योगी क्यों नहीं रोकते संसार में हो रही हिंसा को?
मशहूर कवयित्री, लेखिका अरुंधती सुब्रमण्यम से बातचीत के दौरान, सद्गुरु से एक श्रोता ने जानना चाहा कि आख़िर योगी क्यों नहीं समाज में फैली हिंसा को रोक देते? जानते हैं।
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प्रश्न: संसार में इतनी हिंसा और दुःख-तकलीफ़ क्यों है? योगी अपनी ओर से कोई कोशिश क्यों नहीं कर रहे? आदियोगी इस समय सोने क्यों चले गए, जबकि अभी उनकी सबसे अधिक जरूरत है?
सद्गुरु: चलिए मान लेते हैं कि कल सुबह, मैं इस ग्रह पर होने वाली सारी हिंसा को रोक देता हूँ। इसके बाद आप क्या करेंगे? क्या आप पूरी तरह से आनंद, संतुष्टि और जीवंतता के साथ जीते हुए अद्भुत महसूस करने लगेंगे? नहीं। आप अपने लिए नई समस्याएँ खोज लेंगे। इस धरती की सबसे बदतर हिंसा आपके मन में चल रही है। आप लगातार खुद को घायल कर रहे हैं।
ये सबसे कम हिंसा वाला युग है
अगर आप मानवता के इतिहास पर एक नज़र दौड़ाएँ, तो हम ऐसे समय में जी रहे हैं जिसमें सबसे कम हिंसा हो रही है। बेशक, परमाणु बमों से होने वाली हिंसा दूर नहीं है पर रोज़मर्रा के जीवन में होने वाली हिंसा, किसी भी समय से कम ही है। समाज में लोगों की बुद्धि भ्रष्ट हो रखी है और अगर यह चीज़ दूर हो जाए तो बहुत अच्छी बात होगी। लेकिन अगर आप अपने मन में होने वाली हिंसा को दूर नहीं कर सकते तो आप धरती से इसके दूर होने के बारे में कैसे सोच सकते हैं? इस संसार में जो भी हो रहा है, वह आपके दिमाग में चल रही चीज़ों का ही बड़ा रूप है। आप मुझे बताइए कि क्या आपका एक दिन ऐसा गुजरता है जब आपके मन में कोई गुस्सा न हो, कोई खीझ न हो, आप पूरी तरह से आनंदमय हों? उस दिन हम मिल कर इसे संभव बना देंगे।
स्थिरता का आयाम
इस बात से मुझे वह एक घटना याद आ गई। हम आदियोगी के 112 फीट ऊँचे चेहरे पर काम कर रहे थे, मैं लोगों के एक दल के साथ काम कर रहा था और हमें मनचाहा रूप पाने में ढाई वर्ष का समय लग गया। मैंने लोगों से नहीं कहा, लेकिन मैं एक ऐसा चेहरा चाहता था, जो स्थिर व शांत होने के साथ-साथ जीवंत और मादक भी हो। स्थिरता ही जीवन का सबसे जीवंत आयाम है क्योंकि अंतरिक्ष की स्थिरता से ही बाकी सब कुछ उपजा है। लेकिन हम कणों की छोटी गतिविधियों में इतने खोए हैं कि उस बड़े पर्दे को देख ही नहीं पाते, जिस पर यह सब घट रहा है। हम एक ऐसे आयाम की बात कर रहे हैं, जो आपको इनसे परे ले जाता है।
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