कृष्ण ने गोकुल में होने वाले इन्द्रोत्सव को रोक कर गोपोत्सव मनाने की बात कही थी। क्या कृष्ण सच में इन्द्रोत्सव के खिलाफ थे? क्या कारण था कि वे गोपोत्सव मनाने के पक्ष में थे... 

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 कृष्ण बोले - 'जो पूजा किसी के डर की वजह से की जा रही हो, वह मुझे पसंद नहीं। लोग इंद्र से डरते हैं। उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने ऐसे चढ़ावों का आयोजन न किया तो इंद्र उन्हें दंड देंगे। मैं ऐसे किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेना चाहता जिसे लोग किसी देवता के डर से आयोजित करते हैं।'
यह 3500 साल पहले की घटना है। आज खगोलविद कृष्ण का समय काल 1400 से 1500 ईसा पूर्व सबित करनेके लिए तमाम वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। तो कृष्ण ने जब गर्गाचार्य को अपने मन की बात बता दी तो गर्गाचार्य बोले - ‘तुम कहना क्या चाहते हो? ऐसा आयोजन करना हमारे समाज में एक बेहद महत्वपूर्ण और महान काम है। यह एक ऐसी परंपरा है जिसे हम हजारों साल से यूं ही निभाते आ रहे हैं। वेदों में भी इस आयोजन के महत्व का वर्णन किया गया है। तुम अभी बच्चे हो। तुम भला ऐसा कैसे कह सकते हो कि मुझे यह आयोजन पसंद नहीं है?' इस पर कृष्ण बोले - 'जो पूजा किसी के डर की वजह से की जा रही हो, वह मुझे पसंद नहीं। लोग इंद्र से डरते हैं। उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने ऐसे चढ़ावों का आयोजन न किया तो इंद्र उन्हें दंड देंगे। मैं ऐसे किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेना चाहता जिसे लोग किसी देवता के डर से आयोजित करते हैं।'

कृष्ण के तर्कों से गर्गाचार्य थोड़े प्रभावित हुए और मुस्कराकर बोले, चलो मान लिया तुम्हारी बात ठीक है, लेकिन अब हमारे पास चारा क्या है? कृष्ण ने कहा, हम गोपोत्सव का आयोजन करेंगे। गोपोत्सव का मतलब है, कि हम ग्वालों का उत्सव मनाएंगे, न कि किसी ऐसे देवता का जो ऊपर बैठा हमें डराता है। मेरे आसपास जो भी लोग हैं, मैं उन्हें प्रेम करता हूं मसलन ये ग्वाले, ये गोपियां, गायें, पेड़, गोवर्धन पर्वत। ये सब हमारी जिंदगी हैं। यही लोग, यही पेड़, यही जानवर, यही पर्वत तो हैं जो हमेशा हमारे साथ हैं और हमारा पालन पोषण करते हैं। इन्हीं की वजह से हमारी जिंदगी है। ऐसे में हम किसी ऐसे देवता की पूजा क्यों करें, जो हमें भय दिखाता है। मुझे किसी देवता का डर नहीं है। अगर हमें चढ़ावे और पूजा का आयोजन करना ही है तो अब हम गोपोत्सव मनाएंगे, इंद्रोत्सव नहीं। इस फैसले का खूब विरोध हुआ। लोगों ने कहा, जो पूजा हजारों साल से होती आ रही है, उसे आप अचानक कैसे खत्म कर सकते हैं? यह तो हमारी परंपरा है। हम इसे ऐसे कैसे छोड़ दें? और अगर इंद्र को क्रोध आ गया तो? जरा सोचो वह हमारा क्या हश्र करेंगे? इंद्र के प्रकोप से यहां बाढ़ आ सकती है, और सब कुछ नष्ट हो सकता है।

‘जब मैं सुबह जागता हूं, जब मैं गायों को रंभाते सुनता हूं, और मां को गायों को दुहते और हर गाय को उसके नाम से पुकारते सुनता हूं, तो मैं समझ जाता हूं कि अब समय हो गया है  - अपनी आंखों को मलते हुए उठने का और मुस्कराने का।
खैर, कृष्ण अपनी बात पर डटे रहे। उन्होंने साफ कह दिया कि अगर मुझे यजमान बनाना है तो इंद्रोत्सव नहीं, गोपोत्सव मनेगा। यह एक ऐसा आयोजन होगा, जो हम सब प्रेम और मस्ती में डूबने के लिए करेंगे, किसी के डर से नहीं। अग्नि को हम प्रतीकात्मक तौर पर ही चढ़ावा चढ़ाएंगे। बाकी बचा घी और दूध हम खुद खाएंगे और पिएंगे! जैसी कि उम्मीद थी, कृष्ण की यह बात कुछ लोगों को रास नहीं आई। समाज दो भागों में बंट गया। कुछ लोगों का एक छोटा सा समूह बन गया, जो पुरानी परंपरा को छोड़ने  को तैयार नहीं हुआ। इस समूह के लोगों ने पहले की तरह इंद्रोत्सव ही मनाया। समाज के बड़े हिस्से ने कृष्ण का साथ दिया और गोपोत्सव मनाया, लेकिन जैसे ही गोपोत्सव का समापन हुआ, तो कृष्ण ने इंद्रोत्सव में भी हिस्सा लिया। इसे लेकर उनके मन में कोई प्रतिरोध या श्रेष्ठता का भाव नहीं था। वह तो बस जीवन में एक सुध पैदा कर रहे थे।

कृष्ण अपनी पूरी जिंदगी लोगों को सदाचार के साथ जीवन जीने की शिक्षा देते रहे, लेकिन उनके व्यक्तित्व का एकपहलू यह भी था। उन्होंने जो कुछ भी कहा, उसके अलग मतलब लगाए जा सकते हैं। तो अगर आप कृष्ण को समझना चाहते हैं, तो बस यह याद रखिए कि जीवन उनके लिए एक उत्सव की तरह था। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी एक उत्सव की तरह ही जी। यहां तक कि जब वह महज छह साल के थे, तब भी तमाम अच्छी-अच्छी बातें कहते थे। एक बार उन्होंने कहा - ‘जब मैं सुबह जागता हूं, जब मैं गायों को रंभाते सुनता हूं, और मां को गायों को दुहते और हर गाय को उसके नाम से पुकारते सुनता हूं, तो मैं समझ जाता हूं कि अब समय हो गया है  - अपनी आंखों को मलते हुए उठने का और मुस्कराने का।' क्या आप लोग जानते हैं कि जब आप सुबह जागते हैं तो वह समय आंखों को मलने और मुस्कराने का होता हैं। क्योंकि एक और दिन मिला।

मैं चाहता हूं, कि आप हमेशा उत्सव के मूड में रहें। आपका दिल प्रेम से भरा होना चाहिए, मन खुश होना चाहिए और शरीर स्वस्थ और जोशीला होना चाहिए। आपको हर पल यह समझना चाहिए कि जीवन एक उत्सव है। अगर ऐसा नहीं कर पाए तो आप कृष्ण को नहीं समझ सकते, क्योंकि कृष्ण एक ऐसे शख्स का नाम है जो विरोधाभासों से भरा पड़ा है। एक ही शख्स के भीतर इतने सारे विरोधाभास आपको और कहीं देखने को नहीं मिलेंगे। वह सबसे अघिक रंगीन और बहुआयामी थे, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।

आगे जारी ...

Images courtesy: Shivani Naidu