मन में चलती फिल्म को कैसे रोकें?
सद्गुरु से एक प्रश्न पूछा गया कि ध्यान में बैठने के बाद मन में लगातार विचारों की एक फिल्म चलती रहती है। इस फिल्म को कैसे रोकें? सद्गुरु हमें मन की प्रकृति समझा रहे हैं
सद्गुरु से एक प्रश्न पूछा गया कि ध्यान में बैठने के बाद मन में लगातार विचारों की एक फिल्म चलती रहती है। इस फिल्म को कैसे रोकें? सद्गुरु हमें मन की प्रकृति समझा रहे हैं
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प्रश्न : सद्गुरु, जब मैं ध्यान में बैठता हूं तो ऐसा लगता है कि मेरे मन में लगातार एक फिल्म चल रही है और तब मुझे ऐसा लगता है कि मुझे इसे रोकने की कोशिश करनी चाहिए और इस कोशिश में मैं आराम से नहीं बैठ पाता ।
सद्गुरु: आप इन विचारों को रोकने की कोशिश मत कीजिए। दरअसल, मन की प्रकृति ही ऐसी है कि आप जबरदस्ती इससे एक भी विचार नहीं हटा पाएंगे।
मन (mind) में कोई नया विचार ( thoughts) नहीं आता
तो आप ध्यान में बैठे हुए हैं और विचार उठ रहे हैं तो इस दौरान आपको कुछ करना नहीं है। शैतान आता है, तो आपको उठकर भागना नहीं है, क्योंकि आपके मन में न तो भगवान आ सकते हैं और न ही शैतान, सिर्फ विचार ही आ सकते हैं।
आध्यात्मिक प्रक्रिया का मन (mind) के विचारों से कोई लेना-देना नहीं है
तो विचारों की जो भी प्रकृति हो, चाहें वे एक चित्र रूप में सामने आ रहे हों या एक फिल्म के रूप में, जिस भी रूप में यह आपके सामने आएं, आप इनको लेकर कुछ मत कीजिए। यह सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसके बारे में कुछ भी किए जाने की जरूरत नहीं है। आध्यात्मिक प्रक्रिया अस्तित्वगत होती है, न कि मनोवैज्ञानिक। आध्यात्मिकता का मतलब एक खास तरह का व्यवहार विकसित कर लेना, एक खास तरह की अच्छाई या एक खास तरीके की दयालुता विकसित कर लेना नहीं है। यह कहीं से भी आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं है। यह सिर्फ खुद को समाज के काम आने लायक बनाए रखने का एक सामाजिक तरीका है। आध्यात्मिक प्रक्रिया का आपके आसपास होने वाली चीजों या घटनाओं या फिर आपके मन में चल रही चीजों से कोई लेना-देना नहीं होता। आपके मन में जो चल रहा है और आपके आसपास जो चल रहा है, वो दोनों कोई अलग-अजग चीजें नहीं होतीं। जो चीजें आपके आसपास घटित हो रही हैं, वो आपके मन में इकठ्ठी होती गईं और फिर वे आपके मन के भीतर चक्कर काटकर आपको चकरा रही हैं।