अपने काम को बनाएं एक आध्यात्मिक प्रक्रिया
इस ब्लॉग में सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि हमारा काम एक अवसर है खुद को पूरी तरह समर्पित और केन्द्रित करके उसे एक आध्यात्मिक प्रक्रिया में बदल सकते हैं
काम और खेल जीवन के दो पहलू हैं, जिनकी क्षमताओं को लोगों ने महसूस नहीं किया है। किसी खेल को खेलना जीवन का एक ऐसा पहलू है, जिसमें पूरी तरह शामिल न होने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। या तो आप अंदर होंगे या बाहर। आध्यात्मिक प्रक्रिया भी बिल्कुल ऐसी ही है। अगर यही चीज अपने हर काम में भी लाई जाए - या तो आप काम करें या नहीं करें, कुछ भी आधे-अधूरे मन से न करें, तो आप खुद को कष्ट नहीं देंगे। अगर आप कोई ऐसा खेल खेल रहे हों, जिसे खेलने की आपकी इच्छा नहीं है तो आप पूरे खेल के दौरान खुद को सताते रहेंगे। कोई खेल हो या जीवन-प्रक्रिया अगर उसमें आप अनिच्छा से भाग लेते हैं, तो काम और खेल दोनों ही आपके लिए कष्ट का कारण बन जाएंगे। लोगों को अपने काम से परेशानी होती है और काम न हो तो परेशानी दोगुनी हो जाती है। छुट्टियों के शुरुआती चार दिन तो अच्छे लगते हैं, उसके बाद दिक्कत होने लगती है। इसकी वजह यह है कि अगर आप काम ठीक से नहीं कर सकते तो आप निश्चित रूप से छुट्टियां भी ठीक से नहीं बिता सकते।
काम एक वरदान है
काम एक तरह से वरदान है, क्योंकि तब आपको खाली समय नहीं मिलता। खाली समय में खुद को सही ढंग से संभालने के लिए काफी जागरूकता की जरूरत होती है।
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आध्यात्मिक प्रक्रिया के सही मायने
जब हम आध्यात्मिक प्रक्रिया की बात करते हैं तो हमारा मतलब खुद को मिटाने से होता है। खुद को मिटाने का मतलब, आप जो भी हैं, उस ढांचे को तोड़ देना। क्योंकि आप जो भी हैं, वह इकठ्ठा की गई चीजें हैं - व्यवहार का एक खास पैटर्न, कुछ खास किस्म की सीमाएं जो आपने अपने चरित्र में शामिल कर ली हैं, आदि।
काम और खेल दोनों शानदार परिस्थितियां हैं, अगर आप यह जान लें कि काम को खेल की तरह कैसे लिया जाए। खेल शब्द को हमेशा गलत तरीके से समझा गया है। जब हम किसी काम को खेल-खेल में करने की बात करते हैं, तो माना जाता है कि हम उसे गैरजिम्मेदारीपूर्वक करने को कह रहे हैं। खेल एक ऐसी चीज है जहां आप गैरजिम्मेदार हो ही नहीं सकते। क्या आप किसी खेल से जब चाहे तब बाहर निकल सकते हैं? जब आप एक टीम के तौर पर कोई खेल खेल रहे हैं, तो क्या ऐसा मुमकिन है कि आप बीच में बाथरूम चले जाएं और फिर आकर खेलने लगें? आप क्रिकेटर्स को दिन भर खेलते हुए देखते हैं। कभी आपने देखा है कि कोई खिलाड़ी खेल बीच में छोडक़र शौचालय चला गया हो? वे सुबह आते हैं और लंच तक मैदान पर रहते हैं। धूप में रहने के कारण वे खूब सारा पानी भी पीते हैं, फिर भी वहीं मैदान पर खड़े रहते हैं।
काम से सम्पूर्ण जुड़ाव बनाएं
मैं चाहता हूं कि आप अपने काम को खेल की तरह लें, क्योंकि खेल ही एक स्थिति है जिसमें आपका संपूर्ण जुड़ाव होता है, एक ऐसा जुड़ाव जिसमें आप आनंद भी महसूस करते हैं।
काम के नतीजे से मुक्ति
इसकी एक खूबसूरती भी है। आप जो भी करते हैं, आप उसके नतीजे से मुक्त होना सीख जाते हैं। आपको पता है कि एक बार एक नतीजा आ सकता है तो अगली बार कुछ और भी हो सकता है।
आप सबसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी के साथ खेलना चाहते हैं। आप खुद को मुश्किल परिस्थितियों में डालना चाहते हैं, क्योंकि जीतना और हारना आपके लिए उतना अहम नहीं हैं, अपनी क्षमताओं को बढ़ाना आपके लिए अहम हो जाता है। भौतिकता और आध्यात्मिकता के बीच यही फर्क है। भौतिकतावादी लोग अपनी सीमाओं से परे जाने की कोशिश तभी करते हैं, जब परिस्थितियां ऐसा करने के लिए उन्हें मजबूर करती हैं। दूसरी ओर आध्यात्मिक व्यक्ति बिना परिस्थितियों की मजबूरी के ही अपने आपको सीमाओं से परे ले जाता है। भौतिक दुनिया में इसकी तुलना के लिए सबसे उपयुक्त चीज खेल ही है। ध्यान खुद को अपनी सीमाओं से परे ले जाना है। आपको कोई मजबूर नहीं कर रहा है, आप स्वयं ही खुद को आगे ले जा रहे हैं। हर काम खेल की तरह होना चाहिए, पूरी तरह से केंद्रित, समर्पित और अपना सर्वोत्तम देने की कोशिश करना, लेकिन इसके बावजूद इस बात के लिए तैयार रहना कि अंतिम नतीजा आपके पक्ष में नहीं भी हो सकता है। इसका फैसला प्रकृति को करना है। अंतिम नतीजा क्या होगा, यह आपके या मेरे द्वारा तय नहीं किया जाता। आपको यह बात अच्छी तरह से जान लेनी चाहिए।