सिर्फ एक मुख्यमंत्री, एक प्रधानमंत्री की नहीं, हमें कई स्तरों पर लोगों की जरूरत है। लोकतंत्र का अर्थ है कि लोग ही नेता हैं। कोई भी व्यक्ति जो दिन भर में दस लोगों को प्रभावित कर सकता है, उसमें समाज में बदलाव लाने की काबिलियत है।


दीपल गाला: देश के बहुत से हिस्सों में काफी आंदोलन और उग्रवाद है। क्या आप इसकी वजह नेतृत्व की विफलता मानते हैं?

सद्‌गुरु: अधिकतर लोग एक इस ख्‍वाब में जी रहे हैं कि सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। हम सौ-दो सौ पुलिस वालों की मौत की खबर को तो इस तरह पढ़ते हैं मानो वह क्रिकेट का स्कोर हो। ऐसा नहीं है कि दुखद घटनाओं को झेलने की लोगों की क्षमता बढ़ गई है, दरअसल वे इन सबका मतलब भी नहीं समझ पा रहे हैं।

हमारे अंदर बिना किसी हिंसा के ऐसा करने की काबिलियत है। हमारे पास सिर्फ ऐसे नेतृत्व का आभाव है जो बिल्कुल लक्ष्य-केंद्रित हो। एक लंबे समय से ऐसे नेतृत्व की कमी रही है।

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आजकल तो आंदोलन एक पेशा बन गया है। लेकिन बेलगाम आंदोलन हिंसा की पहली सीढ़ी है। माओवादी भी खुद को आंदोलनकारी कहते हैं। आप विरोध कर सकते हैं, लेकिन अगर आप हर समय विरोध करते रहे, तो इससे अराजकता फैलेगी। अगर मुख्‍यमंत्री खुद सड़क पर बैठ कर विरोध करना चाहेंगे, तो कानून-व्यवस्था कहां रह जाएगी? अगर वह सोचते हैं कि वह महात्मा गांधी का अनुकरण कर रहे हैं, तो उसके लिए यह सही समय नहीं है। यह साथ मिलकर काम करने और देश को अस्तव्यस्त किए बिना बदलाव लाने का समय है।

दीपल गाला: आंदोलन तो दुनिया भर में हो रहे हैं। भारत में यह कैसे अलग है? किस तरह का नेतृत्व इस समस्या को सुलझा सकता है?

सद्‌गुरु: दूसरे देशों में लोगों की बुद्धि को अच्छी तरह व्यवस्थित किया गया है। लेकिन कुदरती बुद्धि के मामले में, हम उनसे बेहतर है। भारत बहुत जटिल नस्लों और सशक्त आनुवांशिक प्रकृति की धरती है, जिसने अनूठे लोग पैदा किए हैं। हर भारतीय सभी स्तरों पर काफी अव्यवस्था से गुजरता है, लेकिन इन सबसे उस पर उतना गहरा असर नहीं पड़ता, जितना दूसरी जगह के लोगों पर पड़ता है। इसकी वजह यह है कि देश की मूल संस्कृति काफी हद तक आध्यात्मिकता पर आधारित है। अपने आसपास के वातावरण से अप्रभावित रहने की यह खूबी बहुत ही असाधारण है।

लेकिन फिलहाल यह गुण हमारे लिए नकारात्मक साबित हो रहा है। इस समय हमें मुद्दों से थोड़ा और जुड़ने की जरूरत है, हमें समाधान ढूंढने की जरूरत है, हमें अरबों लोगों को साथ लाने की जरूरत है। दुनिया भर में लोगों को लगता है कि सिर्फ गुस्से से समस्याएं हल हो सकती हैं। लेकिन नहीं, मनुष्य की बुद्धि समस्याएं हल कर सकती है। प्रेम और करुणा से समस्याएं हल हो सकती हैं और सबसे बढकर समझदारी से समस्याएं हल हो सकती हैं। अगर हम गुस्से को बढ़ने देंगे, तो समाधान खुद समस्या से भी बड़ी समस्या बन जाएगा। यहां हम एक बड़े बदलाव की देहरी पर बैठे हैं। हमारे अंदर बिना किसी हिंसा के ऐसा करने की काबिलियत है। हमारे पास सिर्फ ऐसे नेतृत्व का आभाव है जो बिल्कुल लक्ष्य-केंद्रित हो। एक लंबे समय से ऐसे नेतृत्व की कमी रही है।

सिर्फ एकमुख्‍यमंत्री, एकप्रधानमंत्री की नहीं, हमें कई स्तरों पर लोगों की जरूरत है। लोकतंत्र का अर्थ है कि लोग ही नेता हैं। कोई भी व्यक्ति जो दिन भर में दस लोगों को प्रभावित कर सकता है, उसमें समाज में बदलाव लाने की काबिलियत है। वह कोई भी हो सकता है - गांव की पंचायत का नेता, कोई दुकानदार या कोई गृहिणी भी।

दीपल गाला: फिर हम नेतृत्व के लिए हर वक्त किसी का इंतजार क्यों करते हैं?

नई पीढ़ी को सशक्त बनाने की जरूरत है, उन्हें बताए जाने की जरूरत है कि आपको देश के लिए अपनी गर्दन घुसानी होगी। वरना यह देश विकसित नहीं होगा। इसलिए हमें ऐसे नेता की जरूरत है जो समझता है कि इस देश को कैसे पटरी पर लाया जा सकता है।

सद्‌गुरु: नेतृत्व का मतलब उस बदलाव को लाने के लिए कदम उठाना है, जो हम देखना चाहते हैं। भारत में अगर सड़क पर किसी के साथ कोई दुर्घटना होती है, तो हजारों लोग देखने आ जाएंगे, कोई मदद नहीं करेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई पीढ़ियों से हम सिर्फ गुजर-बसर करने की मनोस्थिति में रहे हैं। हमें अपनी गरदन घुसाने की नहीं, बस हर अच्छे-बुरे हालात में अपना घर चलाने की सीख दी गई है। यह पिछली पीढ़ियों का दिया ज्ञान है जो फिलहाल हमारे खिलाफ काम कर रहा है। भारतीय लोग काफी हद तक अब भी उसी मनोदशा में हैं।

इसलिए नई पीढ़ी को सशक्त बनाने की जरूरत है, उन्हें बताए जाने की जरूरत है कि आपको देश के लिए अपनी गर्दन घुसानी होगी। वरना यह देश विकसित नहीं होगा। इसलिए हमें ऐसे नेता की जरूरत है जो समझता है कि इस देश को कैसे पटरी पर लाया जा सकता है। भारत 1947 में पैदा नहीं हुआ था। हालांकि पिछले 8-10 हजार सालों में हमारा देश बहुत सारे राजनीतिक हिस्सों में बंटा, लेकिन भारत को हमेशा एक राष्ट्र के रूप में देखा गया। क्या किसी ने इसकी वजह जाननी चाही?

इस बातचीत का शेष भाग कल पढ़े