ध्यान : एक गुण है, कोई काम नहीं
मेडिटेशन आजकल एक फैशन की तरह इस्तेमाल होने लगा है। कोई किताब पढ़ कर तो कोई किसी से कुछ सुनकर मेडिटेशन का अपना मतलब और अपना तरीका विकसित कर लेता है। ऐसे में बहुत जरूरी है यह जानना कि आखिर मेडिटेशन है क्या?
मेडिटेशन आजकल एक फैशन की तरह इस्तेमाल होने लगा है। कोई किताब पढ़ कर तो कोई किसी से कुछ सुनकर मेडिटेशन का अपना मतलब और अपना तरीका विकसित कर लेता है। ऐसे में बहुत जरूरी है यह जानना कि आखिर मेडिटेशन है क्या?
‘मेडिटेशन’ शब्द के साथ लोगों के दिमाग में कई तरह की गलत धारणाएं हैं। सबसे पहली बात तो यह कि अंग्रेजी के मेडिटेशन शब्द का कुछ सार्थक मतलब नहीं है। अगर आप बस आंखें बंद कर बैठ जाएं तब भी अंग्रेजी में इसे मेडिटेशन करना ही कहा जाएगा। आप अपनी आंखें बंद करके बैठे हुए बहुत से काम कर सकते हैं- जप, तप, ध्यान, धारणा, समाधि, शून्य कुछ भी कर सकते हैं।
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तो आखिर वह चीज है क्या, जिसे हम मेडिटेशन कहते हैं? आमतौर पर हम ऐसा मान लेते हैं कि मेडिटेशन से लोगों का मतलब ध्यान से होता है। अगर आप ध्यान को मेडिटेशन समझते हैं तो यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आप कर सकते हैं। जिन लोगों ने भी ध्यान करने की कोशिश की है, उनमें से ज्यादातर अंत में इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि इसे करना या तो बेहद मुश्किल है या फिर असंभव। और इसकी वजह यह है कि उसे आप करने की कोशिश कर रहे हैं।
आप मेडिटेशन नहीं कर सकते, लेकिन आप मेडिटेटिव हो सकते हैं। ध्यान एक खास तरह का गुण है, कोई काम नहीं। अगर आप अपने तन, मन, ऊर्जा और भावनाओं को परिपक्वता के एक खास स्तर तक ले जाते हैं, तो ध्यान स्वाभाविक रूप से होने लगेगा। यह ठीक ऐसे है, जैसे आप किसी जमीन को उपजाऊ बनाए रखें, उसे वक्त पर खाद पानी देते रहें और सही समय पर सही बीज उसमें डाल दें तो निश्चित तौर से इसमें फूल और फल लगेंगे ही।
एक पौधे पर फूल और फल इसलिए नहीं आते हैं, क्योंकि आप ऐसा चाहते हैं। बल्कि इसलिए आते हैं, क्योंकि आपने उनके खिलने के लिए एक उचित वातावरण और अनुकूल परिस्थितियां पैदा कर दी है। ठीक इसी तरह अगर आप अपने भीतर भी एक उचित और जरूरी माहौल पैदा कर लें, अपने सभी पहलुओं को सही परिस्थितियां प्रदान कर दें तो मेडिटेशन आपके भीतर अपने आप होने लगेगा। यह तो एक खास तरह की खुशबू है, जिसे कोई इंसान अपने भीतर ही महसूस कर सकता है।
फिर क्यों करें ध्यान?
ध्यान का अर्थ है अपने भौतिक शरीर और मन की सीमाओं से परे जाना। जब आप अपने शरीर और मन की सीमाओं से परे जाते हैं, केवल तभी आप अपने अंदर जीवन के पूर्ण आयाम को पाते हैं। जब आप खुद को शरीर के रूप में देखते हैं तो आपकी पूरी जिंदगी बस भरण पोषण में निकल जाती है।
यह शरीर और यह मन आपका नहीं है, इन्हें आपने धीरे-धीरे समय के साथ इकठ्ठा किया है। आपका शरीर उस भोजन का बस एक ढेर भर है, जो आपने खाया है। आपका मन भी बस बाहरी दुनिया के असर और उससे मिले विचारों का ढेर है। आपके मकान और बैंक बैलेंस की तरह ही आपके पास एक शरीर और एक मन है। अच्छा जीवन जीने के लिए इनकी जरूरत होती है, लेकिन कोई भी इंसान इन चीजों से संतुष्ट नहीं होगा। इन चीजों के जरिये लोग अपने जीवन को केवल आरामदायक और सुखमय बना लेते हैं। पश्चिमी समाज में देखें तो जाहिर है कि आज आप जिन चीजों को पाने का सपना देखते हैं, वे ज्यादातर पहले से ही उनके पास हैं। क्या आपको लगता है, वे संतुष्ट हैं, आनंद की स्थिति में हैं? नहीं आनंद के आसपास भी नहीं हैं वे।
बस खाना, सोना, बच्चे पैदा करना और मर जाना, इससे पूर्ण संतुष्टि नहीं होती। इन सभी चीजों की जीवन में जरूरत पड़ती है। लेकिन इन चीजों से हमारा जीवन पूर्ण नहीं हो पाता। अगर आपने अपने जीवन में इन सारी चीजों को पा लिया है तो भी आपका जीवन पूर्ण नहीं होता। इसकी वजह यह है कि मानव जागरूकता की एक खास सीमा को लांघ चुका है। इंसान हमेशा कुछ और अधिक चाहता है, नहीं तो वह कभी संतुष्ट नहीं होगा। इसकी असल इच्छा असीमित होने की या फिर अनंत होने की है। तो ध्यान एक ऐसा जरिया है जो आपको, असीमित व अनंत की ओर ले जाता है।