखाने का वक्त है यह। अब भी आप भगवान को पुकारते रहेंगे तो इसका क्या मतलब है?
उसके हाथ में दस रुपए रखेंगे। आपका नाम, नक्षत्र, राशि और पता आदि का उल्लेख करते हुए वह एजेंट मंदिर के देवता का आह्वान करेंगे। यही कहेंगे, “हे भगवान! इस अक्लमंद आदमी ने तुम पर भरोसा रखते हुए दस रुपए खर्चे हैं। इसके बिजनेस को तुम्हीं उबार दो।”

क्या भगवान आएंगे? यहां बैठा कोई महामूर्ख भी आपके दिए दस रुपए के लिए आपके बिजनेस की देखभाल नहीं करेगा। मुंडन करके आपके द्वारा समर्पित बालों के गुच्छे या गोलक में डाले गए सिक्के चिल्लर पर खुश होकर जमाने भर आपकी परवरिश का भार लेने के लिए क्या भगवान इतने भोंदूमल हैं?

किस कदर अद्भुत यंत्र के रूप में प्रभु ने मनुष्य का सृजन करके संसार में भेजा है। प्रभु को जो काम करना था, उसे बड़े अच्छे ढंग से उन्होंने निभा दिया, अब तो बेटे, तेरे कौशल की बारी है।

मैदान में उतर कर अपने कौशल को दिखाने का वक्त है यह। अब भी आप भगवान को पुकारते रहेंगे तो इसका क्या मतलब है? आप एक करोड़ रुपए देंगे तब भी भगवान आपके लिए अपनी छोटी उंगली भी हिलाएंगे नहीं।

अगर अपने व्यापार की देखभाल करने का सलीका आपको नहीं आता तो व्यापार आपके किस काम का? सद्‌गुरु